कहानियाँ ‘मीत’…. by Teena Sharma Madhvi December 1, 2021 written by Teena Sharma Madhvi December 1, 2021 पढ़िए लेखिका ‘वैदेही वाटिका’ द्वारा लिखित कहानी ‘मीत’…। मुझे गाने सुनते हुए काम करने की आदत हैं। आज भी जब मैं अपने कमरें की सफ़ाई कर रहीं थीं तब आदतन मैंने रेडियो ऑन कर लिया था। उम्र का दौर था या इश्क़ का जोर तय करना मुश्किल था पर जब भी बालासुब्रमण्यम की आवाज़ में कोई गीत सुनती थीं तो दिल करता उनके गाये गीतों को सुनकर उम्र गुज़ार दूँ । “तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन अनजाना… मैंने नहीं जाना… तूने नहीं जाना…” आज गीत औऱ गायक की मखमली आवाज़ जिसकी मैं दीवानी थीं, चुभ रहे थे किसी शूल की तरह। आज जब विविध भारती ट्यून किया औऱ उस पर यह गीत बजने लगा तो अचानक किसी का चेहरा ज़हन में आ गया। मुझे लगा जैसे मेरी रगों में बहता सारा खून सुख गया। बिन पानी के जैसे मछली तड़पती हैं ठीक वैसे ही मेरा मन तड़प उठा। मैंने तुंरत रेडियो बंद कर दिया। कमरें में बिखरे सामान के बीचो-बीच मैं धम्म से बैठ गई। कमरें के सामान से ज़्यादा बिखरा हुआ मेरा मन था , जिसे समेटने की, समझाने की मैंने बहुत कोशिश की। अंदर से उठ रहीं हुक, पीड़ा औऱ सवालों की ज्वाला को शांत करने का कोई भी उपाय मेरे पास नहीं था। आँखों से आँसू की बूंदे छलक आई। काश ! मेरे अंतर्मन के द्वंद से मैं जीत पाती। मेरा मन संसद सदन की तरह हो गया था जहाँ प्रश्नकाल का सत्र चल रहा था। हर तरफ़ से प्रश्नों का शोर औऱ शोर…एक ही सवाल – मीत आख़िर तुमनें ऐसा क्यों किया..? “मीत”….दोस्त , मित्र ,साथी यहीं होता हैं न इसका अर्थ ? पर वह इन अर्थों के बिल्कुल विपरीत कैसे हो गया ? हल्की बूंदाबांदी होने लगीं थीं। सुबह से ही मौसम का मिजाज बिगड़ा हुआ था बिल्कुल मेरे मूड की तरह। आज बारिश की बूंदे भी किसी धारदार चाकू सी जान पड़ रहीं थीं। जो मन को औऱ अधिक घायल कर रहीं थीं। अजीब हैं न ये मन….। जब किसी के साथ होता हैं तो किसी मासूम बच्चें सा बन जाता हैं… फिर न किसी से कोई गिला होता हैं न कोई शिकवा। हर बात मन को लुभाती हैं चाहें वो संगीत सुर लहरियां हो या फिर बूंद-बूंद बरसती बारिश। आज वहीं मन विकल हैं औऱ उसे कुछ भी नहीं सुहाता। बाहर अचानक शांत बादलों को चीरते हुए बिजली ठीक ऐसे कड़की ,जैसे मेरे शांत मन को चीरते हुए मितेश की बात हो, शब्दों की गूंज अब भी कानों में सुनाई पड़ती हैं। मितेश औऱ मैं एक ही ऑफिस में काम करते हैं, पिछले दो साल से हम एक—दूसरे को जानतें हैं। हम उम्र हैं। एकदूसरे के ख़यालात भी मिलते-जुलते हैं..। इसलिए कब दोस्त बन गए पता ही नहीं चला। आज के व्यस्तताभरे दौर में जहाँ लोग एक—दूसरे को देख भी नहीं पाते ऐसे समय में भी हम दोनों वक़्त मिलते ही….। ख़ूब बातें किया करते । एक दूसरे की प्रॉब्लम शेयर करतें , खुशियां बाँटते औऱ क़भी बात बेबात पर झगड़ पड़ते। जब साथ नहीं होंते तब फोन पर या मैसेजिंग के जरिए घण्टों बातें किया करतें। हम दोनों ने कितनी ही रातें जागते हुए बातों में बिता दी थीं। कब मितेश “मीत” बन गया…. कब दोस्ती प्यार में बदल गई … पता ही नहीं चला। मैं मीत के साथ अपनी ज़िंदगी के सुनहरे सपने बुनने लगीं थीं । शायद वो भी सपनों की ईमारत बनाता होगा। हम दोंनो ने इतनी रातें बातों में बिता दी थीं कि अब याद भी नहीं कि प्यार का इजहार पहले किसने किया था – मीत ने या मैंने…? खुशियों की रेलगाड़ी खूबसूरत लम्हों की पटरी पर तेज़ रफ़्तार के साथ दौड़ रहीं थीं अचानक मीत के प्रपोज़ल ने उस पर ब्रेक लगा दिया था…ऐसा ब्रेक जिससे खुशियों की रेलगाड़ी ठहर गई औऱ जिसके अचानक यूं ठहरने से मुझें एक ज़ोर का झटका लगा। मुझें महसूस हुआ जैसे इस झटके से मेरे द्वारा बुने गए सुंदर , सुनहरी सपनें चकनाचूर हो गए । मन कभी कभी थोड़ा ठहरना चाहता है, खोजता है ज़रा सा सुकून और अपने हिस्से का शांत कोना। मीत की यादें जो बिन बुलाए मेहमान की तरह वक़्त – बेवक्त चली आती थीं – छीन रहीं थीं मेरे मन का सुकून। मैंने फ़िर एक गहरी साँस छोड़ी और धीमे से बुदबुदाई – “मीत, आई मिस यू!” “मिस यू टू प्रिया ” ख़ामोशी ने हूबहू मीत की आवाज़ में ज़वाब दिया, उदासियों में उम्मीद के मोती पिरोती आवाज़। मन किया मीत को फ़ोन करूँ औऱ पूछ लूँ वो सारे सवाल जो मेरे भीतर किसी ज्वाला से धधक रहें हैं , जो हर लम्हा मुझे कचोट रहें हैं। मैंने घड़ी पर नजरें डाली। रात के 11 बज रहे थें। मन था कि मीत से आगे ही नहीं बढ़ रहा था औऱ द़िमाग था कि मुझे मीत की औऱ बढ़ते अपने कदमों पर लगाम लगाने को कहता। मन औऱ द़िमाग के जंजाल से मैं बाहर निकल आई लेकिन अब भी मीत का चेहरा मेरी आँखों के सामने था। शांत, सागर सा गम्भीर चेहरा उस पर सितारों सी चमकती आँखे, जिनमें अनगिनत सपने थे। उफ्फ ! कितना सुकून था उसके ख़याल भर में। तेज़ रफ़्तार से हॉर्न बजाती गाड़ी की आवाज़ ने मुझे ख़यालों से बाहर लाकर खड़ा कर दिया, बहुत बाहर… इस असल दुनिया में…। एक मुस्कुराहट तले मन दबाकर मैं बॉलकनी में आ गई । फिर बॉलकनी से देखती रही रोशनियों के आलिंगन में शर्माते शहर को….। सरपट दौड़ती सड़कों को…। धुंधलके के पार टिमटिमाने की कोशिश करते तारों को…। पर मन अतीत के निशान कुरेद रहा था। अतीत ! जिसके ज़ख्म आज दर्द दे रहे थे। वो शाम का समय था जब मैं औऱ मीत ऑफिस से छूटकर मेरे पसंदीदा चटकारा चाट भंडार पर पहुँचे। मीत को बाहर का खाना कुछ खास पसन्द नहीं था फिर भी मेरी पसन्द की छोले-टिकिया उसकी भी पसन्द बन गई थी। हम अक्सर यहाँ आया करते थे। मेरे मन की सभी उलझनें भी इसी जगह से शुरू हुई थी। मैं छोले-टिकिया के स्वाद में खोई हुई मगन हुए खाए जा रहीं औऱ मीत मुझें एकटक देख रहा था..मैंने आँखों के इशारे से उससे सवाल किया – क्या हुआ ? वो बोला – ” कितना अच्छा होता न कि तुम भी मेरे साथ रहतीं “ उसकी इस बात पर मैं बस मुस्कुरा दी थी। मीत मुझें मेरे फ़्लैट तक छोड़ने आया। ये उसका रोज़ का काम था। वह बोला तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया…? मैंने हँसकर कहा – किस बात का जवाब..? वो बोला – यहीं की तुम मेरे साथ रहो, तुम शिफ़्ट क्यों नहीं कर लेतीं ? साथ…? हम साथ ही तो हैं न मीत.. मैंने अचकचाकर कहा। मुझें लगा वो मेरी बात को समझ जायेगा…। मीत ने कहा – ” नहीं ऐसा साथ नहीं ” वह मेरे क़रीब आया औऱ मुझें अपनी बाहों में भरकर बोला ऐसा साथ। रहोगी न हमेशा मेरे पास, मेरे साथ…? पहली बार मुझे मीत पर इतना गुस्सा आया था। उसका यूँ मेरे इतने क़रीब आ जाना मुझे सहन नहीं हुआ। उसे ख़ुद से दूर धकेलते हुए मैं कार से बाहर आ गई औऱ दौड़कर अपने कमरे में आ गई। नहीं जानती थी मैं, सही ग़लत की तराजू के पलड़े किस तरह तय होते हैं। किसे सब खुले मन से अपना लेते हैं और किसे हाशिये पर धकेल देते हैं। लिव इन में रहक़र ही अपने प्रेम को प्रमाणित करना हैं तो नहीं हैं मुझें मीत से प्रेम…। मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि अचानक से क्या हो गया ? मेरी ज़िंदगी में जैसे भूकंप आ गया था जिसका केंद्र मेरा मन था औऱ लगा मेरा पूरा शरीर दरक गया…। दर्द की दरारें भी इतनी गहरी कि, कोई यदि ज़रा सी भी ठेस पहुँचा दे तो मैं टूटकर बिखर जाऊँ । मीत मेरे जीवन की धुरी था। मेरा सब कुछ सिमट जाता था उसके इर्द-गिर्द। मेरे दुःख, तकलीफें, ख़ुशी और ढेर सारी ख्वाहिशें भी। जैसे उसका हाथ पकड़कर पहाड़ों पर घूमने की ख्वाहिश, किसी मंदिर पर उसके नाम की मन्नत का धागा बाँधने की ख्वाहिश या फिर किसी भीड़ भरी जगह पर उसका माथा चूम लेने की ख्वाहिश! वो तो हर ख्वाहिश को जीने की हामी भी भर लेता शायद, लेकिन फिर मेरे ही कदम पीछे हट गए । मीत की बातें , हर एक शब्द चुभ रहें थे। लगा जैसे वो कोई और ही था जिसने ये सब कहा था। पिछले दो सालों से मैं उसे जानती हूँ, मुझे क़भी महसूस नहीं हुआ कि मीत मेरे लिए सही इंसान नहीं हैं। पर आज भी उसकी बातें मेरी समझ से परे थीं। वो मुझसें लिव इन रिलेशन का कह रहा था । मतलब उसके साथ…बिना शादी के..रहना। ऐसा नहीं था कि मैं कोई रूढ़िवादी सोच की लड़की थी पर इतनी आधुनिक भी नहीं थी कि यह बात मेरे लिए सहज हो। हम जिस दुनिया में रहते हैं उसके इतर भी एक दुनिया औऱ हैं ” हमारी अपनी दुनिया जिसे हम अपने मन से बनाते हैं ” जहाँ रिश्ते हैं , प्रेम हैं , मिलना हैं , बिछड़ना हैं , रूठना हैं , मनाना हैं पर बेबस कर देने वाली उलझनें नहीं हैं। शायद इसीलिए हमें अपने मन की दुनिया में रहना अधिक पसन्द हैं । हम इस दुनिया में खुश रहते हैं। यहाँ कोई किसी को हर्ट नहीं करता। अचानक से मेरे मन में चल रही उथल-पुथल शांत हो गईं । रात के सन्नाटे में अब बस घड़ी की टिक-टिक ही सुनाई दे रही थी । कितनी बोझिल थी ये चुप्पी। इस गहरे मौन में मेरा मन भी ठहर गया था। मैं अब कुछ भी नहीं सोच रही थी, ना सच, ना झूठ, ना नफ़रत, ना ही प्यार। जैसे ज़िन्दा होकर भी अपने लिए ख़त्म हो गयी थी। हमारी उम्मीदों के महल जब धराशायी होते हैं तब हम मौन हो जाते हैं , मन जैसे उजड़ सा जाता हैं। शायद इसी को ज़िंदा होकर भी ख़त्म हो जाना कहते होंगे। रात के 2 बज रहे थे। लगता है ये रात जागते हुए ही गुज़रेगी। बिना चाय के ये रात कटेगी नहीं। मैं किचन में गई और गैस पर चाय चढ़ा दी। मन हल्का करने के लिए मैंने म्यूजिक सिस्टम ऑन कर दिया। पहला ही गीत था – ‘ रे मीत न मिला रे मन का’….। तमाम उदासियों औऱ मन में दबे गुस्से के बावजूद मैं मुस्कुरा दी। इसलिए नहीं कि गाने में मीत का नाम था..बल्कि इसलिए कि हम जिस बात से दूर जाना चाहते हैं उसी से संबंधित बात ,नाम, किस्सा हमें हर कहीं सुनाई औऱ दिखाई देता हैं । मैं चाय का प्याला लेकर सोफ़े पर आकर बैठ गई । संगीत की धुन मद्धम हो गई औऱ अतीत की बातें याद आने लगी । मीत की न जाने कितनी यादें है जो हौले हौले एक कली की पंखुड़ियों की तरह खुलती चली गई। पर ये वो यादें औऱ बातें हैं जिन पर पहले मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया। मसलन उसका बातूनी स्वभाव, उसका हर किसी से दोस्ती कर लेना, हमेशा सिर्फ अपने ही बारे में बातें करना , मुझसे बिना पूछे उसकी पसन्द का खाना ऑर्डर कर देना, हमेशा लोगों के अनुसार रहना…कई मायनों में वो मुझसे बिल्कुल अलग था। मेरा उसके साथ रहने का फैसला अब कई सवाल खड़े कर रहा था। मेरी ज़िंदगी का नायक अब मुझे खलनायक लग रहा था । मेरे ज़ेहन में मिसेज़ मेहता की बातें घूमने लगीं । वो मितेश को ज़रा भीं पसन्द नहीं करतीं थीं औऱ अक्सर मीत को लेकर मेरे कान भरा करतीं थीं। मैं मीत के ख़िलाफ एक शब्द भी नहीं सुन पाती थीं औऱ मिसेज़ मेहता को झिड़क दिया करतीं थीं। मेरी झिड़की सुनने के बाद भी वो यहीं कहती – सही लड़का नहीं हैं मितेश , तुम पछताओगी । क्या मिसेज़ मेहता सच कहती थीं..? पर अब भी मेरा मन उनकी बात से कोई ताल्लुक नहीं रखता था। मेरा सर दर्द से फट रहा था औऱ आँखे भारी होने लगीं थीं। कब नींद आ गई पता ही न चला। डोरबेल की आवाज़ से नींद खुली। सुबह के 9 बज रहें थे। दरवाज़ा खोला तो दूधवाले भैया खड़े थे। मुझे देखते ही वो बोले – दीदी तबियत तो ठीक हैं न ? मैंने हाँ कहा औऱ दूध लेकर अंदर आ गई। मैंने बॉस को कॉल करने के लिए मोबाईल स्विच ऑन किया तो मीत के संदेशों की झड़ी लग गई । उसने कई बार कॉल भी किया हुआ था। मैंने सन्देश को पढ़ने में कोई रुचि नहीं ली औऱ बॉस को कॉल करके ऑफिस से 3-4 दिन की छुट्टी का कहा और बॉस सहजता से मान गए। मैं कॉल पर ही थी कि कॉल वेटिंग में मीत का कॉल था। मेरे फोन रखते ही मोबाईल फिर से बज उठा। मीत का ही कॉल था। अनमने मन से मैंने कॉल रिसीव किया । कहाँ हो तुम..? ऑफिस क्यो नहीं आई..? सब ठीक तो हैं न..? और ये फ़ोन क्यों बंद था..? उसने एक ही सांस में सारे सवाल एक साथ पूछ लिए थे। मैंने कहा – ” तबियत ठीक नहीं हैं । वो गुस्से से बोला – तबियत ठीक न होने पर डॉक्टर को दिखाते हैं न कि मोबाईल बंद कर लेते हैं। मैं आ रहा हूँ तैयार रहना। फिर चलते हैं डॉक्टर के पास। इतना कह कर उसने फ़ोन कट कर दिया। न चाहते हुए भीं मैं तैयार होंने लगी थी । मैंने तय किया कि मीत से अपने मन की बात कह दूँगी। तभी हमारा आने वाला कल तय होगा। हम हम सफ़र रहेंगे या फ़िर दोनो के रास्ते अलग हो जाएंगे ? मैं आज की पीढ़ी के अनुसार बोरिंग हो सकती हूँ पर हम दोनों जब भी साथ रहे ज़िन्दगी खुशनुमा सी लगी। पर अब मीत के लिए मेरी भावना बदल रही हैं…बदलतीं भावनाओं के बावजूद मन अब भी मीत से बंधा हुआ था। मीत हर बात में अच्छा था.. शायद मैं ही समझ नहीं पाई उसकी बात को। मन अब भी मीत की पैरवी कर रहा था। मैंने अलमारी से हरे रंग की ड्रेस निकाली जो कपड़ो की तह में सबसे नीचे रखी हुई थी । जब से मीत मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बना तब से ही मैं उसकी पसन्द नापसंद के अनुसार ही तैयार होतीं थी। पर आज मैंने हरे रंग की ड्रेस पहनी, हरा रँग मीत को बिल्कुल पसन्द नहीं था। मैं मीत का इंतजार करने लगीं । वह ठीक 11 बजे आया। जैसे ही मैंने दरवाजा खोला वह मुझे हरे रंग की ड्रेस में देखकर चौंक गया पर बोला कुछ नहीं। मुझें देखकर वो बोला – ” सोई नहीं ना रातभर ” मैंने कहा – “जल्दी ही सो गई थीं”। पर तुम्हारी आँखे तो कुछ औऱ ही बता रहीं हैं मैडम जी – वो मुस्कुराकर बोला। चलो अब जल्दी से बाहर आओ डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले लिया हैं मैंने – कहते हुए मीत सीढ़ियों की औऱ जानें लगा। मैंने मीत को आवाज़ लगाई औऱ कहा मैं ठीक हुूं । क्या हम बैठकर बात कर सकतें हैं…? मीत ने मुझे इस तरह से देखा जैसे मेरे चेहरे को पढ़ रहा हो । वो चुपचाप बिना कुछ कहे चला आया और सोफ़े पर बैठ गया । मैं समझ ही नहीं पा रहीं थीं कि कैसे अपनी बात को कहूं । मुझें चुप देखकर वह बोला – कुछ बोलोगी भीं…क्या हुआ हैं तुम्हें .. ऑफिस नहीं आ रहीं औऱ ये ड्रेस ..? मोबाईल भी स्विच ऑफ़ करके रखती हो ..भले ही कोई परेशान होता रहें । मैंने धीरे से कहा – मीत ! हम…दोनों एक—दूसरे के लिए नहीं बनें हैं..औऱ मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती । मेरी इस बात वह चुप रहा…लेकिन उसकी आंखों से आँसू छलक आए । उसने मेरे हाथ को थामते हुए कहा – साथ रहने के लिए प्यार जरूरी हैं …जो हम दोनों को एक—दूसरे से बेशुमार हैं। प्रिया ! हम इंसान बहुत डरपोक होते हैं….अपनों से दूर जानें का डर , अपनों को खो देने का डर…पता नहीं औऱ भी कितने ही अनजान डर से हम अपनों को ही तकलीफ़ में डाल देते हैं… जैसे मैंने तुम्हें…” कहते-कहते मीत रुक गया, फिर कुछ पल बाद बोला – “काश मैंने समझा होता तुम्हें ! तुमने खुलकर मुझे बताया होता, थोड़ा वक्त दिया होता मुझे…दूरी बना लेने भर से क्या तुम मुझे भूल जाती..? बस इतनी सी बात नहीं कह सकी की मैं बिना शादी के साथ नहीं रहना चाहती….। मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता हूं। इसलिए हमेशा तुम्हें अपने पास अपने साथ रखना चाहता हूं। जानता हूं बिना शादी के साथ रहना तुम्हारे लिए आसान नहीं होगा। समाज भी स्वीकार नहीं करेगा। लोग क्या कहेंगे जैसा सवाल तुम्हें परेशान कर रहा होगा..मैं भी नहीं चाहता कि तुम मेरी जिंदगी में राधा बनकर रहो, मैं हमेशा यही चाहता रहा की तुम रुक्मिणी बनकर मेरी ज़िंदगी में आओ । “मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा लेकिन तुम्हारी मुस्कुराहट के साथ। तुम वही चुनो जिसमें तुम्हारी ख़ुशी है…समझी मेरी प्रिया ” मीत से बात करने के बाद मुझें समझ आ गया था कि दुःख का बीज जो मेरे मन की मिट्टी में पनप रहा था वो अब प्रेम का विशाल वृक्ष बन गए हैं, जिसके तले मैं मीत के साथ आजीवन सुकून से रहूँगी । मैं मीत से कुछ भी नहीं बोल पाई, एक शब्द भी नहीं…। बस मीत को देखती रहीं औऱ मुस्कुरा दी। अरसे बाद दुःख की धूप मुस्कुराहट के बादलों ने ढक ली थी। ——— नोट— ‘कहानी का कोना’ में प्रकाशित अन्य लेखकों की कहानियों को छापने का उद्देश्य उनको प्रोत्साहन देना हैं। साथ ही इस मंच के माध्यम से पाठकों को भी नई रचनाएं पढ़ने को मिल सकेगी। इन लेखकों द्वारा रचित कहानी की विषय वस्तु उनकी अपनी सोच हैं। इसके लिए ‘कहानी का कोना’ किसी भी रुप में जिम्मेदार नहीं हैं…। —————- 2 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post रानी लक्ष्मीबाई जयंती—- next post गढ़िए एक ‘झूठी कहानी’ Related Posts छत्तीसगढ़ का भांचा राम August 29, 2024 विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 वैदेही माध्यमिक विद्यालय May 10, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 29, 2024 राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा January 22, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 21, 2024 समर्पण October 28, 2023 विंड चाइम्स September 18, 2023 रक्षाबंधन: दिल के रिश्ते ही हैं सच्चे रिश्ते August 30, 2023 गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव August 13, 2023 2 comments मंगला - Kahani ka kona मंगला May 2, 2022 - 12:41 pm […] 'धागा—बटन'… 'अपने—अपने अरण्य' "बातशाला" 'मीत'…. खाली रह गया 'खल्या'.. ___________________ प्रिय […] Reply कहानी 'ताई'... - Kahani ka kona May 18, 2022 - 5:05 am […] 'मीत'…. […] Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.