अदायगी का मंच आज फिर मौन हो गया...जब उसने एक दमदार और सशक्त अभिनेता को खो दिया...। कल इरफान के सदमे से अभी देश उभरा भी नहीं था कि आज सुबह फिर एक और सदमा मिला कि...ऋषि कपूर नहीं रहे....।
कला जगत में अपनी अलग पहचान बनाने वाले इस उम्दा कलाकार को भूल पाना वाकई संभव नहीं होगा। ऋषि कपूर जिन्हें 'चिंटू' निकनेम से भी पुकारा जाता था..अब सिर्फ उनकी यादें ही शेष रह गई है।
आज मुझे 2017 का वो दिन याद आता है जब जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में इनकी कवरेज के लिए गई थी। ऋषि जी ने यहां पर अपनी आत्मकथा 'खुल्लम—खुल्ला' की बुक लांच की थी। इस दौरान उन्होंने अपनी ज़िंदगी से जुड़े कई किस्से साझा किए थे। जिसे सुनकर दर्शक झूम रहे थे। जब उन्होंने फिल्म 'सागर' का जिक्र करते हुए कहा कि' मैं शायर तो नहीं...तो वाकई दर्शक दीर्घा में बैठे हर शख़्स के चेहरे खिल उठे थे...। मेरे लिए इसलिए ये सुखद अनुभव रहा कि मैंने उन्हें रुबरु देखा था। लेकिन आज वे अपने प्रशंसकों के चेहरे पर अपने ना होने की उदासी छोड़ गए है।
ये उन कलाकारों में शामिल थे जिन पर अपने ख़ानदान का नाम और परवरिश का रंग नहीं चढ़ा था..इनकी पहचान इन्होंने अपने दमदार अभिनय से कला जगत में स्थापित की थी।
आज भी जब दीवाना फिल्म का ज़िक्र होता है तो रवि के रुप में ऋषि कपूर का अभिनय सभी के मानस पटल पर सहजता से उभर आता है..और उनका वो डायलॉग कि...'मैं मरकर भी नहीं मर सका'...याद आता है। वाकई वे इस डायलॉग को हमेशा के लिए अपने चाहने वालों के दिलों में जीवंत कर गए।
ऋषि कपूर भी दो साल से कैंसर से जूझ रहे थे..लेकिन ज़िंदगी की जंग में किस्मत ने उनका साथ छोड़ दिया। बॉलीवुड के शो मैन राजकपूर के बेटे ऋषि कपूर को उनकी फिल्मों में बेहतरीन अदाकारी और सशक्त अभिनय के साथ—साथ एक जिंदादिल इंसान के तौर पर भी जाना जाता रहेगा।
उनका नाम जब भी जुबां पर आएगा तब—तब प्रेम रोग का देव, बोल राधा बोल का किशन, लैला—मजनूं का मजनूं और अमर अकबर एंथनी का अकबर वाला किरदार ज़रुर इस अभिनेता की याद दिलाता रहेगा।
मेरी यह पोस्ट ऋषि कपूर को श्रृद्धांजलि अर्पित करती है।
ये उन कलाकारों में शामिल थे जिन पर अपने ख़ानदान का नाम और परवरिश का रंग नहीं चढ़ा था..इनकी पहचान इन्होंने अपने दमदार अभिनय से कला जगत में स्थापित की थी।
आज भी जब दीवाना फिल्म का ज़िक्र होता है तो रवि के रुप में ऋषि कपूर का अभिनय सभी के मानस पटल पर सहजता से उभर आता है..और उनका वो डायलॉग कि...'मैं मरकर भी नहीं मर सका'...याद आता है। वाकई वे इस डायलॉग को हमेशा के लिए अपने चाहने वालों के दिलों में जीवंत कर गए।
ऋषि कपूर भी दो साल से कैंसर से जूझ रहे थे..लेकिन ज़िंदगी की जंग में किस्मत ने उनका साथ छोड़ दिया। बॉलीवुड के शो मैन राजकपूर के बेटे ऋषि कपूर को उनकी फिल्मों में बेहतरीन अदाकारी और सशक्त अभिनय के साथ—साथ एक जिंदादिल इंसान के तौर पर भी जाना जाता रहेगा।
उनका नाम जब भी जुबां पर आएगा तब—तब प्रेम रोग का देव, बोल राधा बोल का किशन, लैला—मजनूं का मजनूं और अमर अकबर एंथनी का अकबर वाला किरदार ज़रुर इस अभिनेता की याद दिलाता रहेगा।
मेरी यह पोस्ट ऋषि कपूर को श्रृद्धांजलि अर्पित करती है।