हॉरर भटकती आत्मा… by teenasharma February 28, 2022 written by teenasharma February 28, 2022 माधव और ख़ुशी की हाल ही में शादी हुई हैं । दोनों एक ही संस्थान में कार्यरत थे और काम के सिलसिले में हुई एक मीटिंग में दोनों की मुलाकात हुई जो दोस्ती से शुरू हुई और बाद में जीवन के सफर में हमसफ़र बन जाने तक मुकम्मल हुई। ख़ुशी के माता-पिता माधव को पसन्द नहीं करते थे इसलिए दोनों ने परिवार के खिलाफ जाकर कोर्ट में शादी कर ली। अब दोनों का एक ही सपना हैं खुद का घर। खुशी परियों की कहानियां सुनकर बढ़ी हुई इसलिए आज भी उसकी दुनिया उसके सपने लड़कपन की तरह ही थे । वह अक्सर माधव से अपने सपनो के घर को लेकर बात किया करतीं , ऐसे पर्दे होंगे, ऐसी बालकनी होंगी, एक छोटी सी बगिया होंगी। माधव कभी भी खुशी की बातों को हल्के में नहीं लेता , उसका लक्ष्य भी यही था कि वह खुशी के सपनो का घर बनाएगा । भटकती आत्मा खुशी का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण माधव ने खुशी को नोकरी न करने की सलाह दी , जिसे पति की आज्ञा और अपने ही हित की बात मानकर खुशी ने सहर्ष स्वीकार लिया। अब खुशी घर पर ही रहती और अपने घर के सपने बुनती। किराए के घर को भी उसने क़रीने से सजाया हुआ था जैसे उसका अपना घर हो । खुशी बालकनी में ही थीं , पोधों को पानी दे रहीं थीं। तभी माधव की गाड़ी की आवाज आई। खुशी ने मन मे सोचा अभी तो इनके आने का समय नहीं हुआ हैं कोई और होगा। तभी डोरबेल बजी । खुशी ने दरवाजा खोला तो देखा फूलों का गुलदस्ता हाथ में लिए होठों पर मुस्कान के साथ माधव खड़ा हैं । ख़ुशी खिलखिलाकर हँसते हुए बोली – आज क्या ख़ास बात हैं जनाब ? माधव – पहले अंदर तो आने दीजिए मेडम फिर बताएंगे। अंदर आते ही माधव सोफे पर पसरकर बैठ गया और अपनी टाई को ढीला करते हुए खुशी से कहने लगा – आज मैंने हमारे सपनो का घर खरीद लिया हैं , अब तुम जल्दी से तैयार हो जाओ और मेरे साथ अपने सपनो की दुनिया देखने चलो। आज खुशी को लग रहा था मानो वो आकाश में उड़ रहीं हो , उसकी खुशी का ठिकाना ही नही रहा। आज हर बात , हर चीज़ उसके दिल को छू रही थीं। गाड़ियों का शोर भी उसे किसी मधुर संगीत सा लग रहा था। कुछ ही देर में खुशी अपने सपनो के महल के सामने खड़ी थीं। घर वाकई वैसा था जैसा वह सोचा करती थीं। माधव ने घर की चाबी खुशी के हाथ मे थमाते हुए कहा जा खुशी जा जी ले अपनी ज़िंदगी। हँसते हुए चाबी लेकर खुशी ने घर की और दौड़ लगा दी। लोहे का बड़ा सा गेट खोलते ही छोटी सी बगिया दिखी , फिर बड़ा सा लकड़ी का मुख्यद्वार दिखा जिस पर ताला लगा हुआ था। खुशी ने ताला खोला और फिर भगवान गणेश का नाम लेकर मुख्यद्वार खोला। सामने गुलाब की पंखुड़ियों से बना एक बड़ा सा दिल था जिसके अंदर वेलकम लिखा हुआ था । माधव खुशी के पीछे ही था और इन सारे पलो को कैमरे में कैद कर रहा था। खुशी के चेहरे पर इतनी प्रसन्नता , इतना सुकून उसने आज पहली बार देखा था। चिड़ियों सी चहचहाती ख़ुशी पूरे घर का मुआयना कर रहीं थीं ,उसे घर बहुत पसंद आया। माधव को गले से लगाते समय उसकी आँखों मे खुशी के आँसू छलक आए , रुंधे गले से कहा – I Love you माधव । शुभ मुहूर्त में गृहप्रवेश किया गया। गृहप्रवेश वाले दिन अचानक ही बहुत तेज़ हवा चलने लगीं , बड़ी मुश्किल से हवन सम्पन्न हुआ। खुशी के मन मे कुछ सन्देह हुआ जिसको माधव ने यह कह कर टाल दिया कि यह तो प्रकृति से जुड़ी बात हैं । माधव रोज सुबह 9 बजे ऑफिस निकल जाते और रात 8 बजे या लेट होने पर कभी – कभी 9 बजे घर आते। इस बीच खुशी अकेले घर पर रहती। उसे कई बार लगता जैसे घर में कोई और भी हैं। इस बारे में उसने माधव से भी बात की। माधव ने उसे उसका वहम हैं कहकर समझा दिया , और कहा तुम अपनी पसंद के काम मे मन लगा लिया करो , खाली दिमाग शैतान का होता हैं फिर ऐसे ही विचार आते हैं। खुशी रोज पहले माधव के लिए नाश्ता और टिफिन तैयार करतीं । माधव के जाने के बाद ही अपने सारे काम किया करतीं । आज जब वो नहा रहीं थीं तो उसे बाहर किसी के गुनगुनाने की आवाज सुनाई दी। आवाज किसी महिला की थीं। खुशी सहम गई। उसकी हिम्मत ही नहीं हुई कि बाथरूम से बाहर निकलकर देख ले। फिर उसे माधव की बात याद आई और उसका डर खत्म हो गया। वो बाथरूम से बाहर आई , पूरे घर को देख लिया, सभी दरवाजे – खिड़की बंद थे। एक पुराना ‘हैंडपंप’… घर बहुत सुंदर था फिर भी खुशी को नकारात्मक ऊर्जा महसूस होतीं। वह हर समय डरी -सहमी सी रहती। अगर फोन की घण्टी भी बजती तो खुशी चौक जाती थीं। घर लोन लेकर लिया गया था इसलिए माधव भी डबल शिफ्ट में काम करने लगा। इसलिए अब तो कई बार घर आने में रात के 12 या 1 बज जाते। दिन तो खुशी जैसे-तैसे काट लेती पर रात का समय तो सदियों की तरह लगता। खुशी का डर रात के अंधेरे में और गहरा जाता। अब तो हर दिन खुशी को नई -नई बाते नजर आने लगी थीं। उसका शक भी अब पक्का होता जा रहा था कि घर में कोई आत्मा हैं। उसने माधव से भी यह बात कही जिसे माधव ने यह कहकर हँसी में उड़ा दिया कि पढ़ी लिखी होकर भी ऐसी बात करती हो। एक दिन खुशी किचन में चाय बना रही थी तभी उसे याद आया चायपत्ती तो अभी राशन के पैकेट से निकाली ही नहीं हैं और राशन माधव ने कल रात को डायनिग टेबल पर रखा था। जैसे ही खुशी ने किचन से डायनिग टेबल की और देखा तो उसके होश उड़ गए उसे वहाँ काली साड़ी , खुले बाल में एक महिला बैठी दिखीं जो खुशी को ही देख रही थीं। ख़ुशी बेहोश होकर वहीं गिर पड़ी। उसके हाथ मे चीनी का कप था जो उसके गिरते ही टूटकर खुशी के हाथ में लग गया । माधव ने रोज की तरह खुशी को कॉल किया और कई बार घण्टी जाने पर भी जब कोई उत्तर नहीं मिला तो माधव तुरन्त घर के लिए निकला। घर आते ही देखा कि खुशी के हाथ में चोट लगी हैं और वह बेहोश फर्श पर पड़ी हुई हैं। माधव उसे हॉस्पिटल ले गया। डॉक्टर ने कहा घबराने की कोई बात नहीं हैं आपकी वाइफ प्रेग्नेंट हैं और इसी वजह से चक्कर आ गए होंगे । पर अब आप विशेष ध्यान रखिएगा। माधव की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पर खुशी का चेहरा अब भी उदास था। उसे रह रहकर डायनिग टेबल वाली बात याद आती , जिसे वह अपना वहम समझतीं तो कभी सच। खुशी को अब अपनी माँ की बहुत याद आती , उसका मन करता कि माँ से मिलकर उनको सारी बात बताऊँ। पर माँ की नाराजगी का ख्याल कर वह कड़वे घुट पीकर रह जाती। उसे अपने किये पर पछतावा भी होता। पर माधव का प्यार उसे फिर से सांत्वना दे देता। खुशी का चेहरा अब मुरझा सा गया था उसे देखकर यहीं लगता कि उसे कोई गम्भीर बीमारी हैं । वह अब खोई-खोई सी रहने लगी थीं। माधव ने उसे एक कहानी की किताब दी और कहा इसे पढा करो , बहुत अच्छी हैं। कहानी पढ़ते -पढ़ते खुशी की आँख लग गई। जब आँख खुली तो सामने एक महिला बैठी दिखी , चौंकते हुए खुशी ने पूछा आप कौन हैं यहाँ कैसे आई ? खुशी मैं तुम्हारी पड़ोसन हूं । दरवाजा खुला था इसलिए सीधे तुम्हारे पास चली आई। तुम भी मेरी तरह अकेली रहती हो , इसलिए सोचा तुम्हे कंपनी दे दूँ। वैसे भी ऐसे समय तुम्हे यूं उदास नहीं रहना चाहिए । बच्चे की सेहत पर असर पड़ता हैं। खुशी को उनका चेहरा जाना पहचाना सा लगा पर याद नहीं आ रहा था कि उन्हें कहाँ देखा हैं। अब तो रोज़ माधव के जाते ही खुशी की पड़ोसन आ जाती और माधव के घर आने के थोड़ी देर पहले ही चली जाती। खुशी भी अब पहले की तरह दिखने लगी वह खुश रहती और अब उसे घर में किसी भी तरह का कोई डर नहीं लगता । न ही कुछ दिखाई देता न कुछ सुनाई देता। अब खुशी को भी समझ आ गया था कि मेरा ही वहम था। ऐसे ही नो माह बीत गए और खुशी ने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया। खुशी ने माधव को पड़ोसन के बारे में बता दिया था दोनों ने हॉस्पिटल में उनके आने का इंतज़ार किया। माधव को जरूरी काम के चलते ऑफिस जाना पड़ा । थोड़ी देर बाद ही खुशी की पड़ोसन आ गई। खुशी ने उनसे कहा मेरे हसबैंड आपसे मिलने के लिए काफी समय तक आपका इंतजार करते रहे फिर ऑफिस चले गए। कोई बात नहीं फिर कभी मिल लेंगे कहकर मिसेज शर्मा ने बच्चे को अपनी गोद मे ले लिया। बच्चे को देखकर वो इतनी खुश थी जैसे बच्चा उनका अपना ही हो। बहुत देर तक वो बच्चे को अपने सीने से लगाये रही , नर्स के कहने पर उन्होंने बच्चे को खुशी की गोद मे दे दिया। बच्चे को लेकर उनका जो उतावलापन था वह खुशी को अजीब लगा। पर मिसेज़ शर्मा ने खुशी की बहुत सेवा की थीं उसका ख्याल बड़ी बहन की तरह रखा। इसलिए खुशी ने उनसे कुछ न कहा , न कुछ पूछा। ख़ुशी को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई थीं । हॉस्पिटल से आने के बाद भी मिसेज़ शर्मा ने खुशी की बहुत देखभाल की। बच्चे से उनको विशेष लगाव हो गया था। एक दिन बच्चे को खूब आशीर्वाद देकर रोने लगी । खुशी को उसका व बच्चे का कैसे ध्यान रखना हैं सारी बातों की हिदायत देने लगीं। इसपर हँसते हुए खुशी ने कहा आप तो ऐसे कह रही हैं जैसे अब कभी नहीं आएगी। मिसेज़ शर्मा बुदबुदाते हुए बोली – हाँ मेरी मुक्ति जो हो गई हैं। अगले दिन से एक सप्ताह तक मिसेज़ शर्मा नहीं आई। खुशी को चिंता हुई उसने माधव को शर्मा जी के घर भेजा। माधव जब शर्मा जी के घर पहुँचा तो दरवाजा मिसेज़ शर्मा ने ही खोला। माधव – आप ही मिसेज़ शर्मा हैं ? मिसेज़ शर्मा – जी हाँ , कहिए क्या बात हैं ? माधव- खुशी ने आपको याद किया हैं , आप घर नहीं आई तो उसे आपकी फिक्र हो रही थीं। मिसेज़ शर्मा – कौन खुशी ? मैं तो कभी आपके घर आई ही नहीं। माधव इतना सुनकर आश्चर्य करता हुआ अपने घर लौट आया। तो देखा हॉल में घर के पुराने मालिक बैठे हुए थे। माधव को देखकर उन्होंने खड़े होकर माधव की और हाथ बढ़ाते हुए माधव का अभिवादन किया। माधव भी हँसते हुए उनसे गले मिलकर बोला कहिए कैसे याद आई शर्मा जी ? शर्मा जी – याद तो रोज ही करते हैं आज एक काम के सिलसिले में इस शहर आया था सोचा आपसे मिल लूँ और आपके घर से मेरी अमानत लेता चलूँ। माधव – आपकी अमानत ? शर्मा जी – जी हाँ आपकी जो डायनिग टेबल हैं इसके नीचे एक हिडन ड्रावर हैं जिसमे मेरी बीवी की तस्वीर हैं , सोचा आपको इस छुपे ड्रावर के बारे में भी बता दूं और अपनी अमानत भी ले लूँ। माधव – जी जरूर इतने में खुशी भी हॉल में आ गई। मिस्टर शर्मा ने एक चाबी जेब से निकाली और ड्रावर को खोलकर उसमे से तस्वीर निकाली। खुशी के चेहरे पर तस्वीर देखकर चमक आ गई वह चहकते हुए बोली – मिसेज़ शर्मा । मिस्टर शर्मा – जी भाभी जी सहीं पहचाना , ये मेरी धर्मपत्नी मिसेज़ शर्मा हैं। खुशी – कैसी हैं वो ? पिछले सप्ताह से उन्होंने घर आना ही छोड़ दिया कोई नाराजगी हैं क्या हमसे। मिस्टर शर्मा – ये आप क्या कह रही हैं ? मेरी धर्मपत्नी का तो स्वर्गवास हो गया हैं , दो साल हो गए हैं। उदास होकर शर्मा जी कहने लगे बच्चों से बहुत प्यार करती थीं पर बदकिस्मती से बच्चे को जन्म देते समय ही प्राण गवां बैठी। इसी वजह से मैंने यह घर और शहर ही छोड़ दिया था। माधव को पड़ोस की मिसेज़ शर्मा की बात समझ आ गई और पूरा माजरा भी। की खुशी सही कहती थी कि इस घर में कोई आत्मा हैं। एक पुराना ‘हैंडपंप’..पार्ट—2 हवन में विघ्न आने की वजह भी मिसेज़ शर्मा थीं। जैसे ही खुशी के माँ बनने की खबर मिली उसके बाद से मिसेज़ शर्मा खुशी के साथ रहीं , और बच्चे के जन्म के बाद उनकी आत्मा तृप्त हुई और उन्हें मुक्ति मिल गई। खुशी को भी अब मिसेज़ शर्मा का चेहरा याद आ गया था , उसने उन्हें डायनिग टेबल के यहाँ बैठा देखा था जिन्हें देखकर वह बेहोश हो गई थीं । माधव, ख़ुशी और मिस्टर शर्मा तीनों खुश थे …..एक भटकती आत्मा को मुक्ति मिल गई । लेखक – वैदेही वैष्णव ” वाटिका “ mukti 0 comment 0 FacebookTwitterPinterestEmail teenasharma previous post गढ़िए एक ‘झूठी कहानी’ next post ‘सर्वाइवल से सेविअर’ तक….. 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