असल ‘ठेकेदारी’ करके तो देखो..

by Teena Sharma Madhvi
      बेटा होगा या बेटी..? इसकी तसल्ली करने के लिए पति ने  गर्भवती पत्नी के पेट को बड़ी ही बेरहमी से चीर डाला। वो भी एक पंडित के कहने पर। 

    उत्तर प्रदेश के बदायूं में हुई यह घटना वाकई सन्न कर देने वाली है। 
   ऐसा करते हुए क्या एक बार भी उसके हाथ नहीं कांपे होंगे? उसका दिल नहीं दहला होगा? ये सवाल हैं उस समाज का जिस समाज के हम हिस्से हैं।  
      फिर मौन क्यूं हैं अब समाज के वे ठेकेदार जो पिछले दिनों राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के डूंगला में एक युवक—युवती को प्रेमी समझकर बिजली के खंभे से बांधकर बेरहमी से पीट रहे थे। आखिर क्यूं? ये होते कौन हैं जो बेमतलब किसी की ज़िंदगी पर अधिकार जताने चले आते हैं और मनमर्जी से न्याय देने लगते हैं। 

     अगर इतनी ही ठेकेदारी का शौक रखते हैं ऐसे लोग तो, अब क्यूं नहीं पीटते हैं उस जाहिल—गंवार पति को जिसने रिश्तों पर हंसिया चलाया। अपनों का खून करने वाले हाथों को क्यूं नहीं काट देता हैं ये समाज…?
सुनकर हैरानी है कि आज भी बेटा पैदा करने की सोच पर बुरी मानसिकता हावी हैं। बेटा पैदा हो अच्छी बात हैं लेकिन बेटा न देने वाली औरत का यूं तिरस्कार किया जाना ये सही हैं क्या..? 

  समाज के कतिपय ठेकेदारों को क्या ऐसे मामलों पर ऐसी घटनाओं पर आगे नहीं आना चाहिए…? क्या ये लोग औछी और अनपढ़गिरी वाली मानसिकता से ग्रसित लोगों को जागरुक नहीं कर सकते…? समाज में फैल  रही कुरीतियों को जड़ से उखाड़ने के लिए इनके हाथ नहीं उठ सकते हैं…? 

    उठाइए अपने हाथ उस बुराई को मिटाने के लिए जो देश के विकास में रुकावट हैैं। क्यूंकि हर काम सरकार नहीं करेगी। कुछ काम एक जिम्मेदार इंसान की तरह हमें भी करने होंगे। प्यार करने वालों को मारकर या शक के आधार पर सरेराह उनकी इज्ज़त को उछालकर ठेकेदारी पूरी नहीं होगी। 
  असल ठेकेदारी तब होगी जब समाज में हो रही इस तरह की लोमहर्षक घटनाओें पर रोक लगे..जब किसी परेशान और दीन दु:खी को राहत मिलें..हर घर का बच्चा स्कूल जा सके…हर हाथ में रोजगार हो…एक बेटी, एक बहू और एक मां सर उठाकर जी सके…। 

   समाज की दशा और दिशा बदलने के लिए आवाज़ उठाने की ज़रुरत है। वरना इतनी दर्दनाक घटनाएं होती रहेंगी और हम सिर्फ इसे एक ख़बर मानकर भूलने लगेंगे। ‘इंसानियत’ सिर्फ एक ख़बर नहीं हैं बल्कि अस्तित्व हैं हमारा। आप ख़ुद तय करें कि आपका ‘अस्तित्व’ कैसा हैं…।   

कहानियाँ – 

बेबसी की ‘लकीरें’… 

‘भगत बा’ की ट्रिंग—ट्रिंग

ज़िंदगी का फ़लसफ़ा


Related Posts

2 comments

Vaidehi-वैदेही September 22, 2020 - 6:21 am

बहुत ही दुखद औऱ दिल दहला देने वाली घटना। महिलाओं को लेकर जितनी भी बाते होती हैं वो सब सिर्फ लेख तक ही सीमित होती हैं , व्यवहार में नहीं। इसके लिए आप जैसी सोच की महिलाओं को ही आगे आना होगा।

Reply
Teena Sharma 'Madhvi' September 23, 2020 - 5:09 am

लेख और खबरें समाज की दिशा और दशा बदल सकते हैं ।यह लोगों को जागरूक करने में बेहद मददगार साबित होते हैं। लेकिन समाज में फैल रही कुरीतियों के लिए घर परिवार से ही शुरुआत करनी होगी महिलाओं को ही नहीं बल्कि पुरुषों को भी कुरीतियो के खिलाफ आगे आना होगा।
जब भी किसी महिला के साथ बुरा हो रहा होता है तो हम यह सोच कर चुप रह जाते हैं कि हमारे यहां थोड़ी हुआ है सबसे पहले इसी मानसिकता को बदलना होगा।

Reply

Leave a Comment

नमस्कार,

   ‘कहानी का कोना’ में आप सभी का स्वागत हैं। ये ‘कोना’ आपका अपना ‘कोना’ है। इसमें कभी आप ख़ुद की कहानी को पाएंगे तो कभी अपनों की…। यह कहानियां कभी आपको रुलाएगी तो कभी हंसाएगी…। कभी गुदगुदाएगी तो कभी आपको ज़िंदगी के संघर्षों से लड़ने का हौंसला भी देगी। यदि आप भी कहानी, कविता व अन्य किसी विधा में लिखते हैं तो अवश्य ही लिख भेजिए। 

 

टीना शर्मा ‘माधवी’

(फाउंडर) कहानी का कोना(kahanikakona.com ) 

kahanikakona@gmail.com

error: Content is protected !!