कहानियाँ प्यार के रंग कहानी—शोभा रानी गोयल by teenasharma March 13, 2023 written by teenasharma March 13, 2023 प्यार के रंग आज फिर होली का त्योहार है। उस होली के बाद मैंने फिर कभी रंग गुलाल के हाथ नहीं लगाया। पढ़िए शोभा रानी गोयल की लिखी कहानी प्यार के रंग…। मौसम बड़ा सुहावना है। अभी अभी बरसात ने अपने फूल बिखेरे हैं। गमलों से मिट्टी की सोंधी सुगंध महक रही हैं। डिपार्टमेंट के गलियारों में वह अपने कलीग के साथ डिस्कस कर रही थी। मैं फूलों की तरह नाजुक तितली की तरह उन्मुक्त थी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं वह अपनी मस्ती में मस्त रहती। जिंदगी में मैंने इतनी बेपरवाह लड़की कभी नहीं देखी… मैं उसे जब भी देखता तो देखता ही रह जाता। मेरे अजीबोगरीब शौको में से एक शौक उसे निहारते रहने का था। शोभा रानी गोयल ऑफिस में सब उसके पीठ पीछे उसकी बातें किया करते थे सामने देख कर सब की धिग्गी बंध जाती। वह हमारी शासन सचिव एवं आयुक्त यानी हेड ऑफ डिपार्टमेंट थी। उस दिन ऑफिस में मीटिंग थी। उसके चेहरे पर कुछ चमक ज्यादा थी। स्टेप कटिंग बाल, आंखों पर चश्मा, होंठों पर काॅफी शेड की लिपस्टिक और नीले रंग के सूट में वह गजब ढा रही थी। वह सौम्य और नजाकत भरी थी। मेरा ध्यान काम पर कम और उसकी तरफ ज्यादा था। वह इस बात को नोटिस कर थी। वह मेरी नजरो को बार-बार अपनी ओर उठती देख असहज हो गयी। थोड़ी देर बाद मेरा ध्यान भटकाने के उद्देश्य से बोली- रवि सबको ठंडा पानी सर्व करो। जी मैडम …मैं सबके सामने पानी की बोतल रखने लगा लेकिन अब भी मेरा ध्यान उसी पर था। वह मेरे सपनों की परी थी आज से नहीं पिछले 10 सालों से…कॉलेज में हमने एक साथ एडमिशन लिया हम दोनों के एक जैसे विषय थे। जितना मैं अर्थशास्त्र से दूर भागता था। उसके लिए वह उतना ही प्रिय था जितनी जल्दी वह इतिहास को भूल जाती उससे कहीं ज्यादा वह मुझे याद आता। खाली समय में वह कोरे कागज पर आडी तिरछी लकीरे खींच देती और मैं उन में रंग भर देता। वह अक्सर कहती है रवि इसी तरह तुम मेरे जीवन के रंगरेज बनना। मै पलके झुका कर हां कर देता। होली का त्योहार नजदीक था। बाजारों में रौनक बढ़ गई थी। घरों में गुझियों की खुशबू चहक रही थी। मैं भी बाजार से लाल रंग का गुलाल खरीद लाया। परी होली का पहला रंग तो तुम्हें ही लगाउंगा। मैंने उत्साहित होते हुए कहा। नहीं रवि मुझे रंगों से एलर्जी है यह मेरे लिए तकलीफदेह है प्लीज मुझे रंगों से दूर रखना। ठीक है मेरी प्यारी परी, मगर गुलाल तो लगा सकता हूं बस थोड़ा सा…. ओके रवि दूसरे दिन धुलंडी थी। मै गुलाल लेकर उसके घर पहुंचा वह दरवाजे पर पीला सूट पहन कर खडी थी। होली के लिए पूरी तरह तैयार हो मेरी जान…. मैंने मुस्कुराते हुए चुटकी ली जान वान सब बाद में… सिर्फ गुलाल, वह भी चुटकी भर,पक्का रंग बिल्कुल नहीं। ओके बाबा, देखो मेरे हाथ में सिर्फ गुलाल है। वह मुस्कुराने लगी और मैंने गुलाल उसके गालों पर मल दी। अभी कुछ सेकेंड गुजरे थे कि वह चीखने चिल्लाने लगी मैं डर गया मेरे साथ मेरे मुंह से सिर्फ इतना ही निकला क्या हुआ परी? वह बोलने की स्थिति में नहीं थी। वह चेहरा ढांप कर रो रही थी मैंने मना किया था रवि, मगर तुम नहीं माने। मैं कुछ समझ पाता उससे पहले ही उसके पापा ने मुझे दरवाजे के बाहर धकेल दिया। खबरदार जो कभी परी के आसपास दिखाई दिए अब तुम्हारा मेरी बेटी से कोई रिश्ता नहीं। परी पानी से बार बार अपना चेहरा धो रही थी पानी की ठंडक भी उसके जख्मों को कम नहीं कर रही थी। उसका काफी दिनों तक इलाज चलता रहा। दरअसल गुलाल में पक्का रंग मिला हुआ था और इस बात की मुझे खबर नहीं थी। अनजाने में हुई इस गलती की मैं बार-बार माफी मांगता रहा मुझे माफी नहीं मिली यह होली मुझसे उससे दूर कर गई। मैंने बहुत कोशिशें की, परी मान जाये मगर असफल रहा। उसकी नफरत दिन-ब-दिन बढ़ती चली गई उसे लगता था कि मैंने उसे धोखा दिया है। एक दिन वह सब कुछ छोड़ कर शहर से कहीं दूर चली गई। हम दोनों के बीच दोस्ती और रिश्ते दोनो खत्म गये। अचानक मेरे पापा का निधन हो गया। परिवार का भार मेरे कंधों पर आ गया। इस अनचाही परिस्थिति में पढ़ाई छूट गई। पापा के दोस्त के ऑफिस में चपरासी की वैकेंसी निकली उन्होंने कुछ न सही से कुछ तो सही कह कर मुझे लगवा दिया और मैं सरकारी चपरासी बन गया। घर की गाड़ी चल पड़ी। घर में सब ठीक-ठाक था मगर जिंदगी में खालीपन पसरा था। परी के बाद इस दिल ने किसी और को चाहा ही नहीं। मैं जितना दिशाओ और गहराइयों में उतरता उतना ही उलझता जाता। उस दिन अखबार में पढ़ा 20 आईएएस का ट्रांसफर…परिणीति सक्सेना का अपाइंटमेंट हमारे यहां हुआ है। जीवन भी एक विचित्र यात्रा है मुझे परी का ही चपरासी बनना था अक्सर उससे नजर मिल जाती। शुरू शुरू में अपने पुरर्वाग्रह के कारण मुझे काम बताते हुए वह सकुचाती। हमारे बीच 10 सालों का फासला था और अब तो पद का भी… आज फिर होली का त्योहार है। उस होली के बाद मैंने फिर कभी रंग गुलाल के हाथ नहीं लगाया। मां अक्सर कहती थी जो हुआ उसे भूल जाओ। मगर मेरे लिए भुला देना आसान नहीं था। मैं आंखें बंद करके कमरे में लेटा हुआ था। मां आज किसी काम से बुआ के घर गयी थी। दरवाजे पर एक दस्तक हुई ना चाहते हुए भी मैने दरवाजा खोला सामने का दृश्य देखकर मै भोचक्का रह गया। मैडम आप….. मैडम होंगी आप के ऑफिस की। यहां पर मैं परी बनकर आई हूं अंदर आने के लिए नहीं कहोगे रवि। हां… हां…क्यों नहीं… अंदर आओ। मै हकलाते हुए बोला। वह मेरी सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई। कैसे हो रवि? ठीक हूं- मैंने संक्षिप्त सा जवाब दिया। आज होली है- उसने कहा। और मैंने अब होली खेलनी छोड़ दी है-मैंने अनमने भाव से कहा। मुझे माफ कर दो रवि। मैंने तुम्हारे साथ बहुत बुरा व्यवहार किया। मुझे लगा था तुमने मुझे धोखा दिया है बाद में पता चला कि दुकानदार की गलती से गुलाल में रंग मिक्स हो गया। मुझे बहुत पछतावा हुआ और अफसोस भी….। इस बीच पापा का ट्रांसफर हो गया और चाह कर भी मैं तुमसे नहीं मिल पाई। मैंने कोरे कागज पर आड़ी तिरछी रेखाएं खींचना नहीं छोड़ा है मगर वे सब रंगों के बगैर अधूरी है। आओ रवि अब उन्हें पूरा कर दो। मगर मैडम आप आईएएस और मैं मामूली चपरासी…. प्रेम की इस नदी में सब कुछ बहा दो। उठो रवि मेरे रुखसार तुम्हारे गुलाल का इंतजार कर रहे हैं इस होली को मेरे लिए यादगार बना दो। मगर तुम्हें रंग गुलाल से एलर्जी है वह बिना उसकी ओर देखे बोल गया। हां, मगर हल्दी से नहीं है ना…उसने हथेली खोलकर उसके सामने कर दी। प्यार का कोई रंग नहीं होता रवि। होली तो वैसे भी दिलों का त्यौहार है। हर्षोल्लास का त्यौहार है स्पर्श का, स्नेह का और रूठें हुए अपनों को मना लेने का पर्व है इसे यूं ना जाया करो। हां मेरी जान कहकर उसने परी को गले लगा लिया बाहर बच्चों की टोली से आवाज आ रही थी बुरा ना मानो होली है। लेखक परिचय— शोभा रानी गोयल वर्तमान में जयपुर सचिवालय में वरिष्ठ सहायक के पद पर कार्यरत हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में शोभा रानी की कविता, लघुकथा और कहानियां प्रकाशित हुई हैं। लगभग 20 साझा संग्रह में इनकी भागीदारी है साथ ही ‘नेविगेटर कहानी संग्रह’ पुस्तक प्रकाशित हो चुकी हैं। कुछ अन्य कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें— प्रतीक्षा में पहला पत्र बकाया आठ सौ रुपए एक-एक ख़त…बस सन्दूक कहानी स्नेह का आंगन hindi kahaniholilove storypyaar ke rangनेविगेटरप्यार के रंगशोभा रानी गोयलहोली गुलाल 0 comment 1 FacebookTwitterPinterestEmail teenasharma previous post बकाया आठ सौ रुपए next post दीपिका पादुकोण-पुस्तक चर्चा Related Posts विंड चाइम्स September 18, 2023 रक्षाबंधन: दिल के रिश्ते ही हैं सच्चे रिश्ते August 30, 2023 गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव August 13, 2023 अपनत्व April 12, 2023 बकाया आठ सौ रुपए March 1, 2023 एक-एक ख़त…बस February 20, 2023 प्रतीक्षा में पहला पत्र February 16, 2023 लघुकथा—सौंदर्य February 11, 2023 एक शाम January 20, 2023 गुटकी January 13, 2023 Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.