मेरे कुछ शब्द आज उस कलाकार को समर्पित हैं जिसने अपनी अदायगी से सिनेमा जगत में अमिट छाप छोड़ी हैं। इनके जाने से वाकई सिनेमा जगत में एक सूनापन ही शेष रह गया है। मेरे पास आज वो शब्द नहीं जिनसे मैं इस दु:खद पल को भर सकूं..।
कुछ शब्द शेष है जो इस महान कलाकार को हमेशा अपनी अदायगी के रुप में जिंदा रखेंगे...।
इरफान खान मेरे पसंदीदा कलाकारों में शामिल थे...लेकिन आज जब उनके निधन की ख़बर सुनी तो दिल धक से रह गया। दिल मानने को तैयार न था लेकिन सच को स्वीकारना ही था...।
ये वो कलाकार थे जो अपने किरदार को जीते थे, यहीं वजह है कि इनकी हर फिल्म का किरदार अलग—अलग रुप में नज़र आता। लेकिन हर किरदार में कुछ नयापन होता, जो हमेशा निखर कर आता। ऐसे उम्दा और दमदार किरदार को भूल पाना संभव नहीं होगा...।
जब भी उम्दा और बेहतरीन अदायगी की बात होगी..ये 'पान सिंह तोमर' और 'मकबूल' हमेशा याद आएगा..। इरफान में सीखने की जो ललक थी वो ही उनकी फिल्मों में साफ दिखती थी। जो हर किसी के लिए एक प्रेरणा है। ..वरना यूं ही लंच बॉक्स का 'साजन' और हासिल का 'स्टूडेंट लीडर रणविजय' दर्शकों के दिल में जगह न बनाते...।
इरफान की अदाकारी को जीने वाले कैसे भूलेंगे उनकी फिल्म ब्लैकमेल, सलाम बॉम्बे, द वॉरियर, रोग, स्लम डॉग मिलेनियर, सात खून माफ, हैदर, पीकू , बिल्लू बारबर, हिन्दी मीडियम और हाल ही में निर्देशित अंग्रेजी मीडियम में निभाई हुई उनकी भूमिका को..।
जयपुर में पले—बड़े, यहां की गलियों में घुमने वाले और बॉलीवुड—हॉलीवुड में अपने संवादों की अदायगी का जलवा बिखेरने वाले इरफान ने भले ही जिंदगी की जंग हार दी हो लेकिन वे करोड़ों दिलों में हमेशा जीते रहेंगे...।
मेरी यह पोस्ट आज इस महान कलाकार को श्रृद्धाजंलि अर्पित करती है.........।