कहानियाँकुप्रथओं का दंशस्लाइडर ज़िंदा है पांचाली kahani by Teena Sharma Madhvi May 20, 2021 written by Teena Sharma Madhvi May 20, 2021 ज़िंदा है पांचाली कृष्ण कुंती को इस विवाह के प्रयोजन की ओर न ले जाते तो शायद कुंती कभी भी द्रोपदी को पांडवों के बीच नहीं बंटने देती। आज कालचक्र का पहिया कजरी जैसी पांचालियों की दहलीज पर खड़ा हैं। जहां अब भी ज़िंदा है पांचाली —————————————– कुछ दिन पहले मेरी मुलाकात एक ‘लाडो मित्र’ से हुई। इसका काम गांव-ढाणियों में जाकर बेटी शिक्षा और बेटी बचाओं कार्यक्रम के प्रति लोगों को जागरुक करना हैं। मैंने बस ऐसे ही उससे पूछ लिया कि क्या तुम्हें जागरुकता के दौरान ऐसा कोई घर मिला जहां पर बेटी का बिल्कुल भी मान-सम्मान नहीं…। पहले तो उसने यही बताया कि, ऐसे तो बहुत घर मिलें…। जब मैंने दोबारा जो़र डालते हुए अपने सवाल को और अधिक स्पष्ट करते हुए पूछा कि, तुम तो पिछले कई सालों से इस ‘जागरुकता कार्यक्रम’ से जुड़ी हुई हो, क्या तुम्हें ऐसी कोई बेटी मिली जिसका संघर्ष शिक्षा पाने से अधिक किसी ओर बात के लिए हो…? ‘लाडो मित्र’, मेरी बात सुनकर सोच में पड़ गई और तभी उसे ‘हरकू दादी’ का घर याद आया जो टोंक जिलें की एक छोटी सी ढाणी में था। उसने बताया कि, इस घर में उसे एक ‘कजरी’ नाम की लड़की मिली थी। अपनी टीम के साथ इसी घर में कुछ देर सुस्ताने के लिए बैठे थे। ज़िंदा है पांचाली हरकू दादी इस घर की मुखिया के तौर पर हैं जो घर के चैक में खटिया पर बैठे-बैठे हुक्का गुढ़गुढ़ाती रहती हैं। दादी ने उस दिन हम सभी के लिए छाछ की राबड़ी बनवाई थी। थोड़ी ही देर में एक दुबली-पतली सी लड़की हम सभी के लिए स्टील के बड़े ग्लास में राबड़ी लेकर आई थी। मुझे वह बहुत उदास और चुपचाप सी लगी थी। जब मैंने उससे पूछा कि, क्या तुम पढ़ी-लिखी हो…? उसने हां कहा, और फिर चली गई। मुझे कुछ अजीब लगने लगा, और उस लड़की के बारे में और कुछ जानने के लिए मैंने दादी से पूछ लिया कि, टाॅयलेट किधर हैं…? दादी ने आवाज़ लगाई, कजरी…सुन तो इन्हें टाॅयलेट दिखा दें। वही लड़की आई जिसका नाम ‘कजरी’ था। मैंने टाॅयलेट के बाहर ही खड़े रहकर उससे पूछा कि तुम ठीक हो ना…? मुझे कुछ उदास दिख रही हो…। उसने कहा कि, .मैं ठीक हूं। लेकिन उसके जवाब से मैं संतुष्ट नहीं हुई। और उस पर थोड़ा दबाव डालते हुए पूछा कि, कजरी देखो तुम्हें कोई दिक्कत हैं या कोई बात हैं तो बताओ, मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं। कजरी ने इधर-उधर देखा और बोली-दीदी…मुझे ‘बहुपति’ के कलंक से बचा लो…। ये सुनते ही मैं हक्का-बक्का रह गई। उसने बताया कि दादी ने पैसों के लालच में आकर मेरी शादी उत्तराखंड के एक बड़े आसामी के घर कर दी। दादी जानती थी कि मैं फेरे तो एक लड़के के साथ ले रही हूं लेकिन मुझे पांच भाईयों के बीच में साझा किया जाएगा। लेकिन उसने ये बात छुपाए रखी। जब मैं ससुराल गई तब मुझे पता चला कि पति के सभी भाईयों की भी पत्नी मैं ही हूं। शादी हुए दो साल हो गए और इन दौरान पांचों भाईयों के बीच बारी-बारी से रात बिताने को मजबूर हूं। मेरे शरीर को एक दिन की छुटटी दी गई हैं…। आगे कुछ और सुन पाती उससे पहले ही दादी ने आवाज़ लगा दी और मैं चली आई। कजरी की पूरी कहानी मैंने अपनी टीम को सुनाई। सभी के मन में गुस्सा था…और कजरी को इससे बचाने का कठोर मन भी….। अगले दिन हम सभी दोबारा कजरी के घर आए और उसकी दादी से इस बारे में पूछा…। दादी खटिया से उठ खड़ी हुई और जोरों से चिल्लाने लगी। उसने हमें खूब बुरा सुनाया। जब हमने कहा कि, पुलिस में रिपोर्ट कराएंगे…तो वह हंसते हुए बोली…जाओ-जाओ कराओ…। भला प्रथाओं पर भी कोई अडंगा लगा सकता हैं…? ये हमारे समाज की परंपरा और रित हैं, जो सदियों से चली आ रही हैं…..। हम सभी चुप हो गए…। बाद में गांव वालों से भी पता चला कि, बहुपत्नी का रिवाज़ हैं इनके समाज में…। हम में से अधिकतर लोग इससे सहमत हो गए और इस मामले को यहीं छोड़ने पर सहमति बनी। हम सरकार के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे, जो सिर्फ बेटियों की शिक्षा पर काम करता हैं। उस दिन के बाद हमनें कज़री की कोई खैर खबर नहीं ली….। लाडो मित्र से कज़री की पूरी कहानी सुनने के बाद मैं घर चली आई। लेकिन आज मन बेहद विचलित था…। कालचक्र’ का पहिया आज मुझे पांच हजार वर्ष पूर्व हुई ऐसी ही एक ऐतिहासिक घटना की याद दिला रहा हैं। पांचाल के राजा द्रुपद अपनी पुत्री द्रोपदी का विवाह एक महान पराक्रमी राजकुमार से कराना चाहते थे। पांडू पुत्र अर्जुन सर्वश्रेठ धनुर्धारी थे और राजा द्रुपद अपनी पुत्री का विवाह उन्हीं से कराना चाहते थे। लेकिन उन्हें यह खबर मिली कि पांडू पुत्रों की मृत्यु हो चुकी है तब उन्होंने पांचाल में ही द्रोपदी के स्वयंवर का आयोजन किया। साथ ही एक शर्त भी रख दी। उन्होंने एक खंबा खड़ा करवाया और उस पर एक गोल चक्र लगा दिया। इस चक्र में एक लकड़ी की मछली फंसी हुई थी जो कि, एक तीव्र वेग से घूम रही थी। उस खम्बे के नीचे पानी से भरा हुआ पात्र रखा था। धनुष बाण की मदद से उस पानी से भरे पात्र में मछली का प्रतिबिम्ब देखकर उसकी आँख में निशाना लगाना था। उन्होंने कहा कि जो भी राजकुमार मछली पर सही निशाना लगाएगा। उसका विवाह द्रोपदी के साथ होगा। इस स्वयंवर में कई राज्यों के राजा और राजकुमार शामिल हुए। पांडव उस समय वन में ब्राम्हणों की तरह रहते थे। जब उन्हें द्रोपदी के स्वयंवर का समाचार मिला तब वे भी पांचाल पहुंचे। यहां पर सुतपुत्र कर्ण और कौरव भी मौजूद थे। द्रोपदी अपने भाई धृष्टद्युम्न के साथ हाथी पर सवार होकर स्वयंवर सभा में प्रवेश करती हैं। स्वयंवर में उपस्थित सभी राजकुमार द्रोपदी के सौन्दर्य पर मोहित थे। एक-एक करके सभी ने अपना पराक्रम दिखाया लेकिन कोई भी सफल नहीं हुआ। यह देखकर राजा द्रुपद अत्यंत दुखी होते है। तभी अर्जुन ब्राम्हणों के वेश में लक्ष्य को भेदने के लिए खड़े होते हैं। अर्जुन ने बहुत ही आसानी से लक्ष्य को भेद डाला। उनका बाण सीधे मछली की आंख में जाकर लगता हैं। यह देखकर द्रोपदी बहुत प्रसन्न होती हैं और वरमाला अर्जुन के गले में डाल देती हैं। जब पांडव अपनी कुटिया पहुँचते हैं। तब वे अपनी माता कुंती से कहते हैं कि मां देखो हम क्या लेकर आए हैं…। कुंती बिना देखें कह देती हैं, जो भी लाए हो आपस में बांट लो। लेकिन जब वे पलटकर देखती हैं तब उन्हें पता चलता हैं कि वो अर्जुन की पत्नी द्रोपदी हैं। कुंती बहुत ही दुःखी होतीं हैं। लेकिन परंपरा के अनुसार पांडवों को अपनी माता के हर एक शब्द की पालना करनी थी। अनजानें में हुई इस गलती को इतिहास की महान भूलों में याद किया जाता हैं। यदि हम इसके पौराणिक पहलू को न देखें और एक स्त्री के रुप में द्रोपदी की मनःस्थिति को महसूस करें तो शायद पांच पतियों की कल्पना करना उसके लिए भी सहज नहीं होगा। इतिहास की ये भूल आज भी समाज में दोहराई जा रही हैं। ये देखकर बेहद हैरान हूं और परेशान भी…। कजरी 21 वीं सदी की पांचाली हैै। जिसके पांच पति हैं। लेकिन ये भूल अनजानें में नहीं की गई हैं, बल्कि सोच-समझकर की जा रही हैं। मेरे जे़हन में एक सवाल बार-बार कुंदिया रहा हैं, क्या सच में ‘महाभारत’ काल हमसे आगे था….? जब कुंती कम से कम भूल को स्वीकारती तो हैं, और द्रोपदी को अर्जुन की ही पत्नी रहने की बात को स्वीकारती हैं। शायद कृष्ण कुंती को इस विवाह के प्रयोजन की ओर न ले जाते तो शायद कुंती कभी भी द्रोपदी को पांडवों के बीच नहीं बंटने देती। आज कालचक्र का पहिया कजरी जैसी पांचालियों की दहलीज पर खड़ा हैं। जहां अब भी ज़िंदा है पांचाली…। टीना शर्मा ‘माधवी’ धागा—बटन…. ‘अर्थी’ का बोझ ही शेष…. आख़िरी ख़त प्यार के नाम… पुजारी बाबा की बीड़ी… zinda hai paanchaaleeज़िंदा है 'पांचाली'द्रोपदीपांडवमहाभारत 0 comment 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post धागा—बटन next post ‘पाती’ पाठकों के नाम…. 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