नीमूचाणा किसान आंदोलन

टीना शर्मा

by teenasharma
नीमूचाणा किसान आंदोलन

नीमूचाणा किसान आंदोलन

एक ऐसी तारीख जिसे भुलाया नहीं जा सकता। नीमूचाणा गांव की रक्तरंजित धरती, गांव वालों की हृदय विदारक चीख—पुकार, जर्जर घर व हवेलियों से बहता दर्द आज भी उस भयावह सुबह की गवाही देता है। जो इतिहास के पन्नों में  ‘नीमूचाणा किसान आंदोलन’ के रुप में दर्ज है।

  • अंग्रेजों का रचा बुना ‘वीभत्स’ षड़यंत्र
  • सम्मान को तरसती वीर शहीद किसानों की आत्माएं
  • आज भी गूंजती है नरसंहार की चीख पुकार

इतिहासकार भगवानदास केला लिखते हैं, ” दो घंटे तक फायरिंग चलती रही। मशीनगन 42 मिनट तक काम में ली गई। सेना ने महिला, बच्चों और जानवरों तक को नहीं छोड़ा।” 

 

नीमूचाणा किसान आंदोलन

नीमूचाणा किसान आंदोलन: दर्द की एक तस्वीर

14 मई 1925…।

एक ऐसी तारीख जिसे भुलाया नहीं जा सकता। नीमूचाणा गांव की रक्तरंजित धरती, गांव वालों की हृदय विदारक चीख—पुकार, जर्जर घर व हवेलियों से बहता दर्द आज भी उस भयावह सुबह की गवाही देता है। जो इतिहास के पन्नों में  (neemuchana kisan andolan) ‘नीमूचाणा किसान आंदोलन’ के रुप में दर्ज है।

वास्तव में ये अंग्रेजों की क्रूर व अत्याचारी नीति, लगान व्यवस्था में उनके राजनैतिक हस्तक्षेप के विरुद्ध था। जो 20 शताब्दी में अपने चरम पर पहुंच गया था,तब किसानों द्वारा आंदोलन की राह पकड़ना स्वाभाविक ही था। जिसे दबाने के लिए अंग्रेजों ने ‘वीभत्स’ षड़यंत्र रचा—बुना था।

जिसके बारे में महात्मा गांधी ने कहा था, ” ये जनरल डायर के जलियावाला बाग हत्याकांड के कारनामों से भी दुगुना है।”

ये कहानी है उस वक्त की जब अलवर रियासत का बानसूर एक राजस्व गांव हुआ करता था। जहां पर एक और था ‘प्राइम मिनिस्टर’ का शासन चक्र तो दूसरी ओर ‘नरेंद्र मण्डल कमीशन’।

इन दोनों को आधार बनाकर धुर्त अंग्रेजों ने नीमूचाणा के लिए एक ‘व्यूह’ रचना रची थी। वे जानते थे कि अलवर के राजा जयसिंह को अपनी प्रजा के खिलाफ करना मुश्किल हैं। अलवर शासन व्यवस्था का मजबूत आधार ‘राजा—प्रजा’ के बीच उचित समन्वय ही था।

जिसे देख लॉर्ड चेम्सफ़ोर्ड, जो 1916 से 1921 ई. तक भारत का वॉइसराय था। उसने अलवर रियासत के बारे में कहा था, ”अलवर का शासन प्रबंध उत्तम हैं। जिस पर अलवर नरेश का पूरा ध्यान है। ऐसे में कृषक और प्रजा सुखी रहेगी।”

‘प्राइम मिनिस्टर’ शासन—

अंग्रेजों ने ”राजा को प्रजा के सामने उनका दुश्मन बनाने की योजना बनाई और छल को अपना शस्त्र। ये वो समय था जब राजपूताना, जयपुर में कैबिनेट शासन व्यवस्था थी। जिसके तहत परामर्श से ही राजा शासन चलाया करते थे। किंतु अलवर में शासन चलाने के लिए प्राइम मिनिस्टर प्रमुख होता था।

नीमूचाणा में उठ रहे किसान आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने अपनी कुटिल नीति अनुसार इसी शासन व्यवस्था का लाभ उठाते हुए प्राइम मिनिस्टर को विश्वास में लेकर षड़यंत्र रचा।

नीमूचाणा किसान आंदोलन

नीमूचाणा गांव के लोग

जो उनकी नीति का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा बना। चूंकि प्राइम मिनिस्टर मुस्लिम था और राजा की देशभक्ति से घृणा करता था। इसलिए उसने पूरी शासन व्यवस्था अंग्रेजों के हाथ में देकर देश के साथ गद्दारी की। ​आज भी प्राइम मिनिस्टर को ‘नीमूचाणा हत्याकांड’ के लिए पहला जिम्मेदार कारण माना जाता है।

नरसंहारी: ‘नरेंद्र मंडल कमीशन’—

दूसरी ओर अंग्रेज 1857 की क्रांति से सबक ले चुके थे। इसलिए उन्होंने देशभक्त राजाओं को तोड़ने के लिए एक अन्य षड़यंत्र रचा। उन्होंने ‘नरेंद्र मंडल कमीशन की स्थापना’ की। जिसका उद्देश्य इन राजाओं से उनका शासन अधिकार छीनना था।

जिसका महत्वपूर्ण बिंदु था, ”ऐसे राजा जिनकी प्रजा उनसे खुश नहीं, असंतुष्ट है या शासन व्यवस्था में कोई कमी हैं तो उसे गद्दी त्यागनी होगी।” नीमूचाणा किसान आंदोलन में इस बिंदु को दूसरा सबसे मजबूत आधार बनाकर प्रजा को राजा के विरुद्ध करने का षड़यंत्र रचा गया।

अंग्रेजों ने भू-राजस्व कर बढ़ा दिया। जिसका हर वर्ग पर असर पड़ा। विशेषकर किसान बर्बाद होने लगे।
वे राजा से इस बात का उत्तर चाहते थे। लेकिन अंग्रेजों द्वारा नियु​क्त राजनैतिक एजेंटों ने किसानों को राजा तक अपनी बात रखने का अवसर ही नहीं दिया।

इससे किसान भड़क उठे। उनका गुस्सा और अधिक फूट पड़ा और उन्होंने अलवर शासन व्यवस्था के विरोध में विद्रोह कर दिया। उनके इस विरोध में गांव वाले भी समर्थन में आ गए। यही वो क्षण था जिसकी प्रतीक्षा अंग्रेज लंबे समय से कर रहे थे।

जब चली अंधाधुंध गोलियां—

इधर, क्रांतिकारी किसानों ने अंग्रेजी शासन के विरोध और भू-राजस्व कर पर चर्चा के लिए बानसूर तहसील के नीमूचाणा गांव में एक सभा बुलाई। चूंकि नीमूचाणा गांव सुरक्षात्मक दृष्टि से उपयुक्त था इसलिए गुप्त रुप से यहां सभा रखी गई थी। फिर वो ज्येष्ठ मास की सप्तमी तिथि व 14 मई 1925 की वो तारीख वो सुबह आई।

जब अंग्रेजी सेना ने ताबड़ तोड़ नीमूचाणा गांव की घेराबंदी कर दी। सुबह का समय था। किसानों की इस सभा में गांव के हर आयु वर्ग के बच्चे—बुढ़े, बड़े, महिलाएं सभी के सभी पहुंच रहे थे। तभी अंग्रेजों द्वारा नियुक्त राजनैतिक एजेंट छाजूसिंह जो, नीमूचाणा ​हत्याकांड यानी देश का एक और गद्दार साबित हुआ।

यहां पर एक अहम बिंदु का जिक्र होना बेहद आवश्यक है। जो हत्याकांड के ठीक तीन दिन पहले यानी 11 मई 1925 को ज्यूडिशियल मिनिस्टर ने एक आदेश के रुप में दिया था।

जिसमें स्पष्ट तौर पर लिखा गया था कि ”अगर सभा होती हैं तो पहले उसे समाप्त करने की चेतावनी दी जाए, इसकी पालना नहीं हो, तब किसान नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जाए।” लेकिन छाजूसिंह ने इस आदेश को माना ही नहीं।

उसने अपने ही किसान भाईयों और मासूम गांव वालों पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया। अपने लोगों को गोलिया खाते देख, आंखों के सामने दम तोड़ते देख उसकी रुह नहीं कांपी।

गोलियों से बचने के लिए लोग घरों की ओर भागे तो उनके घर जला दिए गए, प्यास से व्याकुल हो कुओं की ओर दौड़े तो उन्हें तड़पा—तड़पा कर मारा। चारों ओर चीख—पुकार, दर्द पसर गया। अंधाधुंध गोलियों से सैकड़ों मारे गए, घायल हुए व कई लापता हो गए। नीमूचाणा की प​वित्र धरती इन क्रांतिकारियों के खून से लाल हो उठी।

सरकारी आंकड़ों पर दृष्टि डालें तो, अंग्रेजी सेना के आदेश पर ‘नीमूचाणा किसान आंदोलन’ को समाप्त करने के लिए 4 मशीनगन, 2 तोपें, 200 पैदल सैनिक और लगभग 100 घुड़सवार सैनिकों को भेजा गया था।

हालांकि एक अन्य आंकड़ा बताता ​है कि इस घटना में डेढ़ हजार से अधिक किसान मारे गए थे और लगभग 600 से अधिक घायल हुए थे। पूरे देश में इस हत्याकांड की बहुत आलोचना हुई। इस वीभत्स नरसंहार की पूरे देश में जलियांवाला बाग हत्याकांड से तुलना की गई थी।

नीमूचाणा किसान आंदोलन

नीमूचाणा किसान आंदोलन

वास्तविकता में किसानों से शुरु हुआ ‘नीमूचाणा किसान आंदोलन‘ अत्याचारी अंग्रेजों की नीतियों के विरुद्ध खड़े हुए जन सामान्य का आंदोलन ही था।

इतिहास के काले पन्नों में अंकित हमारे अन्नदाताओं का यह लोमहर्षक नरसंहार आजादी के 75 वर्ष गुजर जाने के बाद भी एक सम्मानजनक स्थिति पाने के लिए तरस रहा है।

 

इसके लिए सरकार को चाहिए वो हमारे उन अनगिनत वीर किसानों की याद में राष्ट्रीय स्मारक बनाए। साथ ही इस वीभत्स घटना के दिन को विशेष दिवस, स्मृति दिवस के रुप में घोषित किया जाए। जो इन वीर क्रांतिकारियों के प्रति एक सच्ची श्रंद्धाजलि होगी।

जिससे ना सिर्फ हम लोग बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी उनका बलिदान एक प्रेरणादायी स्थल बन सके। इसके लिए ना सिर्फ सरकार बल्कि राज्य के हर व्यक्ति को उनके इस बलिदान को समाज के सामने लाने के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे।

                                                                                                                                               टीना शर्मा ‘माधवी’

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टीना शर्मा ‘माधवी’

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