प्रासंगिक मुद्दे ‘रिया’ नहीं ‘नौकरियां’ चाहिए… by Teena Sharma Madhvi September 9, 2020 written by Teena Sharma Madhvi September 9, 2020 किसी मुद्दे पर शोर उठना वाज़िब है। उठना भी चाहिए लेकिन इन दिनों सुबह—दोपहर—शाम और रात तक जो शोर सुनाई दे रहा है। उसने न सिर्फ लोगों के कान पका दिए हैं बल्कि कईयों की मन:स्थिति को भी बिगाड़ दिया है। निश्चित ही सुशांत सिंह राजपूत का मामला देश में गरम है। लोगों के दिलों में एक आग लगी हुई है। अब भी एक ही सवाल हरेक की जुबां पर बाकी हैं…क्या सुशांत ने वाकई सुसाइड की है या फिर उसका मर्डर हुआ है? इस सवाल का जवाब तो फ़िलहाल नहीं मिला हैं। उल्टा कई और सवाल खड़े होते जा रहे हैं। लेकिन एक आम आदमी जो कोविड—19 में जी रहा हैं। उसके सामने अब भी रोजी—रोटी और नौकरी का ही सवाल शेष खड़ा है। युवाओं को ‘रिया’ नहीं ‘नौकरियां’ चाहिए…देश का युवा परेशान हो रहा हैं। घर चलाने के लिए पैसा नहीं हैंं। काम के दरवाज़े बंद हैं..। किसान को भी ‘रिया’ नहीं ‘यूरिया’ चाहिए..। देश का किसान मर रहा हैं …। ऐसा नहीं कि मीडिया ऐसे विषयों को तरज़ीह नहीं देता है। समय—समय पर इन समस्याओं को भी उठाता रहा हैं लेकिन इस वक्त देश के मुश्किल हालातों में ये भी गरम मुद्दे हैं जो सीधे पेट से जुड़े हैं। इधर, देश में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। ‘कम्युनिटी स्प्रेड’ का खतरा मंडरा रहा हैं। देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 45 लाख के पार हो चुकी है। जगह—जगह से आए दिन अव्यवस्थाओं की ख़बरें भी सुनने व देखने को मिल रही हैं। कहीं पर मरीजों को रखने के लिए बिस्तर नहीं हैं तो कहीं पर मेडिकल स्टाफ के लिए किट नहीं…। इस सूरत में देश इससे निपटने के लिए ‘फाइनल राउंड’ में हैं या नहीं…? या फिर यूं ही संक्रमितों का आंकड़ा बढ़ता रहेगा…? लोग बचाव चाहते हैैं…संभलकर चलने के बावजूद कोरोना की चपेट में आ रहे हैं लोग…अर्थतंत्र गड़बड़ा गया हैं…ये मुद्दे मास को प्रभावित करते हैं….। ऐसे में सिर्फ सुशांत की ख़बरें सुन सुनकर और देख—देखकर लोगों की मन: स्थिति भी गड़बड़ाने लगी हैं। दो घड़ी चैन सुकून से बैठकर समाचार देखने की चाह में लोग जैसे ही टीवी चालू करते हैं तो टीवी पर रिया चक्रवर्ती और ड्रग एंगल या फिर गिरफ्तारी से जुड़ी ख़बरें है। कोई भी न्यूज़ चैनल देखो बस ‘मर्डर वर्सेस सुसाइड’ का शोर है। थोड़ी बहुत ख़बरें बदली हुई दिख भी जाए तो कंगना रनौत के मुंबई आने और फिर उसे ‘वाई’ प्लस सुरक्षा मिलने को लेकर है। कोरोना तो बस अपडेट बनकर रह गया है। चीनी घुसपैठ को नाकाम करते हुए स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के कमांडो न्यिमा तेनजिंग शहीद हो गए। देश के इस वीर जवान के सम्मान में यदि मीडिया में स्पेशल कवरेज या मोटिवेशनल स्टोरीज चल रही होती तो शायद पूरे देश का नौजवां ख़ुद का हौंसला बढ़ाने की सीख ले पाता..शायद युवा भटकाव से बेहतर ख़ुद को संभालकर जीने की राह पकड़कर चलना सीखता…। लेकिन इस दिन भी कुछ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने महज़ एक पैकेज स्टोरी बनाकर दिखा दी। क्यूंकि सवाल तो टीआरपी का था। निश्चित ही चौथे स्तंभ के रुप में मीडिया की बहुत गहरी और अहम भूमिका हैं जिसे समय—समय पर मीडिया निभाता भी आया हैं और निभा रहा हैं लेकिन सुशांत केस को लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इतना बावला क्यूं हुए जा रहा है…? आख़िर क्यूं, टीवी एंकर की मुद्रा एक जजमेंट देने के रुप में नज़र आ रही है। सवाल—जवाबों में इतनी तल्खी क्यूं…? एक्सक्लुसिव और ब्रेकिंग के नाम पर दिनभर एक ही बात को बार—बार क्यूं दिखा रहे हैं…? जबकि देश की तीन बड़ी एजेंसियां इस पूरे मामले को देख रही है…। माना कि मुंबई और मायानगरी में ग्लेमर की चकाचौंध हैं और इस दुनिया की कवरेज से चैनल्स की टीआरपी भी बढ़ती हैं लेकिन सुशांत केस में तो मीडिया ने सारी हदें पार कर दी है। टीआरपी बढ़ाने की जो गंदी होड़ मची हैं उसने देश के लाखों—करोड़ों दर्शकों को कहीं न कहीं निराश भी किया है। देश वाकई सुशांत की मौत के मामले में दोषियों की सजा चाहता है। एक युवा अभिनेता का यूं चले जाना, ये वाकई गंभीर और संवेदनशील है। निश्चित रुप से दोषियों को सजा मिलनी ही चाहिए। लेकिन मीडिया में लगातार दिखाई जा रही इस कवरेज को देखकर ये राजनीतिक एजेंडा अधिक नज़र आने लगा है। एक पत्रकार होने के नाते मीडिया के इस रुख़ से मुझे भी कोफ़्त हो उठी है। मीडिया ‘जज’ नहीं हैं ये मीडिया को समझना होगा। उसे भी अपनी लक्ष्मण रेखा का भान हो…। इस नाज़ुक वक़्त में मीडिया से ये अपेक्षा हैं कि वो संयम के साथ ख़बरों का प्रस्तुतिकरण करें। क्योंकि हर ख़बर सिर्फ ख़बर ही नहीं होती हैं। जिसे सिर्फ एजेंडा बनाकर दर्शकों के सामने बस परोसा जाए…। 3 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post खाली रह गया ‘खल्या’.. next post कब बोलेंगे ‘हम’ सब ‘हिन्दी’… Related Posts महिला अधिकार व सुरक्षा January 12, 2023 असल ‘ठेकेदारी’ करके तो देखो.. 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