रक्षा बंधन गीत

रक्षा बंधन विशेष

by teenasharma
रक्षा बंधन गीत

रक्षा बंधन गीत

 

समय के साथ बदल रहे रक्षा बंधन पर्व के अहसासों से गुथा हुआ एक रक्षाबंधन गीत। पढ़िए कवयित्री निरुपमा चतुर्वेदी ‘रूपम’ का लिखा हुआ रक्षा बंधन गीत…। जिसमें ‘झूला’ और ‘आंगन’ की महक है, तो रोली-चावल से टीका करने की रीत भी। जो आज डिजिटल संदेशों की बौछार से भीगो रही है मन को…।

सचमुच रक्षाबंधन जैसा कोई भी त्योहार नहीं।
लेकिन अब रिश्तों में जाने क्यों पहले सा प्यार नहीं

भाई- बहनों के झगड़ों में पहले सी मनुहार कहाँ
यादगार अहसासों से पूरित ख़त का व्यवहार कहाँ
माथे पर रोली-चावल से टीके का वो दौर गया
खीर -मिठाई-पूरी से अब आवभगत का तौर गया
डिजिटल संदेशों से आती वो भीनी बौछार नहीं

रक्षा बंधन गीत

रक्षा बंधन

सचमुच रक्षाबंधन जैसा…

झूले, सखियाँ, आँगन, मस्ती, बचपन के संग छूट गये
कहने को त्योहार बचा है, बंधन सारे टूट गए
महंगे- महंगे उपहारों से राखी का जब हुआ बदल
रिश्तों की सुन्दर वैतरणी में मुद्रा से पड़ा खलल
बीत गये जो पल उनको फिर जीने के आसार नहीं

सचमुच रक्षाबंधन जैसा…

चलें हवाएँ कुछ ऐसी अब रिश्तों में तकरार न हो
भाई बहनों के मन-आँगन में कोई दीवार न हो
त्याग समर्पण से परिभाषित हो स्वजनों का अपनापन
कृष्ण- द्रोपदी के जैसा हो स्नेहिल पावन बन्धन
सरल सहज इन रिश्तों में परिवर्तन की दरकार नहीं

सचमुच रक्षाबंधन जैसा…

 

निरुपमा चतुर्वेदी ‘रूपम’
कवयित्री

राखी: रिश्ते का रिन्युअल

चंद्रयान-3

पहली गुरु हमारी ‘मां’ 

गर लफ़्ज़ों की दहलीज होती

 

रक्षा बंधन विशेष में यदि आपके पास भी है कोई कहानी, कविता, संस्मरण या फिर कोई भी यादगार किस्सा, तो लिख भेजिए कहानी का कोना की मेल आईडी पर।

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टीना शर्मा ‘माधवी’

(फाउंडर) कहानी का कोना(kahanikakona.com ) 

kahanikakona@gmail.com

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