ज्वलंत मुद्ददेप्रकाशित लेख ज़िदगी का दुश्मन है नशा by Teena Sharma Madhvi June 26, 2020 written by Teena Sharma Madhvi June 26, 2020 राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘नशा मानव बुद्धि और शरीर के साथ—साथ उसकी आत्मा को भी नष्ट कर देता हैं।’ गांधी जी की ये बात वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जब इस वाक्य का जन्म हुआ होगा। दुनिया के तमाम देशों में नशे की ज़द में फंसे लोगों पर कई तरह के अध्ययन, शोध और रिपोर्ट्स तैयार हुई हैं। लेकिन नशे की लत से लोगों और खासकर युवा पीढ़ी को निकालने में आज भी समाज और सरकारों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यदि नशे की लत में फंसे लोगों की बात हो तो इसकी चपेट में आने वालों में सबसे बड़ा हिस्सा युवाओं का है। जो शराब, सिगरेट, तम्बाकू एवं ड्रग्स जैसे जानलेवा पदार्थों का सेवन कर रहा है। नशे की लत ने युवाओं को उस स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है कि वो इसे पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है और जब उसे ये मादक पदार्थ नहीं मिलता है तब वह जुर्म तक कर डालता है। आज ‘अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस’ हैं और ये दिन मादक पदार्थों से मुक़ाबले का प्रतीक बन गया है। इस अवसर पर मादक पदार्थों के उत्पादन, तस्करी एवं सेवन के दुष्परिणामों से लोगों को अवगत कराया जाता हैं, लेकिन सिर्फ इसी दिन नशे पर बात हो ये जरुरी नहीं हैं। इसके लिए रोजाना ही प्रयास करने होेंगे। क्योंकि अब दुनिया भर में नशे को एक महामारी के रुप में देखा जाने लगा है और ये महामारी महानगरोें से निकलकर छोटे शहरों और गांवों में भी फैलने लगी हैं। इससे एक संकेत ये भी मिलता है कि कहीं समाज में तो ऐसा अंतराल नहीं आ रहा हैं जिसकी कमी ये नशा पूरी कर रहा है। जो युवाओं को अपने बेहतर जीवन, आदतें और जरुरतों से दूर कर अपनी ओर खींच रहा है। ये गहराई से समझने और चिंतन करने की बात हैं। शायद नशे से बचने का उपाय हमारे घर और हमारी जड़ों में ही छुपा हो। बढ़ते नशे के प्रभाव को देखते हुए सवाल ये भी उठता है कि आखिर नशा करने के पीछे हकीकत है क्या? ऐसे में दुनियाभर के तमाम शोध और अध्ययन बताते हैं कि नशा एक धीमा जहर है जो व्यक्ति को धीरे धीरे मौत की आगोश में ले जाता है। इसकी कई सारी वजह हो सकती है। जैसे— शौक में किया हुआ नशा, दोस्तों के दबाव में लिया हुआ नशा, अवसाद में लिया हुआ नशा, एकाकीपन और तनाव में लिया हुआ नशा। शुरुआत में हर युवा और उस व्यक्ति को नशे की गुमनाम दुनिया रंगीन लगती हैं, लेकिन धीरे—धीरे जैसे ही वो इसके दलदल में फंसता हैं तो उसे इस दुनिया का स्याह अंधेरा दिखाई देने लगता है। तब तक ये नशा उसकी आदत बन जाता है और जब पता चलता है तब बहुत देर हो जाती है। लेकिन हमें यहां एक बात और समझनी होगी कि घर व परिवार यदि अपने बच्चों को प्यार देने के साथ ही साथ उन पर ये भी नजर रखें कि कहीं उनकी आदतों और दिनचर्या में किसी तरह का बदलाव तो नहीं हैं। तब प्राथमिक तौर पर ही उसे नशे की अंधेरी दुनिया में जाने से रोका जा सकता है। मनोवैैज्ञानिकों की मानें तो आज भी लोग नशे को एक शर्म का विषय मानते हैं। यदि उनके परिवार में कोई व्यक्ति इसकी चपेट में हैं तो वे इसी बात को छुपाने में लगे रहते हैं कहीं बाहर या समाज के लोगों को इसकी भनक नहीं लग जाए। और वे घर के भीतर ही उसकी हर बुरी आदत को बर्दाश्त करनेे में लग जाते है। लेकिन वे शर्म और चुप्पी तोड़कर समय पर ऐसे व्यक्ति का इलाज करवाए, उसे नशा मुक्ति पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराएं तो व्यक्ति की जान तक बच सकती है। परिवार को ऐसे समय सहयोग के लिए आगे आना होगा। आज के समय में फुटपाथ और रेल्वे प्लेटफार्म पर रहने वाले बच्चे भी नशे की चपेट में आ चुके हैं। जबकि राज्य सरकारें विभिन्न स्वयं सेवी संस्थाओं के माध्यम से अपने रेस्क्यू कैंपेन में नशा करने वाले बच्चों को पकड़ रही है। लेकिन आलम ये हैं कि सरकार के पास ऐसे बच्चों को आश्रय देने के लिए ‘नशा मुक्ति केंद्र’ ही नहीं है। और इस प्रवृत्ति के बच्चों को सामान्य निराश्रित बच्चों के साथ नहीं रखा जा सकता है। सवाल यहां पर ये भी अकसर उठता है आखिर क्यूं सरकार ऐसे केंद्र नहीं खोलती। क्यूं इन बच्चों को ऐसे ही छोड़ दिया जाता है? वहीं दूसरी तरफ हम समाज की ओर देखें तो आमतौर पर लोग सोचते हैं कि ये बच्चें कैसे नशा कर सकते है जिनके पास खाने के लिए भी पैसा नहीं है। लेकिन कई रिपोर्ट्स ये भी बताती है कि नशा करने के लिए सिर्फ मादक पदार्थो की ही जरुरत नहीं होती, बल्कि व्हाइटनर, नेल पॉलिश, पेट्रोल आदि की गंध, ब्रेड के साथ विक्स और झंडु बाम का सेवन करना, कुछ इस प्रकार के नशे भी किए जाते हैं, जो बेहद खतरनाक होते हैं। एक अनुमान के अनुसार 2016 में, विश्वभर में 15-64 आयु वर्ग के 275 मिलियन लोगों ने वर्ष भर में कम से कम एक बार मादक पदार्थों का उपयोग किया हैं। इस रिपोर्ट ने पूरे विश्व की नींद उड़ाई थी। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार 2015 में लगभग 4.5 लाख लोग नशे की लत के कारण अपनी जान से हाथ धो बैठे थे। इसके बाद ही से अब तक लगातार विश्व भर में इसे एक महामारी के तौर पर लेते हुए अपने—अपने स्तर पर कैंपेन चलाए जा रहे है। कहीं नुक्कड़ नाटक तो कहीं पर कार्यशालाएं और प्रशिक्षण देकर इसकी जानकारी और इससे बचने के उपायों पर काम हो रहा है। यदि राजस्थान की बात करें तो एनडीपीएस एक्ट के तहत पिछले तीन सालों में लगातार नशे के खिलाफ कार्रवाई में बढ़ोतरी हुई है। जहां 2017 में 1 हजार 596 मामले दर्ज हुए है वहीं 2018 में बढ़कर ये 1 हजार 862 हो गए जो 2019 में बढ़ते हुए 2 हजार 592 तक पहुंच गए। यह एक भयावह स्थिति है। मादक पदार्थों की लत में आए लोगों को शारीरिक, मानसिक व्याधियों, बीमारियों, असामयिक मृत्यु या शारीरिक दुर्बलता या अपंगता जैसी विषम स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ता हैं जो न सिर्फ परिवार की आर्थिक विपन्नता बढ़ाती हैं बल्कि सरकारी कोष पर भी बोझ बढ़ाती हैं और स्वास्थ्य चिकित्सा तंत्र के लिए गंभीर चुनौती प्रस्तुत करती हैं। इसके अलावा अभिभावकों और शिक्षकों को समझाया जाना चाहिए कि बच्चे को अलग-थलग करने से या उसे नीचा दिखाने से तो यह समस्या और बढ़ेगी। नशे की लत से मुक्त लोगों के पुनर्वास में लगी गैर सरकारी संस्थाओं को भी ऐसे व्यक्तियों से सहानुभूति रखते हुए उन्हें समाज का उपयोगी नागरिक बनने में सहायता करनी होगी। यदि मादक पदार्थों के असल नेटवर्क की बात करें तो ये गोआ से ओडिशा तक और पंजाब से केरल तक फैला हुआ हैं। वहीं विश्व इतिहास पर नजर डालें तो दूसरे देशों पर अधिकार प्राप्त करने के लिए वहां नशीले पौधों की खेती कराने तथा वहां के समाज में नशा करने वालों की तादाद बढ़ाने के भी कई उदाहरण मिलते हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों में नशीले पदार्थों की तस्करी के कारण इनके दुरुपयोग में बढ़ोतरी के साथ-साथ आतंकवाद और राजनीतिक अशांति की समस्याएं भी जुड़ जाती हैं। नशीले पदार्थों की लत की समस्या व्यक्ति, परिवार, और समाज के साथ ही साथ स्वास्थ्य, संस्कृति, विकास और राजनीति सहित अनेक क्षेत्रों को प्रभावित करती हैं। यह समस्या गरीबी को बढ़ावा देने के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा, देश के मानवीय संसाधनों और लोक-कल्याण के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। हमारे संविधान के अनुच्छेद 47 में भी ये प्रावधान किया गया है कि ‘राज्य मादक पेय और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक औषधियों के उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा।’ इस समस्या का सामना करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन तथा राष्ट्रीय अधिनियम एवं नीतियां लागू हैं। परंतु प्रभावी समाधान के लिए समाज और समुदायों की सक्रिय भागीदारी होना आवश्यक है। इस मामले में राजस्थान पुलिस के एडीजी (क्राइम) बीएल सोनी की मानें तो प्रदेश में मादक तस्करी लगातार बढ़ रही हैं। यह एक वाकई बहुत ही गंभीर और संवदेनशील विषय हैं क्योंकि हमारी युवा पीढ़ी इसकी गिरफ्त में आ रही है। युवा, जिसके हाथ में देश का भविष्य है वहीं नशे में बर्बाद हो रहा है। युवाओं की नई उम्र के जोश में युवा नशे के लिए कुछ भी कर सकता है। वह अपराध करने से भी नहीं चुकता हैं। नशा तस्करों के खिलाफ लगातार कार्रवाई की जा रही हैं। यदि आज हम इस दिवस की सार्थकता पर बात करें तो हमें इससे मुक्ति के उपायों पर विचार करना होगा। इन उपायों पर निरंतर काम करना होगा। फिर चाहे सरकार हो, स्वयं सेवी संस्थाएं हो, समाज या परिवार हो। सभी को मिलकर पहल करनी होगी। नशे की लत का उपचार एक बीमारी की तरह किया जाए। जिससे जल्द से जल्द उसे फिर से सामान्य व्यवहार में लाया जा सके। जो इस आदत के शिकार हैं उन्हें परामर्श, सहानुभूतिपूर्वक स्नेह से इस लत से बाहर निकाल कर समाज की मुख्य धारा में लाने की जरुरत है। युवाओं को नशे की आदत छोड़ने के लिए प्रेरित करने के लिए उनके पुनर्वास और पुर्नस्थापना की जरुरत हैं। इसके अलावा कॉरपोरेट सेक्टर को भी ऐसे व्यक्तियों को समाज के उपयोगी सदस्य के रूप में मुख्यधारा में वापस जोड़ने के लिए अपने सीएसआर फंड का प्रयोग ऐसी गतिविधियों में करने के लिए आगे आने की जरुरत है। इतना ही नहीं समाज को नशा मुक्त बनाने के लिए पंचायती राज संस्थाओं, शिक्षण संस्थानों, ग़ैर सरकारी संस्थाओं, कम्यूनिटी बेस्ड ऑर्गनाइजेशन्स, शोध संस्थानों, जागरूकता बढ़ाने में तत्पर संस्थाओं को भी व्यक्तिगत स्तर पर योगदान देने के लिए आगे आना होगा। युवाओं की प्रभावी नशामुक्ति के लिए उन्हे सार्थक रूप से रोजगार-युक्त बनाकर समाज के साथ जोड़ने की जरूरत है। नशीले पदार्थों के दुरुपयोग की समस्या को जागरूकता, रोकथाम की जानकारी, प्रोत्साहन, तथा समर्थन के प्रयासों से हल किया जा सकता है। 4 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post ‘मां’ की भावनाओं का ‘टोटल इन्वेस्टमेंट’ next post ‘झम्मक’ लड्डू Related Posts बांडी नदी को ओढ़ाई साड़ी August 3, 2024 मनु भाकर ने जीता कांस्य पदक July 28, 2024 नीमूचाणा किसान आंदोलन May 14, 2024 ‘मर्दो’ का नहीं ‘वीरों’ का है ये प्रदेश... 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