प्रतीक्षा में पहला पत्र

कहानी—डॉक्टर उरुक्रम शर्मा

by teenasharma
प्रतीक्षा में पहला पत्र

प्रतीक्षा में पहला पत्र

पोस्ट के साथ ही जवाब का बेसब्री से इंतजार शुरू हो गया। रोज शाम को डाकिया डाक लेकर आता, मेरा एक ही सवाल होता था, मेरी कोई चिट्ठी है क्या। उसके ना से मेरी मायूसी बढ़ जाती। पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर उरुक्रम शर्मा की लिखी कहानी प्रतीक्षा में पहला पत्र  …। 

सांझ ढलने को थी, मंद मंद बयार चल रही थी। मंदिरों से शाम की आरती के घंटे घडियाल बजने की आवाजे आने लगी थी। ठंडी बयारें आकर छू रही थी और मन काफी प्रसन्न था। वो दूर से धीरे धीरे कदम बढ़ाते चली आ रही थी। 

पिंक कलर के उसके सलवार कुर्ते समां को और खूबसूरत बनाते जा रहे थे। जैसे जैसे वो पास आ रही थी, उसके कदम और धीरे होते जा रहे थे। मेरी धड़कन बढ़ती जा रही थी, बसंत में माथे पर पसीने की बूंदें टपकने लगी थी।

किसी लड़की से यह मेरी पहली मुलाकात थी, वो भी एक उपवन में। मेरे से बस दो कदम दूर आकर वो ठहर गई। उसकी बड़ी बड़ी आंखें, गुलाबी अधर, चांदनी सी धवल काया को देखकर खुद पर यकीन ही नहीं हो रहा था कहीं सपना तो नहीं देख रहा हूं। 
लग रहा था, जिन्दगी को शुरूआत इतनी खुशनुमा होने जा रही है तो ताजिंदगी कितनी खुशहाल रहेगी। मन हिलोरे खा रहा था और होंठ सिल चुके थे। गला सूख रहा था और वो नजरें झुकाए खड़ी थी। मारे शर्म के वो अपनी अंगुलियों से चुन्नी को घुमाएं जा रही थी। मिलने आने से पहले 10 सवाल थे दिमाग में , जो उससे पूछने थे। 

वैसे मैं उसका नाम जानता था, परन्तु बात तो कहीं से शुरू करनी थी तो मैंने पूछ ही लिया। उसने नीची नजरों से धीमी आवाज में सुषमा कहा। नाम खुद उसकी काबलियत को बयां कररहा था। उसका लावण्य दर्शा रहा था। उसकी सादगी को बयां कर रहा था।

प्रतीक्षा में पहला पत्र

डॉक्टर उरुक्रम शर्मा

थोड़ी ही देर दोनों साथ रहे, लेकिन शब्दों में कम लेकिन बस समीपस्थ अहसासों के शब्द रहे, जो आवाज नहीं बन सके। ज्यादातर खामोशी में ही खामोशी के साथ बातें हुई । हलचल सी मचल रही थी, जिसे ना वो व्यक्त कर सकी ना ही हम। वो चली गईं।

घर आकर सिर्फ उसकी छवि दिमाग में घूमती रही। अब आगे कब कैसे मुलाकात होगी, समझ ही नहीं आ रहा था, क्योंकि मोबाइल का जमाना नहीं था और लैंड लाइन नंबर लेना दोनों से ही रह गया।

मैं उधेड़बुन में रात काट रहा था और उससे फिर मिलने और बात करने की जुगत लगा रहा था। कब रात गुजर गई, पता नहीं चला। सुबह घर पर पापा और मम्मी ने सरप्राइज दिया।

पूछा, कैसी लगी लडकी।
मैं सकपका गया,
इन्हें कैसे पता,
मेरी मुलाकात बीती शाम लड़की से हुई है।

तभी मम्मी ने गाल पर प्यार से एक चांटा लगाया और कहा, इससे ही तेरी शादी होने वाली है। मेरे पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे और मैं सिर झुकाकर वहां से सीधे अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गया और चेहरे पर मुस्कान आ गई। सामने पिंक सलवार कुर्ते वाली सुषमा का चेहरा घूमने लगा।

अब कैसे उससे बात होगी, कैसे मुलाकात होगी…यही सवाल मेरे मस्तिष्क में चल रहे थे। जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो अपनी कलम उठाई और उसके नाम चिठ्ठी लिखने लगा। अब यह समझ नहीं आ रहा था, उसे किस नाम से संबोधित करूं। कुछ नही समझ आया तो मैंने लिखना शुरू किया।

संबोधन शब्द की प्रतीक्षा में मेरा पहला पत्र तुम्हारे लिए……।
अंत में लिखा जल्द जवाब के इंतजार में। इस पत्र को लिखकर बड़े प्यार से रंग बिरंगा करके सजाया और पोस्ट करने से पहले उसे इत्र से महकाया। पोस्ट के लिए लाल डिब्बे में उस लिफाफे को डाल दिया। पोस्ट के साथ ही जवाब का बेसब्री से इंतजार शुरू हो गया। रोज शाम को डाकिया डाक लेकर आता, मेरा एक ही सवाल होता था, मेरी कोई चिट्ठी है क्या। उसके ना से मेरी मायूसी बढ़ जाती।

लगभग 10 दिन बाद चिट्ठी का जवाब आया।
तुरंत कमरे में जाकर गेट अंदर से बंद कर लिया और पढऩा शुरू किया।
शुरूआत में लिखा था,
आपके लिए….

अंत में सिर्फ आपकी। बीच में थी प्यार भरी बहुत सारी शिकायतें..कहा , आप बहुत कठोर, निर्दयी , निर्मोही और निर्मम हैं। आप उस दिन कब निकल गए, पता ही नहीं चला। मैं इंतजार ही करती रही। आपकी वो सफेद कमीज जिसकी बाजू फोल्ड कर रखी थी। नीचे जीन्स और स्पोर्टस शूज बहुत अच्छे लग रहे थे।

आपकी सादगी और विनम्रता ने मुझे एक अजीब आकर्षण की ओर खींच लिया। आपकी चिट्ठी की वो खुशबू पूरे मन की गहराई तक रम गई। अब सिर्फ आप नजर आते हैं।

इसी तरह चिट्ठियों का सिलसिला अनवरत चलता रहा। मुझे हमेशा से ही कुछ अलग करने की आदत रही है, कुछ ऐसा क्या नया किया जाए, जो उसे पसंद आए और बिना मिले भी दोनों एक दूसरे को अच्छे से समझ जाएं।

हमने पुराने लव सोंग्स से पहले अपनी आवाज में उनसे बातें रिकॉर्ड की, फिर उससे रिलेटेड गाना। चांद सी मेहबूबा होगी….ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत…चौदहवीं का चांद हो..दूर रह·र ना करो बात…आदि -आदि गानों की कई केसेट्स उन्हें भेजी।

वो चिट्ठी में लिखकर भेजती, अब तो हर पल आपकी चिट्ठियों और कैसेट्स के साथ ही गुजरता है। करीब नौ महीने तक इसी तरह का अनवरत क्रम चला। फिर वो दिन आ गया, जब हम दोनों को वैवाहिक बंधन में बंधना था। शादी के बाद वो घर आ गईं। शादी के 27 साल उनके साथ कुछ इस तरह गुजरे की हर पल यादगार बना।

एक फूल सी बेटी और एक बेटा उन्होंने हमें उपहार में दिया। बच्चों में अच्छे संस्कारों का प्रवाह करके उन्होंने ही काबिल बनाया। हमें उन्होंने ऊर्जा से ओतप्रोत रखा।

किसी बात को लेकर कोई शिकायत नहीं की। हमें याद नहीं है कि कभी उन्होंने गुस्सा किया हो। हमें कभी गुस्सा भी आया तो वो चुप रहीं। जब हम शांत हुए तो उन्होंने बड़े प्यार से हमें समझाया की आपका गुस्सा अनावश्यक था।

चलो, ठीक है। हम पर ही निकला । कहीं आफिस में किसी पर निकला होता तो सब कहते बीवी से लड़कर आए हैं, घर का गुस्सा हम पर निकालते हैं। हमने हमारी गलती होने पर माफी मांगने में कभी संकोच नहीं किया।

कैसे जिन्दगी के 27 साल खुश-खुश निकल गए, अहसास ही नहीं हुआ। अहसास हुआ तो बस हर पल उसके प्यार, स्नेह और सम्मान का…..।

डाक्टर उरुक्रम शर्मा
9829215132
urukram.sharma@gmail.com

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लेखक परिचय

‘कहानी का कोना’ में आज पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार एवं  मॉर्निंग न्यूज़ एवं ईवनिंग प्लस के ग्रुप एडिटर डॉक्टर उरुक्रम शर्मा की लिखी कहानी ‘प्रतीक्षा में पहला पत्र’…। उरुक्रम शर्मा न्यूज़ एंकर, मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं। इसी के साथ वे स्टोरी टेलर, कहानी व कविताएं भी लिखते हैं। अ​भिनय के क्षेत्र में भी उरुक्रम शर्मा एक जाना पहचाना चेहरा हैं। वहीं आरजे की भूमिका में भी एक अलग पहचान हैं। 

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2 comments

एकता शर्मा February 16, 2023 - 11:58 am

स्वभाविक मानवीय पहलूओ , उत्कंठाओ और जिज्ञासाओं। को बहुत सुंदर शब्दों में पिरोया है आपने 👌🏻

Reply
teenasharma February 20, 2023 - 3:24 am

जी बहुत—बहुत धन्यवाद

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टीना शर्मा ‘माधवी’

(फाउंडर) कहानी का कोना(kahanikakona.com ) 

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