कला/संस्कृति ऐसे थे ‘संतूर के शिव’ by teenasharma May 11, 2022 written by teenasharma May 11, 2022 संतूर वादक ‘पं. शिवकुमार शर्मा’ ये कहानी हैं महान शख़्सियत ‘पं. शिवकुमार शर्मा’ की जिन्होंने जम्मू—कश्मीर की घाटियों से निकलकर पूरी दुनिया को अपने ‘सुरों का दीवाना’ बनाया…ये कहानी हैं एक ऐसे ‘फ़नकार’ की जिसने महज पांच साल की उम्र से न सिर्फ ‘गायन’ और ‘तबले’ की शिक्षा ली बल्कि संतूर जैसे जटिल वाद्य यंत्र को बजाकर पूरी दुनिया को चौंकाया भी, जो सिर्फ जम्मू—कश्मीर के ‘लोकगायन’ में ही बजाया जाता था…। ऐसे थे ‘संतूर के शिव’…। प्रख्यात संतूर वादक ‘पं. शिवकुमार शर्मा’ …जिनका हाल ही में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया हैं…। अपने पिता पंडित उमादत्त शर्मा के गहन शोध के बाद तैयार हुए ‘संतूर’ वाद्य पर ‘भारतीय शास्त्रीय संगीत’ को बजाकर पं. शिवकुमार शर्मा ने पहला भारतीय होने का गौरव हासिल कर अपने पिता के सपने को भी सच कर दिखाया …। इनके पिता बनारस घराने के बड़े गायक थे…। और पिता के कहने पर ही पं. शिवकुमार शर्मा ने संतूर की ओर रुख़ कर लिया था। इन्होंने महज़ 13 साल की उम्र से ही इस अद्नभूत वाद्य यंत्र को बजाना शुरु किया और आगे चलकर ‘संतूर’ वाद्य को पूरी दुनिया में पहचान भी दिलाई…। पं. शिवकुमार शर्मा हालांकि ‘सौ तार’ वाले इस वाद्य यंत्र को शास्त्रीयता से बजाना आसान न था, एक ख़ास किस्म की ‘लकड़ी की कलम’ से इसे बजाना कोई मामूली बात न थी… लेकिन पं.शिवकुमार शर्मा की तालीम में अदब थी…संजीदगी थी…जो उन्हें अपने पिता से विरासत में मिली थी…तो भला कैसे पं.शिवकुमार इसे बजाने से चूक जाते…कैसे वे इसे ना कह देते… ये बात अलग थी कि उन्हें तबला बजाना आता था…इतना ही नहीं वे अच्छा गायन भी कर लेते थे इसलिए उन्हें ‘संतूर’ को छूने और उसके साथ दोस्ती कर बजाने में ज़्यादा दिक्कतें नहीं आई…उन्होंने तबला छोड़ संतूर को अपना लिया और फिर उम्र भर के लिए उसी के होकर रहे…। पर ये भी बात सच थी कि उनके संगीत करियर में कई बार कुछ आलोचकों ने कुछ नुक्ताचिनी भी की…कई बार उन्हें सुनने को मिला कि संतूर को छोड़ दो कोई और वाद्य पकड़ लो…लेकिन वे डिगे नहीं…हारे नहीं और अपनी मासूम अंगुलियों में ‘सौ तारों पर कलम’ के साथ वो संयोजन साधा कि ये साज़ उनकी पहचान ही नहीं बल्कि जान बन गया…। वर्ष 1955 में मुंबई में संतूर बजाकर इन्होंने अपना पहला कार्यक्रम दिया उसके बाद से पीछे मुड़कर नहीं देखा…। धीरे—धीरे फिल्मी दुनिया में भी इनके ‘संतूर’ के सुर सुनाई देने लगे…। लोगों को इनका साज़ पसंद आने लगा और फिर प्रसिद्ध बांसुरीवादक हरिप्रसाद चौरसिया के साथ इनका फ़िल्मी सफ़र भी शुरु हो चला..। ‘शिव-हरि’ की इस जोड़ी को लोगों ने बेहद पसंद किया…। दोनों ने कई हिट फिल्मों में संगीत दिया जिसमें ‘सिलसिला’, ‘चांदनी’, ‘लम्हें’, और ‘डर’ जैसी फिल्में शामिल हैं। पं. शिवकुमार शर्मा को कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कारों से भी नावाज़ा गया था। वर्ष 1986 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1991 में पद्मश्री, एवं 2001 में पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया था। इससे पहले वर्ष 1985 में बाल्टीमोर, संयुक्त राज्य की मानद नागरिकता भी इन्हें मिल चुकी थी। ये सिलसिला यूं ही नहीं थमा बल्कि शास्त्रीय संगीत एवं फिल्म पुरस्कारों की सूची में प्लेटिनम डिस्क द कॉल ऑफ द वैली”, हिन्दी फिल्म के लिए प्लेटिनम डिस्क ‘सिलसिला’ के लिए, ‘फासले’ के लिए गोल्ड डिस्क आदि पुरस्कारों से भी पं. शिवकुमार शर्मा सम्मानित हुए थे…। पं.शिवकुमार शर्मा संतूर के पर्याय थे…संगीत जगत में उनकी कमी हमेशा रहेगी…इस उदासी को शायद वक़्त भर दें…पर संतूर के सूर जब भी छिड़ेंगे..तब—तब याद आएंगे ‘पं. शिवकुमार शर्मा’…। ——————————————– ‘कहानी का कोना’ में औैर भी कहानियां, लेख, कविताएं और विविध पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें— महिलाओं के बिना अधूरा ग़ज़ल ‘फलक’ लॉकडाउन में ‘इरफान’ का यूं चले जाना…. लॉकडाउन: ‘मैं मरकर भी नहीं मर सका’… पं.शिवकुमार शर्मासंतूर वादक 1 comment 0 FacebookTwitterPinterestEmail teenasharma previous post कविता ‘मां’ next post प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक… Related Posts रामचरित मानस यूनेस्को ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ सूची... May 15, 2024 जगन्नाथ मंदिर में ‘चंदन यात्रा’ उत्सव May 12, 2024 उपन्यास ’उधड़न’ का लोकार्पण June 24, 2023 मिलकर काम करें ‘लेखक—प्रकाशक’ January 8, 2023 1 comment 'सर्वाइवल से सेविअर' तक….. - Kahani ka kona June 7, 2022 - 7:49 am […] ऐसे थे 'संतूर के शिव' […] Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.