ज्वलंत मुद्ददे सोशल मीडिया से ‘ऑफलाइन’ का वक़्त तो नहीं….? by Teena Sharma Madhvi February 27, 2021 written by Teena Sharma Madhvi February 27, 2021 पिछले दिनों पूरी देश—दुनिया ने ट्विटर और भारत सरकार के विवाद का तमाशा देखा है। ये बेहद ही शर्म की बात हैं कि एक विदेशी टेक्नोलॉजी कंपनी ट्विटर ने देश के एक संवैधानिक आदेश को मानने से इंकार कर दिया था। इतना ही नहीं कंपनी ने खुले रुप से देश के कानून व नियमों तक को चुनौती दे डाली कि जिन अकाउंट्स को सरकार ने बंद करने को कहा हैं वे भारतीय कानूनों के अनुरुप हैं। और कंपनी ने इसे ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ के दायरे में पाया हैं। फोटो—सिद्धी अब ऐसा ही एक और विवाद ऑस्ट्रेलिया और फेसबुक के बीच सामने आया हैं। ऑस्ट्रेलिया सरकार की तो ये तक नौबत आन पड़ी कि फेसबुक का सामना करने के लिए उसने भारत से मदद मांगी हैं। इतना ही नहीं ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने फेसबुक के रवैए के ख़िलाफ दुनिया के नेताओं का समर्थन जुटाने पर भी बात की हैं। लेकिन ‘लॉजिकली’ अजीब बात लगती है ये। अब इसे इत्तेफ़ाक कहे या सोची समझी साज़िश। ‘ट्विटर’ और ‘फेसबुक’ दोनों ही को इन सरकारों के ‘कायदे—कानूनों’ से दिक्कत हैं। दोनों ने ही सरकारों के ख़िलाफ जाकर अपनी मर्जी चलाते हुए स्वयं निर्णय भी ले लिया। आख़िर क्यूं…? पिछले दिनों भारत में जब सरकार ने ट्विटर को 1 हजार 178 अकाउंट्स ये कहते हुए बंद करने को कहा कि इन अकाउंट्स से आंदोलन के संबंध में ग़लत और भ्रामक जानकारी फैलाई जा रही हैं और ये सभी अकाउंट्स राष्ट्र विरोधी हैं। तब इस पर ट्विटर ने सरकार को तर्क दिया था कि जिस आधार पर अकाउंट बंद करने के लिए कहा हैं वो भारतीय कानूनों के अनुरुप नहीं हैं। ऐसा कहकर ट्विटर ने ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ का हवाला दिया और सरकारी आदेश को मानने से इंकार कर दिया था। ऐसा ही अब फेसबुक ने भी किया है। फेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया सरकार के एक कानून के विरोध में अप्रत्याशित कदम उठाते हुए यहां पर न्यूज़, हेल्थ व इमरजेंसी सेवाओं के पोस्ट पर रोक लगा दी हैं। फेसबुक ने तो सरकार से बात करने की भी ज़हमत नहीं उठाई। सीधे ही ज़रुरी कंटेंट पर रोक लगा दी। इसका परिणाम ये हुआ कि लाखों यूजर्स बिना किसी पूर्व जानकारी के परेशान हो रहे हैं। विवाद सामने आया तब यूजर्स को पता चला। इसे देखने के बाद लगता हैं कि शायद आने वाले वक़्त की लड़ाई अब ‘सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मस’ के नाम पर ही लड़ी जाएगी और शायद भारत व आस्ट्रेलियां इस लड़ाई के लिए पहले मैदान हो…? इसे फिलहाल ‘सरकार वर्सेस सोशल मीडिया’ कहें तो ग़लत नहीं होगा। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मस की बढ़ती हिमाकतों के बाद इस जगह एक सवाल और भी खड़ा होता है कि क्या सच में सोशल मीडिया से ‘ऑफलाइन’ होने का समय आ गया हैं…? क्या सच में इससे ब्रेक लिया जा सकता है…? अब जबकि पानी सर से बहने लगा हैं तब सरकारें तिलमिला रही हैं। जिस सोशल मीडिया पर आने का न्योता आमजन को ख़ुद सरकारें ही दे रही थी आज उसी के लिए ये सोशल मीडिया ही सबसे बड़ा दुश्मन बन बैठा है..। लेकिन सवाल अब भी बाकी हैं। आख़िर क्यूं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मस सरकार के नियम और कानूनों को नहीं मान रहे हैं…? क्यूं सरकारों को ये दलीलें दी जा रही हैं कि ये तो अभिव्यक्ति की आज़ादी हैं…? क्या वाकई ये अभिव्यक्ति की आज़ादी का मसला है..? या फिर इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी का मसला बनाया जा रहा हैं…? इससे पहले एक सवाल तो ये भी उठता है कि इसकी नौबत ही क्यूं आई..? क्यूं ऐसे हालात बनें जब इन टेक्नोलॉजी कंपनियोें की इतनी हिमाकत हो चली कि वो देश के कानून पर ही सवाल खड़ा कर दें..? कहां से आई उनमें ये बोलने की हिम्मत..? क्या तात्कालिक कोई कारण हैं या फिर कुछ और..? इसका जवाब फिलहाल वक़्त पर छोड़ते हैं। लेकिन बेहद हैरानी और दु:ख की बात हैं कि एक बाहरी कंपनी देश के भीतर ही हमें हमारे अधिकारों के बारे में बता रही हैं कि हमारी ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ है क्या..? ऐसे में ये सवाल उठना भी लाज़िमी है कि क्या अब हमें हमारे ही देश में हमारे अधिकारों के प्रति सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बताएंगे..? क्या हमें ख़ुद नहीं पता कि हमें इस प्लेटफॉर्म पर कौन—सा कंटेंट डालना चाहिए और कौन—सा नहीं? इसका सदुपयोग करेें या दुरुपयोग…? अब जबकि ट्विटर के साथ विवाद बढ़ गया है तब सरकार उसे कह रही हैं कि देश में काम करना है तो यहां के कानूनों की पालना करनी होगी। अब सरकार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भारतीय कानूनों के प्रति अधिक जिम्मेदार बनाने के लिए आईटी नियमों में संशोधन भी करने जा रही हैं। शायद नींद अब टूटी हैं सरकार की। तभी इन पर शिकंजा कसने की तैयारी में जुट गई हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि विदेशी सोशल मीडिया को टाटा—बाय, बाय कहने के लिए यही समय हो। ऐसी ही सुगबुगाहट पिछले साल मार्च में भी नज़र आई थी जब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि वे सोशल मीडिया से दूरी बनाने पर विचार कर रहे हैं। इसके बाद वे बहुत ट्रोल भी हुए थे। मोदी जी के इस विचार के बाद सियासतें भी गरमा गई थी। उस वक़्त सबसे बड़ा सवाल ये था कि, वर्ष 2014 में सरकार ने इसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल से एक बड़ी जीत हासिल की थी। और बाद में पहली पार्लियामेंटरी बैठक में बकायदा देश के लोगों को सोशल मीडिया के इस्तेमाल के लिए भी कहा गया था। फिर 2020 में अचानक से ऐसा क्या हुआ जो सोशल मीडिया को अलविदा कहने का विचार मोदी जी के मन में आया…? लेकिन इसकी तह में जाकर देखें तो शायद 2021 में इसकी परिणति कुछ—कुछ स्पष्ट सी भी लगती हैं।शायद उस वक़्त ही सोशल मीडिया के ग़लत दुरुपयोग को लेकर कोई बड़ा फैसला लिया जाना हो…? या हो सकता हैं कि ‘स्वदेशी क्रांति’ लाने की तैयारी हो…? यदि उन्मादी विचारों, उत्पाती और देशद्रोही गतिविधियों कोे रोकने के लिए ट्विटर जैसे तमाम माइक्रोब्लॉगिंग साइट्स पर शिकंजा कसा जा रहा हैं तब तो ये वाकई सराहनीय कदम हैं। लेकिन उससे पहले एक नज़र ट्विटर के यूजर्स पर डालें तो पूरी दुनिया में इसके लगभग 33 करोड़ यूजर्स हैं। और भारत की बात करें तो 3 करोड़ 44 लाख यूजर्स हैं यानि कि 10 प्रतिशत यूजर्स तो अकेले भारत में ही हैं। ऐसे में इनसे दूरी बनाकर चलना क्या संभव हैं..? आज ग्लोबल कनेक्टिंग का ज़माना हैं। और ऑनलाइन की आभासी दुनिया के साथ चलना मजबूरी बन चुका हैं। और फिर हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि ट्विटर, फेसबुक, वॉट्सएप, लिंक्डइन जैसे कई ऐप्स ने हमारे जीवन को सरल बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। इसका एक बेहतरीन उदाहरण हैं भारतीय रेलवे। हाल ही में कोरोनाकाल में भी सोशल मीडिया अलग—अलग तरह से मददगार साबित हुआ हैं। अब यदि विदेशी सोशल मीडिया पर आईटी कानूनों के तहत सरकार संशोधन कर रही हैं तो उसे भली भांती जांच लें। ये ज़रुर विचारें कि क्या इन प्लेटफॉर्म्स पर शिकंजा कसने से समस्या का समाधान हो पाएगा ? क्या लोग गैर ज़रुरी कंटेंट पोस्ट करना बंद कर देंगे? इतना ही नहीं इन दिनों लगभग सभी प्रचलित विदेशी एप के स्वदेशी वर्जन भी आ चुके हैं। ऐसे ही एक स्वदेशी एप ‘कू’ की बड़ी चर्चा हो रही हैं। जो ट्विटर की ही तरह काम में आता हैं। इसके अलावा वॉट्सएप का स्वदेशी वर्जन ‘संदेश’, टीक—टॉक का ‘चिंगारी’, पबजी का ‘फौजी’, केम स्कैनर का ‘कागज़ स्कैनर’ हैं। क्या इन स्वदेशी प्लेटफॉर्म पर देश विरोधी गतिविधियों पर लगाम लग सकेगी..? क्या ये एप आने वाले समय में इस बात की गारंटी देंगे.? ये नहीं भूलना चाहिए कि विदेशी एप छोड़कर लोग स्वदेशी एप अपना तो लेंगे। लेकिन ऐसा करके सिर्फ माध्यम ही बदलेगा ‘अभिव्यक्ति’ तो अपनी जगह ही रहेगी। सरकार इस पर भी विचार करें कि देश में तकनीकी दक्षता वाले युवा भी हैं, जो आगे बढ़ रहे हैं। जिस तरह चीन ने अपने खुद का ‘बाइडू’ सर्च इंजन इज़ाद किया है क्या हमारे ये दक्ष युवा ऐसे ही और बेहतर स्वदेशी एप और मैसेजिंग प्लेटफॉर्म इज़ाद नहीं कर सकते..? जिससे ऑनलाइन की राहे आसान हो सके। जिसके इस्तेमाल से कोई बखेरा खड़ा न हो। 0 comment 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post पुजारी की ‘बीड़ी’ next post महिलाओं के बिना अधूरा ग़ज़ल ‘फलक’ Related Posts बांडी नदी को ओढ़ाई साड़ी August 3, 2024 मनु भाकर ने जीता कांस्य पदक July 28, 2024 नीमूचाणा किसान आंदोलन May 14, 2024 ‘मर्दो’ का नहीं ‘वीरों’ का है ये प्रदेश... 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