धागा—बटन

kahani

by Teena Sharma Madhvi
धागा—बटन

शायद मेरे हाथों से इस बटन का ‘टंकना’ नहीं था …। नचिकेत की आंखों से आंसू बहकर ज़मीन पर गिरने लगे …। धागा—बटन का प्यार हमेशा के लिए अधूरा रह गया…। और मैं हमेशा के लिए लौट आई …।

धागा—बटन

अलमारी की दराज़ में अब भी उसकी यादें बसती है। उसकी शर्ट का बटन, पेन का ढक्कन और वो ‘कागज़ के कुछ टुकड़े….।’ जो पुड़की बनाकर फेंके थे कभी उसने। अलमारी की साफ़ सफ़ाई में आज हाथ ज़रा दराज़ के भीतर चला गया…। मानो बटन ने खींच लिया हो जैसे…।

इक पल के लिए दिल धड़कना भूल गया। सांसे थम सी गई। बरसों बाद लगा उसका स्पर्श पा लिया हो जैसे…।
मन जो ‘तड़पना’, ‘तड़पाना’ भूल गया था…। वो आज फ़िर से तड़प उठा…। बैचेनी की हुक उठने लगी…जिस्म जैसे बिन बारिश के भीगने लगा…। कुछ देर तक अपनी हथेली पर बटन को रख उसे निहारती रही बस। उसे अपने क़रीब लाकर उसकी खुशबू को अपने भीतर खींचने लगी।

उस दिन भी तो ऐसा ही कुछ हुआ था। नचिकेत ने ब्ल्यू चेक्स की शर्ट पहनी हुई थी। वो तिलक मार्ग पर मेरा इंतजार कर रहा था…। मैं देरी से पहुंची थी। इस बात पर वो मुझसे बेहद ख़फा था। मैंने उसे लाख मनाने की कोशिश की, मगर वो मान जाने को तैयार न था। तभी मैंने उसे अपने गले से लगा लिया और उसे चुप रहने को कहा…।

नचिकेत धीरे—धीरे शांत होने लगा और मेरी बाहों में सिमट खोने लगा…। वो ही क्यूं…? मैं भी तो उसे इतना नज़दीक पाकर खो रही थी…। तभी मुझे आसपास का ख़याल आया और मैं खोने से पहले ही संभल गई।

मैंने धीरे से नचिकेत के कानों में कहा,
….तुम ठीक हो…?
हां मैं अब ठीक हूं…।
तुम भी कुछ मत कहो…।
एकदम शांत हो, इस पल में खो जाओ…।

ये सुन मैंने नचिकेत को हल्का सा झिंझौरा, और वो कुछ सामान्य हुआ। उसने मेरी आंखों में आंखें डाल, मुझसे पूछा तुम ठीक हो…?
हां..हां…मैं ठीक हूं…।
लोग देख रहे हैं, अब तुम मुझे छोड़ोंगे…प्लीज़?
ओह! मैं तो भूल ही गया कि हम, सड़क पर खड़े हैं…।
आई एम सॉरी ‘डियर इरा’…।

अब वो पूरी तरह से सामान्य हो गया था। तब मैंने ख़ुद को उसकी बाहों से अलग किया। तभी मेरे बाल उसकी शर्ट के ‘बटन’ में जा फंसे..और बुरी तरह से उलझ गए…। मैंने अपने बाल बटन से निकालने की बेहद कोशिश की, पर मेरे बाल औैर बुरी तरह से उसमें उलझ गए…। तब नचिकेत ने कोशिश की…। उसकी ये कोशिश भी नाकामयाब रही…।

तब मैंने ही बालों को ज़ोर से खींच लिया और उसी के साथ ‘बटन’ भी टूट कर नीचे गिर गया। मैंने बटन को उठाया और अपने ‘पर्स’ में रख लिया।
ये देख नचिकेत हंस पड़ा…।

ओ तेरी…।
इस पर मैं कुछ बोलती तभी वो कह बैठा।
कोई बात नहीं इरा…।
दूसरा बटन लग जाएगा…।
उसे फेंक दो।
पर्स में क्यूं डाल लिया…?
वैसे भी वो सड़क पर गिर कर ख़राब हो गया हैं…।
फेंक दो उसे। 

धागा—बटन

लव स्टोरी

मैंने भी उसे यूं ही कह दिया, पड़ा रहेगा ‘बेचारा’ पर्स में…। जब मुझे मौका मिलेगा, तब मैं ही तुम्हारी शर्ट में इसे ‘टांक’ दूंगी। यह सुनकर वो ज़ोरों से हंसने लगा…। मैं भी उसके साथ हंसने लगी…।

उसने मुझे फिर टोका, इरा फेंक दो उस बटन को…। अब वो ‘गंदा’ हो गया हैं…। मैं नहीं लगवाउंगा अब ये गंदा सा बटन….।

ठीक है…ठीक हैं…। मत लगवाना…। इसे मैं ही रख लेती हूं…।
ये सुन वो मुझे टकटकी लगाए देखने लगा…।

आज चार साल बीत गए। ना ही नचिकेत मिला और ना ही उसकी शर्ट में बटन टांकने का मौका…। तभी से इस ‘बटन’ को उसकी याद बनाकर संभाले हुए हूं।

याद आता हैं वो दिन भी, जब उसे पीएचडी रिसर्च के लिए दिल्ली जाना था। वो उस दिन बेहद परेशान था। मैं चुपचाप बैठकर उसे देखती रही और कॉफी पीती रही…। दो घंटे में तीन कप कॉफी पी चुकी थी और वो कागज़ पर कागज़ लिखे जा रहा था। कुछ ग़लती होने पर वो कागज़ की ‘पुड़की’ बनाकर फेंक देता…। मैं उसे बीच—बीच में टोंकती रही।

”मुझे तुमसे कुछ ज़रुरी बात करनी हैं…सुन लो प्लीज…।”
लेकिन उसने कहा, एकदम चुप्प होकर बैठो। जब काम ख़त्म हो जाएगा तब हम बात करेंगे…।
ओके!
मैं इस वक़्त सोचने लगी, मैं नचिकेत को जो बताने वाली हूं, क्या वो उसे सुन पाएगा…?
कहीं ऐसा तो नहीं कि, वो अभी के अभी मुझसे शादी करने की बात कह बैठे…?
या फिर इस चिंता में डूब जाए कि, अब क्या होगा…?
या कहे कि, चलो भाग चलें…?
हे भगवान!
कैसे बताउंगी उसे कि……।   

तभी ‘क्या मुझे कॉफी नहीं पिलाओगी…?’ नचिकेत ने ये कहते हुए एक गहरी लंबी सांस ली…। शाम होने को थी…और उसका काम भी लगभग पूरा हो गया था…।
ये सुन मैंने उसके लिए कॉफी ‘ऑर्डर’ कर दी।

”मुझे एक साल के लिए दिल्ली जाना पड़ेगा इरा…।” मेरा हाथ पकड़ते हुए नचिकेत मुझसे कहने लगा…।
ये सुनकर मैं घबरा गई। चेहरे का रंग उड़ गया। गले का पानी जैसे सुख गया…और सीधे आंखों में उतर आया…। मुझे एकदम से सुन्न देख नचिकेत बोला, अरे! अरे! इरा..।

तुम तो ऐसे घबरा गई, जैसे मैं लंबे समय के लिए जा रहा हूं। सिर्फ एक साल ही की तो बात हैं। इत्ती सी बात पर तुम्हारी तो आंखे भर आई। तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि मेरा सपना पूरा होने जा रहा हैं।
रिसर्च पूरी होते ही मैं लौट आऊंगा…। अच्छी नौकरी होगी…फिर हम फ़ोरन शादी कर लेंगे।

अब मैं उसे क्या कहती, ‘मत जाओ’…’रिसर्च छोड़ दो’…’पहले शादी कर लो’…। ‘घर वाले लड़का देख रहे हैं’…। ‘चलो भाग चलें’…।

जिस रिसर्च के लिए वो दिन—रात मेहनत कर रहा था और अपने इस सपने को सच करने में जुटा हुआ था, क्या उसका सपना यूं ही तोड़ देती…? कल को वो मुझे ही दोष देगा, मैं तुमसे शादी करने के चक्कर में अपना करियर खो बैठा…।
क्या करुं मैं…?
बता दूं उसे मैं, कि घर वाले रिश्ता पक्का कर आए हैं…।
जबकि वो इस वक़्त बेहद ख़ुश हैं। इस बात से कि वो दिल्ली जाकर अपना सपना पूरा करेगा…।
क्या ये वक़्त उसके सपने को तोड़ देने का हैं…?
या उसके सपने को साकार हो देने का हैं…?

मुझे खोया देख, नचिकेत ने चुटकी बजाते हुए, ऐ इरा…!
कहां खो गई यार तुम…?
मुझे लगता है, तुम खुश नहीं हुई हो मेरी बात सुनकर।
क्या तुम नहीं चाहती कि मैं दिल्ली जाउं…?

नहीं…नहीं…।
नहीं नचिकेत…। ऐसा नहीं हैं…। मैं तो…मैं तो बस यूं ही…। खो गई थी उन पलों में जब तुम्हारा सपना सच होगा…। हां…हां…जब तुम्हें वो सबकुछ मिल सकेगा जो तुमने चाहा हैं…।
बस ये कहते हुए मैंने अपनी बात दिल ही में दबा ली…।
वो चियर्स कहते हुए मेरे कप से कप टकराने लगा….।
कॉफी सच में ‘टेस्टी’ हैं…।
हां नचिकेत सच में….।

और फिर एक दिन वो बब्बाय…जल्द मिलते हैं….। कहते हुए दिल्ली चला गया…। उसे गए हुए अभी कुछ ही दिन हुए थे और मेरे दिल में एक बार फिर ये बात उठने लगी…।
बता दे ‘ इरा ‘, नचिकेत को….।
तेरी शादी होने वाली हैं…।
हो सकता हैं वो सबकुछ छोड़कर चला आए..!
हो सकता है वो भगा ले जाए…!
पर ये ही तो नहीं चाहती हूं मैं…।
हे ईश्वर!
मुझे रास्ता दिखा।
क्या करुं मैं…।
उसे कहूं या नहीं…। कहीं ये मेरी भूल तो नहीं होगी…? या उसे बताकर भूल कर रही हूं…।
नहीं…नहीं…। ऐसा नहीं हो सकता…।
फिर क्या करुं मैं…?

धागा—बटन

लव स्टोरी

काफी किंतु—परंतु के बाद आख़िरकार उसे फोन कर ही लिया।
हैलो!
हैलो नचिकेत…।
फोन रिसिव करते ही वो बहुत खुश हुआ।
ओह्ह! मेरी इरा…।
कैसी हो तुम…?
मैं तुम्हें ही याद कर रहा था…।
तुमने बहुत ही सही वक़्त पर फोन किया हैं।
ये सुन मैं एक क्षण के लिए ख़ुश हो उठी। कहीं वो मुझसे शादी की बात तो नहीं करने वाला हैं…। पर…।

मैं अपना ‘थिसिस’ वर्क जमा करने जा रहा हूं।
बस कुछ ही दिन बाकी हैं, फिर हम साथ होंगे…। सुन रही हो ना इरा…?
हां…हां…मैं सुन रही हूं…।
अच्छा मैं अभी जल्दी में हूं, हम बाद में बात करते हैं….।
मैं क्या ही कहती अब उसे…।
उसने बाय कहते हुए फोन कट कर दिया…।

शायद अब हम दोनों का रिश्ता भी इसी के साथ हमेशा के लिए ‘कट’ हो गया था…।
मगर इतने सालों बाद आज दिल में ऐसी बैचेनी क्यूं उठ रही हैं…। ये दिल इतनी जोरों से क्यूं धड़क रहा हैं….।
न जानें क्या बात हैं…?
तभी ‘राजीव’ आ गया और शाम को अपने दोस्त की वेडिंग में चलने को कह गया। मन तो नहीं था जाने का…। पर राजीव क्या सोचेगा…? यही सोचकर उसके साथ जाने का मन बना लिया…।

आज की ये शाम सच में बेहद खूबसूरत लग रही हैं…। ठंडी हवा का झौंका…।दिलकश नज़ारें…और ये मद्मम संगीत…। इस फिज़ा में ‘नचिकेत’ की याद और बढ़ गई है…।
मैं इस वक़्त ‘राजीव’ के साथ उसकी बाहों में ज़रुर थी, लेकिन मेरे दिल के पास इस वक़्त सिर्फ ‘नचिकेत’ ही था। तभी मेरे मन में एक सवाल उठा।
‘क्या उसकी शर्ट में अब भी इस बटन की जगह खाली होगी….?’
‘इसे बांधे रखने वाला ‘धागा’ क्या अब भी यूं ही शर्ट के साथ बंधा होगा…?’
पर ये ख़याल आज इतने सालों बाद क्यूं मेरे भीतर आ रहा हैं। जबकि मैं पूरी तरह से राजीव को अपना चुकी हूं…। फिर भी ये दिल आज क्यूं राजीव को नहीं नचिकेत को अपने पास होने की चाहत कर रहा हैं…।
ओह!
ये क्या हो रहा हैं मुझे।
नचिकेत की इतनी कशिश क्यूं हो रही हैं…?
कहीं ऐसा तो नहीं, वो भी मुझे आज मेरी ही तरह याद कर रहा हो कहीं…?
या उसके साथ कुछ अनहोनी….! नहीं…नहीं….।
ये मैं क्या उटपटांग सोच रही हूं।
वो अपनी रिसर्च करके अब तक तो सेटल हो चुका होगा। इतने सालों बाद मैं याद भी होंगी उसे…?
उसका चेहरा याद आता है…। सांवला रंग …आर्मी कटिंग…मोहक मुस्कान…दबंग आवाज…।
ओह! नचिकेत….कहां हो तुम…।
एक पल के लिए लगा जैसे नचिकेत की बाहों में ही हूं। खो गई मैं और उसे यूं अपनी बाहों में भींच लिया जैसे अब उसे जाने न दूंगी…।
मगर मेरी पकड़ से राजीव कुछ असहज हो गया…। उसी ने मेरा ये ख़याल तोड़ा…।
इरा क्या हुआ…।
बहुत प्यार आ रहा हैं आज मुझ पर…।
तुम्हारें नाखूनों ने शायद मेरी पीठ को ज़ख्मी कर दिया है…।
ये सुन मैं बुरी तरह से घबरा गई। मैं नचिकेत की नहीं बल्कि राजीव की बाहों में थी…। राजीव ये न कहता तो शायद मैं कह बैठती ”आई लव यूं नचिकेत…।”

मैं कुछ कहती तभी राजीव कह बैठा, आओ मैं तुम्हें अपने दोस्तों से मिलवाता हूं। कुछ को तो तुम जानती हो और कुछ को नहीं….। ये कहते हुए वो मुझे अपने दोस्तों के बीच ले गया। मैं कुछ दूरी पर ही रुक गई। मैंने उसे कहा, तुम चलों मैं आई..। राजीव आगे बढ़ गया।

सभी लोग बेहद उत्साह के साथ गोल घेरा बनाकर किसी को सुन रहे थे। एक ही शोर था ‘फिर क्या हुआ’….’फिर क्या हुआ’…? अंत में उसने उदास होकर कहा, ‘आज भी मेरी शर्ट में अटके हुए ‘धागे’ को उस ‘बटन’ का बेसब्र इंतजार हैं जो कभी बंधा हुआ था उससे’…।

ये सुन मैं गोल घेरे की ओर दौड़ी और उस घेरे को तोड़ आगे बढ़ गई…। सामने ‘नचिकेत’ था…।
हम एक—दूसरे को चार साल बाद देख रहे थे।
होंठ जैसे सिल गए थे…वक़्त जैसे थम गया था…।
दोनों नि:शब्द हो चले…।
वो अब भी उस बटन के ‘टंकने’ के इंतज़ार में हैं…।
मुझे यूं अचानक अपने सामने देख नचिकेत का चेहरा खिल उठा…। वो कुछ कहने ही वाला था तभी मैंने उसे चुप कर दिया और अपने पर्स से वो ‘बटन’ निकालकर उसकी ‘हथेली’ पर रख दिया।

शायद मेरे हाथों से इस बटन का ‘टंकना’ नहीं था …। नचिकेत की आंखों से आंसू बहकर ज़मीन पर गिरने लगे …।
‘धागा—बटन’ का प्यार हमेशा के लिए अधूरा रह गया…।
और मैं हमेशा के लिए लौट आई …।

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5 comments

Secreatpage May 8, 2021 - 11:11 am

बहुत ही अच्छी कहानी है, पाठकों को अंत तक बाँध कर रखती है.

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Unknown May 9, 2021 - 1:00 am

Jee

Reply
Teena Sharma 'Madhvi' December 3, 2021 - 7:02 pm

Thankuu

Reply
Teena Sharma 'Madhvi' December 3, 2021 - 7:03 pm

Thankyu

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मंगला - Kahani ka kona मंगला May 2, 2022 - 9:38 am

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टीना शर्मा ‘माधवी’

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