'कभी फुर्सत मिलें तो'...
कभी 'फुर्सत' मिलें तो... ढूंढना वो आंसू की बूंदे, जो गिरी थी 'कार' में जब तूने अपने सीने से लगाया था...। कभी फुर्सत मिलें तो ढूंढना अपना वो 'पागलपन', जब इक रात तूने मेरा आंचल हटाने की ज़िद की थी...। ये पंक्तियां है मेरी यानी टीना शर्मा 'माधवी' की लिखी कविता 'कभी फुर्सत मिलें तो'...। कहानी का कोना में पढ़िए कविता 'कभी फुर्सत मिलें तो'...।
कभी फुर्सत मिलें तो चले आना इस पते पर
जहां बसती हैं यादें तेरे और मेरे अहसासों की...।
कभी फुर्सत मिलें तो महसूस कर जाना वो 'सैकंड'
जिसकी 'छुअन' अब भी बाकी हैं इन लबो पर...।
कभी फुर्सत मिलें तो एक बार फिर से ढूंढ लेना वो कान का 'बूंदा'
जो गिरा था सरगोशी से तेरी....।

टीना शर्मा 'माधवी'
चाय की 'तपेली' पर अब भी बाकी हैं निशां
जो तुझसे बतियाते हुए जली थी कभी..।
कभी फुर्सत मिलें तो ढूंढना वो आंसू की बूंदे
जो गिरी थी 'कार' में जब तूने अपने सीने से लगाया था।
कभी फुर्सत मिलें तो ढूंढना अपना वो 'पागलपन'
जब इक रात तूने मेरा आंचल हटाने की ज़िद की थी...।
जेब में रखे उस रुमाल से भी पूछना
जिससे पूछा था मेरा चेहरा कभी...।
ढूंढना उन कांच के टुकड़ों को भी
जो तेरी घड़ी से टूटे थे कभी..।
फुर्सत मिलें तो 'सहलाना'
अपने सीने पर बना वो निशां
जो इन लबो ने सारी हदें पार करके छोड़ा था कभी...।
आज इस पते पर रहती हैं एक 'खामोशी'
कभी फुर्सत मिलें तो चलें आना इसे तोड़ने कभी...।
टीना शर्मा 'माधवी'
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