वर्चुअल दुनिया में महिलाएं असुरक्षित

by Teena Sharma Madhvi

सोशल मीडिया पर गुंडागर्दी ….

यूं तो महिलाओं के साथ लगातार हिंसा, अत्याचार शोषण और दरिंदगी जैसे मामले बढ़ रहे हैं। आए दिन ऐसी कई घटनाएं सामने आ रही हैं जो महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बेहद विचलित और चिंतित कर रही हैं। अपराधी कोे पकड़ने से लेकर उसे सजा दिलाने तक के कई मामलों में हमारी व्यवस्थाएं कभी पंगु तो कभी लड़खड़ाती हुई दिख रही हैं। 

      ऐसे में इस व्यवस्था के सामने अब एक और नए जमाने का नया अपराध ‘ऑनलाइन हिंसा’ और ‘एब्यूज’ आ खड़ा हुआ हैं। और इस अपराध को करने वाला अपराधी ‘वर्चुअल’ हैं जो दिखाई नहीं देता हैं। तब सवाल ये है कि हमारा सिस्टम इस अपराध से लड़ने के लिए कितना तैयार हैं? क्या वो इस अपराध को रोकने और न दिखने वाले अपराधी को पकड़ने के लिए मुश्तैद हैं? क्या सिस्टम के पास भी ऐसे वर्चुअल हथियार हैं जिससे वो पीड़िता की रक्षा कर सकें? शायद नहीं…। 

    इस अपराध की बढ़ रही भयावयता को हाल ही में हुए एक सर्वे के बाद बेहतर रुप से समझा जा सकता हैं।  जिसके अनुसार दुनियाभर के 22 देशों में लड़कियां और महिलाएं ऑनलाइन उत्पीड़न और अपशब्द की मार झेल रही हैं। 

    ब्रिटेन स्थित मानवीय संगठन योजना इंटरनेशनल के ‘स्टेट आफॅ द वल्डर्स गर्ल्स’ रिपोर्ट नामक इस सर्वेक्षण में 22 देशों की 15 से 24 साल की 14 हजार लड़कियों को शामिल किया गया हैं। 

    जिसमें 58 फीसदी लड़कियों ने माना है कि वे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म यानि फेसबुक, इंस्टाग्राम, ​िट्वटर और वॉट्सऐप पर अपशब्द और उत्पीड़न का शिकार हो रही है।  

    यानि कि ‘सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म’ अब इस नए अपराध का नया अड्डा बनता जा रहा हैं। इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की सुरक्षा और उनकी निजता पर भी अब खतरा लगातार बढ़ता जा रहा हैं। 

    इस सर्वे ने जहां महिलाओं की सुरक्षा और देखभाल को लेकर एक नई बहस को जन्म दिया हैं वहीं महिलाओं की सुरक्षा का दावा करने वाली तमाम व्यवस्थाओं पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं। 

   सबसे पहला और अहम सवाल तो ये हैं कि क्या आने वाले वक़्त में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधोें में सबसे बड़ा अपराध ‘साइबर क्राइम’ ही होगा? और य​दि ऐसा ही हैं तो क्या इससे निपटने के लिए हमारा सिस्टम पूरी तरह से तैयार हैं? क्या महिलाओं के साथ ‘ऑनलाइन हिंसा’ और ‘एब्यूज’ को रोकने के लिए सरकारों ने कोई बेहतर रणनीति बना रखी हैं? शायद नहीं…। 

  और शायद यहीं वजह है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाली अधिकतर महिलाएं मजबूर होकर इन गंदी टिप्पणियों के जवाब में या तो अपना अकाउंट बंद कर देती हैं या सोशल मीडिया से ही दूरी बना लेती हैं। क्यूंकि वे अपने साथ हो रही इस अश्लील हरकत की शिकायत कहां और किससे करें? 

   इसकी बानगी कुछ ऐसे मामलों में भी देखी जा सकती हैं जो थानों में दर्ज तो हुए हैं लेकिन उन पर अभी तक कार्रवाई ही नहीं हुई। वजह ये हैं कि खुद पुलिस वालों को ही ये पता नहीं कि इस पर कार्रवाई कैसे करें? 

   जबकि सोशल मीडिया पर महिलाओं की तस्वीरों से छेड़छाड़, गाली-गलौज, धमकी, ब्लैकमेलिंग, फेक प्रोफाइल बनाकर अभद्र सामग्री डालना, साइबर बुलिंग, स्पाई कैम से तस्वीरें उतारना और उसे वायरल करने जैसे कई मामले अब लगातार सामने आ रहे हैं फिर भी सिस्टम की ऐसी कोई तैयारी नहीं कि इसे रोक सके या अपराधी को पकड़ सके। 

    लगातार बढ़ रही इस सोशल गुंडागर्दी पर साइबर एक्सपर्ट आयुष भारद्वाज कहते हैं कि निश्चित रुप से ‘ऑनलाइन हिंसा’ और ‘एब्यूज’ आने वाले वक़्त की सबसे बड़ी चुनौती हैं। आज इंटरनेट बड़े शहरों के साथ ही छोटी—बड़ी गांव—ढ़ाणियों में भी पहुंच गया हैं। देश के लगभग 90 प्रतिशत हिस्से में टेलीकॉम सिग्नल की पहुंच हो चुकी हैं। ऐसे में यूजर्स भी लगातार बढ़ रहे हैं। कौन व्यक्ति कब और क्या देख रहा हैं इसे मॉनिटर करना इतना आसान नहीं हैं। इसके लिए न सिर्फ मेनपॉवर चाहिए बल्कि एक बेहतर प्रशिक्षण भी जरुरी हैं। जो फिलहाल हमारे पास है नहीं। सरकार ने कहने को तो हजारों वेबसाइट्स को बंद कर दिया है ​लेकिन नाम बदलकर फिर से कई वेबसाइट एक्टिव हो गई फिर से इन्हें बंद करने के आदेश हुए लेकिन ये कोई हल नहीं हैं। साइबर क्राइम से बचने के लिए सरकार को पूरी तरह से कमर कसनी होगी। इसके लिए इंटरनेट पर सेंसर लागू हो। सभी राज्यों में ब्लॉक और ​जिला स्तर पर ऐसी एजेंसी या सेंटर बनाए जाए जिसमें प्रशिक्षण प्राप्त एक्सपर्ट हो। जिनके पास सोशल प्लेटफॉर्म से जुड़ी शिकायतें दर्ज की जा सके। इसके साथ ही स्थानीय थाना पुलिस को भी साइबर अपराध के मामलों से निपटने के लिए प्रशिक्षण दिया जाए। ​क्योेंकि प्राथमिक रुप से शिकायतकर्ता पुलिस के पास ही पहुंचता हैं। ऐसे में सिर्फ एफआर लिख देना ही काफी नहीं होगा। दूसरी और आईटी एक्ट को भी मजबूती से लागू किया जाए और इसके बारे में जन अभियान चलाकर जागरुकता फैलाई जाए। क्योंकि अब भी सोशल मीडिया पर पीड़ित होने वालों को पता नहीं है कि इसकी शिकायत कहां पर और कैसे करें। 

   सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रताड़ित होने वाली महिलाएं सिर्फ भारत की ही नहीं हैं बल्कि ब्राजील, नाइजीरिया, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, जापान, थाईलैंड और अमरीका जैसे देश भी शामिल हैंं। 

   संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में केवल 35 फीसदी महिलाओं ने ही अपने खिलाफ हुए साइबर अपराध की शिकायत की। वहीं साइबर अपराध से पीड़ित लगभग 46.7 फीसदी महिलाओं ने कोई शिकायत नहीं की। जबकि 18.3 फीसदी महिलाओं को तो इसका अंदाजा ही नहीं कि वे साइबर अपराध का शिकार हो रही हैं।

  वहीं एनसीआरबी के रिकॉर्ड के अनुसार 2019 में महिलाओं के खिलाफ साइबर क्राइम के कुल 3 हजार 242 मामले दर्ज हुए हैं। जो वर्ष 2018 में 2 हजार 488 थे। 

   ये हालात देखकर सवाल तो ये भी उठता है कि हर देश के विकास की जीडीपी दर बढ़ाने में जहां महिलाओं की अहम भूमिका हैं वहीं साइबर क्राइम का बढ़ता हुआ ग्राफ कहीं जीडीपी दर को भी प्रभावित तो नहीं कर रहा हैं? क्योंकि आज पूरी दुनिया इंटरनेट क्रांति के दौर में है।

और इस वक़्त हर चौथा भारतीय भी सोशल मीडिया से जुड़ा है और यह संख्या अब लॉकडाउन के बाद से और तेजी से बढ़ रही है। इस प्लेटफॉर्म को अब बतौर प्रोफेशनली भी अपनाया जा रहा हैं। लेकिन साइबर एब्यूज के चलते लड़कियों का इस प्लेटफॉर्म पर टिक कर काम करना मुश्किल होता जा रहा हैं। 

  साइबर गुंडागर्दी से समाज के किसी भी आयु वर्ग की महिलाएं और लड़कियां प्रभावित हो सकती हैं। फिर चाहे वो मंत्री हो, अभिनेत्री, डॉक्टर, सामाजिक कार्यकर्ता, टीवी एंकर या फिर आम लड़की। इसके कई उदाहरण हमारे आसपास बिखरे पड़े हैं। 

    लेकिन अब हमारी पुलिस, जांच एजेंसियों और न्यायिक संस्थाओं को इस अपराध से निपटने के लिए ढांचागत रणनीतियों और संसाधनों के भरोसे नहीं बैठना चाहिए बल्कि टेक्नोलॉजी के साथ अपग्रेड होकर ‘वर्चुअल अपराधी’ से मुकाबले के लिए तैयार होना होगा। 

 इस वक़्त एक मजबूत साइबर कानून की आवश्यकता है।  बदलती कार्य शैली में सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 में भी बदलाव की जरूरत है। एक ऐसी साइबर हेल्पलाइन भी हो जो तत्काल भी शिकायतों को सुनकर दर्ज कर सके। 

    नीति-निर्माताओं और सोशल मीडिया कंपनियों को मिलकर इस समस्या को समझना होगा। पार्टनरशिप करके ही सही लेकिन इसके ठोस उपाय खोजने ही होंगे। जिससे महिलाएं ऑनलाइन कम्युनिकेशन करते हुए खुद को सुरक्षित महसूस करें।


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