देश की आज़ादी में संतों की भूमिका

स्वतंत्रता दिवस

by teenasharma
देश की आज़ादी में संतों की भूमिका

आज़ादी में संतों की भूमिका

देश की आज़ादी में संतों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। सोचिएगा ज़रुर। गर इतनी ही सस्ती होती ये आज़ादी तो हर गली मोहल्लों में लगने वाली थड़ी और ठेले पर भर—भर प्लेट मिलती। कीमती है बहोत, तभी तो तिरंगे संग लहराती हैं।

स्वतंत्र भारत..। हमारा भारत…।
कितना खूबसूरत एहसास होता हैं ना ये पुकारते हुए। जहां पर हैं एक उन्मुक्त गगन..। अपनी हवा…अपना पानी…अपनी माटी और अपने लोग..। 

देश की आज़ादी में संतों की भूमिका

15 अगस्त
स्वतंत्रता दिवस

पर क्या आज से 78 साल पहले खुलकर ये कह पाना आसान था। वो भी उन अंग्रेजों के सामने जिन्होंने छल और कपट से हमारे देश पर अपना राज जमा लिया था। कितना कठिन रहा होगा ना, उस दासता से ख़ुद को मुक्त कर पाना…।

कभी जेल तो कभी लाठियां…। कभी बरसते कोड़े…फिर मौत…। तब मिली हैं ये आज़ादी हमें।

सोचिएगा ज़रुर। गर इतनी ही सस्ती होती ये आज़ादी तो हर गली मोहल्लों में लगने वाली थड़ी और ठेले पर भर—भर प्लेट मिलती। कीमती है बहोत, तभी तो तिरंगे संग लहराती हैं।

आज भारत अपना 78 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इस पावन अवसर पर ऐसी ही एक कहानी है उन संतों की भी। जिन्होंने हमारे वीर शहीदों की तरह ही इस देश को आजादी दिलाने में अपनी अहम भूमिका निभाई थी।

क्या आप जानते हैं कि अयोध्या के संतों ने देश की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ऐसे ही संतों में एक हैं बृजनंदन ब्रह्मचारी। जिन्हें नमक सत्याग्रह में सक्रिय भागीदारी के कारण छह माह की सजा हुई।

कई स्थानों पर डाक बक्से जलाने और रेलवे लाइन का तार काटने के जुर्म में वे पुन: गिरफ्तार हुए और दो भिन्न धाराओं में दो-दो वर्ष कैद एवं 50 रुपए जुर्माने की सजा पाई।

स्वाधीनता आंदोलन के फलक पर एक अन्य साधु ने भी छाप छोड़ी। यह थे वासुदेवाचार्य। लगानबंदी आंदोलन में शामिल होने के कारण वासुदेवाचार्य को एक माह की सजा हुई। इसके बाद क्रांतिकारियों से संपर्क रखने पर तीन बार गिरफ्तार हुए।

ये भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने पर 35 माह से कुछ अधिक समय तक जेल में रहे। अक्षय ब्रह्मचारी भी स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख किरदार रहे।

देश की आज़ादी में संतों की भूमिका

15 अगस्त
स्वतंत्रता दिवस

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एक वर्ष की कैद के साथ दो माह तक नजरबंद रहने की सजा मिली। वहीं संतोषी अखाड़ा से जुड़े संत गंगादास ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया और छह माह कैद के साथ सौ रुपए जुर्माना की सजा भोगी।

तो हनुमानगढ़ी के नागा साधु गोवददास के शिष्य प्रयागदास ने छह माह की कैद के साथ 25 रुपए जुर्माना की सजा भुगती। हनुमानगढ़ी के ही लालतादास को उग्र गतिविधियों में संलिप्तता के कारण 15 माह की सजा मिली और चार साल तक नजरबंद रहना पड़ा।

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टीना शर्मा ‘माधवी’

(फाउंडर) कहानी का कोना(kahanikakona.com ) 

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