क्यूं बचते हैं लोग ख़ुद की मातृभाषा हिन्दी से? क्या अंग्रेजी का सम्मोहन इस कदर हावी हो रहा है कि हिन्दी लिखते व बोलते समय भी 'हिंग्लिश' हो जाता है। इस 'हिन्दी दिवस' पर यदि इसका जवाब खुद के पास हैं तो शायद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे प्रयास सफल होंगे। सिर्फ ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में कुछ चुनिंदा शब्दों के शामिल हो जानेे से ही हिन्दी आगे नहीं बढ़ेगी।
नई शिक्षा नीति आने के बाद अब स्कूलों में भी अंंग्रेजी पढ़ने की अनिवार्यता ख़त्म हो जाएगी। बच्चों को कक्षा पांचवी तक अपनी मातृभाषा में पढ़ने की स्वतंत्रता होगी। विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसा होने से निश्चित ही हिन्दी को बढ़ावा मिलेगा। क्योंकि बच्चे जो भाषा घर में बोलते हैं यदि स्कूल में भी उसी भाषा का प्रयोेग होगा तो वे जल्दी हर चीज को सीख और समझ पाएंगे। इससे उनकी नींव मजबूत होगी।
वैश्विक स्तर पर हिन्दी—
यदि पूरे विश्व की बात करें तो दुनिया में तकरीबन 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जो इसे बोलते हैं या फिर इसे समझ सकते हैं। इस दृष्टि से हिंदी विश्व में चौथी ऐसी भाषा है जिसे सबसे ज्यादा लोग बोलते हैं।
जानकार मानते हैं—
'माहेश्वरी पब्लिक स्कूल के हिंदी विभागाध्यक्ष परेश जैन कहते हैं कि अंग्रेजी मीडियम में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे दो भाषाओं में फंसे हुए हैं। घर—परिवार और बाकी जगह पर वे हिन्दी में बोलते हैं, सुनते हैं और स्कूल में अंग्रेजी में पढ़ने को मजबूर हैं। ऐसे में निश्चित ही उनकी ग्रहण शक्ति प्रभावित होती है। हिन्दी के प्रति मानसिकता बदलने के लिए भी सरकार और नागरिक दोनों को प्रयास करने होंगे। हिन्दी भाषा का आधार बहुत ठोस है। जिसके हर वर्ण अपने आप में गहरा अर्थ रखते हैं। ऐसे में हिन्दी को संवैधानिक रुप से राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाए।
'शब्दकोश में शामिल होना काफी नहीं—
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी या शब्दकोश में अरे यार, भेलपूरी, बदमाश, चुप, फंडा, चाचा, चौधरी, चमचा, दादागीरी, चूड़ीदार, ढाबा, जुगाड़, करी, चटनी, अवतार, चीता, गुरु, जिमखाना, मंत्र, महाराजा, मुग़ल, निर्वाण, पंडित, ठग, बरामदा, पायजामा, कीमा, पापड़, जैसे शब्दों को शामिल किया जा चुका है। इतना ही नहीं कुछ बड़ी वेबसाइट और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी भारतीय शब्दों की धूम है। ये एक सकारात्मक पहल हो सकती हैं लेकिन हिन्दी को पूरी तरह से अपनाने की दिशा में ये ही काफी नहीं है।
इंटरनेट पर हावी 'हिंग्लिश'—
दुनिया के बाकी देशों को देखें तो वे भी अपनी भाषा का ही प्रयोग हर जगह पर कर रहे हैं फिर देश में हिन्दी से हिचकिचाहट क्यों हैं? 'हिन्दी दिवस' पर ये सवाल शेष हैं जिसका जवाब ख़ुद को देना है। इस दिन को मनाने की सार्थकता इसी में हैं। अंग्रेजी पढ़ने—लिखने और बोलने का ये मतलब भी कतई नहीं हैं कि हिन्दी को भूला दिया जाए।