लॉकडाउन में मकान मालिक को ‘ज़िंदगी का सबक’

by Teena Sharma Madhvi
                  

       साल भर पहले की बात है डॉक्टर रोहिताश पत्नी और बच्चों के साथ इस शहर में ट्रांसफर होकर आए थे। यहां उनका अपना कोई जानने वाला नहीं था। शहर की हर चीज़ उनके लिए नई थी। लेकिन धीरे—धीरे उन्हें शहर की आबो हवा रास आने लगी थी। और फिर डॉक्टरी पेशे को देखकर हर कोई उनसे अपनी जान पहचान रखना चाहता था। इसीलिए उन्हें बिना किसी मशक्कत के अस्पताल के नज़दीक ही एक मकान भी किराए पर मिल गया था।  

      अब डॉक्टर रोहिताश की दिनचर्या इस नए शहर और अपने प्रोफेशन के साथ ढलने लगी थी। वे रोज़ाना अस्पताल के लिए निकल जाते। इसके बाद उनके दोनों बच्चे और पत्नी अपनी दिनचर्या के साथ व्यस्त हो जाते। डॉक्टर रोहिताश को इस बात का भी सुकून था कि उनका परिवार एक अच्छी जगह पर रह रहा है। मकान मालिक राघव भी उनके रहने से बेहद खुश थे। हर काम के लिए डॉक्टर साब…डॉक्टर साब…कहते हुए थकते न थे। दोनों परिवारों में खूब बनती।  

       लेकिन कहते है ना कि जब बुरा वक़्त आता है तब अपने और अपनेपन दोनों की ख़ूब पहचान होती है। शायद डॉक्टर रोहिताश और उनके परिवार के लिए ऐसे ही समय की ये दस्तक थी। 
    
     हर रोज़ की तरह आज भी डॉक्टर रोहिताश अपने परिवार के साथ डिनर ले रहे थे। तभी उनके साथी डॉक्टर का फोन आया कि कोरोना संक्रमण का ख़तरा बढ़ गया है। सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा कर दी है। डॉक्टर रोहिताश कोरोना के ख़तरे से तो वाक़िफ़ थे लेकिन संक्रमण के कारण अचानक लॉकडाउन की घोषणा होगी इस बारे में उन्होंने सोचा नहीं था। वे अपना डिनर ख़त्म करते हैं तभी उनके मकान मालिक राघव का भी फोन आता है। वह डॉक्टर रोहिताश को लॉकडाउन के बारे में पूछता है। लेकिन रोहिताश उसे ज़्यादा कुछ बता नहीं पाते है।  
     
    अगले दिन वे अस्पताल निकलते हैं और अपने परिवार के साथ ही साथ राघव व उनके परिवार को भी घर में ही सुरक्षित रहने के लिए कह जाते है। अस्पताल जाने के बाद डॉक्टर रोहिताश को उन दस डॉक्टरों की टीम में शामिल किया जाता है जो कोरोना मरीजों की देखभाल व इलाज करेंगें। दो दिन लगातार वे अस्पताल में ही रहें। इस बीच उनकी पत्नी और बच्चों से उनकी बातें होती रही। तीसरे दिन उनकी पत्नी ने उन्हें फोन पर बेहद ही दु:खी शब्दों में बताया कि राघव जी उनसे मकान खाली करने को कह रहे है। और उनका व्यवहार हमेशा की तरह नहीं है। बल्कि वे बहुत ही बुरे अल्फ़ाजों से पेश आ रहे है।  
  
     डॉक्टर रोहिताश हैरान थे ये सुनकर। उन्होंने पत्नी को धैर्यता रखने को कहा। और फिर राघव से फोन पर बात की। राघव जो अब तक डॉक्टर साब…डॉक्टर साब…कहता उसके सुर आज बदले हुए थे। उसने डॉक्टर रोहिताश से कहा कि लॉकडाउन में न जाने क्या हो, हम नहीं चाहते कि किराएदारों से हमें किसी तरह का संक्रमण हो या कोई दूसरी परेशानी उठानी पड़ी। इसीलिए आप तो बस मकान खाली कर दीजिए। डॉ.रोहिताश ये सुनकर बेहद हैरान हुए कि जो राघव उन्हें डॉक्टर साब…डॉक्टर कहता था आज वो किराएदार बोल रहा है। 
     
    डॉक्टर रोहिताश ने उन्हें बेहद समझाया कि इस वक़्त मकान खाली करके जाना और कहीं दूसरे मकान में शिफ्ट होना संभव नहीं है। आप ज़रा व्यवहारिक रुप से सोचें। और फिर आपको किराया भी समय पर ही मिल रहा है। लेकिन राघव समझने को ही तैयार न था। उसने एक ही रट लगा रखी थी कि बस हमारा मकान खाली करो…। 
    
    डॉक्टर रोहिताश ने राघव से कहा कि मैं एक डॉक्टर हूं और इस वक़्त मेरी ड्यूटी अस्पताल में बेहद ज़रुरी है। मेरा परिवार एक सुरक्षित जगह है। और आप पर मुझे बहुत भरोसा है। ऐसे समय यदि आप मेरे परिवार को भी अपने परिवार की तरह समझेंगे तो मैं बेहतर तरीके से अपनी ड्यूटी निभा पाउंगा। इस वक़्त देश को डॉक्टर्स की सेवा की बेहद ज़रुरत है। डॉक्टर रोहिताश ने राघव को हर तरीके से समझाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं माना।  
   
     डॉ. रोहिताश बेहद चिंता और सोच में पड़ गए। जिस मकान मालिक को  वे एक अच्छा इंसान और मददगार समझते रहे वो तो असल में एक गैर ज़िम्मेदार व्यक्तित्व निकला। उन्होंने अपनी पत्नी को फोन किया और कहा कि एक—दो दिन में नया घर देखता हूं। पत्नी और बच्चे भी राघव और उनके परिवार के इस बुरे व्यवहार से बेहद दु:खी हुए। 
  डॉक्टर रोहिताश पर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी थी। वे अस्पताल में लगातार मरीजों की जांच और उनके सैंपल लेने में जुटे हुए थे। ऐसे में मकान बदलने की चिंता उन्हें सताए जा रही थी। 
      
     इस शहर में रहते हुए उनके कुछेक जान पहचान वाले बन गए थे। उन्होंने सभी को फोन किया लेकिन हर जगह से उन्हें निराशा ही मिली। किसी का मकान अस्पताल से बहुत दूर था तो कोई इस वक़्त मकान देने को तैयार न था। उनकी चिंता लगातार बढ़ रही थी। उन्हें बार—बार ये ही ख़्याल आ रहा था कि लैंड लॉर्ड ने उनके साथ इतना बुरा बर्ताव ऐसे वक़्त पर किया। 
        एक दिन उनसे उनके साथी डॉक्टर ने पूछ ही लिया कि सर आप कुछ परेशान से दिख रहे है। डॉक्टर रोहिताश ने उसे पूरा किस्सा बताया। साथी डॉक्टर ने कहा कि सर आप फ़िक्र मत कीजिए। आपका परिवार मेरे घर पर रह लेगा। आप आज ही उन्हें मेरे घर पर शिफ़्ट कर दीजिए। नीचे के दो कमरे खाली भी है। वो आपके काम आ जाएंगे। जब लॉकडाउन खुल जाए और हाल़ात सामान्य हो जाएं तब आप अपनी पसंद और सहूलियत का घर देख लीजिएगा। डॉक्टर रोहिताश की चिंता एक ही पल में दूर हो गई। उन्होंने अपने साथी को इस वक़्त में साथ देने और परेशानी को समझने के लिए दिल से धन्यवाद दिया। 
       और इसी क्षण राघव को फोन पर बताया कि वे कल मकान खाली कर देंगे। ठीक ऐसा ही हुआ और डॉक्टर रोहिताश ने अगले ही दिन पुलिस प्रशासन की मदद से अपना मकान बदल लिया। जाते—जाते वे राघव को सिर्फ एक ही बात बोलें ‘आपके बुरे व्यवहार का ये वक़्त सही नहीं था’…महज़ सात दिनों में आपने जीवन का वो अनुभव दिया है जो शायद लाखों रुपए खर्च करके भी मैं हासिल नहीं कर पाता…। 
       डॉक्टर रोहिताश और उनके परिवार का जीवन फिर से पहले की तरह चल पड़ा। लेकिन वे ज़्यादा वक़्त अस्पताल में ही रहते हुए अपनी ड्यूटी निभा रहे थे। दो—चार दिनों में घर आते और दूर ही से परिवार से मिलकर चले जाते।      
            लेकिन आज डॉ. रोहिताश ने अस्पताल में जो देखा वे बुरी तरह चौंक गए। कोरोना वॉर्ड में अभी जिन चार लोगों को शिफ्ट किया उनमें राघव और उसके पत्नी बच्चें शामिल है। मेडिकल किट पहनने की वजह से डॉ.रोहिताश को ये लोग नहीं पहचान सके। आगे होकर डॉ. रोहिताश उनके पास गए और अपना परिचय दिया। राघव शर्मशार था और डरा हुआ भी। कहीं डॉ. रोहिताश उनका ग़लत इलाज ना कर दें। 
   
   डॉ. रोहिताश ने राघव को कहा कि आप फ़िक्र मत कीजिए। हम डॉक्टर्स की पूरी टीम आपको सुरक्षित रखेंगी। और आप ठीक होकर ही अपने घर लौटेंगे। बातचीत में पता चलता है कि राघव का बेटा लॉकडाउन लगने के कुछ घंटों पहले ही पूणे से घर आया हुआ था। लेकिन उसके आने के दस दिनों बाद जब उसकी तबीयत बिगड़ी और जांच कराई तो पता चला कि वह संक्रमित है। इसी से पूरा परिवार भी संक्रमित हुआ। डॉक्टर रोहिताश और उनकी टीम बाकी मरीजों की तरह इनकी भी देखभाल व इलाज में जुट गए। 
    
   डॉ. रोहिताश को इलाज करते हुए देख राघव व उनका परिवार अपने व्यवहार पर बहुत पछता रहे थे। और बुरी तरह से ग्लानि से भरे हुए थे। लेकिन किन शब्दों से वे माफी मांगते। कुछ दिन अस्पताल में रहकर इलाज लेने के बाद आज जब राघव और उसका परिवार अस्पताल से घर जा रहे हैं तो डॉक्टर रोहिताश व उनकी टीम ने तालियां बजाकर उन्हें विदाई दी और उनके स्वस्थ्य रहने की कामना की। 
    
     राघव और उसका परिवार फूट—फूट कर रोता है और डॉ. रोहिताश के पैरों में गिरकर माफी मांगने लगता है। राघव कहता है कि मैंने आपके और आपके परिवार के साथ बिल्कुल अच्छा नहीं किया। आपको ऐसे वक़्त घर से निकाला जब आपको अपनेपन की ज़रुरत थी। इसकी सज़ा मुझे भगवान ने दी लेकिन आपने मुझे व मेरे परिवार को जीवनदान देकर अहसास करा दिया कि आप भगवान का ही रुप है।  

      जाते—जाते उसने कहा कि सर आपने वाकई अपनी ड्यूटी के साथ न्याय किया है लेकिन मैं एक ज़िम्मेदार नागरिक की ड्यूटी नहीं निभा सका। वो भी इस वक़्त जबकि देश और समाज को बेहद ज़रुरत थी। मैं उम्रभर इसी आत्मग्लानि के साथ जीउंगा। और ये कभी नहीं भूलूंगा कि ये नया जीवन सिर्फ आप डॉक्टर्स की देन है…। 
    

      ये कहानी एक ऐसे वक़्त के हालातों पर है जिसमें सिर्फ डॉ. रोहिताश ही नहीं बल्कि कई ऐसे किराएदार है जिनको इस विषम परिस्थिति में मकान खाली करने की तकलीफ़ से गुज़रना पड़ा। आपका एक बुरा व्यवहार किसी के बुरे वक़्त को और बुरा बना सकता है। ईश्वर हर इंसान को एक मौका ज़रुर देता है कुछ अच्छा करने के लिए…शायद लॉकडाउन ऐसा ही एक मौका है जब एक—दूसरे से मानवीय व्यवहार की अपेक्षा है।


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3 comments

Vaidehi-वैदेही June 7, 2020 - 8:27 am

ऐसी कई घटना सुनने को मिली थी,जो वाकई शर्मनाक थीं ।

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Teena Sharma 'Madhvi' June 7, 2020 - 6:07 pm

Ha bilkul

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AKHILESH April 12, 2021 - 1:21 pm

कठिन दौर मे ही भले बुरे की पेह्चान होती है.बहुत बढिया कहानी/

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