कहानियाँ कबिलाई— एक ‘प्रेम’ कथा… भाग—3 by Teena Sharma Madhvi July 26, 2021 written by Teena Sharma Madhvi July 26, 2021 तंबू के भीतर दोनों अकेले थे, ये वो मौका था जिसके लिए सोहन तरस रहा था…। उसने बिना समय गवाए शंकरी से पूछा…आख़िर ये सब क्या हो रहा हैं शंकरी…। तुमने मुझे अपने पिता के सामने अपनी बात रखने से क्यूं बार—बार रोका…आख़िर क्यूं…? मैं जानना चाहता हूं। लाल चूनर ओढ़े खड़ी शंकरी उसे देखती रही..। उसने अपने सर से चूनर हटाई और उसे खूंटी पर टांग दिया…। उसने सोहन का हाथ पकड़ा और उसे सुहाग की सेज पर बिठाया…। तभी सोहन फिर बोल पड़ा…अब ये सब क्या हैं…मुझे मेरे सवाल का जवाब क्यूं नहीं देती…? शंकरी ने मुंह पर हाथ रखते हुए उसे चुप कर दिया…। अरे..! सोहन बाबू…आप जरा चुप रहेंगे..सब बताती हूं। शंकरी ने गहरी सांस ली और सोहन से कहा कि तूफानी रात में आप परेशान थे और अपनी मां से बात करने के लिए बैचेन थे…। मैंने उस रात आपको जो मोबाइल लाकर दिया था वो मेरी सहेली ‘कांजी’ का था। कबिले में इसकी जानकारी किसी को भी नहीं हैं। यदि मेरे पिता भीखू सरदार के कानों तक ये ख़बर पड़ जाती कि कांजी कबिलाई नियमों का उल्लंघन कर मोबाइल अपने पास रखे हुए हैं तब वो उसे छोड़ते नहीं। उसे कबिलाईयों के बीचों—बीच खड़ा करके कठोर सजा सुनाई जाती…। जिसे मैं कभी बर्दाश्त नहीं कर पाती…। जब मैंने उसका फोन आपको देकर आपकी मदद करनी चाही तब मैं ख़ुद भी नहीं जानती थी कि मेरे पिता के छोटे भाई की नज़र हम पर पड़ जाएगी…। मैं उस रात आपको इसीलिए कह रही थी, आप जल्दी से अपनी मां से बात करके मुझे फोन लौटा दो…ताकि मैं आपके तंबू से फटाफट निकल सकूं….। शायद ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था…। मैं अकेली एक अजनबी वो भी गैर कबिलाई के साथ हूं, ये बात उस वक़्त आग की तरह पूरे कबिले में फेल गई….। जिसका डर था वही हो गया और मेरे पिता भीखू सरदार तक ये बात पहुंच गई। सोहन एकदम चुप्प होकर शंकरी की बातें सुनता रहा।शंकरी ने आगे उसे बताया कि हम कबिलाईयों के अपने नियम, अपने रीति—रिवाज होते हैं…। भीखू सरदार ने मुझसे जब पूछा कि मैं तुमसे मिलने इतनी रात को क्यूं आई…? तब मैं मोबाइल फोन के बारे में उन्हें नहीं बता सकती थी…। उस वक़्त मुझे यही सूझा कि मैं उन्हें कह दूं कि तुम मुझे पसंद हो…और यही बात मैं तुमसे कहने के लिए आई थी…। पिता ने ये बात सुनने के बाद ही तुम्हारी और मेरी जान को बख्शा था…। इसीलिए पहली बार मैंने तुम्हें उस वक़्त चुप रहने को कहा था। लेकिन सच कहूं तो मुझे भी ये नहीं मालूम था कि पिता अगले ही दिन टिबड्डे पर सभी कबिलाईयों को जमा होने का आदेश देंगे और हम दोनों की शादी का यूं ढिंढोरा पिटवा देंगे…। मुझे लग रहा था कि अभी झूठ बोलकर अगली सुबह तुम्हें गुपचुप तरीके से कबिले से दूर छोड़ आउंगी और कह दूंगी कि तुम न जानें कब और कैसे निकल गए…लेकिन ऐसा हो नहीं सका। उसके बाद जो कुछ भी हुआ वो सब तुम जानते हो…। यदि मैं तुम्हें हर जगह सच बोलने से नहीं रोकती तो अभी तुम ज़िंदा नहीं होते सोहन बाबू…। इसीलिए चुपचाप मैंने ये शादी होने दी…। शंकरी की सारी बातें सुनने के बाद सोहन का दिल भर आया…। उसने शंकरी को उसकी जान बचा लेने के लिए धन्यवाद दिया और उसे अपने गले से लगा लिया…। गले लगते ही शंकरी की आंखें भी भर आई…। सोहन ने शंकरी को कहा कि उम्रभर तुम्हारा मुझ पर ऐहसान रहेगा…। मैं ये कभी नहीं भूलूंगा, मेरी जान तुम्हारी दी हुई हैं…हमेशा तुम्हारा ये कर्ज़ मुझ पर रहेगा। मगर अब क्या….? तभी शंकरी ने उसे बताया कि कल टेकरी पर दर्शन के बहाने से हम कबिले से निकलेंगे। मौका पाते ही तुम शहर की ओर निकल जाना…। यहां पर मैं सब संभाल लूंगी…। सोहन और शंकरी के बीच अब एक भावनात्मक रिश्ता बन गया था…इसीलिए शंकरी की इस बात पर सोहन का चेहरा उदास हो गया। उसने कहा कि, शंकरी इसके अलावा कोई उपाय भी नहीं हैं…। तुम वाकई एक बेहतर इंसान हो लेकिन मैं तुम्हें अपने घर पत्नी बनाकर नहीं ले जा सकता हूं…। मेरा परिवार और समाज इसके लिए बिल्कुल राज़ी नहीं होगा…। मेरी समझ में नहीें आ रहा अब मैं क्या करुं…? यहां से निकलने के लिए मैं तुम्हारें साथ नाइंसाफी करुं, ये तो धोखा होगा…क्या मैं इस बात के लिए कभी ख़ुद को माफ़ कर सकूंगा….नहीं…नहीं…शंकरी…ये नहीं होगा मुझसे। सोहन के कांधें पर हाथ रखते हुए शंकरी ने उसे समझाया मेरे लिए आपकी हमदर्दी हैं ये ही काफी हैं…। लेकिन इसके अलावा दूसरा कोई विकल्प भी नहीं हैं…। वरना उम्र भर आप कबिलाईयों की बस्ती से छूट नहीं पाएंगे…। सोहन उसे कहता है कि मैं अपनी मां से बात करता हूं और उसे पूरा सच बता देता हूं…। शंकरी उसे समझाती हैं, सोहन बाबू आप क्यूं बेकार की ज़िद कर रहे हैं…। आपका और मेरा दूर—दूर तक तालमेल नहीं हो सकता…। आप नहीं जानते कबिलाई संस्कृति को…। आप लोगों के जीवन से हम लोगों का जीवन बहुत अलग हैं…। कबिलाई कभी भी अपनी बेटियों को बस्ती से दूर नहीं जाने देते हैं…। पिता भीखू ने तुमसे कहा ज़रुर था कि तुम शंकरी को शादी के बाद अपनी मां से मिलवा लाओ…कहीं भी जाओ…लेकिन उन्होंने आगे ये नहीं बताया कि तुम्हें मेरे साथ रहना यहीं इसी बस्ती में ही पड़ेगा….। सोहन ये सुनकर हैरान हो गया…तो फिर क्या करें शंकरी…? तुम्हें यूं छोड़कर चले जाना तो तुम्हारे वजूद के साथ खिलवाड़ करना होगा…नहीं गया तो अपना परिवार और मां को खो बैठूंगा…। सोहन सिर पकड़कर बैठ गया…। बातों ही बातों में पूरी रात कब बीत गई पता ही नहीं…। बस्ती के बाहर हुई हलचल से ही दोनों को ये महसूस हुआ कि रात ने अपनी चुप्पी तोड़, सुबह के आगोश में ख़ुद को समेट लिया हैं…। तंबू के बाहर शंकरी उठो…शंकरी उठो…की आवाजें आने लगी…। सोहन और शंकरी दोनों ने ख़ुद को संभाला…। शंकरी ने तंबू से बाहर जाकर देखा तो उसकी सहेलियां थी…। उसने सभी को कहा कि, तुम चलो मैं आई…। इसके बाद वे सभी वहां से चली गई। इधर, सोहन के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था…आंखें सूजी हुई थी…बाल बिखरे हुए थे…। उसका हाल बेहाल था…। शंकरी ने उसे संभाला और उसे तैयार होने को कहा। सोहन ने शंकरी का हाथ अपने हाथ में लिया और उसके फैसले को ही सही बताते हुए ख़ुद की नज़रें झूका ली…। शंकरी समझ गई…सोहन उसकी बात से पूरी तरह सहमत हो गया हैं…वह उसके सर पर बेहद प्यार से हाथ फेरती हैं और उसे ईश्वर पर छोड़ देने का कहकर तंबू से निकल जाती हैं..। आज आसमान पूरी तरह से साफ हैं…जैसे तूफान ने अपना क्रोध छोड़ शांत लालिमा ओढ़ ली हो…। कबिले के लोग भी अपने—अपने काम में व्यस्त हो गए..। भीखू सरदार ने शंकरी और सोहन के साथ बैठकर खाना खाया और टेकरी पर दर्शन कर आने को कहा। उधर, सरदार का भाई सोहन की गाड़ी ठीक करवा लाया और उसे बस्ती के बाहर लाकर खड़ा कर दिया। सोहन और शंकरी तैयार होकर टेेकरी के लिए निकल ही रहे थे..तभी भीखू सरदार ने सोहन के कांधे पर हाथ रखते हुए कहा, सोहन बाबू तुम सुबह से ही कुछ उदास दिख रहे हो…? सब ठीक तो हैं ना…? सोहन कुछ सकपका गया…। वह कुछ बोलता उससे पहले ही शंकरी बोल पड़ी…मां की याद सता रही हैं सोहन बाबू को…। वह हमारी शादी में शामिल नहीं हो सकी ना, इसी बात का दु:ख हैं इन्हें…। ये सुनकर भीखू सरदार बोला, यदि ये ही बात हैं तब ठीक हैं। इत्ती सी बात के लिए क्यूं जी छोटा करते हो…आती पूर्णिमा को हो आना अपने घर और मिल आना ‘मां’ से…लेकिन मन में कुछ और ख़याल भी हैं तब ठीक नहीं होगा…। ये सुनते ही सोहन बोल पड़ा, तो क्या…आप मुझे धमकी दे रहे हैं…? ये सुनकर सरदार की भौंए तन गई…। लेकिन बेटी की ओर देख उसने सोहन को कहा अरे! मैं तो बस यूं ही कह रहा था…। लेकिन उसे कुछ संशय होने लगा…। उसने अपने छोटे भाई को शंकरी और सोहन के साथ टेकरी पर जाने को कहा। ये सुनते ही शंकरी—सोहन एक—दूसरे की ओर देखने लगे।शंकरी कहती हैं पिताजी हम दोनों हो आएंगे…। तभी सरदार उसे टोक देता हैं…भला नव विवाहित जोड़े को अकेले टेकरी कैसे भेज दें…। शंकरी चुप हो गई..। वह समझ गई, पिता ने एक बार कह दिया तो कह दिया…लेकिन वह इस मौके को हाथ से नहीं गवाना चाहती है…क्योंकि यही वो पहला और अंतिम मौका था जब सोहन को कबिलाईयों से दूर निकाला जा सकता था…। इसीलिए वो पिता के फैसले में राज़ी हो गई। सरदार के भाई के साथ सोहन और शंकरी टेकरी के लिए रवाना होते है। गाड़ी सोहन चलाता हैं..। कुछ ही देर में टेकरी आ गई …। ये टेकरी कबिलाई बस्ती से दूर और शहरी सीमा से लगी हुई थी। सोहन के लिए ये अच्छी बात थी…। शंकरी और सोहन दोनों माता के दर्शन करते हैं और आशीर्वाद लेते हैं…। शंकरी मन ही मन माता से प्रार्थना करती है, सरदार का छोटा भाई इधर—उधर हो जरा, तो सोहन मौका पाते ही गाड़ी से अपने शहर अपने घर के लिए रवाना हो सके…। इधर, सोहन के भीतर शंकरी को धोखा देकर भाग जाना कचोट रहा था…वो माता से शंकरी के खुशहाल जीवन की कामना कर रहा था…। शंकरी की प्रार्थना में गहरा असर था शायद, जो दूसरे कबिले का सरदार भी अपने हुजूम के साथ टेकरी पर दर्शन करने चला आया। ये देखकर भीखू सरदार का छोटा भाई खुश होकर उससे मिलने को चला गया…। दूसरे कबिले का सरदार भी उसे देख बेहद खुश हुआ। दोनों एक—दूसरे से गले मिलें, तभी भीखू सरदार के भाई ने शंकरी और सोहन की ओर इशारा करते हुए टेकरी पर आने की बात बताई..। भीखू सरदार के भाई ने शंकरी और सोहन को कहा मैं दूसरे कबिले के लोगों के साथ कुछ बातें कर रहा हूं…तुम लोग टेकरी घूम आओ…। बस ये सुनते ही शंकरी की खुशी का ठिकाना न रहा..। लेकिन उसने अपने चेहरे पर ऐसा भाव नहीं आने दिया जिससे कोई शक पैदा हो…। सिर्फ गर्दन हिलाई और सोहन के साथ टेकरी घूमने लगी…। लेकिन उसकी नज़र पूरी तरह सरदार के भाई पर ही थी। जब दूसरे कबिलाईयों के साथ बातें करने में वह मशगूल होने लगा तब फोरन शंकरी ने सोहन को निकल जाने को कहा…। सोहन के लिए ये पल बहुत भारी था लेकिन अब शंकरी से ज़्यादा कुछ कह पाने या उसे सुन पाने का मौका न था…। उसने शंकरी को इतना ही कहा…ईश्वर ने चाहा तो हम फिर मिलेंगे…शंकरी की आंखों में आंसू थे, वह इतना ही बोल पाई सोहन बाबू ईश्वर से प्रार्थना करना वो हमें दोबारा कभी नहीं मिलाए….। अब जाओ…पीछे पलटकर मत देखना…। सोहन तेज कदमों के साथ गाड़ी की ओर चल दिया…। शंकरी उसे एकटक देखती रही…जब सोहन गाड़ी में बैठ गया और उसे स्टार्ट कर ली तब उसने भी शंकरी को एक बार जी भर देख लिया। उसका दिल जोरों से धड़क रहा था लेकिन शंकरी की बात मानते हुए वह बिना रुके वहां से निकल पड़ा। आंखों में आंसू लिए शंकरी बस उसी ओर देखती रही जिस ओर से सोहन हमेशा के लिए अब उसके जीवन से चला गया था…। तभी भीखू सरदार के भाई की नज़र शंकरी पर पड़ी…। क्रमश: कबिलाई— एक ‘प्रेम’ कथा कबिलाई— एक ‘प्रेम’ कथा…. भाग—2 2 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post ठहर जाना ऐ, ‘इंसान’….. next post कबिलाई— एक ‘प्रेम’ कथा…. भाग—4 Related Posts छत्तीसगढ़ का भांचा राम August 29, 2024 विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 वैदेही माध्यमिक विद्यालय May 10, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 29, 2024 राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा January 22, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 21, 2024 समर्पण October 28, 2023 विंड चाइम्स September 18, 2023 रक्षाबंधन: दिल के रिश्ते ही हैं सच्चे रिश्ते August 30, 2023 गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव August 13, 2023 2 comments Anonymous July 27, 2021 - 10:03 am Nice story���� Kumar Pawan Reply Teena Sharma 'Madhvi' July 29, 2021 - 2:52 am Thankyu 🙏 Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.