कहानियाँकोना सर्द रात की सुबह kahani by Teena Sharma Madhvi February 11, 2020 written by Teena Sharma Madhvi February 11, 2020 सर्द रात की सुबह सर्द रात की सुबह… मुट्ठी में थे तो सिर्फ वे चंद रुपए जो पति ने उसे दिए थे…। लांची उन रुपयों को मुट्ठी में भींचकर रोती रही…..बार—बार उस सर्द रात को कोसती रही जिसकी ठंडक ने उसके पति की जान ले ली। —————————————————————————————– न जाने कैसे बीतेगा ये पल। ईश्वर इतनी बेबसी किसी को न दे। बस इसी ख़्याल को अपने ज़ेहन में लिए लांची कभी अपने मासूम बेटे को देखती तो कभी अपने पति सोमेश को। उसकी आंखों में आंसूओं का समंदर बह रहा था, लेकिन आंखों के किनारे पर आकर ठहर जाता। और फिर था भी कौन, जो उसके आंसूओं की गहराई को समझ पाता….। चारों और आंखों को चुंधियाती रंग—बिरंगी रोशनी और धूम धड़ाके का शोर था…। बस खामोशी थी जो उसके भीतर ही भीतर गहराती चली जा रही थी। लेकिन मजबूर थी वो इस वक़्त के आगे। बस उसकी बेबस आंखें एकटक लगी थी अपने पति की लाचारी पर। आज पैसा होता तो क्या यूं बिना कपड़ों के इस थीम पार्टी में प्रहरी बनकर खड़ा होने को मजबूर होना पड़ता…। चलो मौसम साफ होता तो भी अपने पति को यूं देख लेती। मगर आज तो शहर का पारा गिरा हुआ है। सुबह से ही बादलों की आवाजाही है और तेज हवाएं चल रही है। …लोग इस गिरे हुए पारे में कांप रहे है..वो भी तब जबकि मोटे स्वेटर और शॉल से ख़ुद को ढांक रखा है। फिर लांची का पति सोमेश तो इस शादी पार्टी की थीम के अनुसार खुले तन पर सुनहरी चमक का लेप लगाए खड़ा है। जिसके हाथ में एक डंडा है। जो उसे एक प्रहरी की तरह दिखा रहा है। शार्दी पार्टी में आने वाला हर व्यक्ति उसे देखकर खुश हो रहा था। कोई वॉव.. कहता तो कोई अमेजिंग कहकर इस थीम की तारीफ़ करता …। लांची लेकिन किसी को भी इस कड़कड़ाती ठंड में उसका बिना कपड़ों वाला मजबूर शरीर नज़र नहीं आ रहा था। जिसकी क़ीमत महज़ कुछ रुपए थी। इसके ख़ातिर ही उसने इस थीम पार्टी में ख़ुद को यूं खड़ा किया था। जैसे—जैसे रात बढ़ रही थी, ठंड भी बढ़ती जा रही थी..और इसी के साथ लांची के पति का शरीर भी इस ठंड के आगे कमजोर पड़ रहा था। लेकिन उसके मन में एक ही विचार था बस ये चार घंटे पूरे हो जाए…इसके बाद वह फौरन इवेंट मैनेजर के पास जाएगा और तय घंटे की मजूरी का पैसा लेकर कपड़े पहन लेगा और बीवी बच्चे के साथ घर निकल जाएगा। इसी सोच के साथ वह दूर बैठी अपनी बीवी लांची की तरफ देखता है। दोनों की आंखे मिलती है…और दोनों की आंखों में एक—दूसरे के लिए सिर्फ दिलासा था…। दोनों की आंखे एक—दूसरे से बयां कर रही थी..बस अब कुछ ही पल है पार्टी खत्म होने में…। वो लांची के चेहरे की चिंता को अपने भाव से सहज करने की कोशिश कर रहा था। और उसे ये जता रहा था कि जल्दी ही वो भी गरम कपड़े पहनकर अपने शरीर को ढांक लेगा…। लांची अपनी गोद में सोए बच्चे के माथे पर हाथ फेरती जाती और ख़ुद को कड़े मन के साथ हौंसला देती…। वक़्त बीता और चार घंटे पूरे हुए। पार्टी भी अब ख़त्म होने को थी…। सोमेश ने इवेंट मैनेजर से पैसे लिए और बीवी के पास जाकर उसकी गोद में सोए बच्चे के माथे को चूमा। फिर कपड़े पहने और शॉल ओढ़कर बीवी और बच्चे के साथ शादी समारोह में भोजन भी किया। इसके बाद तीनों घर को चल दिए। लांची बेहद खुश थी..और मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा कर रही थी। इस कड़ाके की सर्द रात में भगवान ने ही उसके पति को बिना कपड़ोें के चार घंटे तक इस जीवटता के साथ खड़ा रखा…..। वरना क्या होता? घर पहुंचने के बाद सोमेश ने लांची के हाथ में वो चंद पैसे रख दिए। और बोला, गरीबी एक कोढ़ है लांची…पेट की आग बुझाने के लिए…न जाने कितनों को इन सर्द रातों में यूं ही बिना कपड़ों के खड़े होकर ऐसी थीम पार्टियों में लोगों का मनोरंजन करने को मजबूर होना पड़ेगा….। लांची ने भी पति की इस बात पर गहरी सांस ली और फिर बातों ही बातों में न जाने कब नींद लग गई। सुबह जब लांची की नींद खुली तो उसने पति को भी नींद से जगाया। लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था….बीती रात की ठंड उसके पति के फेफड़ो को सहन नहीं हुई…और वह हमेशा के लिए गहरी नींद में सो गया….। लांची की आंखों में बीती रात जो आंसूओं का समंदर बह रहा था वो अब आंखों के किनारों से बाहर निकल कर बहने लगा। वह बार—बार अपने हालात को कोसती…ईश्वर से सवाल पूछती..क्या इसी दिन के लिए हमें पैदा किया था, कि गरीबी की मार झेल कर यूं ही मर जाए…। मुट्ठी में थे तो सिर्फ वे चंद रुपए जो पति ने उसे दिए थे…। लांची उन रुपयों को मुट्ठी में भींचकर रोती रही…..बार—बार उस सर्द रात को कोसती रही जिसकी ठंडक ने उसके पति की जान ले ली। नियति में शायद उस सर्द रात की सुबह नहीं थी। कुछ और कहानियां— खाली रह गया ‘खल्या’ चिट्ठी का प्यार ‘भगत बा’ की ट्रिंग—ट्रिंग आख़री ख़त प्यार के नाम उस सर्द रात की सुबह नहींगरीबीरुपएरोशनीलांचीसर्द रात 6 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post ‘नहीं रहा अब कोई प्रश्न चिन्ह’ next post दम तोड़ता ‘सवाल’ Related Posts छत्तीसगढ़ का भांचा राम August 29, 2024 विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 वैदेही माध्यमिक विद्यालय May 10, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 29, 2024 राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा January 22, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 21, 2024 समर्पण October 28, 2023 विंड चाइम्स September 18, 2023 रक्षाबंधन: दिल के रिश्ते ही हैं सच्चे रिश्ते August 30, 2023 गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव August 13, 2023 6 comments Prashant sharma February 11, 2020 - 9:52 am मानवता की आंखों पर बंधी पट्टी को खोलने का अच्छा प्रयास है ये कहानी। दिखावे में लोग हकीकत को भी अनदेखा कर जाते है। बहुत ही मार्मिक कहानी दीदी। शब्द संयोजन भी बहुत खूब। Reply Unknown February 11, 2020 - 10:08 am Nice Teena … Iss tarah ki ghatnayein hilakr rakh deti hai Reply Vaidehi-वैदेही February 11, 2020 - 5:28 pm आपकी कहानी समाज की सच्चाई बयाँ करती हैं ।। Reply Unknown February 11, 2020 - 6:47 pm आज अधिकांश लोग देखावे के ऐसे गुलाम हो गए हैं कि उसके आगे इंसानियत कहीं खो गई है। बहुत ही शानदार कहानी। समाज को आइना दिखाने वाली। Reply Teena Sharma 'Madhvi' February 12, 2020 - 3:54 pm Thankuu so much all of you Reply Teena Sharma madhavi February 27, 2020 - 1:05 am 👍👍 Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.