बकाया आठ सौ रुपए

कहानी— अजय शर्मा

by teenasharma
बकाया आठ सौ रुपए

बकाया आठ सौ रुपए

अस्पताल से आते ही आठ सौ रुपए निकालकर इस लिफाफे में रख दिए थे। हाय रे मेरी किस्मत मम्मी का उधार चुकता करने का मौका ही नहीं मिला। तभी से लिफाफे में ये बकाया आठ सौ रुपए रखे हुए हैं। पढ़िए युवा रचनाकार अजय शर्मा की लिखी कहानी ‘बकाया आठ सौ रुपए’…।

 

संजय ने पूजा अभी खत्म ही की थी। आज उसकी मम्मी के निधन को एक साल पूरा हो गया था। उन्हीं की आत्मा की शांति के लिए यह पूजा रखवाई थी।

करीब दो घंटे से पूजा में बैठा संजय एक तरफ जाकर जग से पानी पीने लगा। एकाएक उसे याद आया कि उसने एक लिफाफा अपने कुर्ते की जेब में रख छोड़ा है।

बकाया आठ सौ रुपए

अजय शर्मा

बस वह हड़बड़ी में नजर आया। तेज कदमों के साथ अपनी अलमारी की तरफ बढ़ा और सफेद रंग के उस कुर्ते की जेब में से उसने गुलाबी रंग का वो लिफाफा निकाल लिया। लिफाफा लेकर दोबारा बाहर आया तो बाहर बैठी उसकी पत्नी और बहन बड़े आश्चर्य के साथ उसे देख रहे थे।

संजय ने अपनी बड़ी बहन मंजू की तरफ लिफाफा बढ़ाते हुए कहा- जीजी जरा गिनना इसमें कितने रूपए हैं। एक बार हाथ फेरकर बताना।

मंजू ने दो ही मिनट में नोट गिन लिए, बड़े रूखे से लहजे में जवाब देते हुए बोली- आठ सौ रुपए ही हैं इसमें तो। किस बात के दे रहा है मुझे।

मंजू की बात को संजय ने काटते हुए कहा- ये किसने कहा मैं तुम्हें दे रहा हूं, मैं तो गिनने के लिए बोल रहा हूं। तुमने गिन लिए, तुम्हारा काम बस इतना ही था। बाकी हैं काहे के, इस बात से तुम्हें क्या लेना-देना।

संजय से इस जवाब की उम्मीद मंजू को कतई ना थी। फिर भी अपनी मां की बरसी के दिन की संजीदगी औऱ मौके की नजाकत को देखते हुए मंजू ने दोबारा पूछा- भाई बता दे ना, काहे के पैसे हैं। किसे देने हैं। अबकी बार मंजू की आवाज में अपनेपन की झलक आ रही थी। संजय को भी इस बार अपनी बहन की बात ज्यादा मीठी लगी। 

अब तक यह सब संजय की पत्नी विनीता चुपचाप देख रही थी। स्वभाववश उससे चुप ना रहा गया, वो तपाक से अपनी चंचल आवाज और लहजे में बोली- बता दो ना जीजी को.. इन्हें भी तो पता चले कि साल भर से आपके मन में क्या चल रहा है।

विनीता की बात सुनकर मंजू का मुंह थोड़ा सा बन गया कि ऐसी क्या बात है जो दोनों को पता है और मुझे उसका आभास भी नहीं है। हल्की सी नाराजगी जताते हुए वह बोली- बता दे संजय, यहां तीन में से दो लोगों को तो पता है, मुझे ही नहीं पता, बता दे मुझे भी, अगर ऐसी कोई बताने लायक बात है तो।

संजय इस बात को भांप गया कि जो बात वह सजहता के साथ अपनी बहन को बताने जा रहा था, उसे विनीता की जल्दबाजी ने गलत तरीके से सामने रख दी है। उसने बात को संभालते हुए कहा- अरे ऐसी कोई बात नहीं है जीजी। ये आठ सौ रुपए मम्मी के हैं।

मंजू ने आश्चर्य जताते हुए कहा- मम्मी के।

संजय ने अपनी बात जारी रखी, कहा- मम्मी के देहांत के कुछ दिन पहले की बात है। उन्होंने कुछ सामान लाने के लिए मुझे दो हजार रुपए दिए थे। बाजार से बारह सौ रुपए का सामान आया था। उसमें से आठ सौ रुपए बचे थे। मैं बाकी बचे हुए रुपए देना उन्हें भूल गया। ऐसे ही कुछ दिन निकल गए थे। जब उनकी तबीयत खराब हुई तो उससे दो दिन पहले उन्होंने मुझे याद दिलाया था कि तू मुझे आठ सौ रुपए देगा, तुझ पर उधार है। मैंने कहा- हां, माताराम.. एक दो दिन में आपका बकाया उधार चुकता कर दूंगा।

संजय की बात ने एकबारगी माहौल में खामोशी कर दी। संजय की आंखें नम थी और विनीता और मंजू उसे खामोशी के साथ देख रही थी।

बकाया आठ सौ रुपए

अजय शर्मा

संजय का गला भर आया था। रुंआसे गले से वह बोला- अब वो उधार पूरा करने के लिए घर वापिस ही नहीं आईं। मैंने उस दिन अस्पताल से आते ही आठ सौ रुपए निकालकर इस लिफाफे में रख दिए थे। हाय रे मेरी किस्मत मम्मी का उधार चुकता करने का मौका ही नहीं मिला। तभी से लिफाफे में ये बकाया आठ सौ रुपए रखे हुए हैं।

मंजू ने उठकर संजय के कंधे पर हाथ रखा, अपने हाथ से उसके गाल पर बहते आंसूओं को पोँछा और समझाने के लहजे में कहा- देख मां-बाप का कर्जा क्या कोई चुका सका है।

मान ले यह उधार नहीं उसी कर्जे का हिस्सा है, जो हम कभी पूरा नहीं कर सकते। फिर भी तेरा मन ना मानें तो किसी गरीब-बुजुर्ग महिला की मदद कर देना तो समझना की मां को पैसे लौटाने का यही रास्ता बचा है हमारे पास। 

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टीना शर्मा ‘माधवी’

(फाउंडर) कहानी का कोना(kahanikakona.com ) 

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