कॉमन मैनकोना कॉमन मैन— ‘हुकमचंद’ गाइड by teenasharma July 12, 2022 written by teenasharma July 12, 2022 ‘जंगल’ बंद तो ‘काम—धंधा’ भी बंद…। तीन से चार महीने बेहद मुफ़लिसी में गुज़रते हैं…। ख़ुद का और परिवार का पेट पालना तक मुश्किल हो जाता हैं…। छुट—पुट काम धंधा या फिर ख़ेती किसानी करके ये दिन निकालना पड़ते हैं…। पर ‘जंगल’ नहीं छूट सकता…। अनजान चेहरों पर जो मुस्कान तेरती हैं वो इन बीतों महीनों के दु:खों को भूला देती हैं…। ये कहना है, कॉमन मैन— ‘हुकमचंद’ गाइड का…जो इस कहानी का रियल हीरो हैं…। ‘हुकमचंद’ गाइड पिछले दिनों मेरी मुलाक़ात ‘हुकमचंद’ गाइड से हुई…। एक बेहद ही साधारण व्यक्तित्व लेकिन काम असाधारण व चुनौतीपूर्ण। समय का पाबंद और काम के प्रति ईमानदार…। पेशे से गाइड, ‘हुकमचंद’ मुझे सवाई माधोपुर स्थित ‘रणथम्बोर राष्ट्रीय उद्यान सफ़ारी’ के दौरान मिला। सिर पर डार्क हरे रंग की कैप, ऑफ व्हाइट कलर की शर्ट और एंकल लेंथ पेंट के जंगल लिबाज़ में खड़े हुकमचंद ने पर्यटकों को ख़ासा आकर्षित किया। उसके कपड़े देख सभी का रोमांच जगंल सफारी को लेकर और अधिक बढ़ गया। कैंटर में बैठते ही सभी ने जंगली कैप और गॉगल पहन लिए…और निकल पड़े हुकमचंद व उसके साथी ड्राइवर के साथ सफारी पर…। हुकमचंद ने बताया कि, सीज़न का आख़िरी सप्ताह चल रहा हैं। जुलाई से आगामी तीन महीनों के लिए 1 से 5 नंबर जोन की सफारी बंद हो जाएगी लेकिन जोन नंबर 6 से 10 की सफारी चालू रहती हैं। चूंकि ये जोन कुछ सुखे वन क्षेत्र में आते हैं इसलिए इस सीज़न में पर्यटकों की संख्या कम रहती हैं। इससे काम पर भी असर पड़ता है। इसी बात ने हुकमचंद की कहानी को बयां कर दिया। और यहीं पर मेरी कहानी का ‘कॉमन मैन’ मुझे मिल गया…। हुकमचंद वैसे तो ‘खानपुर’ गांव का रहने वाला हैं। पर गांवों के विस्थापन के चलते रणथम्बोर अपने परिवार के साथ चला आया। http://kahanikakona.com/wp-content/uploads/2022/07/WhatsApp-Video-2022-07-12-at-11.09.24-AM.mp4 यहां पर जीवनयापन या यूं कहें कि जीविका चलाने का आधार टाइगर ‘सफ़ारी’ हैं। बड़ी संख्या में लोग बतौर गाइड के रुप में यहां काम कर रहे हैं। और हर गाइड की सैलरी पर्यटकों की संख्या पर ही निर्भर हैं। जितने जंगल के ‘फ़ेरे’ उतना पेमेंट…। हुकमचंद ने भी बतौर गाइड के रुप में अपना रोज़गार तलाश लिया और लगभग एक दशक से वो गाइड बनकर पर्यटकों को जंगल सफ़ारी करवा रहा हैं। उसके परिवार में मां, पत्नी और तीन बच्चे हैं जिनके पालन—पोषण की ज़िम्मेदारी सिर्फ हुकमचंद पर ही हैं। बरसों पहले पिता गुज़र गए है। घर में कमाने वाला वही हैं। वह गाइड के रुप में ख़ुश हैं, ये बात अलग है कि इस काम में उसे पैसा उतना नहीं मिलता जिससे सारी ज़रुरते पूरी हो सके। कई बार पेमेंट कम बन पाती हैं, इस स्थिति में महीना गुज़ारना कुछ मुश्किल भरा हो जाता हैं…लेकिन इस बात के लिए हुकमचंद ने ख़ुद को पूरी तरह से तैयार कर रखा हैं। उसके लिए मुश्किल भरे वो महीने हैं जब ‘जंगल’ बंद होता हैं…। इस दौरान कमाई बेहद कम होती हैं, जिससे घर चलाना आसान नहीं होता। इस स्थिति से निपटने के लिए इन महीनों में वो छुट—पुट खेती किसानी कर लेता हैं…और जैसे—तैसे ये समय गुज़रता हैं। पर हुकमचंद ने इस बात से कभी भी मन छोटा नहीं किया। उसका मानना है, ये तो जीवन का एक हिस्सा हैं…। कभी सुख है तो कभी दु:ख….। इससे क्या घबराना। जंगल खुलेगा फ़िर ख़ुशिया लौट आएगी…”कुछ भी हो पर जंगल नहीं छूट सकता…।’…’टाइगर’ को देखने के बाद जब पर्यटकों के चेहरे खिलखिला उठते हैं तो समझो पूरी वसूली हो गई…। ये बताते हुए हुकमचंद का चेहरा भी उसी तरह खिल उठा जैसे कि पर्यटकों का ‘टाइगर’ देखकर खिल उठता है। हुकमचंद ने आगे बताया कि, ”मेरी पूरी कोशिश और इच्छा रहती है कि, जंगल घूमने आया हर टूरिस्ट ‘टाइगर’ को देखकर ही लौटे…। न जानें कहां—कहां से लोग आते हैं और कितना पैसा ख़र्च करते हैं…। यदि वे बिना ‘टाइगर’ को देखे मायूस लौटते हैं तब मेरा दिन भी ख़राब हो जाता हैं…। लेकिन टूरिस्ट यदि ‘टाइगर’ को देख लेता है तो रात को नींद भी सुकूनभरी आती हैं…। ”यही जीवन है…।” हुकमचंद का संघर्ष निश्चित रुप से अपने स्तर पर कम नहीं हैं और चुनौती उससे भी बड़ी…। जंगल में ख़तरनाक जानवरों के बीच जाना रोज़ाना का ही काम हैं, पर इस काम में अब उसे बेहद आनंद आता हैं। पर्यटकों के खिलते हुए चेहरे ही उसकी असल ख़ुशी का आधार हैं…। ठंडी हवा के झोंकों के बीच करीब दस किमी की दूरी तय करने के बाद कैंटर ने जोन नंबर— 6 में प्रवेश किया। यहीं से हुकमचंद ने कैंटर पर सवार सभी लोगों को बिना शोर शराबे के जंगल भ्रमण के कुछ नियमों की जानकारी दी…। साथ ही आसपास की झाड़ियों से बचकर रहने की हिदायत भी दी…। जैसे—जैसे कैंटर जंगल में आगे की ओर प्रवेश करता जाता लोगों का रोमांच और बढ़ता जाता। सभी की नज़रें सिर्फ़ ‘टाइगर’ को ढूंढ रही थी। एक झलक ही सही पर टाइगर दिख जाए बस…। कैंटर पर सवार हर व्यक्ति शेर को देखने के लिए बेहद बेसब्र हुए जा रहा था…। किसी को झाड़ियों के पीछे ‘टाइगर’ की आंखे दिख जाती तो किसी को जंगल की वो ‘कॉल’ सुनाई देती जिससे मालूम हो कि बस ‘टाइगर’ आसपास ही कहीं पर हैं…लेकिन ये एक भ्रम ही था और कुछ नहीं …। तभी हुकमचंद और ड्राइवर साथी ने अचानक से गाड़ी रोक दी। मेरा रोमांच भी कम न था, मैंने हुकमचंद से पूछा क्यूं क्या हुआ भैया, दिखा क्या ‘टाइगर’ …? हुकमचंद ने बताया कि ‘लाडली’ अभी यहीं से गुज़री हैं…। ये देखिए उसके ‘पग मार्ग’…। कैंटर के सामने की ओर भी दो जिप्सी इसी इंतज़ार में रुक गई…। क़रीब पंद्रह मिनट तक हम वहीं पर खड़े रहे…। खूबसूरत जंगल और तरह—तरह की आवाजों ने बेहद रोमांच से भर दिया। जगंल भ्रमण के दौरान सांभर, चीतल, बघेरा, बंदर, सांभर हिरन, भारतीय जंगली सूअर, चित्तीदार हिरण, सांप और बड़ी जंगली छिपकली को देखा। हुकमचंद ने अपने अनुभव के आधार पर इनके साइंटिफिक नेम से भी परिचय कराया। सच में जंगल में चुनौतियां कम नहीं है पर हुकमचंद के संघर्ष और चुनौतीपूर्ण जीवन से निकलती हैं उसकी ‘ज़िंदादिली’…। जो हर उस इंसान के लिए प्रेरक है जो अपने जीवन की छोटी—मोटी परेशानियां में ही ‘आह’…कह बैठता हैं…। ——————————- ‘कॉमन मैन’ श्रृंखला की अन्य कहानी पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें— ‘गुड़िया के बाल’ कॉमन मैनगाइडजंगलरणथम्बोर राष्ट्रीय उद्यानसफारीसवाई माधोपुरहुकमचंद गाइड 14 comments 0 FacebookTwitterPinterestEmail teenasharma previous post भ्रम के बाहर next post चाबी Related Posts गाथा: श्री घुश्मेश्वर महादेव August 13, 2023 राष्ट्रीय प्रसारण दिवस आज July 23, 2023 उपन्यास ’उधड़न’ का लोकार्पण June 24, 2023 बाहुबली January 28, 2023 स्ट्रीट आर्टिस्ट हूं भिखारी नहीं November 14, 2022 ‘गुड़िया के बाल’ June 16, 2022 कहानी का कोना June 12, 2022 ‘फटी’ हुई ‘जेब’…. 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Thanks Reply teenasharma July 29, 2022 - 3:17 am thankyu so much Reply Hail Porn October 16, 2022 - 5:16 am Long living the peace Reply कॉमन मैन- स्ट्रीट आर्टिस्ट हूं भिखारी नहीं - Kahani ka kona November 14, 2022 - 5:21 pm […] कॉमन मैन— ‘हुकमचंद’ गाइड […] Reply कहानी पॉप म्यूज़िक - Kahani ka kona December 20, 2022 - 4:28 am […] हूं भिखारी नहीं कहानी-बुधिया चाबी कॉमन मैन— ‘हुकमचंद’ गाइड भ्रम के बाहर ‘गुड़िया के बाल’ […] Reply कुछ पन्ने इश्क़ - Kahani ka kona December 30, 2022 - 4:52 am […] हूं भिखारी नहीं कहानी-बुधिया चाबी कॉमन मैन— ‘हुकमचंद’ गाइड भ्रम के बाहर ‘गुड़िया के बाल’ […] Reply Leave a Comment Cancel Reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.