'कहानी का कोना' में पढ़िए मेरी यानि, टीना शर्मा 'माधवी' की लिखी कविता 'गढ़िए एक झूठी कहानी'...।
गढ़िए एक 'झूठी कहानी'
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गर पाना हैं, 'अपनापन'
तो गढ़िए एक 'झूठी कहानी' अपनी...।
गर ख़्वाहिशें हैं, किसी 'अपने' की
तो गढ़िए एक झूठी कहानी।
अमीरी नहीं बल्कि, बेबसी और गरीबी की
गढ़िए एक झूठी कहानी।
इसलिए नहीं कि 'दया' पा सको ओरो की
इसलिए कि, परख सको 'अपनेपन' को...।
एक झूठी कहानी ही सही
पर, दुनिया जहान की भीड़ से अलग
क्या पता मिल जाए 'अपना' कोई...।

टीना शर्मा 'माधवी'
जो आंखों की नमी देख सके
चेहरे के भावों को पढ़ सके
चुभते घावों को मुस्कान से 'सी' सके,
जेब में भले ही पैसा न हो उसके
फिर भी करोड़ों की 'हिम्मत' दे सके....।
गर मिल सके ऐसा कहीं 'अपना'
तो बटोर लेना उस 'अपनेपन' को
दूरी बना लेना उस 'थोथेपन' से
जो भीड़ में अकसर है मिलती...।
जहां बनते हैं सभी 'अपने'
होता नहीं जिनमें 'अपनापन'
गर पाना हैं, 'अपनापन'
तो गढ़िए एक 'झूठी कहानी'...।
क्या पता मिल जाए 'अपना' कोई...।
फिर क्या फ़र्क पड़ता हैं
कहानी स़च्ची हैं या झूठी....।
'अपनापन' तो दोनों ही सूरतों में होगा...।
टीना शर्मा'माधवी'
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