सर्द रात की सुबह

kahani

by Teena Sharma Madhvi
सर्द रात की सुबह

 सर्द रात की सुबह

सर्द रात की सुबह… मुट्ठी में थे तो सिर्फ वे चंद रुपए जो पति ने उसे दिए थे…। लांची उन रुपयों को मुट्ठी में भींचकर रोती रही…..बार—बार उस सर्द रात को कोसती रही जिसकी ठंडक ने उसके पति की जान ले ली। 
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न जाने कैसे बीतेगा ये पल। ईश्वर इतनी बेबसी किसी को न दे। बस इसी ख़्याल को अपने ज़ेहन में लिए लांची कभी अपने मासूम बेटे को देखती तो कभी अपने पति सोमेश को। 
उसकी आंखों में आंसूओं का समंदर बह रहा था, लेकिन आंखों के किनारे पर आकर ठहर जाता। और फिर था भी कौन, जो उसके आंसूओं की गहराई को समझ पाता….।  
चारों और आंखों को चुंधियाती  रंग—बिरंगी रोशनी और धूम धड़ाके का शोर था…। बस खामोशी थी जो उसके भीतर ही भीतर गहराती चली जा रही थी। लेकिन मजबूर थी वो इस वक़्त के आगे। बस उसकी बेबस आंखें एकटक लगी थी अपने पति की लाचारी पर। 
आज पैसा होता तो क्या यूं बिना कपड़ों के इस थीम पार्टी में प्रहरी बनकर खड़ा होने को मजबूर होना पड़ता…। चलो मौसम साफ होता तो भी अपने पति को यूं देख लेती। मगर आज तो शहर का पारा गिरा हुआ है।
सुबह से ही बादलों की आवाजाही है और तेज हवाएं चल रही ​है। …लोग इस गिरे हुए पारे में कांप रहे है..वो भी तब जबकि मोटे स्वेटर और शॉल से ख़ुद को ढांक रखा है। 
फिर लांची का पति सोमेश तो इस शादी पार्टी की थीम के अनुसार खुले तन पर सुनहरी चमक का लेप लगाए खड़ा है। जिसके हाथ में एक डंडा है। जो उसे एक प्रहरी की तरह दिखा रहा है। शार्दी पार्टी में आने वाला हर व्यक्ति उसे देखकर खुश हो रहा था। कोई वॉव.. कहता तो कोई अमेजिंग कहकर इस थीम की तारीफ़ करता ​…।

सर्द रात की सुबह

लांची

लेकिन किसी को भी इस कड़कड़ाती ठंड में उसका बिना कपड़ों वाला मजबूर शरीर नज़र नहीं आ रहा था। जिसकी क़ीमत महज़ कुछ रुपए थी। इसके ख़ातिर ही उसने इस थीम पार्टी में ख़ुद को यूं खड़ा किया था।   
                
             जैसे—जैसे रात बढ़ रही थी, ठंड भी बढ़ती जा रही थी..और इसी के साथ लांची के पति का शरीर भी इस ठंड के आगे कमजोर पड़ रहा था।
लेकिन उसके मन में एक ही विचार था बस ये चार घंटे पूरे हो जाए…इसके बाद वह फौरन इवेंट मैनेजर के पास जाएगा और तय घंटे की मजूरी का पैसा लेकर ​कपड़े पहन लेगा और बीवी बच्चे के साथ घर निकल जाएगा। 
      इसी सोच के साथ वह दूर बैठी अपनी बीवी लांची की तरफ देखता है। दोनों की आंखे मिलती है…और दोनों की आंखों में एक—दूसरे के लिए सिर्फ दिलासा था…।
दोनों की आंखे एक—दूसरे से बयां कर रही थी..बस अब कुछ ही पल है पार्टी खत्म होने में…। वो लांची के चेहरे की चिंता को अपने भाव से सहज करने की कोशिश कर रहा था। और उसे ये जता रहा था कि जल्दी ही वो भी गरम कपड़े पहनकर अपने शरीर को ढांक लेगा…। 
       लांची अपनी गोद में सोए बच्चे के माथे पर हाथ फेरती जाती और ख़ुद को कड़े मन के साथ हौंसला देती…। 
       वक़्त बीता और चार घंटे पूरे हुए। पार्टी भी अब ख़त्म होने को थी…। सोमेश ने इवेंट मैनेजर से पैसे लिए और बीवी के पास जाकर उसकी गोद में सोए बच्चे के माथे को चूमा। फिर कपड़े पहने और शॉल ओढ़कर बीवी और बच्चे के साथ शादी समारोह में भोजन भी किया।
इसके बाद तीनों घर को चल दिए। लांची बेहद खुश थी..और मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा कर रही थी। इस कड़ाके की सर्द रात में भगवान ने ही उसके पति को बिना कपड़ोें के चार घंटे तक इस जीवटता के साथ खड़ा रखा…..। वरना क्या होता? 
         घर पहुंचने के बाद सोमेश ने लांची के हा​थ में वो चंद पैसे रख दिए। और बोला, गरीबी एक कोढ़ है लांची…पेट की आग बुझाने के लिए…न जाने कितनों को इन सर्द रातों में यूं ही बिना कपड़ों के खड़े होकर ऐसी थीम पार्टियों में लोगों का मनोरंजन करने को मजबूर होना पड़ेगा….।
लांची ने भी पति की इस बात पर गहरी सांस ली और फिर बातों ही बातों में न जाने कब नींद लग गई। सुबह जब लांची की नींद खुली तो उसने पति को भी नींद से जगाया। लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था….बीती रात की ठंड उसके पति के फेफड़ो को सहन नहीं हुई…और वह ​हमेशा के लिए गहरी नींद में सो गया….। 
लांची की आंखों में बीती रात जो आंसूओं का समंदर बह रहा था वो अब आंखों के किनारों से बाहर निकल कर बहने लगा। वह बार—बार अपने हालात को कोसती…ईश्वर से सवाल पूछती..क्या इसी दिन के लिए हमें पैदा किया था, कि गरीबी की मार झेल कर यूं ही मर जाए…।  
मुट्ठी में थे तो सिर्फ वे चंद रुपए जो पति ने उसे दिए थे…। लांची उन रुपयों को मुट्ठी में भींचकर रोती रही…..बार—बार उस सर्द रात को कोसती रही जिसकी ठंडक ने उसके पति की जान ले ली। नियति में शायद उस सर्द रात की सुबह नहीं थी। 
 
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6 comments

Prashant sharma February 11, 2020 - 9:52 am

मानवता की आंखों पर बंधी पट्टी को खोलने का अच्छा प्रयास है ये कहानी। दिखावे में लोग हकीकत को भी अनदेखा कर जाते है।
बहुत ही मार्मिक कहानी दीदी। शब्द संयोजन भी बहुत खूब।

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Unknown February 11, 2020 - 10:08 am

Nice Teena … Iss tarah ki ghatnayein hilakr rakh deti hai

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Vaidehi-वैदेही February 11, 2020 - 5:28 pm

आपकी कहानी समाज की सच्चाई बयाँ करती हैं ।।

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Unknown February 11, 2020 - 6:47 pm

आज अधिकांश लोग देखावे के ऐसे गुलाम हो गए हैं कि उसके आगे इंसानियत कहीं खो गई है। बहुत ही शानदार कहानी। समाज को आइना दिखाने वाली।

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Teena Sharma 'Madhvi' February 12, 2020 - 3:54 pm

Thankuu so much all of you

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Teena Sharma madhavi February 27, 2020 - 1:05 am

👍👍

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टीना शर्मा ‘माधवी’

(फाउंडर) कहानी का कोना(kahanikakona.com ) 

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