कहानियाँ कबिलाई एक ‘प्रेम—कथा’…भाग—7 by Teena Sharma Madhvi October 25, 2021 written by Teena Sharma Madhvi October 25, 2021 …….लेकिन कबिलाईयों ने उसे अपने बेटे सोहन के पास नहीं जाने दिया…ये देखकर शंकरी चिल्ला उठी…बस करो….। सारे के सारे एक निहत्थे पर टूट पड़े…बूढ़ी मां ने तुम सबका क्या बिगाड़ा हैं…इस पर तो तरस खाओ…। शंकरी की बात सुनकर भीखू सरदार का भाई उसके बाल पकड़कर उसे घसीटता हुआ सोहन के पास लाया और उसी के सामने सोहन को लात—घुसों से मारने लगा…। शंकरी ने पूरी ताकत से उसे धक्का मारा और सोहन को बचाने के लिए उसके आगे आ गई। उसने सोहन को कसकर पकड़ लिया। पूरे नौ बरस बाद दोनों एक—दूसरे के इतने क़रीब थे। सोहन ने नौ बरस पहले शंकरी को ऐसे ही गले से लगाया था…उसका वो स्पर्श आज फिर से जीवंत हो उठा …। उसने भी शंकरी को अपनी बाहों में भर लिया…। दोनों के दिल जोरों से धड़कनें लगे…दोनों एक—दूजे के लिए तड़प उठे…। ये देख भीखू सरदार बोला— अरे! इसे सोहन से दूर करो…। आज कबिले का हर आदमी अपनी आंखों से देखेगा…बस्ती के रीति—रिवाज़ों को तोड़ने का अंजाम क्या होता हैं…। शंकरी को भी इसके किये की सज़ा अवश्य ही मिलेगी…लेकिन उससे पहले इस शहरी बाबू को हमारे मान—सम्मान को ठेस पहुंचाने की सज़ा मिलेगी। हटाओ दोनों को एक—दूसरे की बाहों से….। अलग कर दो इन्हें….। गुस्साएं कबिलाईयों ने शंकरी को सोहन से अलग करने के लिए अपनी—अपनी ताकत लगाई लेकिन शंकरी और सोहन दोनों ने एक—दूसरे को नहीं छोड़ा….। सोहन चिल्लाने लगा, भीखू सरदार एक बार मेरी बात तो सुनो….मुझे भी तो बोलने का मौका दो….’मैं शंकरी से ही प्यार करता हूं….मेरी पूरी बात तो सुनो’…। लेकिन उसकी एक ना सुनी और फिर दोनों को बेरहमी से अलग कर दिया…। बेबस और लाचार पड़ी सोहन की मां भी चिखती रही…चिल्लाती रही…वो बार—बार कहती रही, ‘एक बार मेरे बेटे की बात भी तो सुन लो…उसे भी तो अपनी बात कहने दो’….लेकिन उसकी ममता पर भी किसी को तरस न आया…। कबिलाई बस्ती में इस मां के आंसूओं और दर्द से भर उठे दिल पर सुकून का मरहम लगाने वाला कोई न था…। सोहन और शंकरी पर बस्ती के हर आदमी ने लात—घुसे मारे…उनके चेहरे पर थूका…दोनों के कपड़े फाड़ डाले…दोनों बुरी तरह से ज़ख्मी होकर ज़मीन पर गिर पड़े…। इस हालत में भी सोहन हाथ जोड़कर कहता रहा…’सरदार मेरी बात तो सुनो….तुम भूल कर रहे हो’…। लेकिन भीखू सरदार का दिल न पसीजा…। कबिलाई उसे उकसाते रहे और वह कबिलाईयों की परंपरा…रीति—रिवाज़ों को निभाने की झूठी शान में अंधा हो बैठा…। उसे अपनी इकलौती बेटी पर ज़रा भी तरस नहीं आया। ‘वह भीखू सरदार के भीतर अपने पिता को ढूंढती रही…वह उम्मीद करती रही शायद उसका पिता उसे इन कबिलाईयों से बचा लेगा…शायद वो उसे और सोहन को माफ़ कर देगा’…मगर ऐसा नहीं हुआ…। सरदार को अपने फैसले पर आज गुमान हुआ…कबिलाई भी इस फैसले से ‘हो हुक्का…हो हुक्का…हो हुक्का…हो हुक्का’…नारे के साथ झूम उठे…। बरसों बाद बस्ती में इतनी बड़ी खुशी मनाई गई…हवा में तलवार…खंजर…चाकू…दराती…लहराए गए…। भीखू सरदार का भाई जिसे नौ बरस तक ये ही लगता रहा कि, उसकी नाक के नीचे ही कोई शहरी दगा कर गया और वो कुछ न कर सका…आज वो भी खुशी में चूर था…। कबिलाईयों ने भीखू सरदार को अपने कांधे पर बैठा लिया…और उसे ‘सोहन—शंकरी’ के चारों तरफ घुमाया….। अभी—भी दोनों की सांसे चल रही थी…। बूढ़ी ‘मां’ की आंखों से आंसू बह रहे थे…वह लड़खड़ाते हुए सोहन और शंकरी के पास पहुंची…। अपने आंचल से उनके माथे से बह रहा खून पोंछा….। वह दोनों को आवाज़ लगाती रही…उठ मेरे बच्चे…उठ बेटा सोहन…देख तेरी मां तुझे उठा रही हैं…। तेरे सिवा कौन हैं मेरा…उठ जा मेरे लाल…मेरा क्या होगा…। मां की गोद में बेसुध पड़ा सोहन सिर हिलाकर मां को हिम्मत देता…मैं ज़िंदा हूं मां…तू चिंता मत कर…लेकिन बुरी तरह घायल सोहन की हालत देख मां का दिल खून के आंसू रोने लगा…। वह शंकरी को भी उठाती…उठ जा बेटी…हिम्मत कर…। शंकरी भी अपना सिर हिलाकर मां को अपने ज़िंदा होने का अहसास कराती…। ये देखकर कबिलाई जोर—जोर से हंसते…और ‘हो हुक्का…हो हुक्का…हो हुक्का…हो हुक्का’…के साथ झूमते…। कबिलाई तब तक नहीं रुके जब तक की सोहन और शंकरी की अंतिम सांसे नहीं छूट गई…। दोनों ने बूढ़ी मां की गोद में अपना दम तोड़ दिया…। सोहन को अपने कलेजे से लगाकर ‘मां’ रोती रही…। तभी भीखू सरदार उसके पास आया और अपनी मूंछों पर ताव देकर बोला, देख लिया बूढ़ी मां…। तेरे बेटे का अंजाम…। हम कबिलाई अपने उसुलों के पक्के हैं….यहां हमारा अपना कानून हैं…। सोहन को तो मरना ही था…। अगर नौ बरस पहले ही हमें तेरे बेटे का इरादा पता चल जाता और वो हमारे हाथ उसी वक़्त लग जाता तो ये कबिलाई उसे तभी मार डालते…। जो आंसू तुम आज बहा रही हो वो अब तक सुख चुके होते…। इसे ‘वनदेवी’ का आशीर्वाद ही समझो कि नौ बरस तुम अपने बेटे के साथ रहने का सुख भोग सकी हो…। भीखू सरदार की बात सुनते ही सोहन की ‘मां’ जोरों से हंसने लगी…ये देख सरदार चौंक उठा….। कबिले के लोग भी जो अभी तक बेहद खुश थे एकदम गंभीर हो उसे देखने लगे….। सरदार बोल उठा— बेटे की मौत देख पागल हो गई हो क्या…? मां फिर ज़ोरों से हंसने लगी….। वह हंसते—हंसते बोली, ‘तू अपनी कबिलाई बस्ती का इतना बड़ा सरदार हैं….देख तेरी बेटी भी मर गई हैं आज…वो भी मेरे बेटे सोहन के साथ….। मैंने तो अपने बेटे के साथ ये नौ बरस भी जी लिए लेकिन तू तो वो भी नहीं जी पाया…। ये सुनते ही सरदार घबरा उठा…..। क्रमश: कबिलाई एक ‘प्रेम—कथा’…भाग—6 कबिलाई एक ‘प्रेम—कथा’…भाग—5 कबिलाई एक ‘प्रेम—कथा’…भाग—4 0 comment 0 FacebookTwitterPinterestEmail Teena Sharma Madhvi previous post कबिलाई एक ‘प्रेम—कथा’…भाग— 6 next post कबिलाई एक ‘प्रेम—कथा’…भाग—8 Related Posts छत्तीसगढ़ का भांचा राम August 29, 2024 विनेश फोगाट ओलंपिक में अयोग्य घोषित August 7, 2024 वैदेही माध्यमिक विद्यालय May 10, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 29, 2024 राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा January 22, 2024 राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा January 21, 2024 समर्पण October 28, 2023 विंड चाइम्स September 18, 2023 रक्षाबंधन: दिल के रिश्ते ही हैं सच्चे रिश्ते August 30, 2023 गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव August 13, 2023 Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.