कहानियाँस्त्री विमर्श ‘मां’ की भावनाओं का ‘टोटल इन्वेस्टमेंट’ by Teena Sharma Madhvi June 25, 2020 written by Teena Sharma Madhvi June 25, 2020 ‘कहानी का कोना’ में आज प्रस्तुत हैं कहानी—‘मां की भावनाओं का टोटल इन्वेस्टमेंट’…। ये कहानी उन सभी माओं को समर्पित हैं जो अपना नहीं बल्कि दिन—रात अपने बच्चों व घर—परिवार की ज़रुरतों का ख़्याल रखती हैं…ये कहानी उन माओं की हैं जिनके कपड़ों से मसालों की बदबू तो सूंघाई देती हैं लेकिन दिनभर बिना किसी खींज के किए गए उसके कामों की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता…। ‘मां’ की भावनाओं का ‘टोटल इन्वेस्टमेंट’ हर सुबह की तरह आज की सुबह न थी। आज ना तो सूरज की किरणें घर के भीतर झांक रही थी और ना ही धूपबत्ती की खुशबू से घर महक रहा था। चारों तरफ एक अजीब से ख़ामोशी थी जो किसी की कमी होने का अहसास करा रही थी। सोहन की जब नींद खुली तो वह चौंक गया ये सब देखकर। सुबह के आठ बज चुके हैं लेकिन अभी तक घर में इतनी शांति क्यूं है। वह खिड़की से पर्दा हटाता है तब उसे सुबह की रोशनी दिखाई देती है। वह अपनी पत्नी रेणु को नींद से जगाता है। और कमरे से बाहर आता है। आज रसोईघर में ना तो बर्तनों की आवाज़ आ रही हैं और ना ही बाबूजी अख़बार पढ़ रहे है। वह पूरे घर के पर्दे खोलता है। और मां—बाबूजी के कमरे का दरवाजा खटखटाता है। बाबूजी दरवाजा खोलते हैं वे भी हैरान है कि आज उनकी नींद क्यूं नहीं खुली। वे देखते हैं कि आज सोहन की मां रेवती भी अभी तक सो रही है। वे भी सोच में पड़ जाते हैं कि सालों से सबसे पहले उठने वाली उनकी पत्नी रेवती आज इतनी देर तक क्यूं सो रही हैं। वे उसे जगाते हैं। रेवती उठती हैं लेकिन वह बहुत थकान महसूस कर रही थी। उसने कहा कि उसकी तबीयत कुछ ठीेक नहीं हैं इसीलिए वो दवा लेकर आज आराम ही करेगी। बाबूजी और सोहन का चेहरा उतर जाता है। वे रेवती से उसकी तबीयत पूछने की बजाय उससे उल्टा सवाल करते हैं कि, फिर सुबह की चाय कौन बनाएगा। रेवती हंसते हुए कहती है कि आज आप लोग बना लो और मेरे लिए भी एक कप चाय ले आओ..। टीना शर्मा ‘माधवी’ सोहन ये कहते हुए चला जाता है कि मां मुझसे नहीं बनेंगी चाय मैं रेणु को या भाभी को बोलता हूं। और बाबूजी कहते है कि जबसे तुमसे शादी हुई हैं मैंने तो कभी एक ग्लास पानी लेकर भी नहीं पिया फिर चाय बनाना तो दूर की बात है। उधर, दोनों बहूओं को भी ऑफिस जाने की तैयारी करना है। लेकिन इससे पहले सबकी चाय, नाश्ता और फिर टिफिन तैयार करना है। दोनों बेहद उदास हो गई है। आज का दिन बिना रेवती के सभी पर बेहद भारी रहा। ना तो समय पर किसी को चाय पीने को मिली ना ही नाश्ता और ना ही खाना। उस पर ऑफिस के लिए भी देरी हो गई। वहीं बाबूजी जो सुबह उठने से लेकर अख़बार पढ़ने तक के बीच दो कप चाय पी लेते थे आज उन्हें एक कप चाय मिली वो भी नापसंद की। शाम को जब बेटे—बहू ऑफिस से घर आए तो फिर एक कप चाय को तरस गए…। ख़ुद ही बनाकर पी..। उधर बाबूजी को जैसे ही रसोई घर से बर्तनों की आवाज़ आती तो वे भी चाय की फरमाइश कर देते। डिनर में भी आज आधी अधूरी थाली थी। बस एक सब्जी और चपाती। जबकि रेवती सभी की पसंद को ध्यान में रखकर ही खाना बनाती थी। जैसे—तैसे सभी ने आज का दिन निकाला। लेकिन अगले दिन सुबह और फिर पूरे सप्ताह ये ही सिलसिला चला…पूरा घर डिस्टर्ब हो गया था। रेवती भी जल्दी ठीक होना चाहती थी। लेकिन इसी बीच उसने महसूस किया कि घर वालों का व्यवहार उसके प्रति अपनेपन जैसा नहीं रहा। हर कोई उससे चेहरे पर बनावट लिए मिलने आता लेकिन उसकी जरुरत का ख़्याल किसी को न था। बहूएं कहती कि इतना कितना काम करती हैं ये, जो इतना आराम कर रही है। अब हम ऑफिस का काम करें या घर संभालें…वहीं बेटे कहते कि मां दवाई लेकर जल्दी ठीक क्यूं नहीं हो जाती…ऐसे कब तक वे आराम करती रहेंगी…। तो बाबूजी का अपना अलग ही राग था..वे रेवती को भावनात्मक सहारा देने की बजाय उससे चिड़ते रहते। कहते कि इस तरह पड़े रहने से तुम्हारी थकान दूर नहीं होगी…बल्कि शरीर और जाम हो जाएगा। घर के सभी लोग ये उम्मीद लगाए बैठे थे कि जल्दी से रेवती घर को पहले की तरह संभाल लें और उनकी दिनचर्या पहले की तरह खुशनुमा हो जाए। रेवती ने इन सात दिनों में पहली बार ये महसूस किया कि वो इन सबके लिए एक जीती जागती मशीन से ज्यादा कुछ नहीं है। किसी को भी उसकी शारीरिक थकान नज़र नहीं आई। वह दिन रात इन सभी के जीवन को सहज बनाती रही लेकिन आज जब उसे कुछ पल सहजता के चाहिए तब सभी लोग परेशान हो उठे। सभी को सिर्फ अपने काम बिगड़ने का अहसास हो रहा है लेकिन मां की बिगड़ रही हालत नहीं दिखती। वो बहुत दु:खी होती हैं लेकिन कौन था यहां जो उसे सहजता का अनुभव कराता…वो अपनी मन:स्थिति को किससे साझा करती..। रेवती के पति खुद सिर्फ अपने बच्चों के बाबूजी बनकर जी रहे हैं उन्हें भी अपनी पत्नी की थकान का अनुभव न था। रेवती अब घर के काम पर लौटना नहीं चाहती थी। एक दिन उसने सभी को अपने पास बुलाया और कहा कि वो ‘रिटायरमेंट’ चाहती है। उसकी बात सुनकर सभी लोग हंस पड़े। सोहन ने कहा कि ‘मां’ भला ये क्या बात हुई। बाबूजी भी बीच में हंसते हुए बोले कि तेरी मां पर बुढ़ापे का असर हो रहा है। तभी रेवती ने गंभीर शब्दों में कहा कि ये सच है कि अब में घर के काम पर लौटना नहीं चाहती हूंं। मुझे भी आराम की ज़रुरत है। सरकार भी तो साठ बरस में रिटायरमेंट देती है फिर मैं घर से रिटायरमेंट चाहती हूं तो इसमें कौन सी बड़ी बात है। तभी बेटे झल्लाकर बोलते हैं..तो आराम भी करो मां लेकिन घर आप नहीं संभालोगी तो कौन देखेगा। फिर झाडू पोंछे वाली बाई तो आती है ना…। तुम तो जानती हो कि दोनों बहूएं भी नौकरी पर जाती है। और आठ घंटे की नौकरी करने के बाद ये दोनों घर का काम कैसे कर सकती हैं। कितनी थक जाती हैं दोनों। अहसास भी हैं तुम्हें…। रेवती कहती हैं…मैं भी दिनभर बहुत थक जाती हूं…और मेरे काम के घंटे भी तय नहीं है। तभी बाबूजी गुस्से में रेवती को फटकारते हैं। तुम्हारा दिमाग तो ठीेक हैं ना…। घर के काम के भी कोई घंटे तय होते हैं क्या…। और फिर घर का काम ऑफिस के काम से तो ज्यादा नहीं होता। तभी दोनों बहू भी बोल पड़ती हैं मां आप क्या जानों नौकरी करना कितना मुश्किल हैं, कितना कॉम्पीटिशन हैं बाहर..। रेवती कहती है कि बिल्कुल नौकरी में कॉम्पीटिशन है लेकिन घर का कॉम्पीटिशन भी तो बढ़ गया है। पहले सिर्फ मैं थी फिर शादी हुई तो तुम लोगों के बाबूजी जुड़ गए..फिर बड़ा बेटा..फिर छोटा बेटा..फिर बड़ी बहू और फिर छोटी बहू…। मेरा भी तो काम बढ़ गया है…। रेवती की बात से नाराज़ होकर दोनों बेटे और बहू उसके कमरे से बाहर आ जाते है। और बड़—बड़ करने लगते है। तभी बाबूजी रेवती को कहते हैं कि तुम्हें ये क्या सूझी..। घर का काम कौन—सी औरत नहीं करती। और फिर इस उम्र में तुम्हारा समय भी तो कट जाता है। इस उम्र में ऐसी ज़िद तुम्हें शोभा नहीं देती। कल से तुम सारा काम संभाल लो….पूरा घर, मैं और बच्चे डिस्टर्ब हो गए है। घर की सारी चीज़े बिखरी पड़ी है। कोई घर आएगा तो क्या सोचेगा। अपनी नहीं कम से कम मेरी इज्जत का तो ख़्याल करो। बाबूजी ये कहते हुए कमरे से बाहर निकल जाते है। कुछ दिन और ऐसे ही बीत गए। बेटे—बहू और बाबूजी सभी रेवती से बेहद खफ़ा है। सभी को रेवती का ये व्यवहार बुरा लगता है। लेकिन कोई भी उसकी हालत को महसूस नहीं करता। जब वो सबका काम कर रही थी तब सभी को अच्छी लग रही थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। रेवती सभी का पूरा ख़्याल रखती। किसी को कभी भी कुछ मांगने की ज़रुरत नहीं पड़ती। लेकिन आज उसने ज़रा सा ब्रेक क्या लिया…उसे एक कप चाय के लिए भी कई बार आवाजें लगानी पड़ती। घर के सभी सदस्यों की पसंद का खाना बनाना और उन्हें परोसकर देने में वह बेहद सुकून महसूस करती लेकिन आज खाने की टेबल पर उसका इंतजार नहीं किया जाता। कई बार वह अकेले ही खाना खाती। रेवती के बिना घर वाले बेहद परेशान हो रहे थे अब लंबे समय तक घर को संभालना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा था। इसीलिए वे सभी फिर रेवती के पास आते है। और उससे पूछते हैं कि आखिर वे चाहती क्या है। रेवती कहती है ‘भावनाओं का वो इन्वेस्टमेंट जो मैंने तुम सब पर लूटा दिया है’…। रेवती कहती है कि क्या तुम सब ने ये कभी सोचा है कि सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक तुम्हारी दिनचर्या बेहद ही सरल और सहज कैसे चल रही थी। तुम्हें नींद से जगाना, फिर तुम्हारे इंतजार करने से पहले ही हाथ में चाय पकड़ा देना। तुम्हारी पसंद का नाश्ता जो टेबल पर रोज़ाना अपने समय पर ही तुम्हें कौन देता है…जिस टिफिन में से खाना खाकर तुम और तुम्हारे दोस्त अपनी अंगुलियां चाटते हैं वो खाना बनाकर तुम्हें किसने दिया है…जब नहाने जाते हो तो कभी ये अहसास हुआ कि तुम्हारे नहाने का साबुन कभी ख़त्म क्यूं नहीं होता…हमेशा टॉयलेट और बाथरुम तुम्हें साफ क्यूं मिलते है। ऑफिस जाते वक़्त अलमारी से निकालकर जो कपड़े पहनते हो वे साफ और प्रेस किए हुए कौन रखता है…। शाम को जब घर लौटते हो तब चाय, नाश्ता और फिर पसंद का डिनर कैसे मिल जाता है। फ्रीज खोलते वक़्त ठंडे पानी की बोतल कैसे मिल जाती है…। घर में घुसते ही जब घर एकदम व्यवस्थित नज़र आता है जिसे देखकर तुम सभी को बेहद सुकून मिलता है..। जिस बेड पर सोने जाते हो वो तुम्हें साफ और नई बेडशीट के साथ कैसे नज़र आता है। जिस पर तुम लोग आरामदायक नींद निकालते हो…। सोचा है कभी तुम सब ने कौन करता है ये सारे काम…कोई तो होगा….। ये बात सुनकर आज बाबूजी भी चुप हैं। रेवती उदासी भरे शब्दों में कहती हैं कि सिर्फ आठ घंटे की नौकरी नहीं है ये ‘व्यवस्थित घर’..। बल्कि इसमें मैंने अपनी उम्र, अपना समय, अपनी खुशियां और भावनाओं का इन्वेस्टमेंट किया है। मुझे याद नहीं कि कब मैंने अपनी पूरी नींद ली…कब भर पेट खाना खाया…कब अपने आपके लिए वक़्त निकाला…कब अपनी इच्छाएं पूरी की…। मेरे जीवन का टोटल इन्वेस्टमेंट तो मैंने तुम सब पर कर दिया। आज मुझे अहसास हुआ कि तुम सबको मेरी कभी जरुरत थी ही नहीं। बल्कि एक ऐसी नौकरानी के रुप में तुम सभी ने मुझे देखा जो समय पर तुम सबके काम करती रही। तभी तो आज तुम लोग मुझे मेरे आराम के कुछ पल ना दे सके। रेवती के आंसू ज़मीन पर गिर रहे थे। उसने सभी की तरफ देखते हुए कहा कि घर के काम कोई औरत नहीं गिनवाती हैं लेकिन उसके छोटे—छोटे काम ही अपने बच्चों को बड़ा बनाने में मदद करते है। बदले में वह औरत ख़ुद के लिए एक सम्मान चाहती है। जो उसे नहीं मिलता। आज मेरी नौकरी पूरी हुई…तुम पर इन्वेस्ट करने के लिए अब कुछ नहीं बचा है मेरे पास….। इसीलिए अब मैं रिटायरमेंट चाहती हूं….। घर के सभी लोग नि:शब्द हैं…सभी समझ गए कि ख़ुद की काबलियत से ज़्यादा ‘मां’ की भावनाओं का ‘इन्वेस्टमेंट’ ही उनके बेहतर जीवन और करियर का ‘रिटर्न’ था। टीना शर्मा ‘माधवी’ कुछ और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें— चिट्ठी का प्यार… कचोरी का टुकड़ा… “बातशाला” ‘अपने—अपने अरण्य’ सात फेरे… ____________________________ प्रिय, पाठकगण आपको ये कहानी कैसी लगी, नीचे अपना कमेंट ज़रुर लिखकर भेजें। साथ ही ब्लॉग और इसका कंटेंट आपको कैसा लग रहा हैं इस बारे में भी अपनी राय अवश्य भेजें…। आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए बेहद अमूल्य हैं, जो हमें लिखते रहने की उर्जा देती हैं। धन्यवाद 8 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post ‘पिता’ को बलिदान का तोहफा…. next post ज़िदगी का दुश्मन है नशा Related Posts छत्तीसगढ़ का भांचा राम August 29, 2024 विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 वैदेही माध्यमिक विद्यालय May 10, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 29, 2024 राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा January 22, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 21, 2024 समर्पण October 28, 2023 विंड चाइम्स September 18, 2023 रक्षाबंधन: दिल के रिश्ते ही हैं सच्चे रिश्ते August 30, 2023 गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव August 13, 2023 8 comments Vaidehi-वैदेही June 25, 2020 - 2:34 pm हृदयस्पर्शी कहानी 👌 Reply Unknown June 25, 2020 - 5:13 pm लगभग हर भारतीय महिला की मन की बात को अपने बहुत ही सुंदर शब्दों में पिरोया है Reply Teena Sharma 'Madhvi' June 26, 2020 - 10:57 am Thank-you so much 🙏 Reply Teena Sharma 'Madhvi' June 26, 2020 - 10:58 am Thank-you 🙏 Reply shailendra June 26, 2020 - 5:41 pm वाकई, कहानी में माँ के दिल को उतार कर रख दिया ।धन्यवाद।।। Reply Prashant sharma June 27, 2020 - 2:03 pm वाकई बहुत ही मार्मिक। Reply Teena Sharma 'Madhvi' June 28, 2020 - 7:59 pm Thank-you ❤ Reply Teena Sharma 'Madhvi' June 28, 2020 - 8:00 pm Thank-you 🙏 Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.