कहानियाँ कबिलाई— एक ‘प्रेम’ कथा…. भाग—4 by Teena Sharma Madhvi July 29, 2021 written by Teena Sharma Madhvi July 29, 2021 उसे कुछ संशय हुआ…वह तेज कद़मों के साथ शंकरी की ओर बढ़ा। उसे अपनी तरफ़ आता हुआ देख शंकरी ने फोरन अपने आंसू पोंछे और वह इधर—उधर देखने लगी। तभी सरदार का भाई उसके पास आ गया। उसने पूछा अरे, शंकरी तुम ठीक हो ना…और सोहन किधर हैं…? इस पर शंकरी ने कहा वही तो मैं भी देख रही हूं…आख़िर सोहन है कहां…? उसकी बात सुनते ही सरदार का भाई टेकरी के चारों ओर सोहन को ढूंढने लगा। काफी देर तक वह उसे ढूंढता रहा…थक हार कर वह पार्किंग में आया तो उसने देखा कि सोहन की गाड़ी भी नहीं हैं…उसे यकीन होने लगा कि सोहन भाग निकला हैं। वह तुरंत शंकरी के पास आया और बोला वो कहीं नहीं मिला…उसकी गाड़ी भी नहीं हैं…उसने तुम्हें धोखा दिया हैं…पूरे कबिले की मान—मर्यादा को ठेंगा दिखा गया हैं…। चलो कबिले में चलकर इसकी सूचना भीखू सरदार को देते हैं…। शंकरी ये सब सुनकर रोने का नाटक करने लगी जिससे सरदार के भाई को ये पक्का विश्वास हो जाए कि, सोहन सच में भाग गया हैं….और शंकरी को इस बारे में कुछ भी जानकारी नहीं हैं…। और हुआ भी ऐसा ही…। सरदार के भाई ने शंकरी के आंसू पोंछे और उसे दिलासा दिया फिर उसे कबिले में लेकर आ गया। यहां आने के बाद भीखू सरदार को पूरी बात बताई…। सरदार ये सुनते ही गुस्से से भर गया…उसने फोरन कबिलाईयों को बस्ती के टिबड्डे पर जमा होने को कहा…। कुछ ही देर में बस्ती के सारे लोग टिबड्डे पर पहुंच गए। एक बार फिर शंकरी को कबिलाईयों के बीचों—बीच खड़ा किया गया।चारों ओर जोर—जोर से ‘हौ हुक्का’…’हौ हुक्का’…’हौ हुक्का’…’हौ हुक्का…का शोर मचने लगा। हाथ में खंजर लिए हुए कबिलाई सरदार से पूछने लगे, क्या ये सच हैं कि सोहन बाबू भाग गए…? भीखू सरदार ने ‘हां’ में जवाब दिया…। कबिलाईयों ने फिर ‘हौ हुक्का’…’हौ हुक्का’…’हौ हुक्का’…का शोर मचाना शुरु कर दिया। तभी सरदार ने सभी को शांत रहने को कहा…। जब सारे कबिलाई एकदम चुप हो गए तब सरदार ने शंकरी से पूछा…। बोलो शंकरी क्या वाकई सोहन तुम्हें टेकरी पर अकेली छोड़ भाग गया…या फिर बात कुछ और हैं…? बताओ सच क्या हैं…वरना कबिलाई रीति—रिवाजों के अनुसार तुम्हें भी दंड दिया जाएगा..। शंकरी पिता भीखू सरदार के पैरों में गिरकर रोने लगी। चीखने लगी…सरदार वो धोखेबाज़ निकला और मुझे यूं ही छोड़ गया…। हम दोनों ने टेकरी पर माता के दर्शन साथ में किए…कुछ देर तक टेकरी पर साथ में घूमें भी…लेकिन थोड़ी ही देर बाद सोहन बाबू ने मुझे कहा मैं आता हूं तुम यहीं रुको…। मेरे ये पूछने पर कि कहां जा रहे हो, तब मुझे इतना ही कहा तुम्हारें लिए कुछ लेने जा रहा हूं….। काफी देर तक मैं सोहन का इंतज़ार करती रही लेकिन वो नहीं आया…उसके बाद जो हुआ वो सब आपके सामने हैं। शंकरी की बात सुनने के बाद सरदार ने उससे फिर पूछा, एक बात बताओ, क्या सच में तुम दोनों ने एक—दूसरे को पसंद किया था…इस पर शंकरी बोल पड़ी, हां सरदार…यही सोचकर तो मेरा दिल रो रहा हैं…। भागना ही था तो फिर शादी ही क्यों की उसने….? सरदार को समझ आ गया सोहन अब कभी नहीं लौटेगा। वो कबिलाईयों की जीवन शैली और यहां के रहन—सहन में ढलना नहीं चाहता था…वो सिर्फ शंकरी को बहला—फुसलाकर उसके साथ ग़लत इरादे से रहने की सोच रहा था शायद…। इसी बात से सरदार को याद आया, शादी की पहली रात सोहन ने शंकरी के साथ ही गुज़ारी थी। वो शंकरी से कुछ पूछता उससे पहले ही वो बोल पड़ी, सरदार लेकिन सोहन बाबू ने उसके साथ कोई ग़लत काम नहीं किया…। पूरी रात वो अपने घर और अपनी मां के बारे में मुझसे बातें करता रहा…। शंकरी की ये बात सुनते ही सरदार बोला, तो क्या…तुम दोनों के बीच…। हां..हां…हम दोनों के बीच कुछ नहीं हुआ उस रात….शंकरी ने ये कहते हुए अपनी गर्दन नीचे कर ली। सरदार के चेहरे पर जो गुस्सा था वो शंकरी की इस बात को सुनने के बाद कम हो गया… उसने सरदार की तरह नहीं बल्कि एक पिता की तरह फिर शंकरी से पूछा उसका घर और परिवार कहां रहता हैं…क्या इस बारे में उसने कुछ बताया हैं तुम्हें….? इस पर शंकरी ने ‘ना’ कह दिया। वह मन ही मन सोच रही थी…उसे सोहन बाबू के घर का पता मालूम होता तब भी वह अपना मुंह नहीं खोलती…। वह सोचती है, सोहन बाबू अब तक तो काफी दूर निकल गए होंगे…। तभी ‘हौ हुक्का’…’हौ हुक्का’…’हौ हुक्का’…का शोर होने लगा…। सरदार ने सभी कबिलाईयों को हाथ के इशारे से चुप रहने को कहा और अपना फैसला सुनाया। उसने आदेश दिया, सोहन जहां कहीं भी…किसी को भी मिलें तो उसे ज़िंदा पकड़कर लाएं…उसे अपनी करनी की सज़ा ज़रुर देगा ये कबिलाई समाज। तब तक शंकरी उसी की बनकर कबिले में रहेगी…। यदि दो साल के भीतर सोहन नहीं मिला तब उम्र भर शंकरी को ऐसे ही अकेली रहते हुए जीवन बिताना होगा। सरदार के फैसले पर सभी ने अपनी रजामंदी दिखाई…और एक—एक करके सभी लौटने लगे…। भीखू सरदार ने शंकरी के सिर पर हाथ रखा और उसे सबर करने को कहा…। धीरे—धीरे वक़्त गुज़रता गया लेकिन किसी भी कबिलाई से सोहन कभी नहीं टकराया…। सभी को ये भरोसा था कि एक ना एक दिन सोहन पर उनमें से किसी की नज़र ज़रुर पड़ेगी लेकिन पूरे दो साल बीत गए। न सोहन मिला न ही उसके घर का अता—पता चला…। सरदार के फैसले के अनुसार शंकरी को अपनी उम्र अब अकेले ही बितानी थी। कबिलाई संस्कृति और उसके रिवाज़ों के बारे में भीखू सरदार ने सोहन और शंकरी को शादी के वक़्त ही बता दिया था। यदि नवविवाहित किसी भी कारण से एक—दूसरे के साथ नहीं रहना चाहे तब वे दो साल के बाद ही अपनी मर्जी से एक—दूसरे को छोड़ सकेंगें…। सोहन से अलग हुए पूरे दो साल हो गए थे। इसके बाद शंकरी ने अपने पिता भीखू सरदार से एक सवाल का जवाब मांंगा। सरदार आपने शादी के वक़्त ये क्यूं नहीं बताया यदि नवविवाहित जोड़े में से कोई एक मर जाए या कभी लौटकर ना आए तो दूसरे को उम्र भर अकेला रहना होगा…। इस पर सरदार ने जवाब दिया…ये तो कबिलाईयों का रिवाज़ है कोई छोड़कर भाग जाए या मर जाए तब दोनों ही सूरत में अकेले ही रहना हैं…। जीते जी ही मर्जी मान्य हैं…मरने के बाद तो जीवन अकेला ही गुजारना हैं….। इसमें सोचने या बताने जैसी तो कोई बात ही नहीं हैं…। इस पर शंकरी बोली, क्या पता सोहन बाबू ने दूसरी शादी कर ली हो…तो क्या मुझे अपना नया जीवन शुरु करने का हक नहीं…? ये सुनकर सरदार की आंखे नम हो गई लेकिन वो भी बरसों से चली आ रही कबिलाई रीति—रिवाज़ों से बंधा हुआ था…इसीलिए बस ये कहकर ही रह गया…माता की शायद यही इच्छा हैं…इसीलिए तुम्हें पूरी उम्र यूं ही ग़ुजारनी होगी बेटी…। पिता की बात सुनकर शंकरी समझ गई अब उसे सोहन की याद में ही पूरा जीवन जीना होगा। उसे इस बात का दु:ख न था लेकिन कबिलाईयों के बरसों पुराने रीति रिवाज़ों से घृणा हो रही थी। वह सोच में थी आख़िर खोखली परंपराओं को निभाने की आख़िर बेवजह ही न जानें कितने व्यक्तित्व ख़त्म हो जाते हैं….। सोहन को उस दिन नहीं भगाती तो उम्र भर के लिए वो कबिले में घुट घुटकर जीता…। एक को तो घुटकर जीना ही था…अब उसे ही घुटन की सांसे लेनी होगी…। काश! उस तूफानी रात में कबिले के लोग सोहन बाबू की मदद कर उन्हें अपने घर लौटने देते…तो शायद उसके स्वयं का जीवन भी यूं रिवाजों की भेंट न चढ़ता…। वक़्त तो अपनी गति से ही आगे बढ़ रहा था लेकिन शंकरी के लिए नौ बरस का लंबा सफ़र मानों एक ही जगह ठहर सा गया था…। न सुबह होती…न दोपहर और ना ही शाम…। रातें उसे काटने को दौड़ती…। अपनी ही परछाई उसे डराती…। हर प्रहर का हरेक पल तिल—तिल कर कट रहा था। क्रमश: कबिलाई— एक ‘प्रेम’ कथा…..भाग—1 कबिलाई— एक ‘प्रेम’ कथा…. भाग—2 कबिलाई— एक ‘प्रेम’ कथा… भाग—3 0 comment 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post कबिलाई— एक ‘प्रेम’ कथा… भाग—3 next post ‘मुंशी प्रेमचंद’—जन्मदिन विशेष Related Posts छत्तीसगढ़ का भांचा राम August 29, 2024 विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 वैदेही माध्यमिक विद्यालय May 10, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 29, 2024 राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा January 22, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 21, 2024 समर्पण October 28, 2023 विंड चाइम्स September 18, 2023 रक्षाबंधन: दिल के रिश्ते ही हैं सच्चे रिश्ते August 30, 2023 गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव August 13, 2023 Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.