'कहानी का कोना' में आज पढ़िए लेखिका, कवियित्री निरुपमा चतुर्वेदी 'रूपम' की लिखी कविता 'गूंगी कविता'...। 'मौन की चीत्कार' से जन्मी 'गूंगी कविता' स्त्री मन की विभिन्न परतों को खोल उसके भीतर छुपे कई गहरें भावों की अनुभूति कराती है..। लेखिका निरुपमा चतुर्वेदी की मुख्य विधा - ग़ज़ल, मुक्तक और गीत हैं..।
गूंगी कविता--
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कितनी ही बार
अपने अश्कों
के समुंदर में नहायी हूँ
कई बार चीखी व चिल्लाई हूँ
ख़ुद को अभिव्यक्त करने ,
सही साबित करने के लिये
पर कौन सुनता है
सब ही तो बहरे हैं

निरुपमा चतुर्वेदी 'रूपम'
अन्याय करने वाला भी
और न्याय की पुकार
सुनने वाला भी
आवाजों की अनसुनी में
ढह जाती है
विश्वास की दीवार
खत्म होती जाती है
रिश्तों की दरकार
इस खींचातानी में
साध लेती है
मेरी प्रज्ञा
मौन की चीत्कार
वहीं से जन्म लेती है
वह "गूंगी कविता"
जो न सिर्फ़ बोलती है
ज़्यादा है असरदार
इसका दायरा भी है
फैला हुआ,
निःसन्देह
देखा है हम सभी ने
"गूंगी कविता" का चमत्कार!!
तभी तो....
कहन से ज्यादा प्रभावी है
क़लम की धार।
निरुपमा चतुर्वेदी 'रूपम'
जयपुर
निरुपमा चतुर्वेदी 'रूपम' के कई साझा संग्रह प्रकाशित हुए हैं जिनमें 'विहंग प्रीति के'(मुक्तक-संग्रह) गीतिका है मनोरम सभी के लिए (गीतिका संग्रह), साझा गजल संग्रह, काव्य- कुंज, अल्फाज़ के गुँचे, साहित्य-कुन्दन, अधूरी ग़ज़ल आदि शामिल हैं। इन्हें 'गीतिका श्री', 'मुक्तक-शिरोमणि', 'काव्य-श्री', 'साहित्य-कुन्दन' आदि सम्मानों से नवाज़ा गया हैं। वर्तमान में ये फेसबुक के कई मंचों पर सक्रिय होने के साथ ही कई साहित्यिक समूहों के साथ जुड़ी हुई हैं।
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