कहानियाँ बेबसी की ‘लकीरें’… by Teena Sharma Madhvi November 2, 2020 written by Teena Sharma Madhvi November 2, 2020 हरि और उसकी पत्नी अपने चार साल के बेटे के साथ पुश्तैनी गांव में रह रहे थे। लेकिन गांव में रोजगार कुछ था नहीं। जैसे तैसे छोटा—मोटा काम करके गुजर बसर हो रही थी। हरि और उसके परिवार को कई बार एक वक़्त का भोजन भी मुश्किल से ही मिल पाता। लेकिन बिना पैसो के आख़िर कब तक हरि अपने परिवार को पालता। धीरे—धीरे समय बीत रहा था और हरि की चिंता भी बढ़ रही थी। उसे और उसकी पत्नी को अपने बेटे मुन्ने की चिंता अधिक सता रही थी। उस मासूम को कब तक भरपेट भोजन नहीं देते। एक दिन गांव के ही लेखू ने हरि को बताया कि शहर में बिना पढ़े लिखे लोगों के लिए भी काम होता हैं। वो भी पैसा कमाने के लिए शहर जा रहा हैं। उसे वहां पर वॉचमैन की नौकरी मिल गई हैं। हरि ने उसकी बात सुनी तो उसे भी विश्वास जागा और उसने भी लेखू के साथ शहर जाने का फैसला कर लिया। घर आकर हरि ने अपनी पत्नी से शहर जाने की बात कही। लेकिन उसकी पत्नी इस बात के लिए राज़ी नहीं हुई। हरि ने उसे बेहद तसल्ली से समझाया कि बिना पैसों के कब तक वो यूं ही गांव में फिरता रहेगा। यहां पर ऐसा कोई काम नहीं जिससे रोज़ाना उसकी कमाई हो सके। जिन लोगों के पास खेती हैं, ज़मीन हैं वो ही इस गांव में रहकर जी सकते हैं। लेकिन हम जैसे फांकामार गरीबों के पास पेट भरने जितनी कमाई भी नहीं हैं। ऐसे में गुज़र बसर कैसे होगी….। शुरु में तो उसकी पत्नी ना नकुर करती रही। लेकिन पेट पालने की मजबूरी के आगे वो भी बेबस थी। इसीलिए वो दिल पर पत्थर रखकर राज़ी हो गई। घर छोड़ने से पहले हरि ने अपनी पत्नी से कहा कि वो शहर से पैसा कमाकर लाएगा तो घर चलाना आसान होगा। उसे रोज़—रोज़ चूल्हा जलाने से पहले ये नहीं सोचना पड़ेगा कि वो आज क्या बनाएं..। घर में ढेर सारा अनाज होगा…मुन्ने को पिलाने के लिए दूध होगा….। हरि की पत्नी गोद में अपने बेटे को उठाए हुए, भरी हुई आंखों से सिर्फ गर्दन हिलाती हैं। हरि अपने बेटे का माथा चूमकर लेखू के साथ शहर की ओर चल देता हैं। शहर पहुंचकर लेखू के साथ ही साथ उसे भी एक फ्लेट सोसाइटी में वॉचमैन की नौकरी मिल गई। हरि नौकरी पाकर बेहद खुश हुआ। धीरे—धीरे वो सोसाइटी के लोगों और उनकी दिनचर्या के हिसाब से ढलने लगा था। जैसे ही एक महीना पूरा होता उसे अपनी पगार मिल जाती। जब भी उसे सोसाइटी से छुट्टी मिलती तब वह अपने गांव पत्नी—बच्चे के पास मिलने चला जाता। एक—दो दिन उनके साथ रहता और फिर काम पर लौट आता। जिस वक़्त गांव नहीं जा पाता तब अपने दोस्त लेखू के साथ पैसा भिजवा देता। अब उसके परिवार का पालन—पोषण ठीक से होने लगा। हरि इतना कमाने लगा था जिससे घर में अनाज, दालें, सब्जियां और दूध आने लगा। भरपेट भोजन मिलने से हरि और उसका परिवार एक खुशहाल जीवन जीने लगा था। हरि की सबसे बड़ी ज़रुरत भी यही थी। एक दिन उसके बच्चे की तबीयत बिगड़ गई तब उसे गांव के ही अस्पताल में भर्ती कराया गया। हरि छुट्टी लेकर गांव अपने बच्चे की तबीयत जानने पहुंचा। डॉक्टर ने हरि को बताया कि बच्चे को पीलिया हुआ है लेकिन पीलिया बिगड़ने की वजह से उसकी हालत बिगड़ गई हैं। इसीलिए उसे शहर ले जाना होगा। अपने बच्चे की बिगड़ती हालत देखकर हरि उसे शहर के अस्पताल ले आया और उसे भर्ती करा दिया। वॉचमैन की नौकरी करने के बाद हरि का जीवन इतना ही बेहतर हुआ था जिससे उसका और उसके परिवार का पेट भर सके। लेकिन अस्पताल का खर्च उठाने के लिए उसके पास कोई जमा पूंजी नहीं थी। हरि की पत्नी ने हर महीने भेजे रुपयों में से डेढ़ हजार रुपए जमा कर रखे थे। ये रुपए भी अब अस्पताल में खर्च हो चुके थे। हरि को रुपयों की चिंता सताने लगी थी। वह लेखू से भी कुछ रुपयों की व्यवस्था करने को बोलता हैं। लेकिन वह भी एक हजार रुपए की ही मदद कर पाया। हरि को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह इस स्थिति में किससे उधार मांगे…। लेखू उसे कहता है कि वह अपनी सोसाइटी के लोगों से मदद मांगे। वे उसकी मदद ज़रुर करेंगे। लेखू की बात सुनकर हरि को थोड़ी हिम्मत बंधती हैं। वह पत्नी को अस्पताल में मुन्ने के पास छोड़कर रुपयों की व्यवस्था करके आने का बोलकर निकल जाता हैं। सोसाइटी पहुंचकर वह अपना काम संभाल लेता हैं। वह सोसाइटी के हर व्यक्ति के बारे में सोचता है। उसका दिमाग इसी उधेड़बुन में लग जाता है कि वह किससे रुपयों की मदद मांग सकता है और कौन उसकी मदद कर सकता हैं…। इसी सोच में वह आधा दिन बिताता देता हैं। लेकिन किसी से भी रुपए मांगने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। जैसे—जैसे समय बीत रहा था और उसके चेहरे पर भी चिंता की लकीरें बढ़ रही थी। तभी उसके पास लेखू का फोन आया। लेखू ने उससे पूछा कि रुपयों की व्यवस्था हो गई क्या…? हरि ने उसे अपनी अवस्था के बारे में बताया। लेखू ने कहा कि अस्पताल पहुंचना है शाम होने को हैं जल्दी ही कोई फैसला कर। फोन रखने के बाद हरि ख़ुद में हिम्मत भरता हैं। उसकी आंखों के सामने अपने बेटे का चेहरा हैं…। वह सोसाइटी के पहले फ्लोर से रुपया मांगना शुरु करता हैं। फ्लेट की घंटी बजाता हैं और अपने बच्चे के बारे में बताता हैं। फ्लेट का मालिक उसकी मदद न कर पाने की मजबूरी बताकर दरवाजा बंद कर लेता हैं। वह दूसरे फ्लेट की घंटी बजाता हैं और फिर अपने बच्चे के बारे में बताता हैं। फ्लेट मालिक उसे सौ रुपए देकर इतनी ही मदद कर पाने को कहता हैं। हरि सौ रुपए हाथ में लिए फिर अगले फ्लेट की घंटी बजाता हैं। लेकिन उसे निराशा ही मिलती हैं। हरि ने एक के बाद एक फ्लेट में जाकर अपने बेटे की तबीयत के बारे में बताया लेकिन उसे कहीं से भी संतोषजनक राशि नहीं मिल सकी। जो उसके बच्चे के इलाज में काम आ सकती। उधर, फ्लेट में रहने वाले कुछ लोग उल्टा उससे गुस्सा हो गए। ड्यूटी के वक़्त उसका यूं रुपए मांगने के लिए चले आना फ्लेट वालों को पसंद नहीं आया इसीलिए सोसाइटी में उसकी शिकायतें भी होने लगी। उसे फौरन मेनगेट पर बुलाया गया। थक हारकर हरि वापस मेन गेट के पास आकर खड़ा हो गया। शाम ढल रही थी। कुछ लोग अपना काम ख़त्म कर घर लौट रहे थे। उसने सोसाइटी के अंदर आने वाली हर गाड़ी में बैठे मालिक के आगे हाथ जोड़े और अपने बेटे के इलाज के लिए रुपए मांगे। कुछ ने कहा कि देखते हैं तो कुछ ने उसे ये कहकर फटकार लगा दी कि अंदर तो आने दो…गेट पर आते ही शुरु हो गए…। वह आज किसी की भी दुत्कार पर नाराज़ नहीं था। उसका दिल रो रहा था। लेकिन उसे सिर्फ रुपए चाहिए थे। इसीलिए वो सिर्फ सबकी सुन रहा था। समय बढ़ रहा था लेकिन रुपयों की व्यवस्था अब भी नहीं हुई। अभी तक वो डेढ़ हजार रुपए ही इकट्ठे कर पाया था। जबकि उसे कम से कम दस हजार रुपयों की ज़रुरत थी। वह जमा रुपयों को मुट्ठी में भींचकर और उसे अपने माथे से लगाकर आंखों में आंसूओं को रोके ज़मीन पर बैठ गया। हरि ने सोसाइटी के सभी फ्लेट्स को नीचे से ऊपर-तक देखा। वह सोचने लगा कि सोसाइटी में रहने वाला हर आदमी कम से कम एक लाख रुपया महीने कमा रहा हैैं। कोई डॉक्टर है…कोई इंजीनियर है और कोई बिजनेसमेन लेकिन इनके पास छोटे आदमी की तकलीफ और मजबूरी को सुनने और समझने का वक़्त नहीं…यहां रहने वाला आदमी लग्ज़री जीवन के बीच जी रहा हैं…फिर भी अपनी जेब से सौ रुपए निकालकर देने वाला मन नहीं….। किसी ने भी उसके दर्द को महसूस नहीं किया…। जिसने थोड़ा बहुत समझा कुछ रुपए दे दिए…। हरि सोचने लगा कि कुछ लोगों को ये ख़्याल तो था कि वो उनसे पैसे मांगने आया है लेकिन गेट पर कौन खड़ा है…? इसी बात से उस पर नाराज़गी जता दी।लेकिन किसी ने भी ये नहीं पूछा कि तुम यहां काम कर रहे हो तो तुम्हारें बच्चे के पास कौन हैं…? हरि सोचने लगा कि जब वो पैसा मांगने लोगों के पास गया तो कुछ लोगों ने सोसाइटी में उसकी शिकायत कर दी और उसे नौकरी से हटाने तक की बात कह डाली लेकिन किसी ने भी उसकी मदद करने के लिए एक—दूसरे से बात नहीं की…? आज हरि इंसान और इंसानियत के बीच की उस लकीर को महसूस कर रहा था जो ‘पैसों की लकीर’ हैं। उधर हरि की पत्नी अस्पताल में उसका बेसब्री से इंतजार कर रही थी। बिना पैसों के मुन्ने के लिए दवाएं नहीं आई उसका इलाज शुरु नहीं हुआ…। हरि बेहद निराश था…। वह अस्पताल नहीं लौटा…। लेखू ने रात होने पर हरि को फोन किया और फिर उससे रुपयों के बारे में पूछा। हरि ने लेखू से कहा कि वह सुबह आकर उससे रुपया ले जाए…। लेखू ने आगे कुछ नहीं पूछा और ये कहकर फोन रख दिया कि ठीक है मैं कल सुबह आता हूं। हरि अपने बच्चे मुन्ने और पत्नी को बेहद याद कर रहा हैं। वह सोचता है कि अपनो से दूर भी कोई जीना हैं…। पापी पेट को पालने की मजबूरी ना होती तो वो कभी—भी अपने गांव को छोड़कर इस शहर नहीं आता…। धीरे—धीरे रात बितने लगी और सुबह होने लगी। सोसाइटी के लोग भी उठने लगे। कोई मॉर्निंग वॉक करने लगा तो कोई शुद्ध हवा लेने के लिए गार्डन में आकर बैठ गया। यहां के लोगों के लिए ये सामान्य दिनचर्या थी। लेकिन रोज़ाना की तरह आज एक बात नहीं हुई थी। आज मेनगेट अभी तक नहीं खुला था। गार्ड रुम में फोन की घंटी पर घंटी बज रही थी…। न्यूज़ पेपर वाला भी गेट के बाहर खड़ा था…जब गेट नहीं खुला तो वो भी न्यूज़ के बंडल बनाकर गेट के ऊपर से ही फेंक कर चला गया। सोसाइटी के लोगों ने ख़ुद मेनगेट खोला और गार्ड रुम का दरवाज़ा खटखटाया। लेकिन गेट नहीं खुला। धीरे—धीरे सोसाइटी में ये बात फेलने लगी कि हरि आज घोड़े बेचकर सो गया हैं। वो गार्ड रुम का दरवाज़ा नहीं खोल रहा हैं। कुछ लोग इस बात से परेशान हो रहे थे कि उनके फ्लेट में पानी नहीं आ रहा था। क्योंकि सुबह सबके जागने से पहले हरि पानी की मोटर चालू करता हैं लेकिन आज मोटर चालू नहीं हुई। तरह—तरह की बातें हरि के लिए होने लगी…। ऐसे नाकारा लोगों को तो काम पर रखना ही नहीं चाहिए…कुछ कह रहे थे..पैसा दे दो इन्हें बस… काम मत करवाओ…। फोन की घंटी पर घंटी बज रही थी…और उधर, गेट पर गाड़ियों का हॉर्न…। लेकिन हरि का अता पता नहीं था…। सोसाइटी का सारा काम हरि के बगैर अटक गया था। सभी की रुटीन लाइफ एकदम गड़बड़ा गई। काफी देर तक जब गार्ड रुम नहीं खुला तब सोसाइटी ने दरवाज़ा तोड़ने का फैसला लिया और दरवाज़ा तोड़ दिया। लोगों ने देखा कि हरि टेबल पर सिर रखकर सो रहा हैं…उसकी मुट्ठी में रुपए हैं…जिसे उसने कसकर पकड़ रखा हैं…। उसे जगाने की कोशिश की गई…उसे खूब आवाजें लगाई…हरि..हरि…। लेकिन वह नहीं उठा। थोड़ी ही देर में वहां लेखू भी आ पहुंचा। हरि को देखकर लेखू का दिल भर आया…। वह भी उसे हरि…हरि कहकर जगाता रहा…वह बोलता रहा हरि तेरी पत्नी और मुन्ना तेरी राह देख रहे हैं…उठ जा…। लेकिन हरि नहीं जागा। लेखू जोरों से रो रहा था…सोसाइटी के लोगों की आंखों में भी हरि के लिए आंसू थे। सभी को अब बेहद अफसोस हो रहा था। उन्हें ये बात अब खाए जा रही थी कि काश वे हरि की मजबूरी को समझ पाते…। वे हरि की तकलीफ को समझते…उसे एक—दूसरे से साझा करते और उसकी मदद करते तो शायद उसे पैसा न मिल पाने का यूं सदमा नहीं लगता। सभी खुद से बेहद शर्मिंदा थे आज…। उनकी एक छोटी सी मदद हरि के जीवन के लिए कितनी बड़ी मदद थी…। हरि तो हमेशा के लिए सो गया था लेकिन उसके पीछे अब भी बेबसी के दो चेहरे रह गए थे। उसकी पत्नी जो बेसब्र आंखों से उसकी राह देख रही थी..दूसरा उसका बेटा जो इलाज को तरस रहा था। हरि इंसानियत के नाम एक सवाल छोड़ गया…। क्या वाकई पैसों की लकीर ‘मजबूरी, बेबसी और लाचारी’ नहीं देखती? कुछ और कहानियाँ – चिट्ठी का प्यार ‘भगत बा’ की ट्रिंग—ट्रिंग आख़री ख़त प्यार के नाम 3 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post चिट्ठी का प्यार next post वर्चुअल दुनिया में महिलाएं असुरक्षित Related Posts छत्तीसगढ़ का भांचा राम August 29, 2024 विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 वैदेही माध्यमिक विद्यालय May 10, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 29, 2024 राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा January 22, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 21, 2024 समर्पण October 28, 2023 विंड चाइम्स September 18, 2023 रक्षाबंधन: दिल के रिश्ते ही हैं सच्चे रिश्ते August 30, 2023 गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव August 13, 2023 3 comments Usha November 8, 2020 - 6:32 am यह सत्य है गरीब इंसान बीमारी में इतना मजबूर हो जाता है कि उसे अपनों की या खुद की जान से हाथ धोना पड़ता है काश अमीर इतने बेदर्द ना हो Reply Teena Sharma 'Madhvi' November 8, 2020 - 8:07 am Bilkul sahi kah rahe he aap 🙏 Reply Vaidehi-वैदेही November 24, 2020 - 6:26 pm हर बार की तरह एक नई थीम Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.