दो जून की रोटी…

by Teena Sharma Madhvi

      सदियों से ये एक कहावत चली आ रही है। अकसर हमने कई बार इसका प्रयोग आम बोलचाल के रुप में भी किया होगा। लेकिन  ‘दो जून की रोटी’  के अर्थ की शुरुआत कब और कैसे हुई इसमें ना उलझे और इसके अर्थ की गहराई को समझे तो शायद आज के हालातों पर ये कहावत फीट ही बैठती हैं। इसका मतलब ये कतई नहीं कि रोटी की ज़रुरत सिर्फ जून माह में ही होगी। क्योंकि ‘पेट और भूख के बीच सिर्फ एक निवाले की ज़रुरत है इसीलिए हर किसी को ये रोटी चाहिए ही’…।  

   लॉकडाउन में जब अर्थव्यवस्था के गड़बड़ाने की ख़बरे जोरों पर है तो ऐसे में इसी दो वक़्त की जून की रोटी को कमाने के लिए अब लोगों के पसीने छूट रहे है। छोटा—मोटा कामधंधा करने वाले हो या फिर नौकरीपेशा आदमी। सभी की हालत एक सी लगती है। ऐसे में नौकरी चली जाना या धंधा ही चौपट हो जाना कितना दर्द दे रहा होगा। फिर उन हाथों की तो छोड़ों जो सिर्फ रोटी के लिए ही सुबह से शाम तक मजदूरी कर रहे होते है। 
       
       ये समय वो है जब हजारों, लाखों व करोड़ों हाथों को इसी दो वक़्त की रोटी के लिए हर संभव प्रयास करना होगा। जिनके पास जमा दौलत व पूंजी है वो भी कब तक होगी लेकिन फिलहाल तो उनके पेट इसी दो वक़्त की रोटी के लिए नहीं तरसेंगे। बाद में तो वक़्त की करवट ही जानें…। 
       
       मुझे तो इस वक़्त अनगिनत हाथ सिर्फ इसी दो वक़्त की रोटी के लिए फैले हुए नज़र आ रहे हैं…बहुत कीमती है ये ‘रोटी’ जिसे पाने के लिए रोज़ाना न जाने कितने हाथ तरसते होंगे…..न जाने कितने ही पेट बिना इसके रातें गुज़ार देते होंगे ..। 
        शायद मेरी समझ और सोच की परिपक्वता की गहराई यही है। आप लोग और बेहतर समझते हो…। 
         

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2 comments

varsha June 2, 2020 - 3:20 pm

मुझे तो इस वक़्त अनगिनत हाथ सिर्फ इसी दो वक़्त की रोटी के लिए फैले हुए नज़र आ रहे हैं..😥

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Teena Sharma 'Madhvi' June 3, 2020 - 4:51 pm

जी मेम..

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टीना शर्मा ‘माधवी’

(फाउंडर) कहानी का कोना(kahanikakona.com ) 

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