मन ही मन उसे अपने पति का कहा हुआ सही भी लगता। क्यूंकि ज़ज्बातों से तो पेट नहीं भरता है। पेट और भूख के पीछ निवाले की ज़रुरत होती है जो बगैर पैसों के नहीं मिल सकता। इस निवाले की ख़ातिर ही इंसान को न जाने कितनी मेहनत करनी पड़ती है।
मगर सोमित ये कैसे समझता। बचपन से वह विदेश जाने का सपना देख रहा है। उसकी ख़्वाहिश है कि वो कोई बड़ा बिजनेस करें जिसमें खूब पैसा हो और फिर विदेश में बैठकर अपना बिजनेस चलाए। इसीलिए वो पिताजी के बताएं हुए काम ना तो सुनता और ना ही उन कामों को करनी की सोचता। धीरे—धीरे वक़्त रेत की तरह फिसल रहा था लेकिन बाप—बेटे के बीच काम को लेकर रोजाना नोंक—झोंक होती रही।
एक दिन सोमित ने पिताजी को कहा कि आप घर को बेच दो और उसमें से आधा पैसा उसे दे दो जिससे वो अपना कोई भी बिजनेस कर लेगा। पिताजी भड़क गए। उन्होंने कहा कि उनके पास पूंजी के नाम पर सिर्फ ये घर ही तो हैं। इसे भी बेच देंगे तो वे सड़क पर आ जाएंगे। और फिर उनके पापड़ के बिजनेस से कोई बड़ी इनकम भी नहीं होती है।
उन्होंने फिर सोमित को पुराना वाला राग अलापते हुए कहा कि वो 'परचूनी' की दुकान खोल लें। और अपने ही बनाए हुए प्रोडक्ट को उसमें बेचना शुरु कर दें। धीरे—धीरे ये ही प्रोडक्ट वो विदेशों में भी एक्सपोर्ट करें। ऐसा करके उसे अच्छी इनकम होगी और कभी भी किसी के सामने हाथ फैलाने की ज़रुरत नहीं होगी। रहा सवाल विदेश जाने का तो यह सपना भी पैसा कमाते ही पूरा हो जाएगा।
पिताजी की बात सुनकर सोमित बुरी तरह से चिड़ गया उसने पिताजी को ये तक कह दिया कि मुझे आपकी तरह पापड़ बेचने वाला समझते हैं क्या आप...ये मेरे कैडर का काम है क्या..। मैं विदेश में बैठकर बिजनेस चलाने की सोचता आ रहा हूं और आप मुझे ये 'लाला' की दुकान चलाने को कह रहे है।
सोमित पिताजी की बात को बीच में ही काट देता है और ये कहकर घर से बाहर निकल जाता है कि आपने क्यूं नहीं खोली दुकान..ख़ुद क्यूं नहीं बन गए लाला।
समय इन दोनों के बीच की खटपट के साथ ही आगे निकल रहा था। आज जबकि पूरा देश लॉकडाउन में हैं तो बाप—बेटे और मां का जीवन यूं तो पहले की ही तरह चल रहा है लेकिन अब पिताजी ना तो सोमित को काम के बारे में कुछ कह रहे हैं और ना ही सोमित अब विदेश जाने की बातें कर रहा है। कुछ पैसा है जिसे मां ने अपनी बचत के रुप में घर में रखा हुआ था उसी से अभी घर का खर्च चल रहा है। लेकिन मां और पिताजी की चिंता को सोमित अब महसूस ज़रुर कर रहा है। उसे समझ आ रहा था कि कब तक मां के बचाए हुए पैसो से घर चलेगा। मुझे कुछ तो काम करना होगा। लेकिन लॉकडाउन के बीच कैसे नई शुरुआत हो। वह सोच की गहराई में डूबा हुआ है। तभी उसकी सोच एक किनारे से टकराती है।
वह सोचता है कि लॉकडाउन की वजह से जिस तरह से जीवन शैली में बदलाव महसूस किए जा रहे हैं निश्चित ही इन हालातों के बाद आने वाले समय में बिजनेस करने के तौर तरीके भी बदलेंगे। अब सोमित का द़िमाग दिन—रात एक ऐसे बिजनेस की तलाश में जुट गया है जो कभी बंद ना हो और जिससे मुनाफा भी हो। रहा सवाल विदेश में रहकर बिजनेस करने का तो अब उसका मन अपने देश में रहकर ही ख़ुद का बिजनेस करने का है। वह मन ही मन तय करता है कि वो विदेश तो जाएगा लेकिन सिर्फ घूमने के लिए।
लॉकडाउन से बदले हालात के बाद अब सोमित की सोच में परिवर्तन आ रहा था। आज पहली बार ऐसा हुआ कि वो अपने पिताजी के पास ख़ुद चलकर गया और उनसे बिजनेस करने की बात छेड़ी। सोमित ने उनसे कहा कि हमेशा आपकी बात काटता रहा हूं लेकिन आज मुझे आपको सुनना है। पिताजी ये सुनकर बहुत खुश हुए और उसे अपने पास बैठने को कहते है। सोमित कहता है कि आप कौन सा बिजनेस करने की कह रहे थे...।
पिताजी जोरों से हंसते हैं। तभी सोमित कहता है कि मैं आपसे गंभीरता से पूछ रहा हूं और आप हंस रहे हैं। पिताजी कहते हैं कि मैं इसलिए हंस रहा हूं क्योंकि जो समय को पहचान कर उसके साथ उसी रुप में ढलकर बिजनेस की सोचे वो ही पक्का लाला होता है। और तु तो आज लाला वाली बातें कर रहा है।
सोमित हल्का सा मुस्कुराता हैं। फिर पिताजी गंभीरता के साथ उसे कहते हैं कि अपने घर में सालों से जो दुकान खाली पड़ी हैं। जिसे किसी ज़माने में पिताजी चलाया करते थे उसे नई शक्ल देकर फिर से चालू करो और इसे एक मॉर्डन लुक दे दो। ऐसा करने के लिए ना तो तुम्हें इसका किराया देना हैं बल्कि तुम खाली पड़ी जगह का सही इस्तेमाल भी कर सकोगे। यानि कि 'हिंग लगी ना फिटकरी और रंग भी चौखा आए'..समझे।
सोमित को पिताजी का बताया हुआ बिजनेस और उसका गणित दोनों अब बहुत अच्छे से समझ आ रहा था। वह बिना देरी किए हुए दुकान खोलने की ठान लेता है। पिताजी कहते हैं कि बेटा बिजनेस का पहला फार्मूला है बिजनेस का सही चुनाव करना। फिर उसके लिए बैठक देना यानि पूरा समय देना। मैं यदि समय पर अपने पिताजी की बात सुनकर ये बैठक दे पाता तो शायद आज पापड़ का छोटा सा बिजनेस नहीं कर रहा होता। लेकिन मुझे यकिन हैं कि तुम इस बिजनेस के लिए बैठक दोगे।
सोमित पिताजी के गले लग जाता है। आज मां भी बेहद खुश है। अगले दिन सुबह तीनों मिलकर दुकान की साफ—सफाई करते है और फिर मां दुकान में एक पानी का कलश रखती है। पिताजी कहते हैं नई शुरुआत के लिए तुम्हें आशीर्वाद।
सोमित पिताजी को कहता है कि उसने लॉकडाउन में महसूस किया कि इस वक़्त सबसे बड़ी ज़रुरत सिर्फ राशन था। प्राथमिक ज़रुरत के नाम पर परचूनी वालों की दुकानें ही खुली रही। वाकई ये बिजनेस कभी ना ख़त्म होने वाला है।
सोमित को दुकान चलाने का यह बिजनेस अब पूरी तरह से समझ आ गया था। उसने पिताजी से कहा कि उपलब्ध संसाधनों का सही इस्तेमाल करने का वक़्त आ गया है। इसी दुकान से वो ख़ुद के बनाए हुए प्रोडक्ट को भी मार्केट में प्रमोट करेगा। और इन प्रोडक्ट के साथ वो पापड़ के बिजनेस को भी आगे बढ़ाएगा।
वह पिताजी की ओर देखता है और कहता है कि आपका बिजनेस आइडिया वाकई पक्का है। फिर चाहे लॉकडाउन ही क्यूं ना हो...'लाला' की दुकान तो अब भी चालू है। सोमित की बात सुनकर पिताजी जोरों से हंस पड़ते है।