कहानियाँलेखक/साहित्यकारस्त्री विमर्श मंगला by teenasharma May 2, 2022 written by teenasharma May 2, 2022 ‘कहानी का कोना’ में पढ़िए लेखक तारावती सैनी “नीरज” की लिखी कहानी ‘मंगला’..। इनकी क़िताब ‘नूरी’ एक कहानी संग्रह हैं जो स्त्री जीवन के विभिन्न रुपों को बयां करता हैं…। इसके अलावा कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय सांझा संग्रह एवं विभिन्न पत्र—पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं…। इन्हें World Greatest Records for “The Shortest Short Story In Hindi 2022”, Golden Book of Earth for “ᴡᴏʀʟᴅ ʀᴇᴄᴏʀᴅ ᴏꜰ ᴛʜᴇ ᴇᴀʀᴛʜ 2022”, Global book of Records अंतर्राष्ट्रीय सृजनकार सम्मान, सलाम हिंदी अंतरराष्ट्रीय सम्मान, मातृशक्ति सम्मान समेत कई अन्य पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हैं…। _____________________________________________ मंगला आंगन के बीचों-बीच लंबा घूंघट काढ़े लाल गोटेदार साड़ी में सिर झुकाए पट्टे पर बैठी नई दुल्हन पहले किसी और आंगन की शोभा थी। सुंदर जवान बेटी कब तक बाप की देहरी धिकती कल को भाभी भौजाई आयेंगी। तानों के बारों से शूल घोंप देंगी। पचासों उल्टी पुल्टी बातें। और कोई भी अपनी चौखट पर विधवा का मुंह नहीं देखना चाहता। मंगला के पिता ने दूसरे गांव राम प्रसाद के बेटे बनवारी को देखा। देखने में बनवारी लंबी_ चौड़ी, कद_ काठी वाला जवान था ।रंग कतई दूधिया। बनवारी का रंग_ रूप, कद _काठी देख समय न गवाया और ढोल नगाड़ों की दबी आवाज में मंगला का दूसरा ब्याह बनबारी से रचा दिया। ससुराल में मंगला भले ही दूसरे आंगन से आई थी । पर उसके लाड प्यार में कोई कसर न थी। जाति भाइयों की औरतें आंगन में गीत गा रही थी। मंगला घूंघट की आड़ में पलके झुकाए सब सुन रही थी। इस खुशी से पहले गुजरी मंगला के हृदय सागर में कई तूफान उमड़तें, पुरानी यादें हिचकोले खाती, पर बनवारी की आवाज कानों में पड़ते ही सब शांत हो जाता। मंगला को ज्ञात थे बेटी के जन्म से मरण तक के समस्त सामाजिक प्रपंच और जवान बेटी आखिर बाप के माथे कब तक पड़ी रहती ।एक दिन वह भी इस संसार से विदा ले लेंगे फिर………… आंगन में गीत गाती औरतें भी बातें करती ” अब या भाग कै आगे कौन की चले है। मरगो ऐसी नागिन सी बहूए छोड़के, भरी जवानी में । बेचारी कौन के भरोसे जीवन काटती और अभई उमर का है। बढ़िया करो याके बाप ने जो याको ब्याह रचा दियो । बनवारी को भी घर बस गयो। रामप्रसाद झोली भर खुश था। चलो अच्छा है बनवारी कहीं जीवन पर्यंत रणवा बना फिरता शादी हो गई। दो रोटी सुख की मिलेंगी। गरीबों के लाले तो वैसे ही पड़े रहते हैं। रामप्रसाद घर में आज कल खास मठार कर घुसता। बनवारी मंगला के आते ही दूसरे दिन बेलदारी के काम पर दूसरे गांव चला गया। ठेकेदार की कड़वी कहनावत थी। ब्याह के दूसरे दिन काम पकड़ लेना और तुझे एक महीने तक कोई छुट्टी ना मिलेगी ।यहीं रहना पड़ेगा और हजारी को भी साथ ले आना सेठ का काम जल्दी खींचना है। तारावती सैनी “नीरज” मंगला ने सुबह की सूरज की नईं लाल किरणों, टूटी झोपड़ी, उबड _खाबड खुदे आंगन, और फूटी पड़ी दीवारों को अंतर ह्रदय से स्वीकार कर लिया । बनवारी के प्रेम रस में डूबी मंगला खदान से मिट्टी ढोकर दीवारों में हुए घम्मपलों को भरती, उबड़ खाबड़ खुदे आंगन को समतल करती और शाम को रोटी सब्जी बना, बनवारी के ख्यालों में गुदगुदाने लगती । सपने बुनती ,महीने भर बाद जब आएंगे तब तक इस टूटे-फूटे झोपड़े को साफ-सुथरा कर सजा दूंगी ।यह देख उनका हृदय कितना प्रफुल्लित होगा । मुझे झट से अपनी बांहों में भर लेंगे। मंगला उच्च अहोदेदार की इकलौती बेटी थी। जमीन जायदाद, पैसे के मामले में इसका बाप गांव का कुबेर था। मंगला का पालन-पोषण पैसों की कायनात के हिसाब से हुआ। मंगला की एक आवाज पर पांच सात नौकर चाकर भाग छूटते। बी. ए पास करते ही मंगला के पिता ने उसका ब्याह एक रहीस खानदान के इकलौते बेटे इंद्र के साथ कर दिया। इकलौती मंगला का ब्याह बड़ी धूम-धाम से रचाया। सातों जात को न्योता दिया। खाना ऐसा की गांव वाले उंगलियां चाटते रह गए। ऐसा खाना ऐसी झिलमिलाती सजावट के इंतजाम गांव वालों ने जीवन में नहीं देखे । पूरे गांव में जलेबी , रसगुल्लों से ठूसी टेनियां बांटी गई। कीमती नगीनों से जड़ित कपड़ों और सोने-चांदी के आभूषणों से लदी मंगला साक्षात लक्ष्मी प्रतीत हो रही थी। हाथी पर स्त दूल्हा आया ।खूब बम, पटाखे फूटे। बड़ी ही जोरदारी के साथ ब्याह हुआ। ससुराल में भी मंगला की एक आवाज पर पांच सात नौकर चाकर भागकर आते। लेकिन यह खुशी शायद मंगला की किस्मत को रास ना आई कुछ दिनों पश्चात पति की मृत्यु से मंगला के जीवन में अंधेरा छा गया। उस आलीशान हवेली पर कांउ-कांउ होने लगी। मंगला की हालत बदहाल हो गई। वह मृत सी शय्या पर पड़ी रहती। कुछ दिन पश्चात मंगला अपने पिता के घर लौट आई ।काले सूखे पड़े मंगला के चेहरे को देख रतन अपनी छाती थाम लेता। सोचता मैंने क्या बुरे कर्म कर दिए? सब कुछ होते भी मैं अपनी बेटी की खुशियां बचा नहीं पाया। लेकिन मंगला अब अपने विधुत्व की छाई काली घटाओं को छांट कर आगे बढ़ चुकी थी। सब मुकद्दर का खेल है अब लीप रही है गोबर, मिट्टी से फूटी दीवारें, खुदे आंगन, जमा रही है टूटे झोपड़े का फूंस । मंगला ने कभी किसी को भनक तक लगने नहीं दी कि पहले वह किसी आलीशान घर की बेटी या बहू थी।मंगला ने योजना अनुसार बनवारी के आने से पहले झोपड़े ,आंगन ,दीवारों को लिप पोत, माढ़ने माढ़ सजा दिया। उसने न कुछ दिनों में ही गरीब की बहू का रूप धारण कर लिया। सोचती बाप मुझे फिर से किसी रहीस खानदान में ब्याह देता तो क्या ?किस्मत तो मेरी ही थी। शादी के बीस दिन बाद ही अपने खेतों पर फसल काटने चली गई। और घर का सारा काम पानी की तरह पी लिया। वह बस एक काम से हारी बैठी थी। भैंस का दूध काढना । सुबह रामप्रसाद भैसों का दूध काढता । बाकी सानी सपानी सब मंगला ही करती। मंगला के आने से रामप्रसाद को दो रोटी टेम पर मिल जाती। मंगला की वजह से ही रामप्रसाद को बुढ़ापे में आराम नसीब हो गया। महीने भर बाद आज बनवारी और हजारी आने वाले थे। मंगला तितली जैसी इधर-उधर कसीधे से कड़ी नई गुलाबी रंग की साड़ी पहन उड़ रही थी। होठों पर लाली, माथे पर दमकती बिंदिया, आंखों में काजल, सिंदूर से लंबी भरी मांग और मन में भगवान से दुआ इस बार मेरी मांग को ऐसे ही भरे रखना। दरवाजे पर बनवारी की टकटकी लगाए ,उसके रस मय प्रेम की कल्पना कर कई बार झनझना जाती। आखिर सूरज ढलते ढलते बनवारी और हजारी घर आ गए। मंगला गुलाबी घुंघट से बनवारी के गोरे चेहरे को बार-बार निहार हजारों स्वप्न हृदय गागर में बुन रही थी। मंगला ने बनवारी के आने की खुशी में खीर, पूडी, पुआ की कढ़ाई उतारी थी। सब ने खूब दबाकर खाई । रात को बनवारी मंगला के पास आया और खाट की पाटी पकड़ एक कोने मैं चुप छिनार सा सो गया। मंगला की आंखों में दुख की काली घटाएं पसर गई। हजारों भयानक सवाल उसके हृदय में जन्म गए। वह पूरी रात खुली आंखों से सोती रही। फिर न जाने कब आंख लगी। बनवारी सुबह मंगला के जगने से पहले जगकर खेतों पर चला गया ।मंगला के सारे प्रेम भरे, सुखमय ,रस मय अरमां नदी में फूलों की भांति बह गए। उसके सीने पर चिंताओं के सांप लोटने लगे। इसी तरह पंद्रह दिन बीत गए ।मंगला खुंस में सूखी जा रही थी। पर बनवारी तस से मस ना हुआ ।आखिर एक दिन मंगला ने बनवारी से मुंह फेर पूछ ही लिया। “हमसे कोई गलती हुई है का? बनवारी ने अनजान बनकर पूछा_ “का बात की गलती ? “तुम हमसे बड़े उखड़े उखड़े रहते हो।” न ऐसी कोई बात ना है तुम तो बहुत अच्छी हो, हमारा घर देखो कैसे चमक रहा है । मंगला को थोड़ी हिम्मत आई और वह बनवारी के आगे खड़ी हो गई । अगर कोई गलती न है तो रात को मुंह फेर काईकु सो जाते हो? बनवारी ने मंगला को तीखी नजरों से देखा और बाहर चला गया। मंगला के खूंस भरे घाव और गहरे हो गए। मंगला दिन-ब-दिन पीली पड़ रही थी । सर्द भरी लंबी रातें उसको निष्ठुर लग रही थी। मंगला ने हिम्मत कर बनबारी से दोबारा पूछा ” तुम बता दियो का बात है? हमते कह दो, हम निहाते चले जाएंगे। और मोटे लंबे आंसू उसके गालों से ठोड़ी तक बहने लगे। बनवारी फिर से बाहर जाने लगा। लेकिन मंगला ने जल्दी से बनवारी का कॉलर पकड़ लिया ।”आज न जाने दूंगी । चाहे जान गवा दूंगी । पहले बताओ का बात है? बनवारी ने कई बार मंगला के हाथों से कॉलर छुड़ाने की कोशिश की पर मंगला हर बार अपने हाथ ज़ोर से कस लेती। आखिर बनवारी की आंखों से आंसू छलक आए । उसने रूंदे कंठ और झुकी नजरों से कहा_” मैं मर्दों वाला काम नहीं कर सकता” यह सुन मंगला की छाती पर गाज गिर गई। वह दो कदम पीछे हट, भीत से धक्क से लग गई। इस बात की किसी को कानोकान खबर न है। बनवारी ने अपने जज्बात दबाकर बाहर जाते हुए कहा मंगला के अंत्यस्त द्वंद उठ गया।अब मैं क्या करूं? कोनसे मौत के कुएं में जाकर गीरूं। पीहर वालों को बता दूंगी तो खामाखां खून खच्चा हो जाएगा। क्या करूं? अगर बच्चा ना हुए तो दस लांछन मेरे माथे ही मढ़े जाएंगे और मर्द में कमी है सके ये तो इस बुद्धिमान समाज में कोई भी न सोचेगा । मोहल्ला पड़ोस की सारी औरतें मुझसे पल्ला बचा कर निकलेंगी। सब समाज मुझे ही बैरन बताएगा। डायन के सारे क्षेप मेरे माथे मारे जाएंगे। मंगला की कमर टूट गई और खुशी पस्त । वह भीतर ही भीतर घुटने लगी। मुस्कान उसके चेहरे से हवा हो गई। काम करते करते कभी कभार किस्मत को दोष दे लेती। सामाजिक प्रपंचों को सोच जड़ हो जाती ।उसकी उम्मीदें खुनस के आगे दम तोड़ने लगी।चांद सा गोरा भूरा चेहरा काले दाग में सामने लगा। एक दिन बनवारी और रामप्रसाद दोनों किसी काम से शहर चले गए। अब दूध काढने की जिम्मेदारी हजारी पर आ गई । सुबह हजारी भैंस का दूध काढ़ने बैठा । वहां मंगला आकर बोली_ “हजारी तुम मुझे भैंस का दूध काढ़ना सिखा दो। दद्दू से कहने की हिम्मत न पड़ती मेरी। किसी दिन तुम तीनों घर से बाहर चले गए तो दूध कौन काढ़े गा ? हजारी ने कहा_” ठीक कह रही हो भाभी, आ जाओ मैं सिखा देता हूं। बड़े घर की बेटी भैंस के थन छूते ही बड़ी जोर से डरी और चिल्लाई हजारी यह तो बड़े गिलबिले गिलबिले हैं। हजारी जोर से हंसा “रहने दो भाभी मैं ही दूध काढ लूंगा । तुम्हारे चक्कर में कहीं भैंस विदक जाएगी तो दूध नहीं देगी। मंगला दूध की बाल्टी थामे बोली_” इस बार न डरूंगी, सिखा दो। आज नहीं तो कल सीखना तो है ही। भाभी के आग्रह पर हजारी दूध काढ़ना ,सीखने के लिए राजी हो गया। बाल्टी लेकर भाभी के साथ बैठा। भैंस के थन पकड़े भाभी के हाथों पर हजारी अपने हाथ रखता है। मंगला का पूरा बदन हिल जाता है। वह सुन्न हो जाती है। हजारी के हाथों का स्पर्श उसके रक्त में आग घोल देता है। हजारी मंगला के दोनों हाथ पकड़ दूध कढ़बा देता है। मंगला को एहसास भी नहीं होता। लो भाभी कोई मुश्किल काम नहीं है। हजारी कहकर वहां से चला जाता है। मंगला दूध की बाल्टी को एकटक देखती रहती है। उसका बदन हजारी के स्पर्श से महक जाता है। बारिश छचर छचर हो रही थी। मंगला दिया जलाए झोपड़ी में सो रही थी। भीगा हुआ हजारी आता है_” भाभी जल्दी से भैया के कपड़े दे दो मैं पूरा बारिश में भीज गया हूं। बक्सा से कपड़े निकालती मंगला हजारी का उघड़ा कसा बदन देख झेप कर कपड़े देती है की जोर से बिजली कड़की मंगला डरकर एकदम हजारी के भीगे बदन से लिपट गई और बारिश की गहरी काली रात में दोनों एक दूसरे में समा गए। उस दिन के बाद दोनों में वैर सा पड़ गया । न हजारी की हिम्मत पड़ती मंगला से बोलने की, न मंगला की हिम्मत पड़ती हजारी से बोलने की। दोनों सुन्न घुन्न रहने लगे। कुछ दिनों के बाद मंगला ने खाना-पीना छोड़ दिया। डॉक्टर ने कहा_” अगर यह खाएगी पीएगी नहीं तो तबीयत औरअधिक खराब हो जाएगी । आखिर हजारी ने मंगला से कहा _”भाभी तुम ऐसा क्यों कर रही हो? तुम और अधिक बीमार हो जाओगी। तुम्हें कुछ हो गया तो? मंगला गुस्से में तमक कर मुंह फेर बोली _”तो हो जाने दो तुम्हें क्या? और वहां से चली जाती है । मंगला भले ही हजारी से बोलती नहीं थी। पर उसका ख्याल पूरा रखती खाने-पीने से लेकर कपड़े धोने तक । हजारी भी गला फाड़ कुछ कह नहीं सकता था। समाज में तोल मोल नाम की कोई चीज होती है और समाज में लाज लज्जा से चलना पड़ता है। दोनों के अंतर्मन घमासान युद्ध चलता। मंगला दूर से जिस सामान की कह देती, हजारी उसे ले आता । एक दिन हजारी के दोस्त ने उससे कहा _” यार तू इतना उदास उदास क्यों रहने लग गया ,आज कल? हजारी ने कहा _”कहां रहता हूं? वह तो भाभी की तबीयत खराब है इसलिए थोड़ा लगता हूंगा। न यार बात तो कुछ और है तू बता नहीं रहा? हजारी ने जोर से झिड़क कर कहा_” कह दिया ना कुछ बात नहीं है। तू जा यहां से। दोस्त ने भी अकड़ कर कहा_” नहीं जाऊंगा ,जब तक तू बताएगा नहीं। बता मुझे क्या बात है? और आखिर हजारी ने पूरा वृत्तांत जिगरी यार को सुना दिया। फिर क्या था सुबह तक इस बात के तार घर घर में थे। एक दिन खेतों पर जा रही मंगला को किसी औरत ने उलाहना दिया। देवर संग कैसी कट रही हैं रातें। मंगला फुर्ती से समझी और उल्टे पांव घर लौट आई। गुस्से में भरी मंगला शाम तक हजारी का इंतजार करती रही। हजारी के आते ही मंगला उसपर बरस पड़ी। यह क्या किया हजारी तुम ने ? हम दोनों के बीच की बातें गांव वालों से कह दी । हजारी के पैरों तले जमीन खिसक गई। और तुरंत उल्टे पांव दोस्त के घर पहुंचा। और उसे लात घूंसो से मारने लगा। पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया ।यह बात जिन घरों को पता न थी उन घरों तक भी आग की तरह फैल गई। बड़ा हो हल्ला मचा। बड़ी थू था हुई।बात पंचों तक पहुंच गई। सब बनवारी और रामप्रसाद के आने का इंतजार कर रहे थे। बनबारी और मंगला दोनों मुजरिमों की तरह खड़े थे। बनवारी गांव आते ही सब मांजरा समझ गया। पंचायत में बैठी एक औरत बोली_” यह देख तेरी कुल्टा लुगाई के काम। तू तो वहां शहर में है और यह तेरी लुगाई तेरे छोटे भाई के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है। कोई कहती_” आग लगे ऐसी लुगाई को कसम छोड़ देवर को कोरिया में भरे हैं”बनवारी सुन्न खड़ा सब कुछ सुनता रहा। एक पंच ने कहा_” बता बनबारी क्या किया जाए ,लुगाई तेरी है? दूसरे ने कहा”_ नंगा कर मुंह काला कर, जात बाहर कर दो। अब बात बढ़ती जा रही थी । बनवारी से सहन न हुई और उसने भारी पंचायत में निडरता से कहा_ “गांव में उच्च पदस्थ ,अमीर, लाठी_ भाटे वाले लोगों के घरों में कोई कांड नहीं होते ,होते है इससे भी बड़े बड़े और भयानक पर इनके लिए कोई पंचायत नहीं बैठती। मामला वहीं की वहीं रफा-दफा कर दिया जाता है ।हम गरीबों के मुकदमें, पंचायत में पंच बड़े मजे लेकर उछाल उछाल कर फैसले सुनाते हैं। गरीबों की लाज उड़ाना इनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। पदधारी घरों में चाहे बहुएं जला दी जाए या मारपीट कर छोड़ दी जाए। लड़की होते ही गड्ढे में दबा दी जाए। उनके कांड खुली सड़क पर भी हुए हों तो भी यही लोग आंख बंद कर लेते हैं। पंचायत में बैठी काकी से बनवारी ने कहा_” काकी तुम्हारी बहू ने कुएं में कूदकर जान दी थी न, काका की वजह से, पर तुम्हारे लिए तो पंचायत न बैठी।भैया तुम्हारी पढ़ने गई लड़की ने शहर में किसी आंजात के लड़के से शादी कर ली। फिर भी गांव में तुम्हारी इज्जत बड़ी है । तुम को कभी जात से बाहर नहीं किया गया। हम गरीबों की दुनियां तुम्हारे पैसे , तुम्हारी ताकत के सामने बहुत छोटी है।बड़े बड़े घरों में कितना बड़ा हत्याकांड हो जाए फिर भी वह बड़े अदाकारी से घूमते फिरते हैं। उनके सारे राजों पर पर्दा डल जाता हैं ।चाचा तुम्हारी ऊंची ऊंची दीवारों के पीछे कितने भयानक राज भरे हैं आप उसके जिंदा साक्षी हो। तुम्हारी कभी पंचायत क्यों नहीं बैठी। यह सब नियम कानून गरीबों के लिए ही होते हैं। यह बात यहां इस गांव तक ही सीमित नहीं है और बड़े बड़े घरों को देखो ,हीरोइनों को देखो शादी से पहले बच्चा हो या बाद में या उन्होंने कितने ही असहज दृश्य कितने ही हीरों के साथ किए हो उनसे कोई कुछ नहीं पूछता है। उनकी कोई पंचायत नहीं बैठाई जाती है। कोई पूछे उनसे माई का लाल । उनसे सवाल करने की हिमाकत है किसी में। जो यहां बैठकर गरीबों की इज्जत उछाल रहे हैं। नंगा करने की बात कर रहे है। बड़े-बड़े नेता चाहे किसी का मर्डर करवाएं या बलात्कार उनसे कोई सवाल नहीं पूछता बल्कि उनको उद्घाटनों का निमंत्रण पत्र भेजा जाता है। हम गरीबों की कभी परेशानी जानी है तुम लोगों ने । कभी हमारे दुख पूछने आए हो ?सारे हथकंडे हम गरीबों के लिए ही होते हैं। सवरा जोर हम गरीबों पर ही चलता है। बौखलाई आंखों से बनवारी के शब्दों को सुन कर वहां बैठी पंचायत की आंखें फटी की फटी ,होंठ निशब्द और शरीर स्तब्ध रह गया। और बनबारी अपने दोनों हाथ हजारी और मंगला के कंधे पर रख घर की तरफ चला गया । तारावती सैनी “नीरज” ________________________________ कुछ और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें— ‘धागा—बटन’… ‘अपने—अपने अरण्य’ “बातशाला” ‘मीत’…. खाली रह गया ‘खल्या’.. ___________________ प्रिय पाठकगण, आपको ‘मंगला’ कहानी कैसी लगी, नीचे अपना कमेंट ज़रुर लिखकर भेजें। साथ ही ब्लॉग और इसका कंटेंट आपको कैसा लग रहा हैं इस बारे में भी अपनी राय अवश्य भेजें…। आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए बेहद अमूल्य हैं, जो हमें लिखते रहने की उर्जा देती हैं। धन्यवाद तारावती सैनी "नीरज"मंगला 1 comment 0 FacebookTwitterPinterestEmail teenasharma previous post ‘प्रतीक्षा है कविता’… next post कविता ‘नई पौध’ Related Posts छत्तीसगढ़ का भांचा राम August 29, 2024 बंजर ही रहा दिल August 24, 2024 विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 रामचरित मानस यूनेस्को ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ सूची... May 15, 2024 वैदेही माध्यमिक विद्यालय May 10, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 29, 2024 राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा January 22, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 21, 2024 पानी पानी रे October 30, 2023 समर्पण October 28, 2023 1 comment कहानी 'ताई'... - Kahani ka kona May 18, 2022 - 4:10 am […] मंगला […] Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.