कहानियाँलेखक/साहित्यकार कहानी-बुधिया by teenasharma September 8, 2022 written by teenasharma September 8, 2022 वहीं पर मुझे मिला था ‘बुधिया‘। जिसके चेहरे में गजब का आकर्षण था। मैं उससे बात करने से ख़ुद को रोक नहीं पाई। पढ़िए ‘शिखा मनमोहन शर्मा’ की लिखी कहानी-बुधिया..। “बुधिया” हमारी गाड़ी मसूरी की सर्पीली पहाड़ियों पर टेढ़ी-मेढ़ी चल रही थी। ऊंची ऊंची पहाड़ियां और नीचे गहरी खाईयाँ, जिन्हें एकाएक देख कर मन में भय व्याप्त हो जाए, चारों तरफ हरीतिमा पूर्ण सुहावने मौसम में मेरा मन भी मयूर की तरह नृत्य करने का हो रहा था। वैसे तो अक्सर लोग पहाड़ियों पर बर्फ देखने के लिए जाते हैं, पर हम एक ऐसे सैलानी थे, जिन्हें मसूरी से विशेष प्रेम था। जब भी शहरी आबो हवा से शरीर और मन थकने लगता , हम अपना बोरिया बिस्तर बांध कर पहाड़ियों से घिरे छोटे से हिल स्टेशन पहुंच जाते थे। हम यहां की सड़कें, यहां के बाजार सभी से भलीभांति परिचित थे। वहीं पर मुझे मिला था “बुधिया”। जिसके चेहरे में ही एक ऐसा आकर्षण था कि मैं अपने आपको उससे बात करने से नहीं रोक पाई थी। हम मसूरी के माल रोड से गुजर रहे थे, चारों तरफ गाड़ियां एक दूसरे से आगे निकलने की कोशिश में लगी थी और रोड के दोनों तरफ कपड़ों की, खाने पीने की, एंटीक चीजों की, दुकानें थी । हमारा होटल माल रोड से आगे जाकर था। बच्चे इस सफ़र से थक गए थे ,इसीलिए होटल जाने से पहले ही ठंडे-ठंडे जूस से उनका गला तर करने के लिए हमने माल रोड पर अपनी गाड़ी साइड में रोकी थी। ‘शिखा मनमोहन शर्मा’ मैं गाड़ी से बाहर निकल कर अपनी कमर सीधी कर रही थी। वहीं पर सामने एक बड़ी दुकान के नीचे एक छोटी सी टेबल लगाए वह बच्चा खड़ा था। उसके घुंघराले बाल, गोरा रंग और नीली आंखें थी, उसने छोटा सा नेकर और आदि आस्तीन का सफेद कमीज पहन रखा था। वह बड़ी तन्मयता से लकड़ी के ऊपर विभिन्न तरह के नाम लिख रहा था। उस दुकान के आगे तीन चार लोग खड़े थे, जो उसे बता रहे थे कि लकड़ी के ऊपर किसका नाम लिखना है । उस दुकान के थोड़ा सा आगे बारह ,तेरह साल का लडका लकड़ी के उस पट्टे पर लिखे हुए नाम को दिखा कर ग्राहकों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रहा था ।मुझे उस बच्चे की काम करने की तन्मयता बहुत पसंद आई थी। आसपास इतना शोर हो रहा था ,कहीं किसी दुकान से गानों की आवाज आ रही थी, उसके सामने खड़े लोग उसे लकड़ी पर कुछ लिखने का निर्देश दे रहे थे, लेकिन वह बच्चा बड़ी शांति से उस लकड़ी पर नाम उकेरने के काम में लगा हुआ था । पहले मैंने सोचा था कि आगे बढ़ कर ग्राहकों को बुलाने वाला उसी दुकान का सदस्य होगा, परंतु कुछ समय बाद ही वह उसके पास वाली दुकान जो एंटीक कीचैन की थी, वहां पर जाकर अपनी दुकानदारी करने लगा। यह मुझे थोड़ा अजीब लगा। मैं उसके पास धीरे-धीरे जा ही रही थी कि पीछे से गाड़ी का हॉर्न बजा और आवाज आई “जो कुछ खरीदना है ,कल खरीदना अभी हम होटल चलेंगे, बहुत थक गए हैं।” मेरे पांव वापस गाड़ी के अंदर आ गए, पर मेरा मन उस बच्चे के ऊपर से नहीं हटा। अगले दिन हम माल रोड पर घूमने निकल गए थे । मेरे कदम उसी दुकान की तरफ बढ़ रहे थे । थोड़े नजदीक आने पर हमने देखा कि कल जिस दुकान पर बच्चे ने मुझे आकर्षित किया था ,वहां पर चारों तरफ भीड़ जमा है। उत्सुकतावश मेरे कदम जल्दी-जल्दी उस दुकान तक पहुंचे। मैं वहां पहुंची तो मैने भीड हटाकर देखा तो वही आठ वर्षीय बच्चा रो रहा था और जो बच्चा उसके आगे खड़ा होकर ग्राहकों को लुभा रहा था ,वह जोर-जोर से किसी सैलानी से झगड़ रहा था और वह सैलानी भी कुछ ना कुछ बोल रहा था। मुझे पूरी बात समझ नहीं आई, तो मैंने उस लड़के से ही पूछा – “क्या हो गया भाई, क्यों झगड़ रहे हो?” लड़का-” पता नहीं मैडम जी, कहां कहां से आ जाते हैं, अपना काम करा लिया लड़के से ,अब पैसा देने में कतरा रहे हैं।” मैंने उन सैलानियों से पूरी बात जानने की कोशिश की तो मुझे पता लगा कि जब हमने इस लकड़ी के पट्टे पर नाम लिखवाने के पैसे पूछे तो इस लड़के ने अपने हाथ के इशारे से पांचों उंगलियां दिखाकर हमें पचास रूपए बताएं और अब यह लड़का कह रहा है कि उसने सौ रूपए बताए थे। मैंने उस लडके से पूछा – “क्यों बेटा, क्या हो गया, ऐसा किया क्या तुमने।” बदले में उसने अपनी गर्दन नहीं करने के मुद्रा से हिला दी लेकिन बोला कुछ नहीं। प्रत्युत्तर में वह दूसरा लड़का बोला -“वह क्या बताएगा मैडम जी ,वह तो बोल ही नहीं सकता ,उसी चीज का तो फायदा उठाते हैं यह लोग ,इसीलिए मैं अपनी दुकान छोड़कर इसकी दुकान के आगे खड़ा रहता हूं कि कोई इसे ठग कर न चला जाए ,मैं थोड़ी देर के लिए इधर उधर क्या हुआ ,कर लिया इसने अपना नुकसान । इसने अपने दोनों हाथों से इशारा किया था , इस हाथ की पांचों उंगलियां यानी पचास और दूसरे हाथ की पांचों उंगलियां मतलब सौ रूपए। अब इस बात को समझ नहीं रहे और लड़ने को तैयार हो रहे हैं ।” उस मासूम बच्चे की बोल न सकने वाली बात से मैं एक क्षण के लिए दुखी और परेशान हो गई, फिर मैंने सैलानियों को बोला – “छोटा बच्चा है, हो सकता है आपको कुछ गलतफहमी हो गई हो ,इनके पैसे इन्हें दे दीजिए ।” लेकिन वह सैलानी मानने को तैयार नहीं था तो मैंने झगड़े को और नहीं बढ़ाने के लिए बड़े लड़के से कहा कि ‘मैं दे दूंगी पैसे जाने दो इन्हें।’ अब वे लोग चले गए थे । छोटा लड़का चुप हो गया था, लेकिन बड़ा लड़का बडबडाये जा रहा था। मैंने उस लड़के से पूछा इसका नाम क्या है और इसकी क्या कहानी है वह बोला – “इसका नाम बुधिया है ,बिचारा अनाथ है। एक मां थी ,जिसका इसी रोड पर एक्सीडेंट हो गया ,वह एक्सीडेंट इसने अपने आंखों के सामने देखा था और अपनी आंखों के सामने ही अपनी मां को दम तोड़ते हुए देखा था ,बस तब से ही इसकी आवाज चली गई । चाचा चाची ने यह दुकान खुलवाई है, लेकिन इस पागल को तो लोग लूट कर चले जाते हैं, इसीलिए अपना धंधा छोड़कर इसकी मदद करने आ जाता हूं । मैंने बाकी के पचास रूपए निकालकर बुधिया की तरह बढ़ाएं ,लेकिन वह गर्दन हिला कर मना करने लगा । मैंने इशारे से पूछा- “क्यों ,अपना पैसा नहीं लोगे ।” तो वह अपने हाथों के इशारे से मुझे कुछ समझाने लगा। मुझे पूरी बात समझ में नही आई तो मैंने उस लड़के की तरफ देखा उसने कहा- “अब नहीं लेगा मैडम जी ,यही तो आदत बुरी है, कुछ ज्यादा ही ईमानदार है जमाने के हिसाब से ।” मुझे बच्चे पर ममता उमड आई। मैंने उसके सिर पर हाथ फेर कर बड़े प्यार से कहा- ” ले ले बेटा, मेरा आशीर्वाद समझ कर।” लेकिन वह अपनी गर्दन ही हिलाता रहा। बड़े वाले लड़के ने मेरे हाथ से पैसे लेकर उसकी जेब में डाल दिए और कहा ” तुझे कहा ना ,ले ले आशीर्वाद है मैडम जी का।” मुझे उसका नाम भी थोड़ा अजीब लगा था। मैंने उससे पूछा बुधिया नाम तुम्हें किसने दिया ,तो उस बड़े लड़के ने कहा -“यह नाम स्कूल वालों ने दिया है, आवाज बंद होने के बाद जब स्कूल जाता था ना , सब इसको बुद्धू बुद्धू कहकर बुलाते थे ,जब चाचा चाची ने इसे काम पर लगाया तो इसका नाम बुद्धू से बुधिया हो गया । यह बात बोलकर वह बड़ा लड़का खिलखिला कर हंसने लगा पर मेरा मन अंदर तक भीग गया था। और भी कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें— कबिलाई— एक ‘प्रेम’ कथा ‘इकिगाई’ चाबी भटकती आत्मा… प्रिय, पाठकगण आपको ये कहानी कैसी लगी, नीचे अपना कमेंट ज़रुर लिखकर भेजें। साथ ही ब्लॉग और इसका कंटेंट आपको कैसा लग रहा हैं इस बारे में भी अपनी राय अवश्य भेजें…। आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए बेहद अमूल्य हैं, जो हमें लिखते रहने की उर्जा देती हैं। धन्यवाद 'शिखा मनमोहन शर्माkahanikakonamediumकहानी-बुधियालेखक व साहित्यकार 4 comments 1 FacebookTwitterPinterestEmail teenasharma previous post चाबी next post स्ट्रीट आर्टिस्ट हूं भिखारी नहीं Related Posts साहित्यकार सम्मान April 17, 2023 अपनत्व April 12, 2023 प्यार के रंग March 13, 2023 बकाया आठ सौ रुपए March 1, 2023 एक-एक ख़त…बस February 20, 2023 प्रतीक्षा में पहला पत्र February 16, 2023 लघुकथा—सौंदर्य February 11, 2023 सन्दूक January 25, 2023 एक शाम January 20, 2023 ह से हिंदी January 18, 2023 4 comments Nirupama Chaturvedi September 8, 2022 - 7:17 am बेहद मार्मिक, बहुत अच्छी लघुकथा।आँखों में आँसू आ गये पढ़कर। Reply Kumaarr Pawan September 8, 2022 - 8:46 am Heart Touching Story. Thank you for sharing Kumarr Pawan Reply फेसबुक दोस्त - Kahani ka kona December 7, 2022 - 12:28 pm […] स्ट्रीट आर्टिस्ट हूं भिखारी नहीं कहानी-बुधिया चाबी कॉमन मैन— ‘हुकमचंद’ गाइड […] Reply एक शाम - Kahani ka kona January 20, 2023 - 7:22 am […] स्ट्रीट आर्टिस्ट हूं भिखारी नहीं कहानी-बुधिया चाबी कॉमन मैन— ‘हुकमचंद’ गाइड […] Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.