कहानियाँ मीरा का ‘अधूरा’ प्रेम… by Teena Sharma Madhvi December 1, 2020 written by Teena Sharma Madhvi December 1, 2020 पार्ट—1 आज भी यह नाम मुझे बैचेन कर देता हैं। होंठ कपकंपाने लगते हैं, जीभ लड़खड़ाने लगती हैं..पूरा शरीर सफेद पड़ने लगता हैं मानो शरीर का सारा खून सुख गया हो…आंखों से आंसू नहीं बल्कि आग निकल रही हो…। पांच वर्ष बीत गए। किसी काम के सिलसिले में मुझे एक बार फिर इस शहर में आना पड़ा। इस शहर को मैं कैसे भूल सकता हूं..। यहां मुझे वो मिला जिसकी मुझे कभी कोई ख्वाहिश ना थी। वह मेरे जीवन का पहला प्यार थी। जिसे मैंने पूरे दिल से स्वीकारा था…। कॉलेज का पहला दिन, जब मीरा को कैंटीन में चाय पीते हुए देखा था। लंबा कद, चेहरा भरा हुआ, छोटे—छोटे बाल और ठहाके लगाते हुए प्यारी सी मुस्कान। कैसे भूल सकता हूं। कैंटीन में पहली मुलाकात ‘एक्सक्यूज़मी’ कहते हुए हुई थी। तब उसने पलटकर जवाब दिया था। हां ज़रुर..। उससे जब भी कोई अंग्रेजी में बात करता वह उसका जवाब हिंदी में ही देती थी। उसकी बातें हमेशा साधारण होती थी लेकिन उसे कहने का अंदाज बेहद असाधारण होता था..। लोगों को आकर्षित करने की उसमें अद्भूत कला थी। ऐसा कोई दोस्त या परिचित नहीं था जो उसकी बातों को सुनकर प्रभावित नहीं होता। उसका व्यक्तित्व ही ऐसा था जो लोगों को उसके करीब लाता था। चेहरे पर मासूमियत ऐसी कि बस देखती ही बनती थी। मैं हर रोज़ क्लास से छूटने के बाद कैंटीन में सिगरेट पीने के लिए जाता था। ‘मीरा’ भी अपनी कुछ एक खास सहेलियों के साथ अकसर कैंटीन आया करती थी। धीरे—धीरे उसे भी ये समझ आ रहा था कि मैं उसे छुप—छुपकर देख रहा हूं। करीब तीन महीनों तक ये ही सिलसिला चलता रहा। एक दिन कैंटीन में उसे अकेले बैठे हुए देखा तो उससे मिलने की हिम्मत जुटाई। उसके पास धीरे से जाकर पूछा कि क्या मैं यहां बैठ सकता हूं..? उसने घूरते हुए मेरी तरफ देखा और बोली कि क्यूं…? कहीं और बैठने के लिए कुर्सी खाली नहीं है क्या..? मैंने असहज होकर कहा कि मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं। उसने तीखेपन से कहा..हां तो कहिए ना, इसमें इतना डरने और झेंपने की क्या बात है। बस उसके ये कहते ही मैंने तपाक से कह दिया कि मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं। और पिछले तीन महीनों से तुमसे ये बात बोलने की कोशिश कर रहा हूं। उसने मुझे गुस्से से देखा और बोली कि, प्रेम को शब्दों से नहीं हृदय की गहराई से किया जाता हैं। क्या उस गहराई को तुम महसूस भी करते हो…? उसकी बात में बहुत गहराई थी लेकिन वह मुझे पूरा सुनती तब मैं उसे अपनी भावनाएं बताता। लेकिन उसने तो मेरी बात को बीच ही में काट दिया था। उसकी बात सुनने के बाद मैं वहां से चला गया। अगले दिन मैं कॉलेज नहीं गया। मेरे एक दोस्त को वह जानती थी। उसी से मीरा ने मेरे बारे में पूछा था। मैं जानता था कि वह मेरा इंतजार ज़रुर करेगी। उसकी आंखों में मैंने अपने लिए एक अनकहे अहसास को महसूस भी किया था। पांचवे दिन जब मैं कॉलेज आया तो मीरा मेरे सामने थी। उसकी आंखों में मैंने अपने लिए इंतजार देखा…। उसने मुझे देखते ही कहा कि मेरी बातों का इतना बुरा मान गए कि अपने सवाल का जवाब भी नहीं मांगा..। इतने दिन तुम कहा थे…? ऐसी भी क्या नाराज़गी हो गई भला…? वह बोल रही थी और मैं सिर्फ उसे सुन रहा था। इस वक़्त ऐसा लगा मानो हम दोनों एक—दूसरे को बहुत पहले से ही जानते हो। लेकिन इसके बाद ही से मीरा और मैं कब एक—दूसरे के करीब आ गए पता ही नहीं चला। उसे एक सुई भी खरीदनी होती थी तब वह मुझसे ही पूछती थी। मैं भी पूरी तरह से उसका आदि हो चुका था और उसके बगैर जीने की कल्पना तक नहीं करता। आज भी उसका ख़्याल उसके साथ बिताएं वे बेहिसाब पल और एक अल्हड़ उम्र का वो बड़ा—सा हिस्सा याद आता हैं। याद आती हैं वे धूलभरी सड़के जिस पर मीरा का साथ था। मैं शायद किसी पल उसका नाम लेना भूल जाता मगर मीरा के हर लम्हें में, मैं पूरी तरह से समा चुका था। उसका प्यार देखकर मुझे कभी—कभी बेहद डर लगता था लेकिन मन ही मन अपने आप पर गर्व भी होता कि मुझे इतना प्यार करने वाली साथी मिली हैं। मैं आज भी उसे भूला नहीं पाया…काश, वह भी मुझे समझ पाती। अब भी यकीन नहीं होता कि कोई बेइतंहा प्यार करने के बाद यूं मुंह फेर सकता हैं…। इसे मैं अपनी किस्मत कहता या फिर बदकिस्मती..। सालों बाद इस शहर में आना मुझे मेरा अतीत याद दिलाता हैं। मानो कल ही की बात हो। मैं उसे चीख—चीखकर कह रहा हूं, तुम ग़लत निर्णय ले रही हो…। देव ठीक व्यक्ति नहीं हैं। लेकिन वह अपनी ज़िद पर अड़ी रही। मैं नहीं चाहता था कि वो कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद देव के ऑफिस में काम करें। देव की बातें मुझे अच्छी नहीं लगती थी। मीरा के प्रति उसका आकर्षण साफ़ नज़र आता था। मुझे आज भी याद हैं जब मीरा का जन्मदिन था। हाथों में एक छोटा सा टेडी लिए हुए मैं सुबह आठ बजे से उसका इंतजार कर रहा था। ये टेडी उसने पसंद किया था। लेकिन जिस वक़्त उसने पसंद किया था उस वक़्त इसे खरीदने के लिए मेरे पास रुपए नहीं थे। लेकिन आज उसके बर्थडे पर उसे ये टेडी गिफ्ट करके उसके चेहरे पर मुस्कान देखना चाहता था। वादा करके भी मीरा नहीं आई थी। बेहद गुस्से के साथ जब मैं देव के ऑफिस पहुंचा तो मीरा बेहद ही तल्लीनता के साथ काम कर रही थी। ये बात मुझे बिल्कुल अच्छी नहीं लगी। मैंने उस पर बेहद गुस्सा किया। उसकी एक ना सुनी और उसे फोरन देव का ऑफिस छोड़ने को कहा। उसने मना कर दिया कि मैं ऑफिस में काम करना नहीं छोड़ सकती। ये बात मुझे बहुत बुरी लगी और मैं उसके हाथ में वो टेडी पकड़ाकर चला गया। कुछ दिनों तक हम नहीं मिलें। एक दिन मैं ही उसके ऑफिस पहुंचा। वह भी मुझे देखकर बेहद खुश हुई और दौड़कर मेरे गले लग गई। हम दोनों फिर से पहले की तरह खुश रहने लगे। मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से था। और सरकारी नौकरी लगने के बाद ही मीरा से शादी करना चाहता था। लेकिन मीरा प्राइवेट जॉब करके थोड़ा बहुत पैसा इकट्ठा करना चाहती थी। ताकि जल्द से जल्द हमारी शादी हो सके। लेकिन वक़्त भी क्या था..धीरे—धीरे ‘मीरा’ मुझसे दूर होती चली गई और आज पांच साल बीत गए। लेकिन आज इतने सालों बाद जब इस शहर में आया तो मीरा को याद करके कदम कॉलेज और यहां की कैंटीन की ओर बढ़ गए। न चाहते हुए भी मैं उन राहों की ओर चल पड़ा। जिन पर कभी मीरा और मैं साथ चला करते थे। ख़्यालों के साथ कैंटीन कब पहुंच गया पता ही नहीं चला। ऐसा लग रहा था मानों अभी मीरा मेरे सामने आ खड़ी होगी। कुछ भी तो नहीं बदला। वही कैंटीन..वही मालिक, वही पत्थर की टेबल—कुर्सी..जिस पर अकसर हम बैठा किया करते थे। जैसे ही कुर्सी के पिछले वाले हिस्से पर हाथ गया तो खुद को पीेछे देखने से रोक नहीं पाया। आज भी इस पर ‘मीरा—प्रेम’ लिखा हुआ हैं। ये मीरा ने पत्थर से कुरेदकर लिखा था। मुझे याद हैं उस दिन वह कैंटीन में बेसब्री से मेरा इंतजार कर रही थी। जैसे ही मैं कैंटीन पहुंचा वह जोरों से चिल्ला उठी। ‘प्रेम’ तुम आ गए…। कैंटीन में बैठे सभी लोग उसे देखने लगे। मैंने कहा कि तुम पागल हो क्या…? उसने बहुत ही सरलता से जवाब दिया था…शायद हां…। और फिर वह कुर्सी से उठकर एकदम कैंटीन के बीचों—बीच जा खड़ी हुई। मैं डर रहा था…। आख़िर वह क्या करने वाली है..? वो भी इतने सारे लोगों के बीच। मीरा ने कैंटीन में सभी के सामने अपने प्यार का इज़हार किया। एक पल के लिए कैंटीन में शांति सी छा गई थी। मीरा की बात सुनकर सभी हैरान थे लेकिन तालियां बजाकर सभी ने उसके सच्चे प्यार की तारीफ़ भी की। मैं शरमाकर नीचे गर्दन किए हुए खड़ा था। तभी किसी ने मुझे कहा कि यार तुम बहुत किस्मत वाले हो जो मीरा जैसी प्यार करने वाली लड़की तुम्हारी ज़िंदगी में आई हैं। जो कुछ भी हुआ उस पर मुझे यक़ीन ही नहीं हो रहा था। लेकिन ये वाकई सच था। मीरा मेरे पास आकर मेरा हाथ पकड़कर उसी टेबल—कुर्सी की ओर लेकर गई जहां पर हम अकसर बैठा किया करते थे। उसने इसी दिन कुर्सी के पीछे ‘मीरा—प्रेम’ लिखा था। आज भी हमारे प्यार के ये निशां यहां बाकी हैं। सालों बाद मुझे यहां देखकर कैंटीन वाला मुस्कुराया और मुझसे पूछने लगा…अरे! प्रेम भाई साहब, कैसे हो? कहां थे इतने साल? मीरा कैसी हैं? उसके सवाल पर मैं सिर्फ इतना कहकर निकल आया ‘मैं अकेला हूं…’। वह मुझे आवाज़ लगाता रहा लेकिन मैंने पलटकर नहीं देखा। वाकई समय बहुत बलवान होता हैं और अतीत इंसान की परछाई..। मैं हमेशा ईश्वर को कोसता हूं…वह निर्दयी है…। मैं जल्द से जल्द इन पुरानी यादों से निकलकर इस शहर से दूर चले जाना चाहता था। मजबूरी ना होती तो शायद कभी यहां कदम नहीं रखता। लेकिन मैं इस शहर में आया हूं इस बात की भनक थी पुराने दोस्तों को भी। इसी बात पर उन्होंने एक छोटी सी पार्टी रखी थी। मेरे कई बार ना कहने पर भी वे नहीं मानें। सूरज ढल रहा था…मुझे अजीब सी घुटन महसूस हो रही थी। समझ नहीं आ रहा था पार्टी में कैसे जाऊं…? मैं, एक होटल में ठहरा हुआ था। मैंने रिसेप्शन पर फोन लगाया और कुछ ही देर में वेटर आ गया। मैंने उसे बताया कि मुझे घबराहट हो रही हैं मुंह का स्वाद बदलने के लिए लौंग या इलायची मिलेगी क्या? उसने कहा कि मैं लेकर आता हूं। तभी मुझे अकेले में ये आभास हुआ जैसे किसी ने बेहद ही ममतामयी होकर मेरे सिर पर हाथ रखा हो और मेरे माथे को चूमा हो…। ऐसा तो सिर्फ मेरी मीरा ही किया करती थी। इस अहसास के साथ ही वेटर का इंतजार किए बगैर ही मैं रिसेप्शन पर आया और कमरे की चाबी देकर पार्टी के लिए निकल गया। होटल के बाहर ही से रिक्शा लेकर मैं अपने दोस्त के घर पहुंचा। आज भी उसके घर का रंग नीला ही हैं। दोस्त के पास पहुंचने की खुशी थी लेकिन शरीर में न जाने क्यूं कपकपी सी हो रही थी। पार्टी में आने के बाद सभी के बीच ख़ुद को बेहद अधूरा महसूस कर रहा था। तभी मेरा दोस्त आया उसने मुझे गले से लगाया और बिना रुके एक के बाद एक सवाल करने लगा। कैसे हो मेरे यार…शहर को छोड़कर चले गए…अपने दोस्तों को भूल गए क्या…? मैंने उसे बताया कि मैं बिल्कुल ठीक हूं। तुम कैसे हो..? उसने कहा कि मेरी छोड़ो आओ मैं तुम्हें अपने बाकी दोस्तों से मिलवाता हूं। कुछेक को छोड़कर बाकियों को तो मैं भी जानता था। तभी दोस्तों के बीच एक शख्स निकलकर आया। वह कोई और नहीं बल्कि देव था। उसे यहां देखकर मुझे बेहद गुस्सा आया। लेकिन उसने मेरे कांधे पर हाथ रखा और मुझे एकांत में चलने का इशारा किया। मैंने उससे कहा कि मुझे तुम्हारी शक्ल से भी नफ़रत हैं। हो भी क्यूं ना…? तुम्हारे ही कारण मेरी ज़िंदगी के मायने बदल गए..। खैर, छोड़ों…बताओ क्या कहना चाहते हो…? तभी उसने मुझे नैना से मिलवाया। और कहा कि ये मेरी पत्नी हैं। मैं उसे देखकर चौंक गया…। ख़ुद पर से नियंत्रण खो गया मेरा। मैनें देव से पूछा कि, तो फिर मीरा कहां हैं…? कहानी का दूसरा भाग जल्द ही पढ़ेंगे……। कुछ और कहानियां— चिट्ठी का प्यार ‘भगत बा’ की ट्रिंग—ट्रिंग आख़री ख़त प्यार के नाम 4 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post ‘सित्या’ का डर… next post मीरा का ‘अधूरा’ प्रेम…पार्ट-2 Related Posts छत्तीसगढ़ का भांचा राम August 29, 2024 विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 वैदेही माध्यमिक विद्यालय May 10, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 29, 2024 राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा January 22, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 21, 2024 समर्पण October 28, 2023 विंड चाइम्स September 18, 2023 रक्षाबंधन: दिल के रिश्ते ही हैं सच्चे रिश्ते August 30, 2023 गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव August 13, 2023 4 comments AKHILESH December 17, 2020 - 4:16 pm कहानी के दूसरे भाग का ििइंतजार… Reply AKHILESH December 17, 2020 - 4:17 pm कहानी के दूसरे भाग का ििइंतजार… Reply Teena Sharma 'Madhvi' December 18, 2020 - 12:27 pm धन्यवाद अखिलेश जी Reply सवाल है नाक का - Kahani ka kona June 4, 2022 - 6:24 am […] 'फौजी बाबा'… […] Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.