'कहानी का कोना' में आज पढ़िए कवियित्री डॉ. रानी तंवर की लिखी कविता 'नई पौध'..। नारी शक्ति को समर्पित इस कविता में स्त्री के विभिन्न भावों की अनुभूति है..। डॉ. रानी तंवर हिन्दी व राजस्थानी भाषा की कवियित्री हैं। कविता लेखन में इन्हें ज्ञानी जैल सिंह जी से राष्ट्रपति पुरस्कार, मिर्जा गालिब सोसायटी से 'मीर तकी सम्मान', 'मायड़' आदि कई साहित्यिक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं...। कवियित्री प्रधानाचार्या पद से सेवानिवृत्त हैं और वर्तमान में 'राष्ट्रीय कवि संगम की प्रदेश महिला समन्वयिका' एवं काव्य साधिका मंच की अध्यक्षा हैं।
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कविता 'नई पौध'
हम उफनती लहर हैं,क्यों बांधते?
दे सको यदि, इक नवेली साध दो।
बूंद को दिखला सको पथ सिंधुका
फूल में यदिभर सको,नभ गंधका।
प्रस्तरों को फोड़, बहने की तरंग।
कंटकों के मध्य,खिलने की उमंग।

डॉ.रानी तंवर
हृदय कलि का मौन,खिलने के लिए।
नव स्वरों का गान,नव सुप्रभात दो।
हम उफनती लहर हैं,क्यों बांधते?
दे सको यदि, इक नवेली साध दो।
हम पखेरु गगन के उन्मुक्त हैं,
कैद में हम गा न पाएंगे कभी।
टूट जाएंगे सलाखों में उलझ,
ये पुलकते पंख फड़केंगे कभी।
बंधनों के पाश में, क्यों नापते?
सुगति का बस एक आशीर्वाद दो।
हम उफनती लहर है,क्यों बांधते?
दे सको यदि,इक नवेली साध दो।
हम बनेंगे सिंधु नवल सुगंधि के।
हम खिलेंगे जगत उपवन में कभी
हम नई हैं पौध हमको प्यार दो।
सफल हों,मधुमास आएगा कभी।
सुनो माली डाल को, क्यों काटते?
एक विकसित प्रगति पुष्प प्रसाद दो।
हम उफनती लहर है क्योंबांधते?
दे सको यदि,इक नवेली साध दो।
डॉ रानी तँवर
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