कहानियाँ ज़िंदगी का फ़लसफ़ा by Teena Sharma Madhvi August 7, 2020 written by Teena Sharma Madhvi August 7, 2020 सोमित बाबू बंगाली भाषा के लेखक है। लेकिन हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी और फ़ारसी में भी उनकी अच्छी खासी पकड़ है। वे एक ख़्यातनाम लेखक है। उनकी ऐसी कोई क़िताब नहीं जोे लोगों के बीच चर्चित ना हुई हो। लेकिन सोमित बाबू को इसे लेकर जरा भी अंहकार नहीं है। वे हमेशा एक बेहतरीन और नए विषय की तलाश में रहते हैं। ऐसा विषय जिसे लोग पहली बार पढ़े और सुने। यूं तो वे सामाजिक परिस्थितियों की उलझनों और उधेड़बुन में गुज़र रही ज़िदगी के संघर्षो पर अधिक लिखते है। लेकिन सम—सामयिक विषयों पर भी उनके लेख आए दिन पत्र—पत्रिकाओं में छपते रहते है। उन दिनों देश में रोजगार नहीं था। लोगों को एक वक़्त का भोजन भी मुश्किलों से नसीब हो रहा था। जैसे—तैसे मजदूरी करके लोग अपना व अपने परिवार का पेट पाल रहे थे। सोमित बाबू इन हालातों को भांप रहे थे। उन्होंने मजदूरों की मार्मिक दशा को अपने लेख में लिखा। ये लेख इतना संवेदनशील और मार्मिक था जिसने सरकार को भी गहरे रुप से प्रभावित किया। सरकारी नुमाइंदों ने सोमित बाबू को बुलाया और उन्हें पुरस्कार देने की घोषणा की। सोमित बाबू को अपने नाम से ज़्यादा व्यवस्थाओं में सुधार की चाह थी। सो उन्होंने उस पुरस्कार को ठुकरा दिया और बदले में रोजगार के अवसर पैदा करने की मांग कर डाली। सरकार को उनके लेखन के आगे झुकना पड़ा। सरकार ने रोजगार के नए आयाम निकालें। लोगों को नौकरियां मिलने लगी। घरेलू उद्योगों को भी बढ़ावा मिलने लगा। ये सोमित बाबू के लेखन का ही नतीजा था। इस लेखन के बाद सोमित बाबू का क़द बहुत बढ़ गया था। एक दिन उनके पास रिश्ते में दूर के भाई का फोन आया। उसने सोमित बाबू से उस लेख का जिक्र किया और उन्हें ढेर सारी बधाईयां दी। सोमित बाबू बेहद खुश हुए और भावुक भी। यूं तो इनका अपना कोई नहीं। ये ख़ुद अकेले है। माता—पिता बरसों पहले ही चल बसे। इसके बाद ही से इन्होंने अपनी ज़िदगी को पठन—पाठन व लेखन के साथ जोड़ लिया। आज जब दूर के भाई का रिश्ता निकल आया तो सोमित बाबू की आंखें भर आई। वे ख़ुद को रोक नहीं सके और उसे अपने घर आने को कहा। दूर का भाई तो वैसे भी इनसे मिलने को आतुर था सो दो दिन बाद ही एक बैग के साथ इनसे मिलने चला आया। सोमित बाबू अपने दूर के भाई से मिलकर बेहद खुश हुए। ये सोमित बाबू से छोटा था इसीलिए वो सोमित को दादा कहकर पुकारने लगा। दोनों एक—दूसरे से गले मिलें और भावुक भी हुए। दोनों ने साथ बैठकर खाना खाया और खूब बातें की। रात को जब सोने का समय आया तो सोमित बाबू ने उसे एक अलग कमरा दिया और वे सभी ज़रुरी सामान भी कमरे में रखें जिससे उसकी दिनचर्या सुव्यवस्थित चल सके। अगले दिन सुबह सोमित बाबू ख़ुद चाय लेकर उसके कमरे में पहुंचे। एक ही दिन में इन दोनों के बीच बड़े और छोटे की संज्ञा के साथ अपनेपन वाला रिश्ता बनने लगा था। सोमित बाबू उसे छोटे कहकर बुलाने लगे और वो दादा…। चाय के साथ ही छोटे ने दादा के सामने अपने मन की बात भी रख दी। उसने कहा कि दादा मैं भी आपकी तरह बड़ा लेखक बनना चाहता हूं। मुझे भी लिखना सिखाओ ना..। सोमित बाबू हंस पड़े। बोले कि लेखक बनकर क्या करोगे। छोटे ने तपाक से कहा कि दादा मुझे भी आपकी तरह सम्मान और पहचान चाहिए। अपने शहर को छोड़कर एक बैग में दो जोड़ी कपड़े डालकर यूं ही नहीं आया हूं आपके पास। आपको मुझे लिखना तो सिखाना ही होगा। सोमित बाबू ने कहा कि ठीक है छोटे, लेकिन लेखक बनाए नहीं जाते है। वे तो पैदा होते है। तुम खूब पढो ..लिखने की विधा को समझो पहले…फिर भावों के उतार—चढ़ाव को महसूस करो…अपने आसपास के लोगों की संस्कृति, खानपान और उनके रहन—सहन को जानो। फिर उनके दर्द और खुशी को जी कर देखों। जब तुम विषय को जानने के साथ मानने भी लगोगे तब तुम अच्छा लिख पाओगे। और जो लिखोगे वो तुम्हारें अपने शब्द होंगे। जो तुम्हें एक लेखक बनाएंगे…। छोटे ने दादा की इन बातों की गंभीरता को समझे बिना ही कह दिया कि ये तो मेरे दाहिनें हाथ का काम है। लिखने के लिए बस इतना सा ही जानना है क्या…। ये तो मैं आपसे फोन पर ही पूछ लेता। खैर, दादा अब आपने बता ही दिया है तो मैं आज ही से अपना विषय तलाशकर लिखना शुरु कर देता हूं। दादा ने कहा कि छोटे, मुझे विश्वास है तुम ये कर सकोगे। धीरे—धीरे समय बीत रहा था। सोमित बाबू दिनभर अपने लेखन में व्यस्त रहते और छोटे अपने काम में। हां, खाने की टेबल पर दोनों के बीच लेखन को लेकर बातचीत होती रहती। आज दो महीने हो गए। छोटे ने अपनी पहली कहानी सोमित बाबू को सुनाई। सोमित बाबू ने पूरी तसल्ली से कहानी सुनी। ये कहानी पूरी तरह से बिखरी हुई थी। न विषय की समझ थी, न शब्दों का चयन सही था, ना ही वाक्य ख़त्म होने की कोई सीमा..। कहीं ठहराव नहीं…कोई भाव नहीं और ना ही कहानी का कोई मकसद ही साफ था..। फिर भी सोमित बाबू ने छोटे को ये नहीं कहा कि तुम्हारी कहानी असल में बिखरे हुए शब्द हैं जिसे एक लड़ी में पिरोए बिना कहानी पूरी नहीं होगी। उन्होंने सोमित का मनोबल बढ़ाने के लिए कहा कि अच्छा प्रयास किया हैं तुमने। धीरे—धीरे ऐसे ही आगे बढ़ते रहो। अब से रोज़ाना ही छोटे हर नई कहानी के साथ खाने की टेबल पर सोमित बाबू को मिलता। सोमित बाबू भी खुश होते और उसकी कहानी को शब्दों में पिरोकर बेहतर बना देते। जिस दिन वे उसकी कहानी में सुधार नहीं करते वो नाराज़ हो जाता। ये सिलसिला छह महीने तक यूं ही चलता रहा। एक दिन छोटे ने शहर में हुए बलात्कार की घटना को कहानी का रुप दिया और उस लड़की का असली नाम व पता भी अपनी कहानी में दे दिया। सोमित बाबू ने जब कहानी पढ़ी तो वे खुद को रोक नहीं सके। और छोटे के लेखन पर चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि इस तरह के विषय पर संवेदनशीलता और पूरी जानकारी होने पर ही लिखना चाहिए। ये एक लड़की की अस्मिता और भावनाओं के सम्मान की बात है। ग़लत लेखन से उसके आत्माभिमान को ठेस पहुंच सकती हैं। इसके अलावा हमारे न्यायालय की ओर से भी इस तरह के गंभीर अपराधों में कुछ सख़्त आदेश है। जिनके बारे में सही जानकारी होना भी एक अच्छे लेखक के लिए ज़रुरी है। छोटे ने इस बात को गल़त तरीके से ले लिया और सोमित बाबू से उल्टा सवाल कर डाला। तो क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं हैं लेखन को। सोमित बाबू ने उसे समझाया कि अभिव्यक्ति का अर्थ ये कतई नहीं कि बिना तथ्यों की जानकारी और आधे अधूरे से ज्ञान के आधार पर कुछ भी लिख दिया जाए। एक अच्छा लेखन आधे से ज्ञान में नहीं हैं। छोटे ने बात को समझने की बजाय सोमित बाबू से दूरी बनाना अधिक ज़रुरी समझा। इसी वक़्त से वो सोमित बाबू से चिड़ने लगा। धीरे—धीरे उसके व्यवहार में भी तल्खी आने लगी थी। वो सोमित बाबू को भी झिड़कने लगा था अब वो अपना लिखा हुआ सोमित बाबू को पढ़वाता भी नहीं था। उसे लगने लगा था कि वो जो लिख रहा है वो सौ प्रतिशत सही है। उसमें एक अंहकार सा आने लगा। उसे लगने लगा कि वो एक लेखक बन चुका हैं और अब वो सोमित बाबू और उनके जैसे कई लेखकों को टक्कर दे सकता है। लेकिन सोमित बाबू को भी अब महसूस होने लगा था कि छोटे में लिखने का हुनर नहीं है। यदि उसे एक लेखक बनना है तो उसे सकारात्मक सोच के साथ लेखन को समझना होना। वक़्त बीत रहा था। छोटे का बुरा व्यवहार सोमित बाबू के साथ लगातार बढ़ रहा था। सोमित बाबू जो अपने सगे भाई की तरह छोटे को रखते थे अब उनका मन भी टूटने लगा था। एक दिन उन्होंने छोटे से पूछा कि ‘वाकई तुम मुझसे लेखन सीखने आए थे…’। छोटे ने तिलमिलाते हुए कहा कि ऐसा कुछ नहीं हैं…मुझे तो पहले से ही बहुत कुछ आता हैं सोचा कि आपके साथ रहूंगा तो कुछ नया सीख लूंगा। लेकिन आप तो मुझे ज्ञान देने लगे। मेरी कहानियों में नुस्ख निकालने लगे है…जबकि मेरे दोस्त लोगों के बीच मेरी कहानियां कितनी पसंद की जाती है…असल में आप मुझसे जलने लगे हैं…आपको डर हैं कहीं मैं आपसे आगे निकल गया तो…। और आपका सम्मान मुझे मिलने लगा तो…। छोटे ने अपना बैग उठाया और सोमित बाबू से कहा कि मैं भी अब लेखक बन गया हूं। अब आपके घर में रहने की मुझे कोई ज़रुरत नहीं है। मैं जा रहा हूं…और जाते—जाते कह देता हूं कि आपसे ज़्यादा समझ हैं मुझमें लेखन की…। सोमित बाबू चुपचाप बिना कुछ कहे सब सुनते रहे। उन्होंने छोटे को जाने से नहीं रोका…उसके जाने के बाद उनकी आंखें ज़रुर भर आई थी। छोटे को गए आज पूरे तीन साल हो गए हैं। इस बीच ना उसका कोई फोन आया ना ही उसकी कोई क़िताब मार्केट में आई। आज साहित्य मेला है। और सोमित बाबू की क़िताब को बेस्ट सेलर के रुप में खूब सराहा जा रहा है। उनके चारों तरफ भीड़ हैं। हर कोई उनकी लेखनी का कायल हुए जा रहा है। हर कोई उनके साथ खड़े होने पर गर्व महसूस कर रहा था। लेकिन मेले में एक शख़्स अकेला किसी कोने में बैठा हैं जिसके हाथ में सोमित बाबू की क़िताब हैं। वो इसका अंतिम पेज खोले हुए है और उसे सीने से लगाए हैं। जिस पर लिखा हैं— तुमने तो बस मुझे एक विषय दिया है। लेखक ताउम्र सीखता ही रहता है लेकिन कुछ लोग उसे वाकई ‘जिंदगी का फ़लसफ़ा’ सीखा जाते हैं। यह शख्स और कोई नहीं छोटे है। जो उस दिन तो जोश और घमंड से भरकर सोमित बाबू के घर से निकल गया था। लेकिन इन बीते सालों में जब उसकी लिखी रचनाएं सभी प्रकाशनों और पत्र—पत्रिकाओं से एक के बाद एक करके कटाक्ष भरी टिप्पणियों के साथ लौटाई जाने लगी तो उसे अहसास हुआ कि वाकई लेखन का कार्य बाएं हाथ का खेल नहीं। उसे दादा की वह बात याद आ गई जब उन्होंने कहा था कि ‘ लेखक बनते नहीं वो तो पैदा होते हैं। वाकई एक लेखक में जीवन के हर पहलू को लेकर गहरी समझ होनी ज़रुरी है। दादा की क़िताब के आखिरी पन्ने पर लिखी पंक्तियां उसे बहुत कुछ कह गई। आज छोटे को ना सिर्फ लेखन बल्कि ज़िंदगी का भी फ़लसफ़ा समझ में आ गया था। कहानियाँ – कचोरी का टुकड़ा… ‘मां’ की भावनाओं का ‘टोटल इन्वेस्टमेंट’ 7 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post ‘अर्थी’ का बोझ ही शेष…. next post 74 साल का ‘युवा भारत’ Related Posts छत्तीसगढ़ का भांचा राम August 29, 2024 विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 वैदेही माध्यमिक विद्यालय May 10, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 29, 2024 राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा January 22, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 21, 2024 समर्पण October 28, 2023 विंड चाइम्स September 18, 2023 रक्षाबंधन: दिल के रिश्ते ही हैं सच्चे रिश्ते August 30, 2023 गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव August 13, 2023 7 comments Dilkhush Bairagi August 8, 2020 - 8:09 am Nice Reply Unknown August 8, 2020 - 8:23 am Nice story Reply Unknown August 8, 2020 - 8:30 am Nice story Reply Teena Sharma 'Madhvi' August 9, 2020 - 11:13 am Thank-you Reply Teena Sharma 'Madhvi' August 9, 2020 - 11:13 am Thank-you Reply Teena Sharma 'Madhvi' August 9, 2020 - 11:13 am Thank-you Reply Unknown September 18, 2020 - 1:46 pm Completed it in one read… It was really good 😊😊 Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.