कहानियाँ तबड़क…तबड़क…तबड़क… by Teena Sharma Madhvi March 16, 2021 written by Teena Sharma Madhvi March 16, 2021 कहानी की दुनिया भी अजीब होती हैं। इस दुनिया में जीने वाले समुद्र की गहराई में गोते लगाते हैं तो कभी घोड़े पर सवार होकर हवा से बातें करते हैं। कभी मन के पंखों के सहारे उड़कर आसमां को छू लेते हैं तो कभी पाताल की अनंत गहराई की सैर पर निकल पड़ते हैं। ऐसा हो भी क्यूं न…? ये कहानी की दुनिया ही है जो इंसान को अपनी कल्पना में वो असीम खुशियां दे पाती हैं जिसे वो अपनी वास्तविक दुनिया में जी नहीं पाता। शायद तभी छोटा, बड़ा और बूढ़ा ‘कहानियों की काल्पनिक’ दुनिया को बेहद पसंद करता हैं। पसंद ही नहीं बल्कि कहानी के पात्रों को कई बार खुली आंखों से जी भी लेता हैं। जैसे कि कमली जी रही हैं। उसे आज भी लगता है कि उसके जीवन में कहानी वाला ‘राजकुमार’ आएगा और उसे ‘चमकीली जूतियां’ पहनाएगा…। उसे आज भी ये लगता है कि, वो उस राजकुमार का हाथ पकड़कर उसके जादुई घोड़े पर बैठकर उड़ जाएगी…। पचास साल की हो चुकी कमली की आंखों में अपने इस राजकुमार का बेसब्र इंतज़ार अब भी वैसा ही हैं जैसा कि कहानी में राजकुमारी करती हैं…। बचपन में सुनी इस कहानी ने उसके मन पर ऐसा प्रभाव डाला कि वो आज तक ख़ुद को इससे बाहर नहीं निकाल सकी। अकसर इसी बात को लेकर पति से भी उसका झगड़ा हो जाता हैं। पति कहता हैं कि मैं ही तुम्हारा राजकुमार हूं…। अब कोई न आएगा…। वैसे भी अब तुम ‘बूढ़िया’ भी तो गई हो..अब कौन तुम्हेें देखकर आहें भरेगा…। मान लो, जो हूं सो मैं ही हूं…। कमली कहती, तुम राजकुमार नहीं हो…। उसकी ये बात साधारण न थी। इसी बात में कई बार उसका दर्द निकल पड़ता और वो अपने पति से कह बैठती, क्या तुम मेरे लिए कभी चमकीली जूतियां लाए हो…? क्या तुमने मेरी तरफ हाथ बढ़ाते हुए मुझे थामा है…? क्या राजकुमार की तरह तुमने मेरे माथे को चूमा हैं…? पति उसकी ये बातें सुनकर एकदम शांत हो जाता। लेकिन कुछ ही देेर में कहता, मैं एक साधारण सा आदमी हूं जिसे गृहस्थी चलानी हैं…तुम्हारी इन फालतू बातों के लिए समय नहीं हैं मेरे पास। कमली ये बात सुनते ही भड़क जाती और कह बैठती। तभी तो तुम मेरे ‘राजकुमार’ नहीं हो…। यदि तुम होते तो सारे कामों के बीच भी तुम्हें मेरा ही ख्याल अधिक रहता…। तुम्हें पता होता कि ‘मैं’ क्या खाना पसंद करती हूं, क्या पहनना अच्छा लगता हैं मुझे…कौन—सा रंग मुझे बेहद आकर्षित करता हैं…कौन—सी जगह घूमने की ख्वाहिश हैं मेरी…? पति हर बार की तरह ये सुनते ही बरामदे में आकर बैठ जाता और टीवी देेखने लगता। और कमली फिर रसोई में जाकर कुड़ती रहती। बर्तनों पर उसका गुस्सा निकलता। ये सिलसिला तो पिछले पच्चीस बरस से ऐसे ही चल रहा हैं। कमली को शादी के वक़्त ये लग रहा था कि उसके जीवन में भी राजकुमार आ गया हैं। लेकिन धीरे—धीरे उसे ये महसूस होने लगा कि वो उसका राजकुमार नहीं हैं बल्कि एक ऐसा इंसान हैं जिसके जीवन में या तो वो ख़ुद हैं या फिर उसके दोस्त। जिनके साथ बतियाते हुए वो घंटों बिता देता है। एक बात और थी जिसका ख्याल भी उसे बखूबी रहता। वो था उसका परिवार और रिश्तेदार। कुछ भी हो जाए लेकिन इन्हें निभाने के लिए भी वो हर वक्त तैयार रहता। उसके पास यदि थोड़ा बहुत वक़्त किसी कारण से बच जाता तो वो कमली के साथ बैठ जाता। लेकिन ये वक़्त कमली के हिस्से बहुत कम ही आता था। इसीलिए वो भी अब इसकी आदि हो चली थी। कमली के एक बेटा और एक बेटी हैं। जो अपनी—अपनी ज़िंदगी में ख़ुश हैं। वक़्त के साथ—साथ कमली ने भी अपने सपनों के राजकुमार के साथ जीना सीख लिया था। वो जब भी अकेली होती तब दरवाज़े की ओर टकटकी लगाए रहती। इस उम्मीद में कि उसका राजकुमार ज़रुर आएगा…। एक दिन इसी ख़याल में वो खोई हुई थी…तभी उसे घोड़े के पैरों की आवाज़ सुनाई दी। तबड़क…तबड़क…तबड़क…। वह उठ खड़ी हुई और दरवाज़े की ओर दौड़ी..। उसके सामने घोड़े पर बैठा राजकुमार हैं…। आंखों को छुपाती हुई बड़ी सी कैप…लंबे जूते और हाथों में संभली लगाम…। येे देेखकर कमली को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ…वह एकदम चुप्प हुए खड़ी रही…। तभी राजकुमार घोड़े से उतरा, ज़मीन पर घुटनों के बल बैठा और अपना एक हाथ कमली की ओर बढ़ाते हुए बोला…। ‘क्या तुम मेरी राजकुमारी बनना पसंद करोगी’…? कमली जो अब तक चुप्प थी…। उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे। राजकुमार ने उन आंसूओें को अपनी हथेली पर लिया और उन्हें मुट्ठी में छुपाकर रख लिया। कमली ने राजकुमार का हाथ थामा और बहुत ही खुशी के साथ कह दिया…’मेरे राजकुमार मैं तो तुम्हारी ही हूं..। बस तुमने आने में देेरी कर दी’। राजकुमार ने उसके माथे को चूमा और फिर उसके पैरों में अपने हाथों से चमकीली जूतियां पहनाई। कमली की जैसे आज दुनिया ही बदल गई थी। वो हवाओं से बातें करने लगी…आज उसके इस सपने को पंख लग गए हो जैसे। राजकुमार ने अपनी कैप निकालकर कमली के सर पर रख दी..। कमली ने उसके चेहरे को बहुत ही प्यार से छूआ। ये चेहरा कमली के लिए अनजान न था, बस आज उसके ‘अहसासों’ में उतर आया था, जो उसका पति ही था। उसने कमली को अपने गले से लगाया और कहा कि, मुझे सच में तुम्हारी दुनिया में आने में वक़्त लग गया…लेकिन मुझे आज ही समझ आया कि ‘राजकुमार’ असल दुनिया में होता कैसा हैं…। कमली की खुशी का ठिकाना न रहा…उसके बचपन की कहानी आज उसके जीवन में साकार हो गई थी। एक ऐसा राजकुमार अब उसे मिल गया था जो उसे न सिर्फ प्यार करता हैं बल्कि उसके हर सुख और दु:ख में उसके साथ खड़ा होता हैं….। आज उसका इंतज़ार ख़त्म हो गया…। कुछ और कहानियां— महिला के बिना अधूरा ग़ज़ल फ़लक प्रेम का ‘वर्ग’ संघर्ष आख़िरी ख़त प्यार के नाम 1 comment 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post महिलाओं के बिना अधूरा ग़ज़ल ‘फलक’ next post ‘नाटक’ जारी है… Related Posts छत्तीसगढ़ का भांचा राम August 29, 2024 विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 वैदेही माध्यमिक विद्यालय May 10, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 29, 2024 राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा January 22, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 21, 2024 समर्पण October 28, 2023 विंड चाइम्स September 18, 2023 रक्षाबंधन: दिल के रिश्ते ही हैं सच्चे रिश्ते August 30, 2023 गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव August 13, 2023 1 comment "बातशाला" - Kahani ka kona "बातशाला" May 2, 2022 - 12:25 pm […] तबड़क…तबड़क…तबड़क… […] Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.