राष्ट्रीय प्रसारण दिवस आज

आवाज की दुनिया 'रेडियो'

by teenasharma
राष्ट्रीय प्रसारण दिवस आज

राष्ट्रीय प्रसारण दिवस आज

आज राष्ट्रीय प्रसारण दिवस है। इस मौके पर ‘कहानी का कोना’ ने खास आपके लिए यानी रेडियो सुनने वालों के लिए आकाशवाणी जयपुर की वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी ‘रेशमा खान’से बातचीत की। 

एक आवाज़: रेशमा खान

बचपन से जिन लोगों को सुनती आई हूं, उनके साथ कभी अपनी आवाज़ देने का मौका मिलेगा। ये कभी सोचा न था। पर मेरा ये सपना सच हुआ और मुझे भी आवाज की दुनिया ‘रेडियो’ में काम करने का सुनहरा अवसर मिला। मैं शुक्रगुज़ार हूं कि, मुझे मनोरंजन के इस नायाब तरीके के साथ काम करते हुए पैंतीस वर्ष पूरे हो गए।

ये कहना है, आकाशवाणी जयपुर की वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी ‘रेशमा खान’ का। आज ‘राष्ट्रीय प्रसारण दिवस’ है। इस मौके पर ‘कहानी का कोना’ ने खास आपके लिए यानी रेडियो सुनने वालों के लिए रेशमा खान से बातचीत की। आकाशवाणी और यहां के माहौल में बीते कुछ यादगार अनुभवों को शेयर करते हुए रेशमा खान ने बताया कि, वे बचपन से ही एक अच्छी वक्ता रही हैं।

राष्ट्रीय प्रसारण दिवस आज

रेशमा खान

स्कूल और कॉलेज में भी कई डिबेट शो करके अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाई। धीरे—धीरे रेडियो में जाने का सोचा। किस्मत से उन्हें आकाशवाणी में नौकरी करने का ये अवसर भी मिल गया। जो आगे चलकर न सिर्फ नौकरी रही बल्कि ज़िंदगी का भी एक अहम हिस्सा बन गया।

रेशमा खान बताती हैं कि, रेडियो पर न होती तो शायद हमारे देश के उन फनकारों से न मिलना होता, जिन्हें रेडियो ने ज़िंदा रखा। रेडियो ने ही इन अलग—अलग जगहों से हुनर को आकाशवाणी में भेटवार्ताओं के माध्यम से अपनी बात रखने का अवसर दिया और उनकी आवाज़ को न सिर्फ शहरी ​बल्कि गांव—ढाणियों में भी पहुंचाया। लोगों के बीच इनका जुड़ाव पैदा किया।
मुझे याद है जब मैं पहली बार, पं.विश्व मोहन भट्ट, हरिदत्त कल्ला, सरताज नारायण माथुर, गुलाबो और भी कई बेहतरीन लोगों से मिली। तब मैंने जाना कि, इन सब में कितना टैलेंट है। अपनी बात रखने का अपना अलग ही अंदाज हैं। पर रेडियो न होता तो क्या, ये संभव था कि इनकी पहचान लोगों के दिलों से जुड़ पाती? शायद नहीं! क्योंकि रेडियो उस दौर में आया जहां मनोरंजन के नाम पर यही एक मात्र सस्ता और सुलभ माध्यम था।

रेशमा आकाशवाणी के साथ अपने सफर के बारे में बताती हैं कि, युव वाणी से शुरूआत करने के बाद कई लाइव शो किए। संख्या याद नहीं। पर इतना जरूर कह सकती हूं कि, पांच हजार से अधिक भेंटवार्ताएं की हैं। जिसमें कई नामचीन लोगों से मुलाकातें हुईं। जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकता है।

रेशमा ने आगे बताया कि, आज तकनीकी रूप से मनोरंजन के कई सााधन बढ़ गए। एक क्लिक पर दुनिया जहान की बातें हो रही हैं। किंतु रेडियो की जगह कोई नहीं ले सकता। ये मनोरंजन का ऐसा ‘वट वृक्ष’ है जो बड़ी मजबूती से अब भी खड़ा हुआ हैं।

फिर चाहे भाषा शैली की बात हो या स्वस्थ्य मनोरंजन प्रस्तुतिकरण की। रेडियो के कार्यक्रम अब भी कर्ण प्रिय है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि, एफएम मोड शुरू होने के बाद निश्चित ही आकाशवाणी का दायरा बढ़ा है। शहरी श्रोताओं की संख्या और बढ़ गई है। ‘लोक सेवा प्रसारण’ ध्येय के साथ रेडियो लगभग सभी क्षेत्रों में पहुंच चुका है।

राष्ट्रीय प्रसारण दिवस आज

रेशमा खान

कितने भी चैनल आ जाएं किंतु वो सब रेडियो के बाद ही है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ये कि, इसने पहले दिन से लेकर आज तक अपनी भाषा पर अधिक फोकस किया है। कार्यक्रमों के एनाउंसर आज भी शालिन तरीके से कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे हैं।

इसके अलावा देश के कई दूरस्थ क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर आज भी रेडियो के अलावा मनोरंजन का कोई अन्य संसाधन नहीं। उन लोगों के लिए तो ये वरदान ही है।

हाल ही में , कोरोनाकाल में रेडियो ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। एक—एक व्यक्ति ने लोगों के मनोरंजन से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम बनाकर चलाए। साथ ही जन सरोकार से जुड़ी सूचनाओं को पहुंचाया। मुख्यमंत्री और राज्यपाल ने कोरोनाकाल में अपनी बात रखकर लोगों को इस मुश्किल वक्त में धैर्यता के साथ बनें रहने का संदेश भी इसी माध्यम से पहुंचाया।

सबसे अहम बात ये है कि, वर्ष 2014 से पहले तक रेडियो का प्रचलन कम हो गया था। किंतु देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम ने धीरे—धीरे रेडियो को पुर्नजीवित कर दिया। लोग फिर से रेडियो सुनने लगे। इस कार्यक्रम ने लोगों को फिर से रेडियो से कनेक्ट कर दिया। साथ ही न्यूज—ऑन— एयर मोबाइल ऐप ने भी कार्यक्रमों की सभी तक पहुंच बढ़ाई है।

रेशमा बताती है कि, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता हैं कि, आकाशवाणी के सामने दो तरह की चुनौती बनी हुई हैं, एक तो अपनी पहचान बनाए रखना जो लोक सेवा प्रसारण ध्येय वाक्य के साथ जुड़ी हुई हैं। दूसरा, ‘रेवेन्यू’ जनरेट करना। इसके लिए विभाग लगातार सक्रिय हैं।

अंत में एक आवाज़ के रूप में, ”मैं इतना ही कहना चाहूंगी, रेडियो से बेहतर कोई नायाब तरीका नहीं, जो बिना किसी इरीटेशन के आपका मनोरंजन कर सके। इसलिए रेडियो सुनें और अपने पसंदीदा कार्यक्रमों का आनंद उठाएं…।”

गर लफ़्ज़ों की दहलीज होती

दीपिका पादुकोण-पुस्तक चर्चा

साहित्यकार सम्मान

 

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टीना शर्मा ‘माधवी’

(फाउंडर) कहानी का कोना(kahanikakona.com ) 

kahanikakona@gmail.com

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