प्रासंगिकप्रासंगिक मुद्देलेखक/साहित्यकारस्लाइडर पानी पानी रे लेख अनुपमा तिवाड़ी by teenasharma October 30, 2023 written by teenasharma October 30, 2023 पानी पानी रे पानी बचाने की संस्कृति पर आधारित यह लेख पानी पानी रे की गूंज पैदा करता है। पढ़िए ‘कहानी का कोना’ में वरिष्ठ साहित्यकार, शिक्षाविद व सामाजिक कार्यकर्ता अनुपमा तिवाड़ी का यह प्रासंगिक व चिंतनीय लेख। हरिशंकर परसाई का एक वक्तव्य याद आता है कि “दिवस कमजोर का मनाया जाता है जैसे महिला दिवस, मजदूर दिवस, अध्यापक दिवस। ताकतवर का नहीं, जैसे थानेदार का नहीं।” उसी तरह से किसी चीज को बचाने पर काम भी उसी क्षेत्र में किया जाता है जिसकी कमी हो या होती जा रही हो। हम सभी जानते हैं कि देश में आज भी राजस्थान को पानी की कमी के चलते जाना जाता रहा है। राजस्थान कहते ही दिमाग में बहुत सारी खूबियों के साथ रेत के धोरे और ऊँटों के चित्र सामने आने लगते हैं। राजस्थानियों ने पानी को शुरु से सहेजना सीखा है। राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में पानी का महत्व आज भी भगवान के समान पूजनीय है। कुछ दशक पहले तक राजस्थानी पानी की बूँद – बूँद बचाते थे। पश्चिम राजस्थान में तो कहीं – कहीं लोग बाण / मूँज की खाट पर बैठकर नहाया करते थे और फिर उस पानी को जानवरों को पिलाने, पेड़ों में डालने, घर के बाहर की जगह धोने के काम में लिया करते थे। कई ग्रामीण इलाकों में आज भी पानी को संरक्षित करने का सबसे आसान माध्यम तालाब ही हैं। अनुपमा तिवाड़ी इन तालाबों के बारे में उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इनमें से कई तालाब सदियों पुराने हैं और ग्रामीणों के प्रयास से ही अभी तक संरक्षित हैं। इन तालाबों को स्थानीय ग्रामीण पवित्र स्थान मानते हैं और वहाँ जूते चप्पल पहनकर जाना, कपड़े धोना, पशुओं को नहलाना वर्जित होता है। ऐसे गाँव जहाँ कोई नदी नहीं बहती और पेयजल पीने योग्य नहीं है ऐसी परिस्थितियों में ग्रामीणों ने बारिश के पानी के संरक्षण और उपयोग के प्रभावी तरीके खोज निकाले। बारिश के पानी को बचाने के लिए घरों में व्यक्तिगत उपयोग के लिए टैंक और सामुदायिक उपयोग के लिए तालाब ही पानी का प्राथमिक स्रोत हैं। एक समय था जब बाड़मेर, बीकानेर और जैसलमेर को काला पानी की तरह देखा जाता था लेकिन अब आधुनिक तकनीकों के चलते जमीन से पानी निकाल कर इनकी सूरत बदली जा चुकी है। एक तरफ जहाँ ऊपर हमें हरियाली दिखाई दे रही है दूसरी तरफ जमीन में जल का स्तर और नीचे जाता जा रहा है। अब हर साल – दो साल बाद किसान को अपने कुओं की गहराई और बढ़ानी पड़ रही है। जयपुर के पास कालाडेरा में एक कोल्ड ड्रिंक प्लांट के चलते आस – पास के गाँवों की जमीन का जलस्तर बहुत नीचे चला गया था। जिसके चलते आस – पास के गाँवों में खेती होना ही बंद हो गया था। जमीन में गहरी बोरिंग करवाकर खेती करना हर किसान के लिए के लिए आज भी इतना आसान नहीं है। दूसरी तरफ आज भी गर्मियों के दिनों में रेलवे के कुछ छोटे स्टेशनों और बस स्टैन्डस पर कई युवा रेल और बस यात्रियों को जग में पीने का पानी पहुँचाते दिख जाएँगे। बाजार में प्याऊ पर पानी पिलाते कोई वृद्ध दिख जाएँगे लेकिन शहरों की तस्वीर अब बदलती जा रही है। अब स्टेशनों और बस स्टैन्ड पर आपको बोतल बंद पानी उपलब्ध है। बनास जैसी बारह महीने बहने वाली नदियाँ अब मौसमी नदियाँ बन कर रह गई हैं। हम पिछले तीस वर्ष पहले का एक मोटा – सा आँकड़ा देखें तो पाएंगे कि हमारे देश में लगभग 4500 से अधिक छोटी – बड़ी नदियाँ सूख गईं। कोई 20 लाख से अधिक तालाब सूख गए हैं। अनगिनत कुए अब कचरापात्र बन गए हैं या उथले हो गए हैं और उनमें पीपल और बरगद उग आए हैं। अब पानी के स्रोत स्थानीय स्तर पर कम होते जा रहे हैं और पानी किसी बाँध से बाँधकर शहरों तक खींचा जा रहा है। विकास की इस कड़ी में फैक्ट्रियों से निकलते नीले, लाल, काले रसायनयुक्त पानी का जमीन में जाना प्राकृतिक जल स्रोत को दूषित कर रहा है। अब हम घरों में गेट तक पक्का करवा रहे हैं, सौन्दर्यकरण के नाम पर फुटपाथों को पक्का करवा रहे हैं, नालियों का प्रवाह भी जमीन के अंदर है। शहरीकरण के चलते अब जानवरों के पीने के लिए पानी के खेली भी लुप्त होती जा रही हैं। अब हम पक्षियों के पीने के लिए पानी के परिंडे टाँक देने भर का उत्सव मनाते हैं लेकिन वे कुछ दिनों बाद रीते ही पेड़ों पर झूलते रहते हैं। आज विकसित शहरों के पार्कों, स्विमिंग पूलों, होटलों और संभ्रांत आवासीय कॉलोनियों में हमेशा पानी उपलब्ध है जिसका कई बार आवश्यकता से अधिक दोहन होता देखा जा सकता है। राजस्थान में पानी की कमी सरकार के स्तर पर ‘जल जीवन मिशन’ में वित्तीय वर्ष 2023 -24 अभी तक कुल 5 लाख 40 हजार जल कनेक्शन जारी कर राजस्थान देश के चौथे स्थान पर पहुँच गया है। अभी तक इस मिशन में 17 हजार 578 करोड़ खर्च कर प्रदेश का देश में दूसरा स्थान है। ऐसे में हमें यह भी देख लेना जरूरी है कि आज भी राजस्थान के लगभग 120 से अधिक गाँवों में पीने का पानी महिलायें तीन – तीन मील से सिर पर ढो कर लाती हैं। पानी के लिए लड़ाई हो जाना आम बात है। जहाँ गाँव में एक मात्र कुआ या हैंडपम्प हो वहाँ यह होना स्वाभाविक – सा ही है। राजस्थान में बीसलपुर बाँध और चम्बल नदी आज अपने आस – पास के शहरों की प्यास बुझा रही हैं । लेकिन पानी को एक बाँध से विभिन्न शहरों तक पहुँचाना कोई कम खर्चीला और कम समय लगाने वाला नहीं है और जबकि इस बाँध का मुख्य स्रोत भी वर्षा का जल ही ऐसे में हमें एक बार फिर से पानी को बचाने के प्रत्येक स्तर पर प्रयास करने होंगे। देखना होगा कि यह सिर्फ नारा बन कर नहीं रह जाए कि “जल है, तो कल है”। चंद्रयान-3 राष्ट्रीय प्रसारण दिवस आज महिला अधिकार व सुरक्षा प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक… बजता रहे ‘भोंपू’…. जल हैतो कल हैपानी पानी रेपानी बचाने की संस्कृतिबाड़मेरबीकानेर और जैसलमेरराजस्थान में पानी की कमीहरिशंकर परसाई 0 comment 0 FacebookTwitterPinterestEmail teenasharma previous post समर्पण next post राम मंदिर 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