प्रकाशित लेख संक्रमण काल की ‘वॉरियर’ by Teena Sharma Madhvi July 15, 2020 written by Teena Sharma Madhvi July 15, 2020 ना दिन की फिकर ना रात का डर। बस चिंता हैं तो सिर्फ इस बात की, कि हमारे राज्य का हर व्यक्ति स्वस्थ्य और प्रसन्न हो। बस इसी उदृदेश्य और ज़ज्बे को लेकर दिन रात अपने काम में जुटी हैं प्रदेश की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका, ग्राम साथिनी और आशा सहयोगिनी। पिछले चार महीने से ज़मीन स्तर पर गांव—ढ़ाणी में जाकर कोविड—19 के बीच डोर—टू—डोर जागरुकता अभियान में लगी हुई है। इतना ही नहीं प्रशासन की ओर से कई आंगनबाड़ी वर्कर्स के पास कोरोना संक्रमण से लड़ने के प्राथमिक हथियार जैसे मास्क, सैनेटाइजर, ग्लव्ज़ और फेस शील्ड तक उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। इसके बावजूद ये बेखौफ अपने कर्तव्य का पालन करने में डटी हुई हैं। इसी का परिणाम है कि आज आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं एएनएम द्वारा चलाई जाने वाली निगरानी एवं जागरूकता मुहिमों में लगभग 39 करोड़ लोग कवर किए जा चुके हैं। ये आंकड़ा निश्चित ही सुकून देने वाला है। लेकिन इसे पूरा करने वाली आंगनबाड़ी वर्कर्स के काम को सरकार और प्रशासन की ओर से वो मान नहीं मिल रहा है। जो एक कोरोना वॉरिसर्य को दिया जा रहा है। ऐसे में इनका मनोबल कहीं—कहीं टूट भी रहा है। लेकिन ये जानती हैं कि इस वक़्त देश को इनके सहयोग की ज़रुरत है। सवाल ये है कि इनकी ड्यूटी को यूं ही हल्के में क्यूं ले रही हैं सरकार जबकि इस वक़्त डोर—टू—डोर जाकर जिस सर्वे कार्य को ये अंजाम दे रही हैं वो वर्तमान परिस्थिति में बेहद अहम है। इसकी एक बानगी उक्त आंकड़े के रुप में देखी जा सकती है। जो इन्हीं की बदौलत संभव हो सका है। फिर क्यूं ये वर्कर्स उस मान से वंचित हैं जिसकी ये हकदार है। इनकी पीड़ा के स्वर में कुछ इस तरह की बातें सामने आ रही हैं। इनका कहना है कि इस संक्रमण काल में भी वो अपने घर पर बैठने के बजाय प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के कंधे से कंधा मिलाकर डटी हुई हैं। फिर भी इन्हें काम की एवज में संतोषजनक मानदेय नहीं मिल रहा है ऐसे में घर परिवार का पेट पालना मुश्किल हो चला है। जब से लॉकडाउन की स्थिति रही हैं उसके बाद से हालात और भी बदतर हो गए है। आज भी काम की एवज में ना तो एक दिन की मजदूरी के बराबर इन्हें वेतन मिल रहा हैं और ना ही घर चलाने के लिए कोई बड़ा आर्थिक पैकेज। सिर्फ कागजी कसरतें हो रही है। दिनभर काम करने के बाद जब ये अपने घर लौटती हैं तो इनके हाथ खाली होते हैं। ऐसे में परिवार के लोग भी निराश होते है। इनका मनोबल रोज़ाना ही टूटता हैं लेकिन सुबह होते ही ये फिर चल पड़ती हैं अपनी ड्यूटी निभाने। लेकिन ये सिलसिला भी आखिर कब तक यूं ही चलेगा? परिवार को छोड़ लगी जागरुता में— यदि राजस्थान की बात करें तो कोविड-19 महामारी की शुरुआत फसल कटाई के मौसम के साथ ही हुई है। ऐसे में आशा सहयोगिनियों के परिवारों की भी इनसे उम्मीदें है कि वे फसल कटाई से संबंधित कार्यों में उनकी सहायता करें। लेकिन इस साल इन वर्कर्स की गहन भागीदारी महामारी को रोकने में रही हैं। इसलिए वे अपने परिवार के साथ पारंपरिक खेती बाड़़ी या अन्य कार्यों में बिलकुल भी मदद नहीं कर पाई। प्रशिक्षण लें संभाली कमान— संक्रमण काल के दौरान राजस्थान की सभी 9876 ग्राम पंचायतों ने एक विशेष ग्राम सभा का आयोजन किया था। जिसमें आशा कार्यकर्ताओं को कोविड-19 के प्रसार के तरीकों, सावधानियों एवं नियंत्रण के उपायों को समझाने का प्रशिक्षण भी दिया गया था। 8 करोड़ परिवारों तक पहुंचना हुआ आसान— एएनएम की सहायता के साथ—साथ आशा कार्यकर्ताओं के योगदान की वजह से ही सक्रिय निगरानी और सूचना प्रसार के लिए आठ करोड़ परिवारों के लगभग 39 करोड़ लोगों तक पहुंचना आसान हो सका है। इस दौरान आशा कार्यकर्ताओं ने गर्भवती महिलाओं, नवजातों तथा बच्चों की देखभाल करने का कार्य भी जारी रखा। जहां एंबुलेंस की उपलब्धता नहीं थी, वहां उन्होंने स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए परिवहन की व्यवस्था भी की। संक्रमण काल की कहानी आशा की जुबांनी— जयपुर की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता विजयलक्ष्मी पाराशर ने बताया कि कई बार उनको घरों से झिड़कियां भी सुनती पड़ती लेकिन वो निराश नहीं होती। विनम्रता के साथ जवाब देकर निकल पड़ती दूसरे मकान में सर्वे करने। सवाई माधोपुर की गरिमा राजावत सवेरे अपने घर का काम जल्दी निपटाकर अपने कर्तव्य पालन के लिए निकल पड़ती। और जो लक्ष्य उसे दिया जाता उसे दिनभर में पूरा करके ही लौटती। बीच में कभी मौका मिल जाता तो किसी पेड़ के नीचे सुस्ता लेती। इसी तरह जोधपुर की भावना प्रजापत ने कहती है कि जब धीरे धीरे कोरोना का कहर बढ़ने लगा तो आशा सहयोनियों का काम और जिम्मेदारी बढ़ गई। आशा सहयोगिनी पर ना सिर्फ सवेरे अपने क्षेत्र के सर्वे का भार था, बल्कि अपने यहां होम क्वारंटीन हुए लोगों की सार—संभाल भी करनी थी। ऐसे में एक पल की फुर्सत नहीं मिली जब वह खुद के बारे में या परिवार के बारे में सोच सके। इधर, बाड़मेर की गीनू कंवर की बात करें तो उसने भी जैसे तय कर लिया था कि उसको इस कोरोना महामारी से हार नहीं माननी हैं। अपने क्षेत्र के लोगों का जीवन बचाने के लिए अपना दिन रात एक कर दूंगी, लेकिन अपनी ओर से कोई कमी रहने नहीं दूंगी। उदयपुर से पार्वती मेनारिया जैसे कार्यकर्ताओं ने अपने अथक परिश्रम और मेहनत के बल पर सर्वे का काम संभाला। जिससे धरातल स्तर पर सभी जानकारी सरकार के पास पहुंचने लगी और धीरे धीरे सरकार का काम आसान होने लगा। आसान नहीं था ये सफ़र— यदि राज्य के किसी भी हिस्से की बात करें तो इन महिला कार्यकर्ताओं के दिन की शुरूआत सवेरे जल्दी शुरु होती हैं। इसी के साथ अपने क्षेत्र के तयशुदा घरों का सर्वे करना फिर शाम को सर्वे रिपोर्ट तैयार कर संबंधित अधिकारी को सौंपना। इतना आसान नहीं हैं एक दिन में ये सभी काम बिना संसाधनों के कर पाना। इसके अलावा क्षेत्र में यदि कोई 14 दिन के लिए होम क्वारंटीन है तो दिन में कम से कम चार बार उसके घर जाकर जानकारी जुटाना और उनकी निगरानी करने की भी जिम्मेदारी उठाना। रोज किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था। उस पर उपस्वास्थ केंद्र जाकर उपस्थिति दर्ज करवाना। ———————इनकी भी सुनें— जब से प्रदेश में पहला कोरोना पॉजिटिव का मामला आया था उसके अगले दिन से ही लगातार काम कर रहे हैं। चाहे वो घर—घर जाकर सर्वे करने का काम हो या फिर होम क्वांरटीन लोगों के घर पर निगरानी करने का काम हो। इसके बावजूद कोरोना से लड़ने वाले मूलभूत साधन प्रशासन की ओर से उपलब्ध नहीं करवाए गए हैं। खुद के पैसे खर्च कर या जनसहयोग लेकर काम चला रहे है। मधुबाला शर्मा, प्रदेशाध्यक्षअखिल राज. महिला एवं बाल विकास संयुक्त कर्मचारी संघ (एकीकृत) आशा वर्कर को 2700 रुपए मानदेय मिलता हैं और 1500 रुपए रुटीन गतिविधियों के लिए। वो भी समय पर नहीं मिलता। इसके अलावा इनके कोई सेवा नियम नहीं हैं। नियमित सेवा में जाने का कोई अवसर नहीं हैं। इसके अलावा विभागीय परिचय पत्र तक नहीं हैं। जिसके चलते सरकारी आदेशों की पालना के दौरान और सर्वे के समय इनको अनेक जगहों पर अपमानित तक होना पड़ता हैं। कोरोना संक्रमण में भी अपनी ड्यूटी निभाने वाली इन कार्यकर्ताओं को कम से कम कोरोना संकटकाल में तो बड़ा हुआ मानदेय या फिर प्रोत्साहन राशि मिलें। छोटेलाल बुनकर, संस्थापकअखिल राज. महिला एवं बाल विकास संयुक्त कर्मचारी संघ कुछ और कहानियां ‘पिता’ को बलिदान का तोहफा…. तुलसी की पत्ती मिसेज ‘लिलि’ 0 comment 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post सत्ता के शेर, ड्यूटी के आगे ढेर…. next post कचोरी का टुकड़ा Related Posts बजता रहे ‘भोंपू’…. 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