भगवान परशुराम जन्मोत्सव

परशुराम जी से जुड़ा सच

by teenasharma
भगवान परशुराम जन्मोत्सव

भगवान परशुराम जन्मोत्सव

Bhagwan Parshuram Janmotsav: भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था, जो हर साल वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पड़ता है। इस वर्ष, भगवान परशुराम जन्मोत्सव  29 अप्रैल को मनाया जाएगा। क्योंकि परशुराम जी का जन्म प्रदोष काल में हुआ था। वे भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। वहीं इनके गुरु स्वयं भगवान शिव हैं।

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भगवान श्री परशुराम।
संयम और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक।
अदम्य धैर्य, साहस और दृढ़ता की मूर्ति।
फिर भी क्यों कहा जाता है वे क्रोध में आकर कुछ भी कर देते थे। यदि ये सही है तो उन्होंने कभी अपना विवेक क्यों नहीं खोया।
21 बार धरती को क्षत्रिय विहीन किया मगर इस पर शासन नहीं किया, क्यों?
यदि वे क्षत्रियों के दुश्मन थे तो, फिर राजा दशरथ और राजा जनक को क्यों नहीं मारा। 
यदि वे चिरंजीवी है तो कहां हैं?
क्या वे भगवान कल्कि को भी शस्त्र विद्या देंगे?

भगवान परशुराम जन्मोत्सव

भगवान परशुराम जन्मोत्सव

ऐसे कई प्रश्न हैं। जिस पर आज भी कई लोगों के मन में भ्रम हैं। या कहें कि वो आधा सच, जिसे वो पूरा मानकर भगवान परशुराम जी को क्षत्रियों का दुश्मन मानते हैं।

किंतु आप जब तथ्यों का गहराई के साथ अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि भगवान परशुराम (Bhagwan Parshuram) जी ने कब और कहां पर क्रोध दिखाया? इसका इम्पेक्ट किस पर और क्या पड़ा।

वास्तविकता में क्या वे क्षत्रियों के दुश्मन थे? या ये बात भी फैलाई हुई हैं। ठीक उसी तरह जैसे कि अंग्रेजों ने ​फैलाई थी। फुट डालो और शासन करो।

आज हम ऐसे ही भ्रम को दूर करने की कोशिश करेंगे। इसके लिए आपको फ्लेश बैक यानी इतिहास के उस समय काल में चलना होगा जहां महिष्मति में एक प्रतापी राजा हुआ करता था।

जिसे स्वयं भगवान दत्तात्रय जी ने एक हजार भुजाओं का वरदान दिया था। इसके बाद वो सहस्त्रार्जुन से सहस्त्रबाहु कहलाया।

रामायण के अनुसार, रावण को भी सहस्त्रबाहु अर्जुन ने हराया था। एक बार रावण अपनी सेना के साथ सहस्त्रबाहु अर्जुन से युद्ध करने पहुंचा। लेकिन सहस्त्रबाहु ने अपनी शक्ति का उपयोग करके नर्मदा नदी का प्रवाह रोक दिया, जिससे रावण और उसकी सेना बह गई थी।

उसने रावण को बंदी बना लिया। लेकिन बाद में रावण के दादा महर्षि पुलस्त्य के कहने पर सहस्त्रबाहु ने उसे छोड़ ​दिया। उसे अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। इतना ही नहीं वो अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने लगा।

उसने धार्मिक ग्रंथों को झूठा बताया, ब्राह्मणों का अपमान किया, प्रजा पर अत्याचार किया। ऋषियों के आश्रमों को नष्ट किया।

ऐसे ही एक दिन सहस्त्रबाहु अपनी सेना के साथ ऋषि जमदग्नि के आश्रम में विश्राम के लिए पहुंचा। महर्षि जमदग्नि ने राजा का बड़ा अच्छा स्वागत किया। उन्हें अच्छा भोजन कराया। सहस्त्रबाहु ने सोचा कि, एक सामान्य से आश्रम में भी इतनी अच्छी व्यवस्था कैसे हो सकती हैं।

जब महर्षि जमदग्नि ने इस व्यवस्था के पीछे उनके पास कामधेनु गाय होने के बारे में बताया तो सहस्त्रबाहु चौंक गया। उसने महर्षि जमदग्नि को कहा कामधेनु इस आश्रम के लिए नहीं हैं। ये तो हमारे महल में रखने योग्य हैं।

उसने कामधेनु को अपने साथ ले जाने की इच्छा जताई, परंतु महर्षि जमदग्नि ने इसे देने से इंकार कर दिया, तब क्रोधित सहस्त्रबाहु ने ऋषि जमदग्नि के आश्रम को उजाड़ दिया और कामधेनु को अपने साथ ले गया।

जब परशुराम जी अपने आश्रम पहुंचे तब उनकी माता रेणुका ने उन्हें सारी बात बताई। परशुराम माता-पिता के अपमान और आश्रम को तहस नहस देखकर आवेशित हो गए और उसी वक्त सहस्त्रार्जुन और उसके वंश का नाश करने का संकल्प लिया।

वे सहस्त्रबाहु की राजधानी महिष्मती पहुंच गए। जो वर्तमान में मध्य प्रदेश के महेश्वर के पास स्थित है। यहां दोनों के बीच युद्ध हुआ और परशुराम ने सहस्त्रबाहु की एक — एक कर सभी भुजाएं काट दी। और उसका वध कर दिया।

सहस्त्रबाहु​ के वध के बाद परशुराम जी के पिता ने उन्हें इसका प्रायश्चित करने को कहा। पिता के आदेश पर परशुराम जी तीर्थ यात्रा पर चले गए।

मौका पाकर सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने अपने सहयोगी क्षत्रियों की मदद से तपस्यारत महर्षि जमदग्रि का उनके ही आश्रम में सिर काटकर उनकी हत्या कर दी। इतना ही नहीं पुत्रों ने आश्रम के सभी ऋषियों की भी हत्या कर दी।

आश्रम को जला डाला। जब परशुराम (Bhagwan Parshuram)जी को इस बारे में पता चला तो वे फौरन आश्रम पहुंचे। शोक में डुबी हुई मां को देखा। पिता का कटा हुआ सिर और उनके शरीर पर लगे 21 घावों को देखा। वे भयंकर क्रोध से भर उठे।

उन्होंने इसी क्षण 21 बार क्षत्रियों का नाश करने का प्रण लिया। और इस धरती को 21 बार क्षत्रिय विहिन किया।
अब कुछ लोग यहां मिथक गढ़ते हैं कि परशुराम जी ने इस धरती से समस्त क्षत्रियों का नाश किया था। इसलिए ब्राहृमण और क्षत्रियों की मित्रता नहीं हो सकती।

पर ये है आधा सच। असल में ये लड़ाई क्षत्रिय वर्सेस ब्राहृमण कभी थी ही नहीं। बल्कि न्याय और अन्याय के बीच की लड़ाई थी। यहां पर आपको अपनी बुद्धी और विवेक के आधार पर ये सोचना होगा कि भगवान परशुराम जी ने उस आततायी राजा सहस्त्रबाहु का वध किया था जिसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया।

यहां पर परशुराम जी को इस समझदारी के साथ भी आप पढ़िएगा और समझिएगा। यदि उनकी दुश्मनी क्षत्रियों से ही थी। तो उन्होंने अपना क्रोध राजा दशरथ और राजा जनक पर क्यों नहीं उतारा। वे भी तो क्षत्रिय थे। उन्हें क्यों नहीं मारा?

वो इसलिए कि उनका क्रोध सिर्फ और सिर्फ उस अन्याय के खिलाफ था जो हैहय वंश के क्षत्रिय राजा सहस्त्रबाहु ने किया था।

जो लोग कहते हैं कि परशुराम जी एक ऐसे देवता थे जिन्हें क्रोध बहुत ही जल्दी आता था। और वे इस क्रोध में आकर कुछ भी कर देते थे। तब वे इस बात को बड़ी ही संजीदगी के साथ कहे। क्योंकि परशुराम जी ने सिर्फ हैहय वंश और उसका साथ देने वाले क्षत्रियों का ही नाश किया था।

आपको यहां पर ये भी एनालिसिस करना चाहिए कि यदि परशुराम जी को राज्य व वैभव की कामना होती तो वे सात दीपों समेत पूरी पृथ्वी जीत लेने के बाद उसे अपने गुरु कश्यप मुनि को यूं ही दान नहीं कर देते। वो भी ऐसे समय जब पूरी पृथ्वी पर उनका विरोध करने वाला उस समय कोई नहीं था।

पौराणिक कथा के अनुसार पृथ्वी जीतने के बाद परशुराम (Bhagwan Parshuram) जी ने अश्वमेघ यज्ञ कराया था। और जीती हुई धरती कश्यप मुनि को दान कर दी। इसके बाद कश्यप मुनि ने परशुराम जी को धरती पर नहीं रहने का आदेश दिया और कहा कि ‘ब्राह्मण को युद्ध नहीं करना चाहिए, बल्कि शिक्षा और तपस्या करनी चाहिए।’

यही वो क्षण भी हैं जब आप ये भी देख सकते हैं कि किस तरह उन्होंने अपने गुरु की आज्ञा का सम्मान किया। और अपने वि​वेक का उपयोग कर ये भी जाना कि एक ब्राह्मण का काम वास्तविकता में समाज व देश में शिक्षा व ज्ञान को फैलाना हैं।

और इसी उद्देश्य से वे ये धरती छोड़कर महेंद्र पर्वत पर लौट गए। यहां पर समझने वाली बात ये भी है कि सब कुछ त्याग देने के बाद ज्ञान ही उनके पास था। जिसने हर समय व परिस्थिति में उन्हें विजयी दिलाई।

भगवान परशुराम (Bhagwan Parshuram) का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था, जो हर साल वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पड़ता है। इस वर्ष, परशुराम जयंती 29 अप्रैल को मनाई जाएगी, क्योंकि परशुराम जी का जन्म प्रदोष काल में हुआ था। वे भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। वहीं इनके गुरु स्वयं भगवान शिव हैं।

महाभारत और विष्णुपुराण के अनुसार परशुराम जी का मूल नाम राम था किन्तु जब भगवान शिव ने उन्हें अपना परशु नामक अस्त्र प्रदान किया तभी से उनका नाम परशुराम हो गया। कहते हैं कि परशुराम जी उन आठ चीरंजीवियों में से माने जाते हैं, जो आज भी जीवित हैं।

कल्कि पुराण के अनुसार, परशुराम, भगवान विष्णु के दसवें और अंतिम अवतार कल्कि के गुरु होंगे, और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे। आपको ये तथ्य भी रोमांचित करेगा कि परशुराम जी कई महान योद्धाओं के गुरु थे, जिनमें भीष्म, द्रोणाचार्य व दानवीर कर्ण भी शामिल हैं।

भगवान परशुराम जन्मोत्सव

भगवान परशुराम जन्मोत्सव

वर्तमान में भगवान परशुराम के जीवन से कई महत्वपूर्ण शिक्षाएँ मिलती हैं, जिनमें अन्याय के विरुद्ध संघर्ष, धैर्य, त्याग, और ज्ञान को महत्व देना शामिल हैं। उनका जीवन हमें यह भी सिखाता हैं कि अपनी शक्ति का उपयोग दूसरों की रक्षा और मानवता के कल्याण के लिए करना कितना जरुरी हैं।

इतना ही नहीं कई चुनौतियों और बाधाओं का सामना करने के बावजूद, परशुराम जी का दृढ़ निश्चयी बने रहे। कभी हार नहीं मानी। यही दृढ़ता हैं।

जो आज की युवा पीढ़ी के लिए सबसे बड़ा जीवन मंत्र हैं। धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का स्वभाव गुस्से वाला था, परंतु उन्होंने हर कार्य को संयम से ही किया।

जीवन में सदैव विवेक और संयम के साथ चलने वाला व्यक्ति कभी नहीं हारता फिर चाहे उसे अपना लक्ष्य पाने के लिए लंबा इंतजार ही क्यों न करना पड़े।

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