कहानियाँप्रासंगिक ‘रबर—पेंसिल’ …. by Teena Sharma Madhvi July 10, 2021 written by Teena Sharma Madhvi July 10, 2021 बड़ी ही हैरानी की बात हैं, जिस जनरेशन ने अपना बचपन अभी पूरा नहीं जिया है वो ही ‘जनरेशन’ कह रही हैं ‘क्या दिन थे वो’….। ‘जब हम स्कूल में पढ़ने जाया करते थे’…। ‘अमेजिंग’…’रियली वैरी मेमोरेबल डेज़’…। ‘क्या दिन थे वो जब लंच टाइम पर एक—दूसरे के टिफिन का खाना शेयर किया करते थे’…’क्या दिन थे वो जब मैम किसी एक को डांटती तब उस पर मंद—मंद मुस्कान के साथ दबी—दबी हंसी सभी की छूटती’….। एक—दूसरे को देखते और फिर मुंह पर हाथ रखकर हंसी दबाने की कोशिश करते …। न जानें कब खुलेंगे स्कूल….? कब वैन वाले अंकल का हॉर्न सुनाई देगा…? कब यूनिफॉर्म और स्कूल श़ूज पहनने को मिलेंगे…? कब खेल मैदान में दोस्तों के बीच ‘रेस’ होगी…? आख़िर कब सुनाई देगी वो स्कूल की घंटी…? ये व्यथा हैं ‘ऑनलाइन क्लास’ में बैठ रहे दो मासूम दोस्तों की…। जो क्लास से फ्री होने के बाद एक—दूसरे से रोज़ाना वॉट्सएप चैट पर हैलो—हाय करते हैं। कभी—कभार वीडियो कॉल भी कर लेते हैं…। लेकिन आज दोनों बेहद उदास हैं…। दोनों ही अपना स्कूल मिस कर रहे हैं…। तभी एक ने दूजे को फोन पर पूछा कैसा हैं यार तू…? दूसरी तरफ से सुस्ती भरी आवाज़ आई, ठीक ही हूं…। तू बता…तेरा क्या चल रहा हैं इन दिनों…? पहले ने जवाब दिया…क्या बताऊं यार…वहीं सुबह उठो…नीम—गिलोय पिओ…योगासन करो…ब्रेकफास्ट लो और फिर वहीं ‘ऑनलाइन क्लास’…। तू भी यही सब करता हैं ना…? टेलीफोन पर सुन रहे दोस्त ने कहा— ये ही समझ ले यार…बस नीम—गिलोय की जगह कभी—कभार एलोवीरा का ज्यूस तो कभी लौकी और मैथीदाने का पानी पी लेता हूं…। बाकी तो सब तेरे जैसा ही चल रहा हैं। अब तो इनडोर गेम्स खेल—खेल कर भी बोर हो चुका हूं…टीवी कार्टून्स देखना भी अब अच्छा नहीं लगता हैं….। जब से कोरोना आया है तब से डोरेमोन, सिंचेन और भीम भी नया कुछ नहीं कर रहे हैं…। हां…बद्री और बुडबक ज़रुर देखता हूं। इन दोनों की दोस्ती और स्कूल की शरारतें देखकर मुझे हम दोनों के वो स्कूल वाले दिन याद आ जाते हैं…। क्या दिन थे यार वो….। तभी पहले दोस्त ने बड़ी सी हामी भरते हुए कहा— हां..हां…तू सच कह रहा हैं वो दिन तो मुझे भी बेहद याद आते हैं…। तुझे याद हैं जब तेरे पास पेंसिल नहीं होती थी तब मैं ही तुझे पेंसिल देता था…और तू मुझे हमेशा अपना रबर देता था…। और हां…तूने जो मुझे वो ब्ल्यू वाला रबर दिया था ना, वो अब भी मेरे पास हैं…मैं उससे कुछ भी ‘इरेज़’ नहीं करता…। मुझे ऐसा लगता है कि कहीं वो इरेज़ करते—करते ख़त्म न हो जाए…। मैं तूझे वीडियो कॉल पर ज़रुर दिखाऊंगा…। तभी उस ओर से आवाज़ आई…सच में तूने वो संभालकर रखा हैं…? तभी पहले वाले दोस्त ने कहा…’हां यार’…। और फिर बात करते—करते दोनों दोस्त भावुक हो गए…। कुछ सैकंड का पॉज़ लिया और फिर एक साथ बोल पड़े ‘क्या दिन थे वो जब हम स्कूल जाया करते थे’….। काश! वो दिन फिर से लौट आए…। हम दोनों बैग लटकाए हुए स्कूल में मिलें…क्लास अटेंड करें…प्रजेंट मैम कहें…मैदान में खूब खेलें और…। तभी पहला दोस्त बोला हां सच ही कह रहा हैं यार…और… तू मुझे ‘रबर’ दे और मैं तुझे ‘पेंसिल’….। 0 comment 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post कबिलाई— एक ‘प्रेम’ कथा…. भाग—2 next post ठहर जाना ऐ, ‘इंसान’….. Related Posts लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन November 7, 2024 छत्तीसगढ़ का भांचा राम August 29, 2024 जन्माष्टमी पर बन रहे द्वापर जैसे चार संयोग August 24, 2024 देश की आज़ादी में संतों की भूमिका August 15, 2024 विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 मनु भाकर ने जीता कांस्य पदक July 28, 2024 रामचरित मानस यूनेस्को ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ सूची... May 15, 2024 वैदेही माध्यमिक विद्यालय May 10, 2024 Basant Panchami बसंत पंचमी February 14, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 29, 2024 Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.