प्रासंगिक मुद्दे कब बोलेंगे ‘हम’ सब ‘हिन्दी’… by Teena Sharma Madhvi September 14, 2020 written by Teena Sharma Madhvi September 14, 2020 ‘हिन्दी दिवस’ एक जश्न हैं हमारी मातृभाषा का। ये जश्न हैं उस भाषा का जिसमें हमने अपनी ‘मां’ के प्रति अपने अहसास को शब्द देना सीखा हैं। लेकिन आज भी यह उस सौ फीसदी आंकड़े से अछूती हैं जब हम ये कह सके कि देश में अब सारे काम हिन्दी में ही हो रहे है। यानि लिखना, पढ़ना, बोलना, सोचना और समझना सभी कुछ। यदि आंकड़ों पर गौर करें तो वर्तमान में भारत में 43.63 फीसदी लोग ही हिंदी भाषा बोलते हैं। निश्चित ही देश में हिन्दी बोलने वालों की संख्या पिछले कई सालों से बढ़ रही है। लेकिन मातृभाषा होने के बावजूद भी देश में आधे से ज़्यादा लोग हिन्दी नहीं बोलते हैं। इस दृष्टि से हिंदी के सामने अब भी बड़ी चुनौती है और अब भी हम खुद अपने ही देश में हिंदी बोलने से पिछड़े हुए है। देश में पले बड़े लोग ही जब ये कहते हैं कि मेरी हिंदी कमज़ोर हैं तो इसे फैशन के तौर पर लिया जाता है। लेकिन ये ही लोग ये कहने से बचते हैं कि मेरी अंग्रेजी कमज़ोर हैं। क्योंकि ऐसा कहने से उनका मज़ाक बन सकता हैं। ये बात हिन्दी के प्रति आम नज़रिए और सोच को स्पष्ट कर देती है। क्यूं बचते हैं लोग ख़ुद की मातृभाषा हिन्दी से? क्या अंग्रेजी का सम्मोहन इस कदर हावी हो रहा है कि हिन्दी लिखते व बोलते समय भी ‘हिंग्लिश’ हो जाता है। इस ‘हिन्दी दिवस’ पर यदि इसका जवाब खुद के पास हैं तो शायद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे प्रयास सफल होंगे। सिर्फ ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में कुछ चुनिंदा शब्दों के शामिल हो जानेे से ही हिन्दी आगे नहीं बढ़ेगी। नई शिक्षा नीति आने के बाद अब स्कूलों में भी अंंग्रेजी पढ़ने की अनिवार्यता ख़त्म हो जाएगी। बच्चों को कक्षा पांचवी तक अपनी मातृभाषा में पढ़ने की स्वतंत्रता होगी। विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसा होने से निश्चित ही हिन्दी को बढ़ावा मिलेगा। क्योंकि बच्चे जो भाषा घर में बोलते हैं यदि स्कूल में भी उसी भाषा का प्रयोेग होगा तो वे जल्दी हर चीज को सीख और समझ पाएंगे। इससे उनकी नींव मजबूत होगी। वैश्विक स्तर पर हिन्दी— यदि पूरे विश्व की बात करें तो दुनिया में तकरीबन 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जो इसे बोलते हैं या फिर इसे समझ सकते हैं। इस दृष्टि से हिंदी विश्व में चौथी ऐसी भाषा है जिसे सबसे ज्यादा लोग बोलते हैं। यदि एक अन्य बात पर ध्यान दें तो हिंदी विश्व के तीस से अधिक देशों में पढ़ी-पढ़ाई जाती है। तकरीबन सौ विश्वविद्यालयों में उसके लिए अध्यापन केंद्र खुले हुए हैं। अमेरिका में तो डेढ़ सौ से ज्यादा ऐसे शैक्षणिक संस्थान हैं जहां पर हिंदी पढ़ाई जा रही है लेकिन देश में अब भी हिन्दी का ग्राफ आधे से भी कम है।जानकार मानते हैं— अब भी देश के कई लोगों में हिन्दी के प्रति हिन भावना हैं। अधिकतर को लगता है कि अंग्रेजी मीडियम में पढ़ने के बाद हिन्दी में काम कर पाना संभव नहीं हैं। इसीलिए वे ‘हिंग्लिश’ हो गए है। जबकि कुछ लोग जानबुझकर अपने बच्चों को हिन्दी बोलने, पढ़ने और समझने से दूर रखते हैं। ऐसे लोग सिर्फ स्कूल में कोर्स में शामिल थोड़ी बहुत हिन्दी पढ़ने पर ही जोर देते है। वहीं कुछ लोग घरों में सुबह उठने से लेकर रात को सोने तब इसी कोशिश में होते हैं कि उनका बच्चा गुड मॉर्निंग से लेकर गुड नाइट करने तक के दौरान अधिकतर चीजों के नाम सिर्फ अंग्रेजी में बोले। जबकि कुछ मानते हैं कि जितनी अच्छी अंग्रेजी होगी उतनी ही अच्छी नौकरी मिलेगी और उतना ही अच्छा जीवन होगा। लेकिन वर्तमान सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लेकर सभी सरकारी विभागों, मंत्रालयों, शैक्षणिक संस्थाओं और अन्य केंद्रीय कार्यालयों में अंग्रेजी की जगह हिन्दी में काम करने की जो शुरुआत की है। इसके बाद से हिन्दी के प्रचार—प्रसार को निश्चित ही बढ़ावा मिला है। लेकिन हिन्दी के समृद्ध विकास के लिए अभी ऐसे मंच स्थापित करने की आवश्यकता हैं जहां पर इसके पठन—पाठन का दायरा बढ़ सके। ऐसे क्रेस कोर्स चलाए जाएं जिससे लोगों में हिन्दी के प्रति रुचि पैदा हो और वे शुद्ध रुप से बिना किसी शर्म और झिझक के इसका प्रयोग करें। ‘माहेश्वरी पब्लिक स्कूल के हिंदी विभागाध्यक्ष परेश जैन कहते हैं कि अंग्रेजी मीडियम में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे दो भाषाओं में फंसे हुए हैं। घर—परिवार और बाकी जगह पर वे हिन्दी में बोलते हैं, सुनते हैं और स्कूल में अंग्रेजी में पढ़ने को मजबूर हैं। ऐसे में निश्चित ही उनकी ग्रहण शक्ति प्रभावित होती है। हिन्दी के प्रति मानसिकता बदलने के लिए भी सरकार और नागरिक दोनों को प्रयास करने होंगे। हिन्दी भाषा का आधार बहुत ठोस है। जिसके हर वर्ण अपने आप में गहरा अर्थ रखते हैं। ऐसे में हिन्दी को संवैधानिक रुप से राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाए। ‘शब्दकोश में शामिल होना काफी नहीं— ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी या शब्दकोश में अरे यार, भेलपूरी, बदमाश, चुप, फंडा, चाचा, चौधरी, चमचा, दादागीरी, चूड़ीदार, ढाबा, जुगाड़, करी, चटनी, अवतार, चीता, गुरु, जिमखाना, मंत्र, महाराजा, मुग़ल, निर्वाण, पंडित, ठग, बरामदा, पायजामा, कीमा, पापड़, जैसे शब्दों को शामिल किया जा चुका है। इतना ही नहीं कुछ बड़ी वेबसाइट और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी भारतीय शब्दों की धूम है। ये एक सकारात्मक पहल हो सकती हैं लेकिन हिन्दी को पूरी तरह से अपनाने की दिशा में ये ही काफी नहीं है। इंटरनेट पर हावी ‘हिंग्लिश’— अलग—अलग रिपोर्ट और सर्वे पर नज़र डालें तो इंटरनेट पर पिछले कुछ सालों में हिन्दी का तेजी से प्रसार हो रहा है। जबकि एक अन्य आंकड़े के अनुसार वर्ष 2016 में डिजिटल माध्यम में हिन्दी समाचार पढ़ने वालों की संख्या 5.5 करोड़ थी जो 2021 में बढ़कर 14.4 करोड़ होने का अनुमान है। निश्चित ही यह खुशी वाली बात हैं लेकिन दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर हिन्दी पर ‘हिंग्लिश’ का प्रभाव भी साफ दिख रहा है। ऐसे में बाकी आबादी तक हिन्दी का मूल एवं शुद्ध रुप कैसे पहुंचेगा। दुनिया के बाकी देशों को देखें तो वे भी अपनी भाषा का ही प्रयोग हर जगह पर कर रहे हैं फिर देश में हिन्दी से हिचकिचाहट क्यों हैं? ‘हिन्दी दिवस’ पर ये सवाल शेष हैं जिसका जवाब ख़ुद को देना है। इस दिन को मनाने की सार्थकता इसी में हैं। अंग्रेजी पढ़ने—लिखने और बोलने का ये मतलब भी कतई नहीं हैं कि हिन्दी को भूला दिया जाए। कहानियाँ- ज़िंदगी का फ़लसफ़ा ‘अर्थी’ का बोझ ही शेष…. 6 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post ‘रिया’ नहीं ‘नौकरियां’ चाहिए… next post असल ‘ठेकेदारी’ करके तो देखो.. 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