कहानियाँ प्रेम का ‘वर्ग’ संघर्ष by Teena Sharma Madhvi February 11, 2021 written by Teena Sharma Madhvi February 11, 2021 सांझ ढलने को हैं…परिंदें भी अपने आशियानें की ओर लौट रहे हैं…। खेत भी शांत हो चले हैं…। लेकिन गीत का कोई अता—पता नहीं। मां की आंखें उसे दूर—दूर तलक ढूंढ रही हैं। खेत से दूर बस कच्ची सड़क ही नज़र आ रही हैं…। वह घबराते हुए जोरों से आवाजें लगाती हुई खेतों में घूम रही हैं…गीत..कहां हैं तू…? बेटी गीत..। अरी कहां हैं रे तू…। देख सूरज डूबने को हैं…। घर को चलें…। कुछ ही देर में गीत सामने से आती हुई दिखती हैं। मां उसे देखकर बेहद खुश हो जाती हैं। कुछ पल के लिए तो जैसे उसकी सांस गले में ही अटक सी गई थी। लेकिन पास आते ही ‘मां’ गीत पर बरस पड़ती हैं। छोरी जात किसी दिन मेरी जान लेकर रहेगी…। कहां मर गई थी तू…। तभी गीत हंस पड़ी और मां के गले से लगते हुए बोली। मां…तू तो बस यूं ही बेसब्र हो जाती हैं…। अपना लंबा चौड़ा खेत हैं…नीम हैं…अरे! इमली और आमड़ी भी तो अपनी ही हैं…। तो इन्हें छोड़कर कहां जा सकती हूं…। तू भी ना पगली हो जाती हैं…। चल अब घर चलें। गीत की बातें सुनकर मां भी हंस पड़ी..। और फिर इसी हंसी—ठिठोली के साथ घर कब पहुंच गई दोनों पता ही नहीं चला…। थोड़ी ही देर में गीत के पिता भी आ गए। हाथ—मुंह धोकर वे सीधे परेंडी पर पहुंचें। एक लोटा पानी पिया और फिर इत्मिनान से चूल्हें के पास आकर बैठ गए। गीत दांतरी से सब्जियां काट रही थी…। तभी पिता ने उसे टोका…। कितनी बार कहा हैं तुझे…. चक्कू से सब्जियां काट लिया कर..। तेरे लिए ही तो घर में ये अंग्रेजी चक्कू लाया हूं। और तू हैं कि इस दांतरी को अपने पैरों में फंसाए बैठी हैं…। कहीं अंगुलियां कट गई तो…? तभी गीत जोरों से ठहाके मारने लगी। भला ये क्या बात हुई पिता जी। मां तो इत्ते बरसोें से इसी दांतरी सेे सब्जियां काट रही हैं। इसकी चिंता तो आपने नहीं की…? गीत के पिता ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा कि अरे तेरी मां तो गांव की शेरनी हैं…। और तू नए ज़माने की नाज़ुक छोरी हैं..। मां दोनों की बातें सुन रही थी। वह मंद—मंद मुस्कुराती जाती और चूल्हें में भोंगरी से फूंक मारती जाती…। तभी किवाड़ पर किसी की आवाज़ सुनाई दी..। गीत ने किवाड़ खोला तो सामने केसरी काका थे। भीतर आओ काका यह कहते हुए गीत ने उनके बैठने लिए तख़त पर चादर बिछा दी और उन्हें एक गिलास पानी देकर वापस सब्जियां काटने लगी। गीत के पिता और केसरी काका दोनों खेत—खलियान और अनाज मंडी की बातें करने लगे। इत्ती देर में मां ने चूल्हें पर रोटियां सेंक ली। केसरी काका ने गीत की मां से कहा कि गीत के लिए एक रिश्ता लाया हूं…। हां कहो तो आगे बात छेडूं..। ये सुनकर गीत की मां और पिता दोनों बेहद खुश हो गए। लेकिन गीत का चेहरा उतर आया। खुद की शादी की बात सुनते ही वो एकदम से घबरा गई और इसी बीच सब्जियां काटते हुए दांतरी से उसकी अंगुली पर चोट लग गई…। खून की तेज धार बहने लगी। ये देखकर मां और पिता घबरा गए और फोरन खून रुकने के उपाय करने लगे। पिता ने उसकी अंगुली पर पट्टी बांधी और कहते रहे…कितनी बार समझाया कि अंग्रेजी चक्कू का इस्तेमाल किया कर..लेकिन सुनती कब हैं…अब देख लें…दांतरी ने आख़िर काट ही दी ना अंगुली…। मां उसके सर पर हाथ फेरती जाती और कहती जाती पराए घर जाना हैं तो कट्ठा भी बनना पड़ेगा…। केसरी काका भी बीच—बीच में बड़बड़ाते रहे..। आजकल की छोरियों को तो एक काम नहीं करा सकते। मां—बाप के आंगन में ही दो घड़ी का सुख हैं…ससुराल में कोई न दौड़ेगा मल्हम—पट्टी लेकर। ये सुनकर गीत जोरों से चिल्ला उठी…’नहीं करनी मुझे शादी। और उठकर छत पर चली गई’। उसे छत पर जाता देख मां बोल उठी…अंधेरें में क्या करेगी गीत…आजा नीचे…। लेकिन गीत ने मां को अनसुना कर दिया और छत पर जाकर आसमान के तारों को देखनी लगी। चांदनी रात भी आज उसके जी को जला रही थी…। उसके भीतर की आग आंसू बनकर बह रही थी। उसे केसरी काका की बात सताने लगी। उसका दिल परेशान हो चला। भला केसरी काका की बात पिता नहीं टालेंगे। उनका लाया हुआ रिश्ता तो पक्का ही समझो…। वह कशमकश में थी कि कैसे केसरी काका की बात टलें। तभी नीचे से मां की आवाज़ आई। गीत रोटी—सब्जी तैयार हैं…आजा.. खा लें…। गीत ने ख़ुद को संभाला और आंसू पोंछकर नीचे आ गई। उसने देखा कि केसरी काका नहीं हैं। उसने अपने पिता से पूछा, काका गए क्या…? पिता ने कहा कि, भला आदमी और रुकता भी कब तक…। तू तो नाराज़ होकर छत पर भाग गई। तो क्या वे मुझसे मिलने आए थे…? गीत ने पिता की ओर भोजन की थाली सरकाते हुए कहा। पिता हंस पड़े और गीत के मुंह में कौर देते हुए बोले, नहीं—नहीं वे तो मेरा दूसरा ब्याह कराने को आए थे…। ये सुनकर गीत अनमने मन से पिता के साथ—साथ हंस पड़ी। लेकिन जैसे—जैसे कौर चबाती जाती उसकी चिंता बढ़ती जाती…। पूरी रात गीत नहीं सो सकी। कभी इस करवट तो कभी उस करवट। नींद तो जैसे आज उसके लिए सौतन सी बन गई थी। अगले दिन सुबह मां चूल्हें में लकड़ी देती जाती और आवाज़ें लगाती…अरी गीत उठ जा…कितना सोएगी…गांव के गाय—ढोर भी जागकर चरने को निकल गए। उठ जा छोरी…आज खेतों में निंदाई होनी हैं…। लेकिन गीत को तो जैसे मां के बोल सुनाई ही नहीं दिए…। थोड़ी ही देर में मां फिर से उसे आवाज़ देने लगी…तभी गीत के पिता बोले ठहर जा शेरनी, मैं देखता हूं। गीत गहरी नींद में सो रही थी। पिता ने उसके सर पर हाथ रखते हुए उसे प्यार से जगाया। गीत ने आंखों को मसलते हुए उन्हें देखा। पिता ने कहा कि आज क्या बात है गीत…इतनी देरी तक सो रही हैं..। तबीयत तो ठीक हैं ना बेटी…? अंगुली का दर्द कैसा हैं अब…? गीत ने कहा कि मैं ठीक हूं पिता जी। आप चलिए मैं आती हूं। घर के सारे कामकाजों से निपटकर तीनों खेत के लिए रवाना हो गए। रोज़ाना से हटकर आज का दिन बड़ा शांत था। आज गीत ज़्यादा कुछ बोल नहीं रही थी। वैसे हर रोज़ खेत पर जाते हुए पूर रास्ते भर वह मां से कुछ न कुछ बातें करती ही रहती थी…लेकिन आज उसे चुप देखकर मां को कुछ खटक रहा था। वह मन ही मन सोच रही थी कि, आख़िर कल से अभी तक गीत के दैनिक व्यवहार में बदलाव क्यूं महसूस हो रहा हैं…। ऐसी क्या बात है…? मां ने मन ही मन तय किया कि सांझ ढलने तक वह उससे कुछ ना पूछेगी..। लेकिन इसके बाद उसे अपने पास बैठाकर ज़रुर उससे बात करेगी। खेत पहुंचने पर मां और पिता दोनों निंदाई में जुट गए। बीच—बीच में गीत भी हाथ बंटाने चली आती। फिर सुस्ताने लगती। आज वह पूरे मन से खेत का काम नहीं कर रही थी। दोपहरी बाद जब गीत मुंडेर पर नज़र नहीं आई। तब मां को लगा कि वो शायद खेत में घूम रही होगी। जब काफी देर होे गई तब वह गीत के पिता को बोलकर उसे देखने निकल गई। जिन खेतों की निंदाई हो रही थी गीत वहां पर नहीं थी। मां ने दूसरे खेत में जाकर उसे देखना चाहा। गीत वहां भी नहीं थी। तब मां को फिर कल ही की तरह घबराहट होने लगी। लेकिन इस बार उसने थोड़ा संयम बरता और आवाज़ लगाए बगैर गीत को इधर-उधर देखने लगी। गीत को ढूंढ़ते हुए मां ‘आमड़ी’ तक जा पहुंची। मां ने देखा कि गीत किसी लड़के के साथ हैं। ये देखते ही उसके पैरों से ज़मीन सरक गई..। एक पराए लड़के के साथ छुपकर मिलने से मां को बहुत गुस्सा आया। मन तो हुआ कि गीत को दो-चार जड़ दें…। लेकिन उसने धीरज धरा और बिना कुछ कहे उस लड़के को पहचानने की कोशिश की। वह सोच में पड़ गई कि इसे कभी गांव में तो नहीं देखा। ये हैं कौन…? फिर वह चुपचाप झाडियों के पीछे खड़ी हो गई और उन दोनों की बातें सुनने लगी। गीत बार-बार कह रही थी, सत्तू तुम्हें नहीं पता कि हमारे घर में केसरी काका की कितनी चलती हैं। उनका कहा कोई नहीं टाल सकता। वो मेरी शादी कहीं और करवाकर ही रहेंगे। तुम ज़ल्द ही कुछ करो…। गीत की बातें सुनकर सत्तू बार-बार यही कहता….मैं तुम्हारें घर ज़ल्द ही आऊंगा और मां-पिता से बात करुंगा। मां को गीत की उदासी का कारण अब पूरी तरह से समझ आ चुका था। लेकिन उसे गीत के पिता का भय सताने लगा। वह मन ही मन सोचने लगी कि अगर ये बात उसके पिता को पता चल गई तब क्या होगा…? उसे कुछ समझ नहीं आया कि वह गीत के सामने जाए या चुप रहे। उसने कुछ पल वहीं रुकने के बाद चुपचाप जाने का फैसला किया और वह धीरे-धीरे वहां से निकल आई और फिर से निंदाई करने लगी। गीत के पिता ने उसे देखकर पूछा कि इत्ती देर कहां थी। तब उसने कह दिया कि गीत के साथ ‘आमड़ी’ नीचे बैठी थी। गीत भी आ ही रही हैं…। थोड़ी ही देर में गीत भी आ गई और मां का हाथ बंटाने लगी। मां ने उसे ज़रा भी ये अहसास नहीं होने दिया कि वो उससे आज बेहद नाराज़ हैं। सांझ ढलने को थी। निंदाई के काम से निपटकर तीनों घर की ओर चल दिए। घर आने के बाद रोजा़ना की तरह शाम के भोजन की तैयारी कर रही गीत की मां चूल्हें में लकड़ी देती जाती और रोटी सेंकती जाती और गीत हमेशा की तरह दांतरी से सब्जी काटने लगी। पिता तख़त पर थोड़ा सुस्ताने लगे। जब गीत सब्जी काटने के बाद छत पर गई तब मां ने पिता से केसरी काका के प्रस्ताव के बारे में पूछा। और साथ ही ये जोर भी दे डाला कि कल ही लड़का देख आओ…। ये सुनते ही पिता ने कहा कि ये तूने मेरे मन की बात कह दी। मैं भी पड़े-पड़े ये ही सोच रहा था। खेत की निंदाई पूरी होते ही केसरी काका के साथ जाकर लड़का देख आऊंगा। तीन दिन बाद गीत के पिता और केसरी काका लड़का देखने गए। इस बात से गीत बेहद परेशान थी। मां उसकी इस बेसब्री को समझ रही थी। लेकिन वह भी बेबस थी उसे कैसे समझाती…। फिर भी उसने गीत के सर पर हाथ रखते हुए ऐसे समझाया जिससे उसे ये न लगे कि मां सब जान चुकी हैं। उसने गीत से पूछा कि बेटी तेरी क्या इच्छा हैं…? तेरे मन में कोई बात हो तो बता मुझे….। गीत ने कहा कि मां ऐसी कोई बात नहीं…। बस मैं अभी शादी करना नहीं चाहती। मां ने गीत का मन टटोलने के लिए ऐसे ही उससे पूछ लिया…. क्या तुझे कोई लड़का पसंद हैं …? गीत ने मां के इस सवाल पर सकपकाते हुए कह दिया…अरे..नहीं…नहीं…मां…। कैसी बातें करती हो। मां ने फिर पूछा… हो तो बता दें मुझे…। गीत ये सोचकर चुप हो गई कि पिता कभी भी बदनामी के डर से उसकी शादी सत्तू से नहीं कराएंगे। और मां अगर जान भी गई तब भी वह अंतिम फैसला नहीं ले सकेगी। गीत की चुप्पी पर मां बोली बेटी तू अब शादी लायक हो गई हैं। इसीलिए तेरे पिता लड़का देखने गए हैं। यदि लड़का और घर दोनों ही जमता है तब शादी करने में कोई बुराई नहीं हैं। तू खुश रहे हम तो यही चाहते हैं। मां की बात सुनकर गीत कुछ ना बोली। मां की ममता भी आज मजबूर थी। बेटी को ये कह दे कि वो सत्तू के बारे में जानती हैं तो भी ठीक नहीं….और कुछ ना कहें तो बेटी को यूं भरे मन के साथ अकेला छोड़ देना हैं….। हालात के आगे मजबूर मां जानती थी कि केसरी काका का घर में बहुत आदर हैं। उनका स्थान घर के बड़े बुजुर्ग जैसा है। और फिर वे हर सुख-दुःख में वक़्त पर खड़े हुए हैं…। समाज में जो मान-सम्मान हैं वो केसरी काका के आशीर्वाद का ही फल था। ऐसे में जात के बाहर गीत की पसंद से शादी कराने की बात तो सोची भी नहीं जा सकती। गीत के पिता इसके लिए कभी राजी नहीं होंगे। इन्हीं ख़यालों में डूब गई थी मां….। तभी गीत के पिता केसरी काका के साथ घर आ गए। काका तो किवाड़ के बाहर ही से बधाई देते हुए बोले, गीत की मां मुंह मीठा कराओ। घर के भीतर आते ही पूछा गीत कहां हैं….? मां ने तख़त पर चादर बिछाई और गीत को आवाज़ लगाई। काका ने बताया कि रिश्ता पक्का हो गया हैं। लड़का और घर दोनों ही भले हैं। वे लोग गीत को देखने के लिए परसो आ रहे हैं….रस्म अदायगी भी हाथों हाथ कर जाएंगे। गीत की मां ये सुनकर रसोई से गुड़ लेकर आई और काका का मुंह मीठा कराया। काका ने गीत को आशीर्वाद दिया और चले गए। गीत बुरी तरह से घबरा गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अब क्या करें। अगले दिन खेत पर सत्तू भी नहीं आया। नरसो तो लड़के वाले आ गए और शगुन पक्का कर गए। उधर खेत पर सत्तू आमड़ी के नीचे गीत का इंतजार कर रहा था। इधर, गीत की तबीयत बिगड़ने लगी। उसका शरीर बुखार से तपने लगा। मां-पिता पूरे समय उसके पास ही रहे। खेत पर कोई नहीं गया। सत्तू तीन दिन लगातार आमड़ी के नीचे उसका इंतजार करता रहा। जब गीत नहीं आई तब वह रात के अंधेरे में उससे मिलने के लिए उसके घर के बाहर चक्कर काटने लगा। लेकिन गांव वालों की उस पर नज़र पड़ गई और वे उसे चोर समझ बैठे। चोर…चोर…चोर…का खूब शोर- शराबा होने लगा। इससे गीत की मां की नींद खुल गई। उसने खिड़की से झांक कर देखा तो उसके घर के बाहर भीड़ जमा थी। उसने गीत के पिता को उठाया लेकिन वे नहीं जागे। तब मां ने खु़द ही बाहर जाकर देखा। गांव वाले किसी को बुरी तरह से पीट रहे थे। जब उसे पास जाकर देखा तो मां चौंक गई … ये तो सत्तू था। मां का दिल उसे देखकर भर आया। वह उसे कैसे बचाएं। बस वह गांव वालों से ये कहकर भीतर आ गई कि जान से मत मारो…। गांव से बाहर छोड़ दो इसे….। वह पूरी रात नहीं सो सकी। उसकी आंखों में सत्तू का ही चेहरा घूम रहा था। उसने गीत को देखा….। उसकी आंखें भर आई लेकिन कौन था जो इस वक़्त उसके दर्द को महसूस कर पाता। अगली सुबह गीत के पिता को गांव वालो से पता चला कि देर रात एक चोर उनके घर के बाहर चक्कर काट रहा था। जिसे पकड़कर खूब मारा और गांव के बाहर पटक दिया। वह अस्पताल में पड़ा अंतिम सांसे ले रहा हैं। जब गीत के पिता ने उसकी मां को बताया कि रात तुमने मुझे जगाया था मेरी नींद नहीं खुली। गांव वाले कह रहे हैं कि चोर को खूब मारा…वह अब शायद ही बचें…। साले चोर उचक्कों का तो यही हाल होना चाहिए….। गीत की मां ये सुनते ही भभक पड़ी….। क्या ले जाता बेचारा किसी का…..। कपड़े लत्ते….भांडे-बर्तन….। जानवरों की तरह किसी इंसान को मारा जाता हैं क्या….? गीत के पिता ये सुनकर सोच में पड़ गए…क्यूंकि गीत की मां ने बात तो सही कही थी। धीरे-धीरे छह माह बीत गए। गीत की शादी का लगन भी निकल आया लेकिन गीत रोज़़ाना खेत पर जाती और सत्तू का इंतजार करती रहती….। वह हर दिन उसका ये सोचकर इंतजार करती रही कि आज तो सत्तू ज़रुर आएगा। लेकिन वो नहीं आया….। सत्तू के इंतजार को आंखों में भरकर आज गीत की डोली उठ गई। पिता के घर आंगन में कोई काला छींटा न पड़े…यही सोचकर वह चुप रह गई और शादी कर ली। गीत की मां अब पहले की तरह न रही…वह निःशब्द हो चली थी….। कभी खु़द को कोसती तो कभी समाज के ‘वर्ग संघर्ष’ को। गणतंत्र का ‘काला’ दिन.. सिट्टी—बिट्टी गुल अन्नदाता की हांफती सांसों की कीमत क्या 4 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post गणतंत्र का ‘काला’ दिन.. next post पुजारी की ‘बीड़ी’ Related Posts छत्तीसगढ़ का भांचा राम August 29, 2024 विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 वैदेही माध्यमिक विद्यालय May 10, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 29, 2024 राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा January 22, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 21, 2024 समर्पण October 28, 2023 विंड चाइम्स September 18, 2023 रक्षाबंधन: दिल के रिश्ते ही हैं सच्चे रिश्ते August 30, 2023 गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव August 13, 2023 4 comments Usha February 14, 2021 - 2:55 am कहानी बहुत ही सुंदर सही बात है बहुत से ऐसे लोग होते हैं जिनका प्रेम एहसासों में ही पलता रहता है और खत्म हो जाता है Reply Teena Sharma 'Madhvi' February 17, 2021 - 12:39 pm Thankuu so much… correct baat. Reply "बातशाला" - Kahani ka kona "बातशाला" April 27, 2022 - 2:01 pm […] प्रेम का ‘वर्ग’ संघर्ष […] Reply 'चरण सिंह पथिक' - Kahani ka kona May 17, 2022 - 1:57 pm […] प्रेम का ‘वर्ग’ संघर्ष […] Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.