आज 'फादर्स—डे' हैं। ये दिन पिता के प्रति अपनी कृतज्ञता दिखाने का सिर्फ एक माध्यम हैं। निश्चित ही बदलते वक़्त के साथ आज एक गंभीर और कड़क स्वभाव वाले पिता की जगह 'नरम दिल' और 'दोस्ताना' व्यवहार के साथ आज का पिता खड़ा हैं। यह एक अच्छा साइन भी हैं...।
पिता चाहे गरीब हो या अमीर वह सिर्फ अपने बच्चों की इच्छाएं पूरी करने में लगा रहता हैं... और असल में यहीं हमारी संस्कृति का हिस्सा भी हैं। इसी भावनात्मक रिश्तें पर आधारित हैं ये कविता....।
बाप की 'फटी' हुई जेब से जो ख्वाहिशें पूरी हुई
वो 'बेहिसाब' हैं...।
खिलौना खरीदने की औकात न थी, फिर भी खरीद कर दे देने की
उनकी हिम्मत भी 'बेहिसाब' हैं।
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सिद्धी शर्मा |
'राजकुमारी' की तरह अपनी पलकों पर बैठाकर रखने का
उनका हौंसला भी बेहिसाब हैं..।
इच्छा पूरी न कर पाने की उनकी अपनी
मजबूरियां भी बेहिसाब हैं...।
आंखों में आंसूओं को छुपाकर रख लेने का उनका
अंदाज भी बेहिसाब हैं...।
और मेरी खुशी देख अपने होंठों पर मुस्कान सजाकर
रखना भी 'बेहिसाब' हैं...।
दिल की तिजोरी में एक 'पोथी' पड़ी हैं कहीं ...।
जिसका 'कुल हिसाब' अब भी 'बेहिसाब' ही हैं...।
कोई केल्क्यूलेटर हो तो लगाना उस 'फटी' जेब का हिसाब
जिसमें अब भी हैं आत्म—विश्वास से भरा हाथ....।
बूढ़ी हो गई हैं हथेलियां
घिस गई हैं ऐड़ियां...।
फिर भी ख्वाहिश पूरी कर रही हैं ये 'फटी' जेब...।
टीना शर्मा 'माधवी'