प्रासंगिक मुद्दे ‘समानता’ का शोर क्यूं…? by Teena Sharma Madhvi August 26, 2020 written by Teena Sharma Madhvi August 26, 2020 आज महिला समानता दिवस है…. क्यूं हम एक स्वर में इस दिन चिल्लाने लगते हैं कि महिलाओं को ‘समानता दो’..’समानता दो’…। क्यूं ये एक शब्द इस दिन मुखर हो उठता है। मैं नहीं मानती कि समानता का यूं शोर होना ज़रुरी है। शुरुआत तो हर रोज़ ही होनी चाहिए। वो भी घर से। आज एक सवाल हर औरत का हैं जो इस शोर को तो सुन रही हैं लेकिन इस शोर में उसके भीतर का शोर किसी को सुनाई नहीं देता। कितने लोग और परिवार हैं जो बेटी, बहू, पत्नी और मां को ‘मन की आज़ादी’ दे पाते है। कितने हैं ऐसे जो इस विषय पर भी संवेदनशील होकर सोचते है। शायद मुट्ठी भर लोग। एक औरत को समानता देने की शुरुआत तो घर ही से होगी। फिर समाज और फिर देश तक समानता का शोर हो…। जरा सोचकर देखिए क्या हम अपने घर की औरतों को मन से कुछ करने की आज़ादी देते हैं? क्या वो भी हमारी तरह सब कुछ मन का कर पाती हैं? नहीं…। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक वो सिर्फ घर और परिवार का ही सोचकर रह जाती है। रोज़ाना वह ख़ुद अपने मन की आज़ादी के साथ संघर्ष करती है। जो ख़ुद अपने सोच पाने का संघर्ष कर रही हो वो बाहर के लिए कब सोच सकेगी। एक आम औरत घर की चार दीवारी के अंदर रहकर रोज़ाना ही अपनी सोच और सपने को मारने के लिए संघर्ष कर रही होती है। वह उसी माहौल में जी रही होती हैं जो हमारे घर, परिवार और समाज ने उसे दिया है। उसका मन करता हैं कि वह आज कोई काम नहीं करें बस दिनभर टीवी देखें..उसका मन करता हैं आज उसे भी कोई थाली हाथ में पकड़ाकर कहें कि तुम्हारी पसंद का खाना हैं..कोई तो हो जो उसके सिर पर हाथ रखकर कहें कि तुम चिंता मत करो…। क्या वाकई ये माहौल उसे मिलता हैं या फिर उसे ये सब दे पाते है…नहीं…। फिर चाहे राजनीति में महिलाओं को शामिल करने की बात हो या फिर सरकारी सेवा में उन्हें आरक्षण देने जैसा मुद्दा हो। ऐसे तमाम विषयों पर बात करना तो व्यर्थ ही होगा। ये बात जितनी सरल हैं उतना ही इसका गहरा अर्थ हैं। घर के भीतर ही हर रोज जो औरत मन का करने का संघर्ष कर रही हैं वो क्या बाहर आकर समानता की उम्मीद रख सकेगी। माना कि आज हम बहुत आगे बढ़ रहे हैं। सबकुछ डिजिटल हो चला है। लेकिन इस युग में भी हम उसी एक विषय पर बात करते आ रहे हैं जो सदियों से चला आ रहा है ‘स्त्री समानता’। वैसे तो पुरुष, स्त्री की ही कृति हैं लेकिन पितृ सत्तात्मक सोच ने स्त्री की समानता को भूला दिया है। और उसे अपनी समानता के लिए यूं संघर्ष करना पड़ रहा है। क्या हो अगर बराबरी से स्त्री—पुरुष काम करें..। घर हो या फिर बाहर। हर ज़गह उन्हें भी खुलकर सोचने..और कर पाने का माहौल मिलें…। इस दिन की सार्थकता माहौल और अपनी सोचको बदलकर कीजिए..। यकीनन घर, समाज और देश में यूं स्त्री की समानता का शोर न उठेगा। कहानियाँ – जुर्माने से बड़ी जान है ‘साब’… ‘अर्थी’ का बोझ ही शेष…. 6 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post आख़री ख़त प्यार के नाम… next post खाली रह गया ‘खल्या’.. Related Posts विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 मनु भाकर ने जीता कांस्य पदक July 28, 2024 नीमूचाणा किसान आंदोलन May 14, 2024 पानी पानी रे October 30, 2023 चंद्रयान-3 August 23, 2023 महिला अधिकार व सुरक्षा January 12, 2023 असल ‘ठेकेदारी’ करके तो देखो.. September 21, 2020 कब बोलेंगे ‘हम’ सब ‘हिन्दी’… September 14, 2020 ‘रिया’ नहीं ‘नौकरियां’ चाहिए… September 9, 2020 सत्ता के शेर, ड्यूटी के आगे ढेर…. July 13, 2020 6 comments Usha August 26, 2020 - 10:03 am किसी भी क्षेत्र में अगर महिला आगे और सम्मान हो भी जाती है तो पुरुष पुरुष का अहम उसे समान होने नहीं देता है घर परिवार में भी कामकाजी महिलाएं अगर पुरुष से ज्यादा कमाकर आर्थिक सहयोग करती हैं तो भी वह सामान नहीं कहलाती है Reply Teena Sharma 'Madhvi' August 26, 2020 - 10:44 am Ha… Ye bhi sach he. Reply Dilkhush Bairagi August 26, 2020 - 11:53 am yes absolutely right Reply Vaidehi-वैदेही August 26, 2020 - 2:33 pm मेरे मत में महिलाओं को किसी के सहारे की जरुरत ही नहीं होनी चाहिए। वे कौन है जो बंदिशें लगाते हैं । औऱ किस हक से महिलाओं को पिंजरे का पँछी समझते हैं । दोष महिलाओं का ही हैं जो खुद को असमान समझती हैं। औऱ खुद के अधिकारों के लिए लड़ नहीं पाती। जो लड़ जाती हैं वो इतिहास रच देती है । Reply Teena Sharma 'Madhvi' August 26, 2020 - 4:01 pm Ek pahlu ye bhi he Reply Teena Sharma 'Madhvi' August 26, 2020 - 4:02 pm 🙏🙏 Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.