नहीं रहे दिग्गज एक्टर मनोज कुमार

87 साल की उम्र में निधन

by teenasharma
नहीं रहे दिग्गज एक्टर मनोज कुमार

Manoj Kumar नहीं रहे दिग्गज एक्टर मनोज कुमार । 87 साल की उम्र में निधन। वे विशेष रूप से अपनी देशभक्ति फिल्मों के लिए जाने जाते थे। उपकार, पूरब-पश्चिम, क्रांति, रोटी-कपड़ा और मकान उनकी बेहद कामयाब फिल्में रहीं।

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ये कहानी है उस महान अभिनेता की। जिन्होंने अपने अभिनय से सिने जगत में न सिर्फ अमिट छाप छोड़ी, बल्कि अपनी फिल्मों के माध्यम से देश प्रेम की अलख भी जगाई और उन सामाजिक व्यवस्थाओं को भी ललकारा, जो सीधे तौर पर एक आम आदमी के जीवन से जुड़ाव रखती हैं।

यही वो एक बड़ी वजह भी रही जब वे मनोज कुमार से अपने फैंस के दिलों में उनके अपने ‘भारत कुमार’ बन गए।

ये कहना बेहद दु:खद हैं कि भारतीय सिनेमा का ये सितारा, मशहूर अभिनेता व फिल्म निर्माता, पद्मश्री मनोज कुमार (Manoj Kumar) अब नहीं रहे। 87 वर्ष की आयु में वे सभी को अलविदा कह गए।

नहीं रहे दिग्गज एक्टर मनोज कुमार

अभिनेता मनोज कुमार

वे विशेष रूप से अपनी देशभक्ति फिल्मों के लिए जाने जाते थे। उपकार, पूरब-पश्चिम, क्रांति, रोटी-कपड़ा और मकान उनकी बेहद कामयाब फिल्में रहीं।

उनके पीछे रह गई, उन पर फिल्माई गई ये पंक्तियां, जिसे संतोष आनंद ने लिखा था। ”जिंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी हैं..।” वाकई..। लोगों के दिलों में हमेशा रहेंगे मनोज कुमार।

अपने फिल्मी करियर में मनोज कुमार (Manoj Kumar) ने कई यादगार फिल्में कीं। इतना ही नहीं हिंदी सिनेमा को आगे बढ़ाने में भी उनका महत्सवूर्ण योगदान रहा।

लेकिन उनका शुरुआती करियर कैसा रहा, उनके संघर्ष के दिन कैसे थे? कैसे वे अपने मूल नाम से मनोज कुमार बनें और बाद में भारत कुमार के नाम से जाने गए। ऐसे ही कुछ अनसुने व रोचक किस्से हैं।

मनोज कुमार का असली नाम हरिकृष्ण गोस्वामी था। 24 जुलाई 1937 को एबटाबाद में उनका जन्म हुआ था। जो अब पाकिस्तान में हैं। ये क़िस्सा उस समय का हैं जब मनोज कुमार 10 साल के थे। तबीयत बिगड़ने पर उनके छोटे भाई और मां को अस्पताल में भर्ती करवाया गया था।

तभी दंगे भड़क गए। हर तरफ अफरा-तफरी मची हुई थी। और अस्पताल का स्टाफ जान बचाकर भाग रहा था। जैसे ही सायरन बजता, तो जो डॉक्टर और नर्स बचे हुए थे वो अंडरग्राउंड हो जाया करते थे। ऐसे में सही इलाज ना मिल पाने के चलते मनोज कुमार के भाई ने अस्पताल में ही दम तोड़ दिया।

मां की हालत भी उस समय गंभीर थी। वो तकलीफ में चिल्लाती रहती थीं, लेकिन कोई डॉक्टर या नर्स उनका इलाज नहीं करता। एक दिन मनोज कुमार (Manoj Kumar)  का धैर्य टूट गया।

उन्होंने लाठी उठाई और अंडरग्राउंड जाकर डॉक्टर्स और नर्स को पीटना शुरू कर दिया। उनके पिता ने उन्हें रोका। बाद में परिवार ने जान बचाने के लिए पाकिस्तान छोड़ने का फैसला कर लिया।

उनका परिवार जैसे तैसे पलायन कर दिल्ली पहुंचा। यहां उन्होंने रिफ्यूजी कैंप में अपने दिन बिताए। धीरे—धीरे समय बीता और दंगे कम होने लगे। पूरा परिवार जैसे-तैसे दिल्ली में बस गया, जहां मनोज की पढ़ाई हो सकी।

उन्होंने स्कूल के बाद हिंदू कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया और नौकरी की तलाश शुरू कर दी।

यहां से शुरु होता हैं वो क़िस्सा जिसने उन्हें​ फिल्मों में रोल दिलाया। एक दिन मनोज कुमार काम की तलाश में फिल्म स्टूडियों में टहल रहे थे। किसी ने उन्हें वहां यूं ही टहलते देख पूछ लिया। और मनोज ने उन्हें पूरी दास्तां बता दी।

वो आदमी उन्हें अपने साथ ले गया। उन्हें लाइट और फिल्म शूटिंग में लगने वाले दूसरे सामानों को ढोने का काम मिल गया। धीरे-धीरे मनोज के काम से खुश होकर उन्हें फिल्मों में सहायक के रूप में काम दिया जाने लगा।

अक्सर यही होता। फिल्मों के सेट पर बड़े-बड़े कलाकार अपना शॉट शुरू होने से बस चंद मिनटों पहले ही पहुंचते थे। ऐसे में सेट में हीरो पर पड़ने वाली लाइट चेक करने के लिए मनोज कुमार (Manoj Kumar) को हीरो की जगह खड़ा कर दिया जाता था।

एक दिन जब लाइट टेस्टिंग के लिए मनोज कुमार हीरो की जगह खड़े हुए। लाइट पड़ने पर उनका चेहरा कैमरे में इतना आकर्षक लग रहा था कि एक डायरेक्टर ने उन्हें 1957 में आई फिल्म फैशन में एक छोटा सा रोल दे दिया।

नहीं रहे दिग्गज एक्टर मनोज कुमार

अभिनेता मनोज कुमार

रोल छोटा ज़रूर था, लेकिन मनोज एक्टिंग में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे। उसी रोल की बदौलत मनोज कुमार को फिल्म कांच की गुड़िया में लीड रोल मिल गया। इसके बाद मनोज ने बैक-टु-बैक रेशमी रुमाल, चांद, बनारसी ठग, गृहस्थी, अपने हुए पराए, वो कौन थी जैसी कई फिल्में दीं।

अब बात करते हैं उस क़िस्से की, जहां मनोज, अपने मूल नाम हरिकृष्ण गोस्वामी से मनोज कुमार (Manoj Kumar)  कैसे बनें।

दरअसल, मनोज, दिलीप कुमार के बहुत बड़े फैन थे। उन्होंने जब दिलीप कुमार की फिल्म शबनम देखी तो वो फिल्म उन्हें इतनी पसंद आई कि उन्होंने उसे कई बार देखा। इस फिल्म में दिलीप कुमार का नाम मनोज था। मनोज कुमार ने अपने पसंदीदा हीरों के इस नाम को यहीं से कॉपी कर लिया और अपना नाम भी मनोज कुमार रख लिया।

मनोज कुमार के जीवन से जुड़ा सबसे अधिक रोचक क़िस्सा लाल बहादुर शास्त्री जी के साथ जुड़ा हुआ हैं। ये बात बहुत कम ही लोगों को पता है कि लाल बहादुर शास्त्री जी के कहने पर ही मनोज ने उपकार फिल्म बनाई थी।

असल में लाल बहादुर शास्त्री जी ने मनोज कुमार को देशभक्ति पर बनीं फिल्म ‘शहीद’ में महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह के रोल में देखा था। ये फिल्म बेहद हिट रही थी। और इसके गाने ‘सरफरोशी की तमन्ना’ और ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ काफी पसंद किए गए थे।

ये फिल्म लाल बहादुर शास्त्री जी को बेहद पसंद आई थी। तब शास्त्री जी ने का नारा था- जय जवान, जय किसान। शास्त्री जी ने मनोज कुमार को इस नारे पर फिल्म बनाने की सलाह दी। इस पर मनोज ने फिल्म उपकार पर काम शुरु कर दिया।

हालांकि उन्हें फिल्म लेखन या डायरेक्शन का कोई अनुभव नहीं था।

एक दिन मनोज कुमार ने मुंबई से दिल्ली जाने के लिए राजधानी ट्रेन की टिकट खरीदी और ट्रेन में चढ़ गए। ट्रेन में बैठे-बैठे ही उन्होंने आधी फिल्म लिखी और लौटते वक़्त बची हुई आधी फिल्म।

इस फिल्म से उन्होंने बतौर डायरेक्टर भी अपने करियर की दूसरी पारी शुरू की। आगे उन्होंने पूरब और पश्चिम, रोटी कपड़ा और मकान जैसी देशभक्ति पर आधारित कई फिल्में बनाईं। सबसे बड़ी और खास बात ये रही कि उपकार फिल्म ने ही
मनोज कुमार को ‘भारत कुमार’ नाम दिया।

इसी फिल्म में मनोज कुमार का नाम ‘भारत’ था। फिल्म की पॉपुलैरिटी देखते हुए मनोज कुमार को उस वक्त के मीडिया ने भारत कहना शुरू कर दिया और फिर उन्हें भारत कुमार कहा जाने लगा।

हालांकि इस फिल्म के बाद मनोज कुमार के लिए एक दु:खद क्षण ये रहा कि उनकी इस फिल्म को लाल बहादुर शास्त्री नहीं देख पाए। शास्त्री जी ताशकंद के दौरे पर थे।

लेकिन ताशकंद में ही इंडो-पाकिस्तान वॉर में शांति समझौता साइन करने के अगले दिन उनकी मौत हो गई। शास्त्री जी को फिल्म न दिखा पाने का अफसोस मनोज कुमार को उम्र भर रहा।

एक और मज़ेदार किस्सा हैं जब मनोज कुमार (Manoj Kumar)  हीरो बनने के लिए संघर्ष कर रहे थे। उसी दौरान उन्हें अशोक कुमार यानी दादा मुनि की फिल्म का एक सीन लिखने का मौका मिला। इस सीन के लिए उन्हें 11 रुपये मिले थे। इसके बाद कई प्रोड्यूसर्स ने मनोज कुमार से अपनी फिल्मों में सीन लिखवाए।

मनोज कुमार ने अपने करियर में कई ऐसी फिल्में बनाई जिसमें देशप्रेम की भावना नजर आईं। दर्शक ये फिल्में देखकर भाव-विभाेर हो जाते थे। ये देशप्रेम की भावना मनोज कुमार के मन में शुरुआत से ही रही।

उन्होंने शुरुआती करियर में ही एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘गंगू तेली’ की, यह फिल्म खादी का प्रचार करने के लिए बनाई गई थी। इस फिल्म में काम करने के लिए उन्हें 1000 रुपये मिले थे।

वहीं फिल्म उपकार में मनोज कुमार ने एक गांववासी का लुक दर्शाया था। फिल्म में मनोज कुमार धोती, कुरता और गमछा लपेटे हुए नजर आए थे। यह वही लुक था या कहें फिल्म का किरदार था जिसने मनोज कुमार को धरातल से जोड़ा था, लोगों ने उनमें अपनी परछाई देखी थी और इस किरदार के लिए उन्हें सर-आंखों पर बिठाया था।

जबकि उनकी अन्य कई फिल्मों में उनका लुक क्रांतिकारी भी नजर आया।

उनकी पूरब और पश्चिम वो फिल्म थी जिसमें मनोज कुमार देसी और विदेशी दोनों ही तरह के लुक्स में नजर आए थे। फिल्म में जब वे पश्चिम में यानी विदेश में थे तो सूट-बूट पहने नजर आते थे लेकिन घर पर उनका पहनावा भारतीय कुरता-पाजामा ही था।

पूर्व और पश्चिम के अंतर को अपने लुक्स से मनोज कुमार ने बखूबी दर्शाया था। मनोज कुमार को कई पुरस्कार म‍िले हैं। वर्ष 1992 में उनके भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘पद्म श्री’  एवं 2016 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया, जो भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा अवार्ड है। 

महान अभिनेता मनोज कुमार से जुड़े यूं तो कई और भी क़िस्से हैं। किंतु कुछ चुनिंदा क़िस्सों को आप तक पहुंचाने का ये एक छोटा सा प्रयास किया हैं।

असल में  ‘कहानी का कोना’  इन क़िस्सों के माध्यम से दिवंगत अभिनेता व निर्माता मनोज कुमार (Manoj Kumar)  को विनम्र श्रृद्धांजलि अर्पित करता हैं।
शत—शत नमन।

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टीना शर्मा ‘माधवी’

(फाउंडर) कहानी का कोना(kahanikakona.com ) 

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