प्रासंगिकरंगमंच ‘रंगमंच’ की जान ‘ गिव एंड टेक ‘… by Teena Sharma Madhvi March 25, 2021 written by Teena Sharma Madhvi March 25, 2021 ‘रंगमंच’ पर नाटक करने की अपनी एक अलग ही एनर्जी होती है। जो दर्शकों से मिलती हैं। नाटक की प्रस्तुति के दौरान अपने अभिनय की सटीक प्रतिक्रिया पाकर अभिनेता को जो उत्साह मिलता है वो ‘ऑनलाइन मैथड’ से नहीं मिल सकता। सीधी सी बात हैं अभिनेता और दर्शक के बीच यह ‘give and take’ ही रंगकर्म की असल जान है। ये कहना है वरिष्ठ रंगकर्मी, अभिनेता और लेखक राहुल त्रिवेदी का। वे ‘डिजिटल थिएटर’ को एक प्रभावशाली माध्यम के रुप में लेते हैं। उनका मानना है कि डिजिटल थिएटर रंगकर्म को एक बड़े तबके तक पहुंचाने के लिए नि:संदेह एक सार्थक माध्यम है लेकिन ये ‘रंगमंच का विकल्प’ बन जाए ऐसी गुंजाइश फ़िलहाल नहीं लगती। अभिनेता राहुल ने थिएटर की अपनी यात्रा को बेहद ही ख़ास बताया। वे कहते हैं कि आज जिस मुकाम पर हूं उसकी पहली सीढ़ी मेरा रंगमंच ही हैं। जिसकी शुरुआत वर्ष 1993 में जवाहर कला केंद्र से हुई थी। यही वो पहली जगह हैं जहां बाल नाट्य शिविर में प्रवेश लिया था। तभी से अभिनय करने का सिलसिला जारी हैं। राहुल कहते हैं कि थिएटर मेरे लिए एक साधना है। रंगमंच से जुड़ाव से पहले मैं अगर अपने जीवन को देखूं तो ख़ुद को एक अधूरा, अनभिज्ञ, सहमा और भयभीत सा पाता हूं। लेकिन रंगमंच की अनुशासित ज़मीन पर कदम रखने के बाद जैसे मेरी ज़िंदगी ने न जाने कितने ही नए आयामों को छूआ। अपने आपको देखने का नज़रिया ही बदल गया। राहुल से बातचीत के दौरान एक सवाल ज़ेहन में उठा कि क्या थिएटर करना आसान हैं..? तब राहुल ने इसे बेहद ही गंभीर शब्दों में व्यक्त किया। वे कहते हैं कि थिएटर के लिए एक अच्छे गुरु का सानिध्य मिलना बेहद ज़रुरी हैं। थिएटर में एक कलाकार समय, काल और परिस्थिति को अपने भावों से प्रस्तुत करता हैं। जो आसान काम नहीं हैं। इसके लिए थिएटर की बारीकियों को समझना बेहद ज़रुरी हैं। राहुल कहते हैं कि मैं खुशनसीब रहा हूं जब मुझे सरताज नारायण माथुर जैसे गुरु के सानिध्य में सीखने को मिला। जो कुछ भी मैंने सीखा हैं वो अपने स्टूडेंट्स को सिखाने की कोशिश कर रहा हूं। अपने अनुभव की कड़ी में वे बताते हैं, जब सिनेमा और टेलीविज़न की दुनिया में कदम रखा तब अलग तरह की चुनौतियों का सामना किया। वो दुनिया थिएटर से अलग हैं। लेकिन काम करने वालों को हर जगह पर अच्छा काम मिलता है। टीवी सीरियल ‘बाबा ऐसो वर ढूंढों’ में अभिनेता राहुल का ‘डमरु’ किरदार आज भी लोगों के जेह़न में बसा हुआ हैं। इसके अलावा पलकों की छांव में, अस्तित्व एक प्रेम कहानी, चंद्रकांता—प्रेम या पहेली आदि कई सीरियल्स हैं जिनमें उन्होंने कई अहम रोल निभाएं। निर्माता व निर्देशक इम्तियाज़ अली की फिल्म लव आजकल में भी वे नज़र आए। इन सबके बीच राहुल थिएटर को अपनी पहली पसंद बताते हैं। रंगमंच के वर्तमान स्वरुप को लेकर राहुल चिंतित हैं। वे कहते हैं कि रंगमंच पूरी निष्ठा..लगन और अनुशासन का नाम हैं। जो एक संस्कार के रुप में अभिनेता को मिलते हैं। लेकिन बहुत समय से ऐसे लोगों को रंगकर्म करते देख रहा हूं जिनका इन संस्कारों से या कहूं कि रंगकर्म से कोई वास्ता ही नहीं है। तब बड़ी तकलीफ होती हैं। जिन्हें ख़ुद इसकी जानकारी नहीं वे क्या किसी और को सिखाएंगे। नौसिखियों के हाथों में थिएटर की कमान देख रहा हूं। थिएटर के गिरते स्तर में ये भी एक बड़ी वज़ह हैं। अच्छा रंगमंच, अच्छा प्रोडक्शन और अच्छा लिखने वालों को आगे आने की ज़रुरत हैं। ताकि थिएटर के असल स्वरुप को बचाया जा सके। राहुल से जब पूछा कि क्या थिएटर के लिए यूट्यूब चैनल के ज़रिए नया बाज़ार खड़ा हो रहा हैं…? तब वे इसे सिरे से नकारते हैं। वे कहते हैं कि यूट्यूब पर चैनल बना लेना आजकल शायद हर कोई कर लेता है। इस पर रातों रात मशहूर हो जाने की चाहत में कुछ भी कंटेंट परोसे जा रहे हैं। ऐसे में नाटक जैसी मुश्किल विधा को यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर एक स्तरीय स्थान मिलना मुश्किल हैं। नाटक लिखना और करना दोनों ही आसान बात नहीं हैं। वर्तमान पीढ़ी के लिए राहुल कहते हैं कि ‘थिएटर’ अभिनेता को परिपक्व और अनुशासित बनाता है। अगर अभिनय की सही ट्रेनिंग करके कोई अभिनेता आगे बढ़ता है तो निश्चित ही उसका भविष्य बहुत उज्ज्वल है। और अच्छा ‘रंगमंच’ ही इसका सबसे सही रास्ता है। 3 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post जी ‘हुजूरी’ का रंगमंच….. next post ‘नाटक’ को चाहिए ‘बाज़ार’… Related Posts प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक… May 13, 2022 ‘मर्दो’ का नहीं ‘वीरों’ का है ये प्रदेश... March 10, 2022 रानी लक्ष्मीबाई जयंती—- November 18, 2021 ‘पारंपरिक खेल’ क्यों नहीं…? November 13, 2021 ‘विश्व हृदय दिवस’ September 29, 2021 ‘मुंशी प्रेमचंद’—जन्मदिन विशेष July 31, 2021 ‘रबर—पेंसिल’ …. July 10, 2021 बजता रहे ‘भोंपू’…. June 26, 2021 ‘ओलंपिक ‘ — कितना सही ….? June 23, 2021 ‘फटी’ हुई ‘जेब’…. June 20, 2021 3 comments ashks1987 March 25, 2021 - 6:27 am रंगमंच एक विधा है, यह हर किसी के पास नहीं है। आपके लेख ने इसे और भी सशक्त कर दिया है। मैंने कई नाटकों की रिपोर्टिंग की है और मुझे इसमें काफी मजा भी आता है। हमेशा एक चुनौती कुछ नया देखकर नया लिखने की। Reply Teena Sharma 'Madhvi' March 25, 2021 - 6:01 pm बिल्कुल प्रशांत जी। सही कह रहे हैं आप। Reply Anonymous March 26, 2021 - 8:38 am Nice One kumar pawan Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.