तभी अचानक से घर के दरवाजे की घंटी बजी। शोभना दरवाजा खोलने के लिए उठती है। तभी अमित कहता है तुम बैठो मां, मैं देखता हूं और फिर वह दरवाजा खोलता है। लेकिन दरवाजा खोलते ही वह हैरान था। बिना पलके झपकाएं उसकी आंखे एकटक देख रही थी। तभी शोभना ने पूछा अरे कौन है। जब अमित ने कुछ नहीं बोला तब शोभना बाहर आई और दरवाजे पर खड़े व्यक्ति को देखा, अमित चुप खड़ा था और अब शोभना भी चौंकी हुई थी। दरवाजे पर खड़ा व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि उसका पति सुनील था। लंबी दाड़ी, बड़े हुए बाल और दुबला पतला शरीर। एक हाथ में पानी की बोतल और दूसरे हाथ के कंधे पर टंगा हुआ एक छोटा सा बैग। शोभना ने अपनी शून्यता तोड़ी और उसे अंदर आने को कहा। शोभना ने बेटे अमित को पानी लाने को कहा। सुनील ने पानी पीया और शोभना से पूछा कि कैसे हो तुम दोनों।
क्या जवाब देती शोभना...पिछले पंद्रह सालों से अपने बेटे के साथ अकेली रह रही थी। आज उसे सुनील के इस सवाल पर बेहद हैरानी थी लेकिन सुनील की बुरी हालत देखकर वो क्या बोलती। सिर्फ इतना ही कह पाई हम दोनों तो ठीक हैं लेकिन तुम्हारी हालत ठीक नहीं लगती। सुनील ने चारों तरफ देखा फिर गर्दन नीचे करते हुए बोला, शायद अब ठीक हो जाऊं। तुम दोनों को जो देख लिया है। सुनील ने अपने बेटे अमित को अपने पास बुलाया उसके सिर पर हाथ रखा..उसे नीचे से लेकर ऊपर तक देखा और बोला कि, तुम तो बहुत बड़े हो गए हो।
अमित ने अपने पिता की आंखों में आंखे डालकर देखा और बोला... हां पापा 25 साल का हो गया हूं। जब आपने छोड़ा था तब सिर्फ दस साल का था। ये कहकर वो अपने कमरे में चला गया। सुनील अपने बेटे की बात सुनकर खुद पर शर्मशार था। जिस वक़्त उसके बेटे को उसकी बेहद ज़रुरत थी तब वो उसके पास नहीं था लेकिन आज वो एक जवान लड़का है जो ख़ुद अपना और मां का ख्याल रखने के लिए सक्षम है।
वो शोभना के सामने हाथ जोड़कर कहता है मुझे माफ कर दो..मैं तुम दोनों का गुनहगार हूं। लेकिन आज मुझे अपने परिवार की ज़रुरत है। जिस शराब की खातिर मैं भटक गया था और तुम दोनों को अपने घर से धक्का देकर निकाल दिया था। आज उसी की वजह से ना तो मेरे पास घर रहा और ना ही पैसा। फुटपाथ पर समय गुज़ार रहा था। लेकिन आज जब पूरे देश में विकट हालात है। और एक वायरस ने जब लोगों को अपने परिवार के साथ रहने की स्थितियां पैदा कर दी तो मुझसे रहा नहीं गया। और मैं तुम लोगों को ढुंढता हुआ यहां चला आया। मैं संभल गया हूं शोभना। परिवार से बढ़कर कोई च़ीज नहीं। मुश्किल घड़ी में जब सभी लोगों को अपने बीवी, बच्चों और मां—बाप के साथ देख रहा हूं तो ख़ुद को बेहद अकेला पाता हूं। मुझे उम्मीद है तुम और बेटा अमित मुझे अपना लोगें।
लेकिन आज जब जीवन का ही भरोसा नहीं रहा तो फिर तुमसे क्या शिकायत करुं। संघर्ष के उन पलों को भूलाना हम दोनों मां बेटे के लिए आसान नहीं है। तुम्हारे धक्का दिए जाने के बाद हमनें फुटपाथ पर दिन बिताएं। फिर आश्रयघर और धर्मशाला में रहकर समय निकाला। गुरुद्वारे में जाकर लंगर का खाना खाकर पेट भरा। ग्रेजुएट थी इसीलिए एक स्कूल में टीचर की नौकरी मिल गई। लेकिन अमित की पढ़ाई और घर खर्च के लिए नौकरी ही काफी नहीं थी। इसाीलिए घर—घर जाकर बच्चों की ट्यूशन ली। आज तुम्हारा बेटा इंजीनियर है। हमारे पास ख़ुद का घर है लेकिन यहां तक का सफर हमारे लिए आसान नहीं था। अब हम दोनों मां—बेटा एक—दूसरे की आदत बन गए है। हमें आज किसी की कमी महसूस नहीं होती।
अब तो बस ये ही कह सकती हूं। हमारे साथ ही रहो और भूल जाओ उन पलों को जिसमें कड़वी यादों के सिवा कुछ नहीं। और ईश्वर से प्रार्थना करो कि हमारे साथ—साथ पूरे विश्व को इस संकट की घड़ी में वायरस अटैक से बचाएं। आज अपने मतभेद दिखाने का वक़्त नहीं है। बल्कि मनभेद को दूर करके साथ चलने का वक़्त है। मुझे अब तुमसे कोई शिकायत नहीं लेकिन अब से जो भी पल हम साथ बिताएं उसे सिर्फ जीएं...। न जानें अगले ही पल क्या हो जाएं...।
शोभना ये कहकर रसोईघर में चली गई और सुनील के लिए भोजन की तैयारी करने लगी। सुनील को आए हुए एक सप्ताह बीत गया। इन तीनों का जीवन अब एक सामान्य परिवार की तरह चलने लगा है। इधर, सुनील मन ही मन पश्चाताप के आंसू रो रहा था और उसे अहसास हुआ कि उसने बीते पंद्रह सालों में क्या खो दिया था। परिवार से बढ़कर कुछ नहीं है।