‘समानता’ का शोर क्यूं…?

by Teena Sharma Madhvi

     आज महिला समानता दिवस है…. क्यूं हम एक स्वर में इस दिन चिल्लाने लगते हैं कि महिलाओं को  ‘समानता दो’..’समानता दो’…। क्यूं ये एक शब्द इस दिन मुखर हो उठता है। 
         
मैं नहीं मानती कि समानता का यूं शोर होना ज़रुरी है। शुरुआत तो हर रोज़ ही होनी चाहिए। वो भी घर से। आज एक सवाल हर औरत का हैं जो इस शोर को तो सुन रही हैं लेकिन इस शोर में उसके भीतर का शोर किसी को सुनाई नहीं देता।
     
 कितने लोग और परिवार हैं जो बेटी, बहू, पत्नी और मां को ‘मन की आज़ादी’ दे पाते है। कितने हैं ऐसे जो इस विषय पर भी संवेदनशील होकर सोचते है। शायद मुट्ठी भर लोग।

     एक औरत को समानता देने की शुरुआत तो घर ही से होगी। फिर समाज और फिर देश तक समानता का शोर हो…।

     जरा सोचकर देखिए क्या  हम  अपने घर की औरतों को मन से कुछ करने की आज़ादी देते हैं?  क्या वो भी हमारी तरह सब कुछ मन का कर पाती हैं?  नहीं…। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक वो सिर्फ घर और परिवार का ही सोचकर रह जाती है।

रोज़ाना वह ख़ुद अपने मन की आज़ादी के साथ संघर्ष करती है। जो ख़ुद अपने सोच पाने का संघर्ष कर रही हो वो बाहर के लिए कब सोच सकेगी। 

एक आम औरत ​घर की चार दीवारी  के अंदर रहकर रोज़ाना ही अपनी सोच और सपने को मारने के लिए संघर्ष कर रही होती है। वह उसी माहौल में जी रही होती हैं जो हमारे घर, परिवार और समाज ने उसे दिया है।

       उसका मन करता हैं कि वह आज कोई काम नहीं करें बस दिनभर टीवी देखें..उसका मन करता हैं आज उसे भी कोई थाली हाथ में पकड़ाकर कहें कि तुम्हारी पसंद का खाना हैं..कोई तो हो जो उसके सिर पर हाथ रखकर कहें कि तुम चिंता मत करो…। क्या वाकई ये माहौल उसे मिलता हैं या फिर उसे ये सब दे पाते है…नहीं…।
 
     फिर चाहे राजनीति में महिलाओं को शामिल करने की बात हो या फिर सरकारी सेवा में उन्हें आरक्षण देने जैसा मुद्दा हो।  ऐसे तमाम विषयों पर बात करना तो व्यर्थ ही होगा।

    ये बात जितनी सरल हैं उतना ही इसका गहरा अर्थ हैं। घर के भीतर ही हर रोज जो औरत मन का करने का संघर्ष कर रही हैं वो क्या बाहर आकर समानता की उम्मीद रख सकेगी।

     माना कि आज हम बहुत आगे बढ़ रहे हैं। सबकुछ डिजिटल हो चला है। लेकिन इस युग में भी हम उसी  एक विषय पर बात करते आ रहे हैं जो सदियों से चला आ रहा है ‘स्त्री समानता’।
     

     वैसे तो पुरुष, स्त्री की ही कृति हैं लेकिन पितृ सत्तात्मक सोच ने स्त्री की समानता को भूला दिया है। और उसे अपनी समानता के लिए यूं संघर्ष करना पड़ रहा है। क्या हो अगर बराबरी से स्त्री—पुरुष काम करें..। घर हो या फिर बाहर। हर ज़गह उन्हें भी खुलकर सोचने..और कर पाने का माहौल मिलें…। 


       इस दिन की सार्थकता माहौल और अपनी सोच
को बदलकर कीजिए..। यकीनन घर, समाज और देश में यूं स्त्री की समानता का शोर न उठेगा। 


कहानियाँ – 

Related Posts

6 comments

Usha August 26, 2020 - 10:03 am

किसी भी क्षेत्र में अगर महिला आगे और सम्मान हो भी जाती है तो पुरुष पुरुष का अहम उसे समान होने नहीं देता है

घर परिवार में भी कामकाजी महिलाएं अगर पुरुष से ज्यादा कमाकर आर्थिक सहयोग करती हैं तो भी वह सामान नहीं कहलाती है

Reply
Teena Sharma 'Madhvi' August 26, 2020 - 10:44 am

Ha… Ye bhi sach he.

Reply
Dilkhush Bairagi August 26, 2020 - 11:53 am

yes absolutely right

Reply
Vaidehi-वैदेही August 26, 2020 - 2:33 pm

मेरे मत में महिलाओं को किसी के सहारे की जरुरत ही नहीं होनी चाहिए। वे कौन है जो बंदिशें लगाते हैं । औऱ किस हक से महिलाओं को पिंजरे का पँछी समझते हैं । दोष महिलाओं का ही हैं जो खुद को असमान समझती हैं। औऱ खुद के अधिकारों के लिए लड़ नहीं पाती। जो लड़ जाती हैं वो इतिहास रच देती है ।

Reply
Teena Sharma 'Madhvi' August 26, 2020 - 4:01 pm

Ek pahlu ye bhi he

Reply
Teena Sharma 'Madhvi' August 26, 2020 - 4:02 pm

🙏🙏

Reply

Leave a Comment

नमस्कार,

   ‘कहानी का कोना’ में आप सभी का स्वागत हैं। ये ‘कोना’ आपका अपना ‘कोना’ है। इसमें कभी आप ख़ुद की कहानी को पाएंगे तो कभी अपनों की…। यह कहानियां कभी आपको रुलाएगी तो कभी हंसाएगी…। कभी गुदगुदाएगी तो कभी आपको ज़िंदगी के संघर्षों से लड़ने का हौंसला भी देगी। यदि आप भी कहानी, कविता व अन्य किसी विधा में लिखते हैं तो अवश्य ही लिख भेजिए। 

 

टीना शर्मा ‘माधवी’

(फाउंडर) कहानी का कोना(kahanikakona.com ) 

kahanikakona@gmail.com

error: Content is protected !!