कहानियाँलेखक/साहित्यकारस्लाइडर समर्पण हिन्दी कहानी by teenasharma October 28, 2023 written by teenasharma October 28, 2023 समर्पण मैं यहीं रहना चाहती हूं। ये सभी लोग मेरी देखभाल करते हैं। मैनेजर और मालिक ये समर्पण देखकर बहुत ही गदगद होकर वापस आ गए। दुनिया में ऐसे भी लोग रहते हैं। कितने आश्चर्य की बात है ना! एक दिन अपनाघर वृद्धाश्रम में एक पत्र आया। उस पत्र में लिखा था मैं और मेरी पत्नी दोनों नीचे दिए गए पते पर रहते हैं। हम दोनों मिलकर एक खाने-पीने की दुकान चलाते हैं। हम दोनों ही बुजुर्ग हैं। यदि मेरी मृत्यु हो जाए तो मेरी पत्नी को मेरे मरने पर आपके संस्था में आप रख लीजिए । इसके लिए मैं आपको रुपए भेज रहा हूं। हर हफ्ते मैं आपको हजार रुपए भेजूंगा। उसमें आधे रुपए को आप अपनी संस्था चलाने के लिए काम में ले लीजिएगा। बाकी आधे रुपयों को जमा करते जाइएगा। जब रुपए आना बंद हो तभी आप इस पते पर आकर मेरी पत्नी को लेकर जाइएगा। राजेंद्र मीना उसके नीचे पता लिखा हुआ था। उसके बाद हर हफ्ते रुपए आ रहे थे। वहां के मैनेजर ने सोचा एक बार जाकर इस पते पर देख कर आऊं कौन है यह आदमी! पर काम की अधिकता की वजह से नहीं जा पाए। वहां के मालिक 2 महीने में कभी कभी ही आते थे। एस भाग्यम शर्मा सारा काम इस मैनेजर को संभालना पड़ता था। 60 साल से ऊपर के 50 लोग थे। 10 औरतें थी बाकी पुरुष थे। आज इतवार है। आज जरूर जाकर मिलकर आऊंगा मैनेजर साहब ने सोचा। मोटरसाइकिल से जाने में उन्हें 2 घंटे लगे। छोटी सी जगह में खपरैल की छत थी। बाहर बड़ा टिन डाला हुआ था। वहां एक 70 साल के बुजुर्ग कुर्सी पर बैठे हुए थे। बड़ा गैस का चूल्हा था। उसमें राजमा, और चावल बन रहे थे। मैनेजर ने उस बुजुर्ग आदमी से पूछा “आप ही राजेंद्र मीणा हैं?” “हां मैं ही राजेंद्र मीणा हूं! आप?” ” जिस संस्था को आपने पत्र लिखा था उसका मैनेजर हूं।” “बहुत खुशी की बात है आप बैठिए। आपके लिए कुछ खाने को लाएं! आप क्या खाएंगे?” “नहीं मैं कुछ नहीं खाऊंगा। मुझे पानी पिला दीजिए बस।” “हम करीब 30 साल से यह दुकान चला रहे हैं। हम दोनों ही इसमें काम करते हैं। हमारे कोई बच्चे नहीं हैं। गरीब मजदूर स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे और कॉलेज के लोग खरीदते हैं। हमें ज्यादा रुपयों की जरूरत नहीं है। हमारा कोई ज्यादा खर्चा है नहीं। हमारी कोई संतान नहीं हुई। मैं आपको जो रूपए भेजता हूं उससे आधा मेरे पास होता है वह भी खर्च नहीं होता। उसमें जो बचता है उसमें मैं गरीब बच्चों के लिए पेंसिल किताब के लिए दे देता हूं।” शाम को 6:00 बजे बुजुर्ग आदमी बोले, अभी समय हो गया मैं थोड़ा काम करता हूं। मैंनेजर बोले “मैं थोड़ी देर यहां और बैठ जाऊं?” “हां क्यों नहीं आराम से बैठिएगा।” वे वहां बैठे देखते रहें। वे उठे उनके एक बहुत बड़े बर्तन में चावल और दूसरे में राजमा था। कोई एक प्लेट चावल लेता, कोई चार प्लेट लेता, कोई दो प्लेट लेता और सब अपने-अपने बर्तन लाकर उस में डाल कर ले जाते। रुपए स्वयं गल्ले में डाल देते और जो चिल्लर होता उसे ले लेते। मैनेजर साहब को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा “आपने पैसे के पास कोई बैठाया ही नहीं। वे ठीक दे रहे हैं की नहीं कैसे पता?” “सभी लोग ठीक ही देते हैं। यदि कोई ऐसा करता है तो क्या फर्क पड़ता है। वह भूखा तो नहीं रहेगा ना? ऐसा सोच कर मुझे खुशी होती है। इससे मुझे कोई नुकसान नहीं है। मेरा काम बड़े आराम से चल रहा है।” मैनेजर साहब को आश्चर्य हुआ। क्या दुनिया में ऐसे भी मनुष्य हैं! थोड़ी देर वहां बैठ कर वे वापस चले गए। कुछ महीने ऐसे ही गुजर गए। पिछले 2 हफ्ते से मनीआर्डर नहीं आया क्या बात है उन्हें समझ में नहीं आया। इस बात को उन्होंने मालिक को बताया तो दोनों ने कार में जाने का तय किया। वे लोग वहां पहुंचे तब शाम के 6:00 बजे थे। उनकी पत्नी सबको चावल डालकर दे रही थी। राजमा या दाल अपने आप ले रहे थे। बुजुर्ग आदमी दिखाई नहीं दिए। फिर अंदर झांका तो उनकी तस्वीर पर फूल माला चढ़ी हुई थी। मैनेजर साहब ने पूछा “क्या हुआ?” उनकी पत्नी ने बताया 2 हफ्ते पहले उनकी मृत्यु हो गई। यहां सभी ने मिलकर सब काम कर दिया। 2 दिन मैंने दुकान बंद रखी। उसके बाद इन लोगों के प्रेम और प्यार ने मुझे यहीं रहने के लिए मजबूर कर दिया। मेरा काम चल रहा है।” “आपके पति हमारी संस्था को हर हफ्ते पैसे भेजते थे ताकि उनकी मृत्यु के बाद आप आकर हमारी संस्था में रहें। आपको यह बात पता है?” “हां मुझे पता है।” वह बोली। “फिर आप वहां नहीं आएंगी?” “मुझे इन लोगों का बहुत प्यार मिला। मुझे कोई परेशानी नहीं है। मैं यहीं रहूंगी, इनकी सेवा कर रही हूं। यह मेरी देखभाल करते हैं। पर अगले हफ्ते से मैं आप को बराबर रुपए भेजूंगी। आप उसे, अपने संस्था के काम में ले लीजिएगा।” “हम तो आपको ले जाने के लिए आए थे। आप हमारे साथ चल सकती हैं।” “नहीं धन्यवाद। मैं यहीं रहना चाहती हूं। ये सभी लोग मेरी देखभाल करते हैं।” मैनेजर और मालिक ये समर्पण देखकर बहुत ही गदगद होकर वापस आ गए। दुनिया में ऐसे भी लोग रहते हैं। कितने आश्चर्य की बात है ना! एस भाग्यम शर्मा वरिष्ठ साहित्यकार विंड चाइम्स सन्दूक प्रतीक्षा में पहला पत्र ‘गुड़िया के बाल’ ‘मीत’…. अपनाघर वृद्धाश्रमएस भाग्यम शर्मापेंसिल किताबबुजुर्ग आदमीराजमा चावलसंतानसमर्पणसंस्थाहिन्दी कहानी 1 comment 0 FacebookTwitterPinterestEmail teenasharma previous post विंड चाइम्स next post पानी पानी रे Related Posts रामचरित मानस यूनेस्को ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ सूची... 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